भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का शीतकालीन 2008 अंक जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का शीतकालीन 2008 अंक जारी किया
03 अगस्त, 2009 भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर का शीतकालीन 2008 अंक जारी किया। यह रिज़र्व बैंक की एक अनुसंधान पत्रिका है तथा बैंक के स्टाफ के योगदान को शामिल करती है तथा इसके लेखकों के विचारों को दर्शाती है। इसमें आलेख, विशेष टिप्पणियाँ तथा स्थिरीकरण के लिए सरकारी घाटे की प्रासंगिकता, वित्तीय समावेशन के लिए बैंकिंग का प्रसार, आयातित मुद्रास्फीति और इसके प्रभाव तथा सरकारी प्रतिभूतियों की नीलामी में दक्षता जैसे मामलों पर पुस्तक समीक्षाएँ शामिल रहती हैं जो नीति मामलों के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। विशेष टिप्पणियों के खण्ड के अंतर्गत जनक राज, सरत ढाल और राजीव जैन द्वारा तैयार किया गया ‘आयातित मुद्रास्फीतःभारत से प्रमाण’नामक पेपर पिछले चार दशकों के दौरान भारत में आयातित मुद्रास्फीति में स्रोत तथा पण्यवस्तु-वार प्रवृतियों का विश्लेषण करता है। वैश्विक स्तर पर, पेपर यह जानकारी देता है कि तेल निर्यातक देशों से मुद्रास्फीति का निर्यात औद्योगिक और गैर-तेल विकासशील देशों से उल्लेखनीय रूप से उच्चतर रहा है और बादवाले दोनों देशों के बीच मुद्रास्फीति का निर्यात पहले वाले से उच्चतर है। पेपर यह स्पष्ट करता है कि भारत में घरेलू मुद्रास्फीति सकारात्मक रूप से आयात मूल्य, पूँजी प्रवाहों और विनिमय दर से प्रभावित होती है। पेपर यह उल्लेख करता है कि पूँजी के सक्षम आबंटन के माध्यम से भविष्य में घरेलू अर्थव्यवस्था में पूँजी प्रवाहों की आमेलन क्षमता सुदृढ़ करने की आवश्यकता है जिसका अन्य रूप में विनिमय दर मूल्यांकन और घटी हुई परिणामी आयात कीमतों के माध्यम से घरेलू मुद्रास्फीति पर कुछ स्थिरीकरण प्रभाव हो सकता है और इससे आस्तियों में वृद्धि तथा अर्थव्यवस्था में अस्थिरता आ सकती है। आमेलन क्षमता का अभाव न केवल वैश्वीकरण से घरेलू अर्थव्यवस्था में संभावित लाभों के संबंध में संदेह पैदा कर सकता है बल्कि देश की समग्र सांस्थिक और नीति वातावरण में भी संदेह ला सकता है। जी. रघुराज |