दूसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर - आरबीआई - Reserve Bank of India
दूसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर
2 जून 2015 दूसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 मौद्रिक और चलनिधि उपाय वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि:
परिणामस्वरूप, एलएएफ के अंतर्गत प्रतिवर्ती रिपो दर 6.25 प्रतिशत पर समायोजित हो जाएगी तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 8.25 प्रतिशत रहेंगी। आकलन 2. अप्रैल 2015 में वर्ष 2015-16 के पहले द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य से आवक आंकड़े दर्शाते हैं कि वैश्विक सुधार अभी भी धीमी गति से हो रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग हो रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कड़ी मौसमी स्थितियों, अमेरिकी डॉलर की मजबूती जिसका निर्यात पर भार पड़ रहा है और अनिवासी स्थायी निवेश में कमी के कारण पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट आई। यूरो क्षेत्र में यूरोपीयन सेंट्रल बैंक की मात्रात्मक सहजता और अवमूल्यित होते यूरो के कारण वित्तीय स्थिति सहज हो गई है। तथापि, अप्रैल में संयुक्त परचेजिंग मैनेजर सूचकों (पीएमआई), आर्थिक भावनाओं और उपभोक्ता विश्वास में कुछ सुधार है। जापान में पहली तिमाही में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई, इसका कारण निजी मांग रहा क्योंकि कारोबार खर्च से माल और व्यक्तिगत उपभोग में वृद्धि हुई। सर्वाधिक उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के लिए घरेलू कमजोरियों के कारण समष्टि आर्थिक स्थितियां चुनौतिपूर्ण रही हैं और ये वित्तीय बाजारों की हलचल से ज्यादा बढ़ गईं। मौद्रिक सहजता के बावजूद भी चीन में मंदी जारी है। हाल में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से कुछ ऊर्जा निर्यातकों के लिए वृद्धि की अनुकूल परिस्थितियां रही जबकि आयातकों के लिए विपरीत परिस्थितियां रही। निर्णायक आर्थिक सुधार के अभाव में या प्रतिकूल भू-राजनीतिक झटकों से तेल की कीमतें अस्थिर लग रही हैं। 3. वैश्विक वित्तीय बाजार भी अस्थिर हैं जिनमें उन्नत देशों की मौद्रिक नीतियों में बदलती धारणाओं के कारण रिस्क-ऑन और रिस्क-ऑफ परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। वैश्विक मुद्रा बाजारों पर अमेरिकी डॉलर की मजबूती का प्रभाव जारी है और जी3 मुद्राएं अपने मौद्रिक नीति रुख में तालमेल नहीं दर्शा रही हैं। वैश्विक बांड बाजारों में अस्थिरता बढ़ गई है जहां यूनानी संकट के कारण निवेशकों द्वारा यूरोपीय आस्तियों की अन्वाइंडिंग; फेडरल रिज़र्व के आगे के दिशानिर्देशन के बारे में तेजी से बदलती प्रत्याशाओं; कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र हलचल और जोखिम सहनशीलता में बदलावों के कारण बाजार में सुधार जैसे कारकों का प्रभाव दिखाई दे रहा है। 4. यथा प्रत्याशित, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वर्ष 2014-15 के लिए आधार मूल्यों पर भारत के वर्धित सकल मूल्य अनुमान में संशोधन कर इसे अग्रिम अनुमान से 30 आधार अंक कम कर दिया है। वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में घरेलू आर्थिक कार्यकलाप हल्के रहे हैं। मार्च 2015 के दौरान उत्तरी भारत में बेमौसमी वर्षा और ओलावृष्टि से कृषि कार्यकलापों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जहां रबी की फसल के अंतर्गत बोया गया अनुमानित 94 लाख हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ। इस पर विचार करते हुए कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान खाद्यान्न उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 5 प्रतिशत से अधिक कमी दर्शाते हैं। उत्तरोत्तर अनुमान स्थिति के बदतर होने की तरफ संकेत कर रहे हैं जहां दलहन और तिलहन की फसलों को नुकसान हो रहा है और जहां केंद्रीय पूल में बफर खाद्यान्न भंडार उपलब्ध नहीं है जिससे खाद्य मुद्रास्फीति के लिए अपसाइड जोखिम बना हुआ है। खरीफ मौसम के लिए भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के पहले अनुमानों से संभावना धूमिल हो गई है जो इस बात की भविष्यवाणी कर रहा है कि दक्षिणी पश्चिम मानसून औसत दीर्घावधि से 7 प्रतिशत कम रहेगा। आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो द्वारा एल निनो की शुरुआत की पुष्टि से यह पूर्वानुमान और बढ़ गया है। 5. यह स्पष्ट है कि पर्याप्त मात्रा में बीजों के भंडारण और उर्वरकों की समय पर आपूर्ति के साथ खाद्य प्रबंध, फसल बीमा योजनाओं, ऋण सुविधाओं, आयात और जमाखोरी को बंद करने सहित खाद्य भंडारों की समय पर उपलब्धता तथा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में खलल को दूर करने के लिए आकस्मिक योजनाओं को शुरू करने की आवश्यकता है जिससे कि मुद्रास्फीति पर कम उत्पादन के प्रभाव को व्यवस्थित किया जा सके। कृषि समर्थन मूल्यों में वृद्धि को सीमित करने से भी मुद्रास्फीति नियंत्रण में मदद मिलेगी। 6. हालांकि औद्योगिक उत्पादन में असमान रूप से सुधार हो रहा है। जैसाकि दुपहियों और ट्रेक्टरों की बिक्री में हुई कमी में दर्शाया गया है कि विशेषकर, ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग खर्च की संधारणीय कमजोरी अभी भी बनी हुई है। कॉर्पोरेट बिक्री में कमी आई है। यदि इनपुट लागतों में कमी नहीं होती तो निराशाजनक अर्जन निष्पादन बदतर हो सकता था। अनेक उद्योगों में क्षमता उपयोग में गिरावट आ रही है जो अर्थव्यवस्था में सुस्ती की ओर संकेत करता है। जबकि पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में सुधार प्रतीत हो रहा है, फिर भी निवेश मांग में पुनरुत्थान के स्पष्ट साक्ष्य के लिए अवरूद्ध निवेश परियोजनाओं को पुनः शुरू कर, नए निजी निवेश इरादों को स्थिर कर तथा वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में सुधार कर अस्थायी संकेतों पर कार्य करने की आवश्यकता है। कोयला उत्पादन को छोड़कर अप्रैल में औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक में 38 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मुख्य उद्योगों के उत्पादन में कमी आई। कोयला उत्पादन में संधारणीय पुनरुत्थान से विद्युत उत्पादन और इसके बाद खनन और उत्खनन के लिए अच्छे संकेत मिल रहे हैं। गैस के मूल्यनिर्धारण और उसकी उपलब्धता पर कुछ आशावाद है। विद्युत खरीद प्रक्रियाओं के समाधान को तेज करना होगा और विद्युत वितरण कंपनियों के वित्तीय तनाव का वरीयता आधार पर समाधान करना होगा। कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने तुलन पत्रों में सुधार लाने और निवेश के पुनरुत्थान के लिए उधार देने में मदद हेतु अधिक पूंजी की आवश्यकता होगी। 7. सेवा क्षेत्र के कार्यकलाप के अग्रणी सूचक मिश्रित संकेत दे रहे हैं। सेवाकर संग्रह, ट्रकों की बिक्री, रेल मालभाड़े, घरेलू हवाईजहाज यात्रियों और हवाईजहाज माल ट्रैफिक में बढ़ोतरी परिवहन और संचार तथा व्यापार के लिए अच्छा संकेत हो सकता है। दूसरी तरफ पर्यटकों के आगमन, रेल परिवहन और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रियों तथा माल ट्रैफिक में मंदी से होटलों, रेस्तरां और यातायात सेवाओं के कुछ घटकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अप्रैल 2015 में मुख्य रूप से नए कारोबार आदेशों में कमी के कारण सेवा पीएमआई में कमी आई। चालू राजकोषीय समेकन के कारण समुदायिक और व्यक्तिगत सेवाएं भी पिछड़ सकती हैं। 8. अप्रैल में अनुकूल आधार प्रभावों [लगभग (-) 0.8 प्रतिशत तक] की वजह से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापित खुदरा मुद्रास्फीति में दूसरे महीने में कमी दर्ज हुई। परिणामस्वरूप लगातार चार महीने में मूल्य सूचकांक की गति धीमी हुई। मौसमी तंगी के चलते खाद्य मुद्रास्फीति चार माह के निचले स्तर पर पहुंच गई और बेमौसमी बारिश का असर अभी दिखाई नहीं पड़ा है। सब्जी की मुद्रास्फीति में लगातार कमी दर्ज हुई और इसके उप समूह के अन्य पदार्थों जैसे अनाज, तेल, चीनी और मसालों की मुद्रास्फीति में भी कमी दर्ज हुई। तथापि, प्रोटीन पदार्थों, खास तौर पर दूध और दलहन के मामले में मुद्रास्फीति का स्तर लगातार ऊपर रहा। 9. बिजली और जलाऊ लकड़ी के दाम बढ़ने से ईंधन की मुद्रास्फीति में लगातार चार महीने से बढ़ोतरी हो रही थी और वह बारह महीने के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई। आधार प्रभावों के कारण इन पदार्थों की मुद्रास्फीति बढ़ी – हाल में दामों में तेजी आना, जबकि एक वर्ष के पहले दामों में धीमी गति से बढ़ोतरी दर्ज हुई थी। खाद्य और ईंधन को छोड़कर अन्य मदों की मुद्रास्फीति में मामूली वृद्धि हुई। मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाले प्रमुख कारकों के अंतर्गत मकान किराया, शिक्षा, चिकित्सा और परिवहन व्यय शामिल थे। ग्रामीण मज़दूरी में बढ़ोतरी दर्ज हुई, किंतु मामूली ढंग से। मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं उच्च एकल अंकों में बनी रहीं, तथापि, वे मौजूदा निचले स्तर की मुद्रास्फीति के अनुरूप बदल जाएंगी। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण में बताए अनुसार इनपुट और आउटपुट दामों का दबाव काबू में रहेगा। पर्चेसिंग मैनेजर सूचकांकों से भी इन बातों की पुष्टि होती है। 10. अग्रिम कर बहिर्वाह और वित्तीय वर्षांत में बैंकों के चलन की वजह से अप्रैल 2015 में चलनिधि की स्थिति में सुधार हुआ, जबकि मार्च के दूसरे पखवाड़े के दौरान चलनिधि की स्थिति अच्छी नहीं रही थी। अप्रैल में चलनिधि की स्थिति में हुए सुधार के मद्देनज़र रिज़र्व बैंक के चलनिधि प्रबंधन परिचालनों के रुख में बदलाव आया। तथापि, मई के दौरान संचलन में रहने वाली मुद्रा की मात्रा में वृद्धि हुई और सरकार की शेष राशि में बढ़ोतरी हुई, जिसके कारण चलनिधि की स्थिति दबदबे में आई। इस स्थिति से निपटने के लिए नियत दर वाले नियमित ओवरनाइट रिपो और 14-दिवसीय परिवर्तनीय दर रिपो नीलामियों के अलावा विभिन्न अवधि के दुरुस्ती परिचालन शुरू किए गए। इस कवायद से चलनिधि की अपेक्षाओं की पूर्ति करने में मदद मिली। मई के दौरान नियमित 14-दिवसीय परिवर्तनीय दर रिपो, अतिरिक्त परिवर्तनीय दर रिपो और एमएसएफ के अलावा दैनिक रूप से उपलब्ध कराई गई औसत निवल चलनिधि ₹ 1031 बिलियन थी, वहीं अप्रैल में यह ₹ 819 बिलियन हो गई। परिणामस्वरूप, भारित औसत मुद्रा बाज़ार दरों ने नीति दरों का रुख अपनाया। अंतरराष्ट्रीय प्रभावों के चलते मई की शुरुआत में दीर्घावधिक ब्याज दरों, खास तौर पर गिल्टों में गिरावट आई तेजी, किंतु मई के दूसरे पखवाड़े के दौरान विशेष रूप से नए बेंचमार्क बांड जारी किए जाने के बाद उसकी स्थिति में सुधार हुआ। 11. पण्य निर्यात की गति में जुलाई 2014 से लगातार धीमी होती रही तथा उसमें जनवरी 2015 से अप्रैल तक की अवधि में कमी दर्ज हुई और हाल में निर्यात के ईवन वॉल्यूम में गिरावट आई है। निर्यात का प्रदर्शन खराब रहने के कारण एशिया की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुईं, क्योंकि वैश्विक मांग में कमी आई और पण्यवस्तुओं के मूल्य में गिरावट आने से पण्यवस्तुओं के निर्यातकों का कारोबार प्रभावित हुआ। रिफाइनरियों द्वारा रखी गई इन्वेंट्री के घटने तथा आयातित तेल की मात्रा में भारी गिरावट दर्ज होने के कारण दिसंबर 2014 से व्यापारिक निर्यात की वृद्धि दर ऋणात्मक हुई। त्यौहारी मांग और विनियामक छूटों के चलते मार्च के दौरान सोने के आयात की मात्रा अत्यधिक बढ़ी और अप्रैल में भी वह उच्च स्तर पर बनी रही। उल्लेखनीय है कि भाव के घटने के बावजूद आयात की मात्रा में बढ़ोतरी दर्ज होती रही। इन गतिविधियों के कारण तेल की कीमतों में गिरावट आने के परिणामस्वरूप चालू खाता घाटे में दर्ज कमी का रुख बदल गया, हालांकि इस वर्ष के दौरान चालू खाता घाटे का स्तर जीडीपी में लगभग 1.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। पिछले वित्तीय वर्ष की भांति इस वर्ष के दौरान भी निवल निर्यातों से वृद्धि दर में कोई योगदान प्राप्त होने की संभावना कम है। परिणामस्वरूप, वृद्धि दर देशी अंतिम मांग के स्तर पर अपेक्षाकृत अधिक निर्भर रहेगी। 2014-15 के दौरान पोर्टफोलियो और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाहों में उछाल आई थी और भारत में किए गए निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निवल पोर्टफोलियो अंतर्वाह क्रमश: 36.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 41 बिलियन अमेरिकी डॉलर थे, वहीं वर्ष 2015-16 की शुरुआत भारत के लिए किए गए वैश्विक पोर्टफोलियों आबंटन में कमी आने के कारण निवल पोर्टफोलियो बहिर्वाह से हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है, जो कि उस स्थिति में अच्छी समष्टि-आर्थिक नीतियों की रक्षा करने में सहायक हो सकता है जब विदेशी बाज़ारों में काफी उतार-चढ़ाव हो रहा हो। नीतिगत रुख और औचित्य 12. बैंकों ने अपनी उधार दरों में पिछली कुछ दर कटौतियों का लाभ देना प्रारंभ कर दिया है, हेडलाइन मुद्रास्फीति अनुमानित पथ के साथ बढ़ रही है, बेमौसमी बरसात का प्रभाव अब तक सामान्य रहा है, प्रशासित मूल्य वृद्धि मंद है और ऐसा लग रहा है कि अमरीकी मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण का समय बीत गया है। घरेलू क्षमताओं के कम उपयोग, अभी भी सुधार के मिश्रित संकेतक और नियंत्रित निवेश और ऋण वृद्धि को देखते हुए, आज नीति दर में कटौती की जा सकती है। 13. फिर भी, अप्रैल में चिह्नित मुद्रास्फीति के जोखिमों में से तीन जोखिम अभी भी बने हुए हैं। पहला, कुछ पूर्वानुमानकर्ता, खासकर भारतीय मौसम-विज्ञान विभाग ने सामान्य से कम दक्षिण पश्चिमी मानसून का अनुमान लगाया है। संभावित मुद्रास्फीतिकारी प्रभावों को कम करने के लिए कारगर खाद्य प्रबंधन की आवश्यकता है। दूसरा, अत्यधिक अस्थिरता के बीच कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और भू-राजनैतिक जोखिम अभी भी बने हुए हैं। तीसरा, बाह्य वातावरण में अस्थिरता से मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ सकता है। अत: हम एक ऐसी परंपरागत कार्यनीति अपनाएं जिसमें हम मानसून की स्थिति और सरकार की प्रतिक्रियाओं के प्रभावों की प्रतीक्षा करें ताकि उनके चूकने पर तदनुसार कदम उठाया जा सके। तथापि अभी भी कमज़ोर निवेश और प्रस्तावित अवस्फीतिकारी पथ (2018 की शुरूआत में 4 प्रतिशत) पर बने रहने के लिए मध्यावधि में आपूर्ति प्रतिबंधों को कम करने की आवश्यकता के साथ, एक अधिक उचित रुख आज दर में कटौती करना और फिर उन आंकड़ों की प्रतीक्षा करना जो अनिश्चितता को स्पष्ट करेंगे। इसी बीच, बैंक अपनी उधार दरों में दर कटौतियों का लाभ दें। 14. पर्याप्त खाद्य प्रबंधन मानते हुए मुद्रास्फीति को अगस्त तक आधार प्रभावों से नीचे लाना अपेक्षित है। किंतु इसके बाद जनवरी 2016 तक 6.0 प्रतिशत तक बढ़ना अपेक्षित है जो अप्रैल में किए गए अनुमानों से थोड़ा अधिक है। निजी पूर्वानुमानकर्ताओं के अधिक आशावादी अनुमानों की तुलना में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मानसून अनुमानों को अधिक महत्व देते हुए और सेवा कर दर 14 प्रतिशत तक बढ़ने से संभावित मुद्रास्फीति प्रभावों के लेखांकन से केंद्रीय विकास वृद्धि पथ (ट्रेजेक्टरी) पर अपसाइड जोखिम हैं। (चार्ट 1) 15. जहां तक वर्ष 2014-15 के लिए किए गए जीवीए आकलनों का संबंध है, जोखिमों और अधोगामी संशोधन के बीच किए गए संतुलन को दर्शाते हुए तथा विभिन्न जोखिमों को लेकर मौजूद अनिश्चितताओं की अधोगामी प्रवृत्ति को प्रकट करते हुए 2015-16 के लिए उत्पादन की वृद्धि दर को अप्रैल के पूर्वानुमानित 7.8 प्रतिशत के स्तर से घटाकर 7.6 प्रतिशत कर दिया गया है (चार्ट 2)। 16. साथ ही साथ, उदारतापूर्ण मौद्रिक रुख से पूर्ण रूप से ऐसी सरकारी नीति बनाने का माहौल पैदा होगा जिसके कारण अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि होने के साथ-साथ निजी निवेश भी बढ़ेगा। यह मध्यम अवधि में आपूर्ति-जन्य अवरोधों को दूर करने और अवस्फीति को मदद देने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक क्षेत्र के ऐसे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, विशेष रूप से जो अपनी दबावग्रस्त आस्तियों से निपटने के लिए कारगर कार्यनीति लागू कर रहे हों, को बैंक पूंजी उपलब्ध कराना ज़रूरी है जिससे निवेश की गति बढ़ने की स्थिति में उत्पादनकारी क्षेत्रों को पर्याप्त मात्रा में ऋण प्रवाह हो सकता है। 17. तीसरा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 4 अगस्त 2015 को घोषित किया जाएगा। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/2547 |