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विकासात्मक और विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य

27 मार्च 2020

विकासात्मक और विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य

इस वक्तव्य में अनेक प्रकार की विकासात्मक और विनियामकीय नीतियां शामिल की गई हैं, जो COVID-19 के कारण वित्तीय स्थितियों में उत्पन्न दबावों का सीधे-सीधे समाधान प्रस्तुत करती हैं। इनमें शामिल हैं (i) प्रणाली में काफी मात्रा में चलनिधि का विस्तार करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि COVID-19 संबंधी जो अव्यवस्था पैदा हुई है उसके चलते वित्तीय बाजार और संस्थाएं सामान्य रूप से कार्य कर सकें (ii) मौद्रिक प्रसारण को बढ़ाना ताकि क्रेडिट का प्रवाह आसानी से हो सके और वे संस्थाएं स्वयं को बहाल रख सके जो महामारी (पेंडेमिक) से प्रभावित हुई है। (iii) चुकौती संबंधी दबावों को रियायत बरतते हुए तथा कार्यशील पूंजी तक बेहतर एक्सेस प्रदान करते हुए COVID-19 की बाधाओं द्वारा उत्पन्न वित्तीय दबावों को कम करना तथा (iv) महामारी के चलते और उसके फैलने से बाजारों में उत्पन्न उच्च अस्थिरता को देखते हुए बाजारों की कार्यात्मकता को बेहतर बनाना इस भाग में दी गई नीतिगत पहल को मौद्रिक नीति कार्रवाई और समाधान स्वरूप उसके रुझान के संबंध में मौद्रिक नीति समिति के निर्णयों के साथ पढ़ा जाना चाहिए।

I. चलनिधि प्रबंधन

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, उपायों की पहली खेप से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि सभी प्रकार के घटकों को पर्याप्त मात्रा में चलनिधि उपलब्ध हो ताकि COVID-19 की वजह से पैदा चलनिधि बाधाएं सहज बन सकें।

1. लक्ष्य किए गए दीर्घावधि रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ)

भारत में COVID-19 के फैलने और तेजी से हुए उसके प्रसार ने घरेलू इक्विटी, बॉण्ड और विदेशी मुद्रा बाजारों में भारी बिक्री को और भी तीव्र कर दिया। शोधन के तीव्र दबाव के कारण लिखतों पर चलनिधि प्रक्रिया जैसे कॉर्पोरेट बॉण्ड, कमर्शियल पेपर और डिबेंचर पर प्रीमियम बढ़ते चले गए। इसके साथ, COVID-19 के फैलने से व्यापार संबंधी गतिविधियाँ कम हो जाने को मिलाकर देखा जाए तो इन लिखतों की वित्तीय स्थिति भी, अन्य बातों के साथ-साथ बैंक क्रेडिट की हालत मंद हो जाने की स्थिति में कार्यशील पूंजी को एक्सेस कर पाना भी कठिन हो गया। आर्थिक गतिविधियों पर इनके प्रतिकूल प्रभावों, जिससे नकदी प्रभावों पर दबाव पड़ता है, को कम करने के लिए यह निर्णय किया गया है कि रिज़र्व बैंक उपयुक्त आकार के लक्ष्य किए गए तीन वर्ष तक के सावधि रेपो की नीलामियाँ करेगा जिसकी कुल राशि 1,00,000 करोड़ रुपए होगी और जो नीतिगत रेपो दर से जुड़ी फ्लोटिंग दर पर आधारित होगी।

बैंको द्वारा इस योजना के अंतर्गत प्राप्त की गई चलनिधि को निवेश श्रेणी के कॉर्पोरेट बॉण्ड, कमर्शियल पेपर तथा अपरिवर्तनीय डिबेंचर में लगाना होगा जो 27 मार्च 2020 को उनके द्वारा इन बॉण्डों में किए जाने वाले निवेश के बकाया स्तर के अतिरिक्त होगा। बैंकों से यह अपेक्षित होगा कि वे पात्र लिखतों की अपनी वृद्धिशील धारिता का पचास प्रतिशत तक प्राथमिक बाज़ार के निर्गमों से प्राप्त करें और शेष पचास प्रतिशत म्यूचुअल फ़ंड एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों सहित द्वितीयक बाजार से प्राप्त करें। इस सुविधा के अंतर्गत बैंकों द्वारा किए गए निवेश को परिपक्वता तक धारित (एचटीएफ़) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, भले ही एचटीएफ़ पोर्टफोलियो में शामिल करने के लिए कुल अनुमत निवेश 25 प्रतिशत से अधिक क्यों न हो। इस सुविधा के अंतर्गत किए गए एक्स्पोजर की गणना बड़े एक्स्पोजर फ्रेमवर्क के अधीन नहीं की जाएगी।

टीएलटीआरओ की पहली नीलामी आज (27 मार्च 2020) को की जाएगी। इस नीलामी के परिणामों की समीक्षा के बाद आगामी टीएलटीआरओ नीलामियों की घोषणा की जाएगी।

इस सुविधा की जानकारी अलग से जारी की जा रही है।

2. नकदी प्रारक्षित अनुपात

ए. बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि प्रचूरता से बनी रहेगी जैसाकि 1 से 25 मार्च 2020 के दौरान दैनिक औसत आधार पर 2.86 लाख करोड़ रुपए एलएएफ़ रिवर्स रेपो परिचालन के अंतर्गत बैंकिंग प्रणाली से अधिशेष को अवशोषित करने से परिलक्षित होता है। लेकिन यह पाया गया है कि चलनिधि का यह वितरण संपूर्ण वित्तीय प्रणाली में अत्यधिक असमान है और वह भी स्पष्टतया बैंकिंग प्रणाली के भीतर है।

COVID-19 से उत्पन्न बाधाओं के कारण तंगहाली में पड़े बैंकों की एकबारगी सहायता के लिए यह निर्णय लिया गया है कि सभी बैंकों के लिए नकदी प्रारक्षित निधि (सीआरआर) को 28 मार्च 2020 को प्रारंभ रिपोर्टिंग पखवाड़े से 100 आधार अंक कम कर के निवल माँग और मियादी देयताओं (एनडीटीएल) का 3.0 प्रतिशत कर दिया जाए। सीआरआर में की गई इस कमी से संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली में समान रूप से लगभग 1,37,000 करोड़ रुपए की प्राथमिक चलनिधि आ जाएगी जो घटकों की अतिरिक्त एसएलआर की धारिता के सापेक्ष न हो कर उनकी देयताओं के अनुपात में होगी। यह छूट 26 मार्च 2021 को समाप्त एक वर्ष के लिए उपलब्ध रहेगी।

बी. इसके अतिरिक्त, स्टाफ की सामाजिक दूरी की वजह से बैंकों को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और उसके फलस्वरूप रिपोर्टिंग अपेक्षाओं पर जो दबाव पड़ रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि 28 मार्च 2020 से शुरू होने वाले रिपोर्टिंग पखवाड़े के पहले दिन से प्रभावी न्यूनतम दैनिक सीआरआर की अपेक्षा को घटाकर 90 से 80 प्रतिशत कर दिया जाए। यह छूट एकबारगी रूप में 26 जून 2020 तक उपलब्ध रहेगी।

3. सीमांत स्थायी सुविधा

सीमांत स्थायी सुविधा के अंतर्गत बैंक, अपने विवेक पर संविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में से 2 प्रतिशत तक ओवरनाइट उधार ले सकते हैं। घरेलू वित्तीय बजार में अपवाद रूप से अत्यधिक अस्थिरता की हालत ने चलनिधि पर चरणबद्ध रूप से दबाव पैदा कर दिया है, बैंकिंग प्राणली को इसमें सहायता प्रदान करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि उक्त सीमा को तत्काल प्रभाव से 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिशत कर दिया जाए। यह उपाय 30 जून 2020 तक उपलब्ध रहेगा। इसके पीछे मंशा यह है कि मौद्रिक नीति समिति के संकल्प में घोषित एमएसएफ़ की घटी हुई दर पर दबाव की हालत में बैंकिंग प्रणाली को एलएएफ़ विंडो के अंतर्गत 1,37,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त उपलब्ध कराए जाएँ ताकि उसमें सहजता पैदा हो।

टीएलटीआरओ, सीआरआर और एमएसएफ़ इन तीनों उपायों से प्रणालियों में कुल 3.74 लाख करोड़ रुपए की चलनिधि आ जाएगी।

4. मौद्रिक नीति दर के कॉरिडॉर को बढ़ाना

यह निर्णय लिया गया है कि लगातार बनी हुई अधिशेष चलनिधि की स्थिति में वर्तमान नीतिगत कॉरिडॉर को 50 आधार अंक से बढ़ा कर 65 आधार अंक कर दिया जाए । इस नए कॉरिडॉर के अंतर्गत चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के अंतर्गत प्रतिवर्ती रेपो दर 40 आधार अंक होगी जो नीतिगत रेपो दर से कम होगी। सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) 25 आधार अंक पर नीतिगत रेपो दर से अधिक बनी रहेगी।

II. विनियमन और पर्यवेक्षण

चलनिधि संबंधी उपायों के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि COVID-19 महामारी के संकट के कारण उत्पन्न बाधाओं की वजह से कर्ज चुकाने के बोझ को कम करने के लिए प्रयास किए जाएं। इस प्रकार के प्रयासों से वास्तविक अर्थव्यवस्था में वित्तीय दबाव के प्रसार पर रोक लगेगी और इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कारोबार फायदेमंद तरीके से चलते रहें और ऐसी कठिन घड़ी में उधारकर्ताओं को राहत मिल सके।

5. मीयादी ऋणों का स्थगन

सभी वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंक और स्थानीय क्षेत्र बैंक सहित), सहकारी बैंक, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं तथा एनबीएफ़सी (आवास वित्त कंपनी तथा माइक्रो वित्त कंपनी सहित) (“उधारदाता संस्थाएं”) को अनुमति दी जाती है कि वे 1 मार्च 2020 को बकाया सभी मीयादी ऋणों पर किश्तों के भुगतान पर तीन महीने के स्थगन की अनुमति प्रदान करें। तदनुसार, चुकौती के सभी शैड्यूल तथा बाद की सभी देय तारीखें, तथा इस प्रकार के ऋणों की अवधि सभी स्तरों पर तीन महीने के लिए आगे बढ़ जाएगी।

6. कार्यशील पूंजी सुविधा पर ब्याज आस्थगित करना

उधार देने वाली संस्थाओं को यह अनुमति दी जाती है कि कार्यशील पूंजी सुविधा के रूप में उनके द्वारा स्वीकृत कैश क्रेडिट/ ओवरड्राफ्ट के संबंध में 1 मार्च 2020 को बकाया ऐसी सभी सुविधाओं के लिए ब्याज के भुगतान की तारीख तीन महीने के लिए आगे बढ़ा दें। इस अवधि के लिए संचित ब्याज का भुगतान आस्थगित अवधि की समाप्ति पर किया जाएगा।

उपर्युक्त पैरा 5 और 6 के संबंध में, स्थगन/ आस्थगन की सुविधा विशेष रूप से इसलिए प्रदान की जा रही है, ताकि उधारकर्ता COVID-19 से उत्पन्न आर्थिक संकट से निपट सकें। अतः इसे उधारकर्ताओं की वित्तीय परेशानी के कारण ऋण हेतु किए गए करार की शर्तों में परिवर्तन नहीं माना जाएगा और फलस्वरूप आस्तियों का निम्न श्रेणी में वर्गीकरण नहीं करना होगा। उधारदाता संस्थाएं इस संबंध में तदनुसार बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति कार्यान्वित कर सकते हैं।

7. कार्यशील पूंजी के वित्तपोषण को आसान बनाना

कैश क्रेडिट / ओवरड्राफ्ट के रूप में स्वीकृत कार्यशील पूंजी सुविधा के संबंध में उधारदाता संस्थाएं आहरण- शक्ति की पुनःगणना मार्जिन कम करते हुए और/ अथवा उधारकर्ता के लिए कार्यशील पूंजी के चक्र का पुनर्मूल्यांकन करते हुए करें। विशेष रूप से COVID-19 से उत्पन्न आर्थिक संकट से निपटने के लिए उधारकर्ताओं को क्रेडिट–शर्तों में बदलाव करने हेतु दी गई अनुमति को उनकी वित्तीय कठिनाई के कारण प्रदान की गई रियायत नहीं माना जाएगा और फलस्वरूप आस्तियों का वर्गीकरण निम्न श्रेणी में नहीं किया जाएगा।

पैरा 5, 6 और 7 के संबंध में भुगतान के पुनर्निर्धारण को पर्यवेक्षी रिपोर्टिंग के प्रयोजन से तथा (सीआईसी) उधारदाता संस्थाओं द्वारा क्रेडिट सूचना कंपनियों (सीआईसी) को रिपोर्टिंग के प्रयोजन से चूक नहीं माना जाएगा। सीआईसी यह सुनिश्चित करेगी कि उक्त घोषणा के अनुसरण में उधारदाता संस्थाओं द्वारा की गई कार्रवाई का लाभार्थियों के क्रेडिट-इतिहास पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ें।

8. निवल स्थायी वित्तपोषण अनुपात (एनएसएफ़आर) के कार्यान्वयन को स्थगित करना

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के वर्षों में किए गए सुधारों के एक हिस्से के रूप में, बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसेल समिति (बीसीबीएस) ने निवल स्थायी वित्तपोषण अनुपात (एनएसएफ़आर) की शुरुआत की थी, जो भविष्य के वित्तपोषण तनाव के जोखिम को कम करने के लिए एक वर्ष के समय क्षितिज पर वित्तपोषण के पर्याप्त स्थायी स्रोतों से बैंकों के कार्यकलाप को वित्त पोषित कर बैंकों की आवश्यकता के हिसाब से जोखिम को कम करता है। निर्धारित समयावधि के अनुसार, भारत में बैंकों को 1 अप्रैल 2020 से एनएसएफआर को 100 प्रतिशत बनाए रखने की आवश्यकता थी। अब 1 अप्रैल 2020 से 1 अक्टूबर 2020 तक छह महीने तक एनएसएफआर के कार्यान्वयन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।

9. पूंजी संरक्षण बफर के अंतिम ट्रैन्च का स्थगन

पूंजी संरक्षण बफर (सीसीबी) को यह सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है कि बैंक सामान्य समय के दौरान (यानी, तनाव के समय के बाहर) पूंजीगत बफर का निर्माण करें, जिन्हें एक तनावग्रस्त अवधि के दौरान होने वाले नुकसान के लिए निकाला जा सकता है। बेसल मानकों के अनुसार, सीसीबी के 0.625 प्रतिशत के ट्रैंच में लागू किया जाना था और 2.5 प्रतिशत के पूर्ण सीसीबी में परिवर्तन 31 मार्च 2019 तक पूरा होना तय था। बाद में 31 मार्च 2019 से 31 मार्च 2020 तक सीसीबी के 0.625 प्रतिशत के अंतिम ट्रैंच के कार्यान्वयन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया। COVID-19 के कारण संभावित तनाव को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया कि सीसीबी के 0.625 प्रतिशत के अंतिम ट्रैंच के कार्यान्वयन को 31 मार्च 2020 से आगे 30 सितंबर 2020 तक स्थगित किया जाए। इसके परिणामस्वरूप, अतिरिक्त टियर 1 लिखत (पीएनसीपीएस और पीडीआई) रूपांतरण / राइट-डाउन के माध्यम से हानि के अवशोषण के लिए पूर्व-निर्धारित ट्रिगर जोखिम-भारित परिसंपत्तियों (आरडब्ल्यूए) के 5.5 प्रतिशत पर बना रहेगा और 30 सितंबर 2020 को आरडब्ल्यूए के 6.125 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

III. वित्तीय बाजार

वित्तीय बाजारों के संबंध में निर्णय अनिवार्य रूप से एक विकासात्मक प्रकृति का है, जिसका उद्देश्य और ओनशोर और ऑफशोर बाजारों के बीच मध्यस्थता को कम करके विदेशी मुद्रा बाजार क्षेत्रों में गहनता और मूल्य खोज में सुधार करना है। यह उपाय मुद्रा बाजारों पर COVID-19 के प्रभाव के कारण रुपये की बढ़ी हुई अस्थिरता के संदर्भ में अधिक महत्व रखता है।

10. बैंकों को ऑफशोर गैर-सुपुर्द रुपया डेरिवेटिव बाजार (ऑफशोर एनडीएफ रुपया बाजार) में डील करने की अनुमति देना

ऑफशोर भारतीय रुपया (आईएनआर) डेरिवेटिव बाजार - गैर-सुपुर्द वायदा (एनडीएफ़) बाजार हाल के दिनों में तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में, भारतीय बैंकों को इस बाजार में भाग लेने की अनुमति नहीं है, हालांकि एनडीएफ बाजार में उनकी भागीदारी के लाभों को व्यापक रूप से मान्यता दी गई है। मुद्दे के सभी पहलुओं की विस्तार से जांच की गई है और आरबीआई में एक आम सहमति बन गई है कि यह समय ओनशोर और ऑफशोर बाजारों के बीच विभाजन को हटाने और मूल्य खोज की दक्षता में सुधार करने के लिए उपयुक्त है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि सरकार के परामर्श से, 1 जून 2020 से एनडीएफ़ बाजार में भाग लेने की अनुमति भारत में उन बैंकों को दी जाए जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफ़एससी) बैंकिंग इकाइयों (आईबीयू) को परिचालित करते हैं। बैंक भारत में अपनी शाखाओं, अपनी विदेशी शाखाओं या अपने आईबीयू के माध्यम से भाग ले सकते हैं। आज अंतिम निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/2130

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