विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य
4 दिसंबर 2020 विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य यह वक्तव्य विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीति के उपायों i) अर्थव्यवस्था के लक्षित क्षेत्रों के लिए चलनिधि समर्थन को अन्य क्षेत्रों से जोड़ना; (ii) वित्तीय बाजारों को व्यापक बनाना; (iii) विनियामक पहलों के माध्यम से बैंकों और एनबीएफसी के बीच पूंजी का संरक्षण; (iv) लेखा परीक्षा कार्यों के माध्यम से पर्यवेक्षण को मजबूत करना; (v) निर्यातकों के लिए कारोबार करने में आसानी के लिए बाहरी व्यापार को सुविधाजनक बनाना; और (vi) वित्तीय समावेशन का विस्तार करने और ग्राहक सेवा में सुधार करने के लिए भुगतान प्रणाली सेवाओं का उन्नयन, को निर्धारित करता है। I. गतिविधि को पुनर्जीवित करने के लिए चलनिधि उपाय 1. मांग पर टीएलटीआरओ - ईसीएलजीएस 2.0 के साथ सेक्टर और सिनर्जी का विस्तार विशिष्ट क्षेत्रों में गतिविधि के पुनरुद्धार पर चलनिधि उपायों के फोकस को बढ़ाने के उद्देश्य से, जिनका पिछले और आगे दोनों से जुड़ाव और वृद्धि पर बहुस्तरीय प्रभाव हैं, रिज़र्व बैंक ने 9 अक्टूबर 2020 को मांग पर टीएलटीआरओ की घोषणा की जो 31 मार्च 2021 तक उपलब्ध होगी। तदनुसार, योजना की प्रतिक्रिया की समीक्षा के बाद राशि और अवधि बढ़ाने के लचीलेपन के साथ पॉलिसी रेपो दर से सहलग्न अस्थायी दर पर कुल ₹1,00,000 करोड़ तक की राशि के लिए तीन वर्षों तक के लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालनों को मांग पर संचालित करने का निर्णय लिया गया था। 12 नवंबर 2020 को घोषित किए गए आत्म निर्भर भारत पैकेज 3.0 के हिस्से के रूप में, केंद्र सरकार ने इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम 2.0 (ईसीएलजीएस 2.0) शुरू की, जिसके तहत रिज़र्व बैंक की कामथ कमेटी द्वारा चिन्हित 26 तनावग्रस्त क्षेत्रों में संस्थाओं को मौजूदा ईसीएलजीएस 1.0 के ₹ 3.0 लाख करोड़ के कोष को 100 प्रतिशत गारंटीकृत संपार्श्विक मुफ्त अतिरिक्त ऋण प्रदान करने साथ ही हेल्थ केयर सेक्टर जिनकी क्रेडिट बकाया राशि 29.2.2020 तक ₹ 50 करोड़ से अधिक और ₹ 500 करोड़ तक है के लिए बढ़ाया गया था। तदनुसार, 21 अक्टूबर 2020 को योजना के तहत घोषित पांच क्षेत्रों के अलावा, अब मांग पर टीएलटीआरओ के तहत पात्र क्षेत्रों के दायरे में कामथ समिति द्वारा चिह्नित 26 तनावग्रस्त क्षेत्रों को लाने का प्रस्ताव है। बैंकों को दो योजनाओं के तालमेल के लिए रिज़र्व बैंक से मांग पर टीएलटीआरओ के तहत धनराशि का लाभ उठाने और तनावग्रस्त क्षेत्रों को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए ईसीएलजीएस 2.0 के तहत गारंटी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना के तहत बैंकों द्वारा प्राप्त चलनिधि को संस्था द्वारा विशिष्ट क्षेत्रों के लिए जारी कॉरपोरेट बॉन्ड, वाणिज्यिक पेपर और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर में नियोजित किया जाना चाहिए जो 30 सितंबर 2020 को ऐसे लिखतों में अपने निवेश के बकाया स्तर के अलावा हो। इस योजना के तहत प्राप्त चलनिधि का उपयोग इन क्षेत्रों के ऋणों और अग्रिमों को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। इस सुविधा के तहत बैंकों द्वारा किए गए निवेश को परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, यहां तक कि कुल निवेश का 25 प्रतिशत से अधिक एचटीएम पोर्टफोलियो में शामिल करने की अनुमति है। इस सुविधा के तहत सभी एक्सपोज़र को बड़े एक्सपोज़र फ्रेमवर्क (एलईएफ) के तहत गणना से छूट दी जाएगी। 2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के लिए अधिक कुशल चलनिधि प्रबंधन की सुविधा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को वर्तमान में रिज़र्व बैंक की चलनिधि विंडो के साथ-साथ कॉल / नोटिस मनी मार्केट तक एक्सेस की अनुमति नहीं है। इन मुद्दों के समाधान के लिए अब दो नए उपाय प्रस्तावित हैं। (i) आरआरबी द्वारा प्रतिस्पर्धी दरों पर अधिक कुशल चलनिधि प्रबंधन की सुविधा के लिए, आरआरबी को चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। (ii) आरआरबी को उधारकर्ता और ऋणदाता दोनों के रूप में कॉल / नोटिस मनी मार्केट में भाग लेने की अनुमति देने का भी निर्णय लिया गया है। इस संबंध में विस्तृत निर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे। II. विनियमन और पर्यवेक्षण COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से रिज़र्व बैंक की विनियामक प्रतिक्रिया ने वित्तीय स्थिरता की अनिवार्यता को देखते हुए उधारकर्ताओं द्वारा ऋण चुकौती पर तत्काल प्रभाव के शमन, उधारकर्ता संस्थाओं के तनाव के विश्वसनीय समाधान को सक्षम कर और, अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह को सुविधाजनक बनाए जाने पर ध्यान केंद्रित किया है। उसी के आगे, निम्नलिखित उपायों की घोषणा की जा रही है: 3. बैंकों द्वारा लाभांश वितरण COVID-19 संबंधित आर्थिक झटकें को ध्यान में रखते हुए, अप्रैल 2020 में यह घोषणा की गई थी कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबी) और सहकारी बैंक 31 मार्च 2020 को समाप्त वित्तीय वर्ष से संबंधित लाभ से कोई लाभांश का भुगतान अगले निर्देश तक नहीं करेंगे, जिसे 30 सितंबर 2020 को समाप्त तिमाही के लिए बैंकों के वित्तीय परिणामों के आधार पर पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा। COVID-19 से संबंधित सतत तनाव और बढ़ी अनिश्चितता को देखते हुए, यह जरूरी है कि बैंक अर्थव्यवस्था का समर्थन करने और नुकसान को अवशोषित करने, यदि कोई हो, के लिए पूंजी का संरक्षण करते रहें। बैंकों के तुलन-पत्र को और मजबूत करने के साथ वास्तविक अर्थव्यवस्था को उधार देने का समर्थन करते हुए, समीक्षा करने पर, यह निर्णय लिया गया है कि एससीबी और सहकारी बैंक वित्तीय वर्ष 2019-20 से संबंधित लाभ से कोई लाभांश भुगतान नहीं करेंगे। उपरोक्त उपाय पर दिशानिर्देश जल्द ही जारी किए जाएंगे। 4. एनबीएफसी के लिए लाभांश वितरण नीति बैंकों की तरह, वर्तमान में एनबीएफसी द्वारा लाभांश के वितरण के संबंध में कोई दिशानिर्देश नहीं हैं। वित्तीय प्रणाली में एनबीएफसी के बढ़ते महत्व और विभिन्न क्षेत्रों के साथ उनके अंतर संबद्धता को ध्यान में रखते हुए, एनबीएफसी द्वारा लाभांश वितरण पर दिशानिर्देश तैयार करने का निर्णय लिया गया है। एनबीएफसी की विभिन्न श्रेणियों को सामान्य शर्तों के एक सेट के अधीन मानकों के मैट्रिक्स के अनुसार लाभांश घोषित करने की अनुमति होगी। इस संबंध में एक ड्राफ्ट परिपत्र सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए शीघ्र ही जारी किया जाएगा। 5. एनबीएफसी के लिए स्केल-आधारित विनियामक ढांचा पर चर्चा पत्र बैंकों के साथ ऋण मध्यस्थता के पूरक चैनल के रूप में एनबीएफसी के योगदान को अच्छी तरह से जाना जाता है। एनबीएफसी क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला विनियामक व्यवस्था आनुपातिकता के सिद्धांत पर बनाया गया है जिस से कैलिब्रेटेड विनियामक उपायों के माध्यम से इस क्षेत्र में पर्याप्त परिचालनगत लचीलापन उपलब्ध हो सके । हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में तेजी से विकास हुआ है, जिसके कारण एनबीएफसी क्षेत्र के आकार और परस्पर संबद्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अतः, एनबीएफसी के बदलते जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप विनियामक ढांचे की समीक्षा करने की आवश्यकता है। यह महसूस किया गया है कि एनबीएफसी के प्रणालीगत जोखिम योगदान से जुड़ा एक स्केल-आधारित विनियामक दृष्टिकोण आगे हो सकता है। यह निर्णय लिया गया है कि संशोधित विनियामक ढांचे को अंतिम रूप देने से पहले हितधारकों के साथ परामर्श किया जाए। इस संबंध में एक चर्चा पत्र 15 जनवरी 2021 से पहले सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया जाएगा । 6. पर्यवेक्षित संस्थाओं (एसई) के लेखापरीक्षा प्रणाली को मजबूत करना : (i) बड़े यूसीबी और एनबीएफसी को जोखिम आधारित आंतरिक लेखा परीक्षा (आरबीआईए) को अपनाने पर दिशानिर्देश जारी करना; (ii) वाणिज्यिक बैंकों, यूसीबी और एनबीएफसी के लिए सांविधिक लेखा परीक्षकों की नियुक्ति पर दिशानिर्देशों का सामंजस्यीकरण हाल के दिनों में, रक्षा तंत्र की तीन लाइनों में कमजोरी, अक्सर कुछ बैंकों और एनबीएफसी पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रमुख गलती साबित हुई है। रक्षा की ये तीन लाइनें हैं: (i) कारोबार इकाई स्वंय; (ii) जोखिम प्रबंधन और अनुपालन; और (iii) आंतरिक लेखापरीक्षा। अतः, पर्यवेक्षित संस्थाओं (एसई) में शासन और आश्वासन कार्यों को मजबूत करने में पर्यवेक्षी फोकस रिज़र्व बैंक के लिए एक प्रमुख विषय बना हुआ है। रिज़र्व बैंक में पर्यवेक्षी कार्यों के एकीकरण का लक्ष्य यूसीबी और एनबीएफसी के पर्यवेक्षण का मानक आनुपातिक रूप से वाणिज्यिक बैंकों के बराबर लाना था। आंतरिक लेखापरीक्षा कार्य, रक्षा की तीसरी पंक्ति के रूप में, यूसीबी और एनबीएफसी में मजबूत करने की आवश्यकता है। रिज़र्व बैंक द्वारा 2002 में वाणिज्यिक बैंकों के लिए जोखिम आधारित आंतरिक लेखापरीक्षा (आरबीआईए) अनिवार्य किया गया था। अब बड़े यूसीबी और एनबीएफसी को आरबीआईए को अपनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का निर्णय लिया गया है। यह स्वतंत्र जोखिम वाले आंतरिक लेखा परीक्षा प्रणाली के निर्माण को सक्षम करेगा। जबकि बाह्य सांविधिक लेखा परीक्षक एक पर्यवेक्षित इकाई के आंतरिक तंत्र के बाहर रहते हैं, उन्हें अक्सर रक्षा की चौथी पंक्ति के रूप में माना जाता है जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 में हाल के संशोधन में यूसीबी में सांविधिक लेखा परीक्षकों की नियुक्ति में रिज़र्व बैंक को कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियां देना भी उस दिशा में एक संकेत है। इसलिए, वाणिज्यिक बैंकों, यूसीबी और एनबीएफसी के लिए सांविधिक लेखा परीक्षकों की नियुक्ति पर दिशा-निर्देशों के सामंजस्य का निर्णय लिया गया है। नए दिशानिर्देश एसई को ऑडिट फर्मों को उनकी जरूरतों के अनुसार समय पर, पारदर्शी और प्रभावी तरीके से नियुक्त करने में सक्षम बनाएंगे। इससे एसई की वित्तीय रिपोर्टिंग की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है। इस संबंध में दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। 7. डिजिटल भुगतान सुरक्षा नियंत्रण भारत में डिजिटल भुगतान प्रणालियों द्वारा निभाई जा रही विशेष भूमिका के कारण, रिज़र्व बैंक इसके आसपास सुरक्षा नियंत्रणों को सबसे अधिक महत्व देता है। अन्य के साथ, अब विनियमित संस्थाओं के लिए ऐसी प्रणालियों हेतु एक मजबूत शासन संरचना स्थापित करने और इंटरनेट, मोबाइल बैंकिंग, कार्ड भुगतान जैसे चैनलों के लिए सुरक्षा नियंत्रण के सामान्य न्यूनतम मानकों को लागू करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (डिजिटल भुगतान सुरक्षा नियंत्रण) दिशा-निर्देश 2020, जारी करना प्रस्तावित है। जबकि दिशा-निर्देश तकनीकी और प्लेटफ़ॉर्म एग्नोस्टिक होंगे, यह ग्राहकों के लिए डिजिटल भुगतान उत्पादों का कुशल और सुरक्षित तरीके से उपयोग करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाएगा और बढ़ाएगा। आवश्यक दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। 8. वित्तीय साक्षरता और शिक्षण समावेशी विकास को बढ़ावा देने, वित्तीय समावेशन को व्यापक करने और वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित कर ग्राहकों का संरक्षण करने के उद्देश्य से, रिज़र्व बैंक ने 2017 में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था जिसमें वित्तीय साक्षरता केंद्र (सीएफएल) की स्थापना कर 80 ब्लॉकों में समुदाय में भागीदारी पहुंच के माध्यम से एक अभिनव तरीके से वित्तीय साक्षरता का प्रसार करने के लिए चुनिंदा बैंकों और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को शामिल किया गया था। 2019 में इस प्रोजेक्ट को जनजातीय / आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में 20 और ब्लॉकों तक विस्तारित किया गया था। प्राप्त अनुभव के आधार पर, हितधारकों (बैंकों और गैर सरकारी संगठनों) से प्राप्त फीडबैक और एक स्थायी तरीके से जमीनी स्तर पर वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए, सीएफएल की पहुंच को मार्च 2024 तक चरणबद्ध तरीके से देश में हर ब्लॉक में विस्तारित करने का निर्णय लिया गया है। हितधारकों को आवश्यक दिशानिर्देश जल्द ही जारी किए जाएंगे। 9. बैंकों में शिकायत निवारण तंत्र रिज़र्व बैंक द्वारा स्थापित लोकपाल तंत्र एक वैकल्पिक शिकायत निवारण तंत्र है। बैंकों के आंतरिक शिकायत निवारण तंत्र की प्रभावकारिता को मजबूत और बेहतर बनाने और बेहतर ग्राहक सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से, बैंकों में शिकायत निवारण तंत्र की प्रभावकारिता को बढ़ाने के उद्देश्य से, एक व्यापक रूपरेखा शामिल करने का निर्णय लिया गया है, जिसमें अन्य बातों के साथ- साथ बैंकों द्वारा ग्राहकों की शिकायतों पर खुलासे को बढ़ाना, बैंकों से शिकायतों के निवारण की लागत की वसूली के रूप में मौद्रिक विघटन, जब अनुरक्षणीय शिकायतें काफी अधिक हो और शिकायत निवारण तंत्रों की गहन समीक्षा करना और समयबद्ध तरीके से उनके निवारण तंत्रों में सुधार करने में विफल बैंकों के खिलाफ पर्यवेक्षी कार्रवाई करना शामिल है। जनवरी 2021 तक रूपरेखा तैयार की जाएगी। III. वित्तीय बाजारों को व्यापक करना 10. ऋण चूक स्वैप (सीडीएस) दिशानिर्देशों की समीक्षा ऋण चूक स्वैप (सीडीएस) के लिए बाजार का विकास कॉरपोरेट बॉन्ड, विशेष रूप से कम रेटेड जारीकर्ताओं के बॉन्ड के लिए अर्थसुलभ बाजार के विकास के लिए अनिवार्य है। पिछली बार जनवरी 2013 में सीडीएस दिशानिर्देश जारी किए गए थे। हम बाजार के प्रतिभागियों से सुरक्षा विक्रेताओं के आधार के विस्तार की आवश्यकता और कुछ अन्य परिचालन बाधाओं के बारे में प्रतिक्रिया प्राप्त कर रहे हैं। द्विपक्षीय नेटिंग के लिए विधान के पारित होने से भी सीडीएस बाजार को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। तदनुसार, सीडीएस के लिए दिशानिर्देशों की समीक्षा करने का निर्णय लिया गया है। संशोधित ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जल्द ही जारी किए जाएंगे। 11. व्युत्पन्न (डेरिवेटिव्स) पर व्यापक दिशानिर्देशों की समीक्षा नवंबर 2011 में जारी किए गए व्युत्पन्न पर व्यापक दिशानिर्देश ओवर द काउंटर (ओटीसी) व्युत्पन्न लेनदेन के संबंध में ग्राहक की उपयुक्तता और औचित्य, शासन व्यवस्था और जोखिम प्रबंधन के संबंध में विनियामक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मानकों और ब्याज दर और मुद्रा व्युत्पन्न से संबंधित नियमों में हाल के बदलावों के अनुरूप, मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा की गई है। संशोधित दिशानिर्देश व्युत्पन्न बाजारों में कुशल पहुंच को बाजार निर्माताओं द्वारा ओटीसी व्युत्पन्न कारोबार में शासन और आचरण के उच्च मानकों को सुनिश्चित करते हुए बढ़ावा देना चाहते हैं। ड्राफ्ट निद्श आज जारी किए जा रहे हैं। 12. मुद्रा बाजार निर्देशों की व्यापक समीक्षा जैसा कि 6 जून 2019 को विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य में घोषित किया गया है, मुद्रा बाजार लिखतों सहित मांग मुद्रा, वाणिज्यिक पत्र, जमा प्रमाण पत्र और अन्य ऋण लिखतों जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष से कम है पर मौजूदा निर्देशों की व्यापक समीक्षा की गई और जारीकर्ताओं, निवेशकों और अन्य प्रतिभागियों के संदर्भ में उत्पादों में स्थिरता लाने की दृष्टि से युक्तिसंगत बनाया गया। तदनुसार, कॉल, नोटिस और मीयादी मुद्रा बाज़ार पर ड्राफ्ट निर्देशों के तीन सेट; जमा प्रमाणपत्र (सीडी); और वाणिज्यिक पत्र (सीपी) और एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता वाले गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) आज सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए जारी किए जा रहे हैं। IV. बाह्य व्यापार – सुविधा सेवा हाल के दिनों में, रिज़र्व बैंक ने देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए बाह्य व्यापार से संबंधित कई उपायों की घोषणा की है और निर्यातकों और आयातकों को COVID-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में मदद की है। इन प्रयासों को जारी रखते हुए, कुछ निर्यात लेनदेन को नियंत्रित करने वाली मौजूदा नीतियों में और उदारीकरण की घोषणा करने का निर्णय लिया गया है। ये उपाय, अधिकृत डीलर बैंकों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करते हुए, अनुमोदन प्रक्रिया को तेज करेंगे, जिससे कारोबार करने में आसानी होगी। 13. शिपिंग दस्तावेजों का प्रत्यक्ष प्रेषण वर्तमान में, एडी श्रेणी - I बैंकों (एडी बैंकों) को उन मामलों को नियमित करने की अनुमति है, जहां शिपिंग दस्तावेजों के प्रेषण निर्यातक द्वारा सीधे परेषिती या उसके एजेंट को किए गए थे यदि प्रति निर्यात शिपमेंट की राशि 1.0 मिलियन अमरीकी डालर या इसके समकक्ष है। एडी बैंकों को ऐसे मामलों को नियमित करने में सक्षम करने के लिए निर्यात शिपमेंट के मूल्य पर विचार किए बिना जहां निर्यात आय की वसूली हुई है, मौद्रिक सीमा को हटाने का निर्णय लिया गया है। 14. वसूल न किए गए निर्यात बिलों का "राइट ऑफ" वर्तमान में, एडी बैंकों को एक निश्चित सीमा तक वसूल न किए गए निर्यात बिलों के राइट ऑफ करने की अनुमति है, और उससे अधिक के लिए एडी बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमोदन लेना होगा। प्रक्रिया को सरल बनाने, इस तरह के अनुमोदन के लिए लगने वाले समय को कम करने, ताकि विनियामक लागत में कमी आए, को देखते हुए वसूल न किए गए निर्यात बिलों के राइट-ऑफ को नियंत्रित करने वाली मौजूदा प्रक्रिया की समीक्षा की गई है। तदनुसार, एडी बैंकों को राइट-ऑफ की अनुमति देने की शक्ति को सौंपने का निर्णय लिया गया है, यह निर्दिष्ट परिस्थितियों में सीमा के बिना, उदा. भारतीय दूतावास, विदेशी चैंबर ऑफ कॉमर्स या इसी तरह के संगठन के माध्यम से ऐसे मामले जहां विदेशी खरीदार दिवालिया हो गए हैं या प्राप्त होने वाली निर्यात आय का समझौता हो गया है या अगर सामान आयातित देश में पोर्ट / सीमा शुल्क / स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इसके अलावा, एडी बैंक को ऐसे राइट-ऑफ अनुरोधों को संभालने की अनुमति दी जाएगी, भले ही दस्तावेज निर्यातक द्वारा सीधे भेजे गए हों। 15. आयात शुल्कों के विरुद्ध निर्यात प्राप्तियों का सेट-ऑफ यह निर्णय लिया गया है कि एडी बैंकों को यह अनुमति दी जाए कि वे भारतीय कंपनियों को अपने विदेशी समूह / सहयोगी कंपनियों के साथ किसी केंद्रीयकृत ट्रेजरी व्यवस्था के माध्यम से शुद्ध आधार या सकल आधार पर माल और सेवाओं के संबंध में आयात शुल्कों के विरुद्ध अपने निर्यात प्राप्तियों को सेट -ऑफ कर सकें। इसके अलावा, इस तरह के अनुरोधों को विदेशी व्यापार नीति के अनुपालन के अधीन, विधिक रूप से लागू संविदा / करार द्वारा समर्थित होने पर, एक ही विदेशी खरीदार / आपूर्तिकर्ता के संबंध में एडी बैंकों द्वारा स्वीकार किया जा सकता है। इस तरह के नेट-ऑफ की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब निर्यात और आयात एक ही कैलेंडर वर्ष के दौरान हुए हों। 16. निर्यात प्राप्तियों का रिफंड वर्तमान में, यदि विदेशी आयातक को निर्यात किए गए माल की खराब गुणवत्ता के कारण निर्यात प्राप्तियों का रिफंड किया जाना आवश्यक है, तो माल के पुन: आयात के अधीन, जिसके माध्यम से निर्यात प्राप्तियाँ प्राप्त हुई थी, इसकी एडी बैंक द्वारा अनुमति दी जाती है। समीक्षा करने पर, एडी बैंकों को दस्तावेजी साक्ष्य की प्रस्तुति पर, माल के आयात पर जोर दिए बिना रिफंड अनुरोधों पर विचार करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है, जो कि नष्ट होनेवाली प्रकृति के हैं या पोर्ट / सीमा शुल्क / स्वास्थ्य अधिकारियों / आयात में किसी अन्य मान्यता प्राप्त एजेंसी द्वारा नीलाम / नष्ट कर दिए गए हैं। V. भुगतान और निपटान प्रणाली 17. सप्ताह के सभी दिनों में भुगतान प्रणालियों के निपटान फ़ाइलों की पोस्टिंग को सक्षम करना वर्तमान में, अधिकृत भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों द्वारा संचालित भुगतान प्रणालियों के निपटान फ़ाइलों को रिज़र्व बैंक में पोस्ट करने की सुविधा केवल आरटीजीएस कार्य दिवसों में उपलब्ध है। ईकुबेर (रिज़र्व बैंक का कोर बैंकिंग सिस्टम) और आरटीजीएस (जल्द ही शुरू होने वाली) की चौबीस घंटे उपलब्धता के कारण, भुगतान प्रणालियों (अर्थात, एईपीएस, आईएमपीएस, एनईटीसी, एनएफएस, रूपे, यूपीआई) की निपटान फ़ाइलों को वर्ष के सभी दिनों में रिज़र्व बैंक को पोस्ट करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। यह उपाय निपटान और डिफॉल्ट जोखिम के बिल्ड-अप को कम करेगा और सदस्य बैंकों द्वारा निधि के बेहतर प्रबंधन में सक्षम बनाएगा। यह भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र दक्षता को भी बढ़ाएगा। इस संबंध में निर्देश शीघ्र ही जारी किए जाएंगे। 18. संपर्क रहित मोड में कार्ड लेनदेन और आवर्ती लेनदेन के लिए कार्ड पर ई-जनादेश - सीमा में वृद्धि आवर्ती लेन-देन के लिए कार्ड (और यूपीआई) पर संपर्क रहित कार्ड लेनदेन और ई-मेंडेंट ने प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से लाभ उठाते हुए आम तौर पर ग्राहक सुविधा को बढ़ाया है। विशेष रूप से वर्तमान महामारी के दौरान कुशल और सुरक्षित तरीके से भुगतान करने के लिए ये अच्छी तरह से अनुकूल हैं। कार्ड पर संपर्क रहित सुविधा को अक्षम करने और ग्राहकों को उनके कार्ड की सीमाओं को नियंत्रित करने में सशक्त बनाने के हाल के निर्देश उपयोगकर्ताओं के लिए अतिरिक्त सुरक्षा में भी लाए हैं। कुशल और सुरक्षित तरीके से डिजिटल भुगतान को आगे बढ़ाने के लिए, उपयोगकर्ता के विवेक पर, कार्ड (और यूपीआई) के माध्यम से आवर्ती लेनदेन के लिए संपर्क रहित कार्ड लेनदेन और ई-मेंडेंट की सीमा को 1 जनवरी 2021 से ₹2,000 से ₹5,000 तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। परिचालन निर्देश अलग से जारी किए जाएँगे। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/721 |