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RBI Announcements
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असेट प्रकाशक

83510857

मई 2001

क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू
मई, 2001

विषय वस्तु

  • ईक्विटी के लिए बैंक वित्तपोषण- संशोधित दिशा-निर्देश
  • विदेशी मुद्रा में दिए जाने वाले
    निर्यात ऋण पर ब्याज दरें
  • रिज़र्व बैंक ने प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) घटाया
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिए गए निर्यात ऋण पर ब्याज की दरें

    नीति

  • ईक्विटी के लिए बैंक वित्तपोषण- संशोधित दिशा-निर्देश

    भारतीय रिज़र्व बैंक ने 11 मई को ईक्विटी के लिए बैंक वित्तपोषण और शेयरों में निवेशों के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये। संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार बैंक शेयर, डिबेंचर और पारस्परिक निधियों आदि के यूनिट तीन भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए प्राप्त कर सकते हैं :

    (क) बैंक के अपने जोखिम पर शेयरों/डिबेंचरों में प्रत्यक्ष निवेश के लिए ;

    (ख) अपने निजी खाते में पूंजी बाज़ार में निवेश के प्रयोजन के लिए एकल व्यक्तियों और शेयर दलालों को ऋण और अग्रिम देने के लिए; तथा

    (ग) कतिपय अनुमोदित प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों और कंपनियों को, उनके द्वारा शेयर/डिबेंचर बैंकों के नाम संपार्श्विक जमानत पर ऋण और अग्रिम देने के लिए, जिनमें शेयर दलालों अथवा पूंजी बाज़ार में निवेश की संलग्नता नहीं होती।

    एकल व्यक्तियों और शेयर दलालों (स्टॉक ब्रोकिंग एन्टीटी) को ऋण और अग्रिम देते समय जोखिम उस एकल हस्ती अथवा शेयर दलालों का होगा। बैंकों द्वारा दिये गये ऋण/अग्रिम सामान्यत: नियत मूल्य के होते हैं और उनके लिए निर्धारित ब्याज दर होती है तथा बैंकों का जोखिम मार्जिन पर्याप्त न होने अथवा शेयर के भाव में भारी अस्थिरता अथवा अन्य संबंधित कारणों से चुकौती/ब्याज की अदायगी करने में ऋण लेनेवाले की असमर्थता से बैंक के लिए जोखिम होता है।

    उच्चतम सीमा

    शेयरों में निवेश के लिए निर्धारित पांच प्रतिशत की उच्चतम सीमा अब से किसी बैंक द्वारा सभी रूप में पूंजी बाज़ार को कुल ऋण जोखिम के लिए लागू होगी जिसमें निधि पर आधारित और गैर निधिक दोनों तरह के ऋण जोखिम शामिल हैं। उदाहरण के रूप में उच्चतम सीमा में निम्नलिखित शामिल होंगे :

    1. ईक्विटी शेयरों, परिवर्तनीय बांडों और डिबेंचरों और ईक्विटी उन्मुख पारस्परिक निधियों के यूनिटों में बैंक द्वारा प्रत्यक्ष निवेश;
    2. सभी ईक्विटी शेयरों (आइपीओ सहित) बांडों और डिबेंचरों, ईक्विटी उन्मुख पारस्परिक निधियों के यूनिटों आदि में निवेश एकल हस्तियों के लिए शेयरों की जमानत पर अग्रिम;
    3. शेयर दलालों को जमानती और गैर जमानती अग्रिम तथा शेयर दलालों और बाज़ार निर्माताओं की ओर से जारी की गयी गारंटियां।

    पांच प्रतिशत की उच्चतम सीमा की गणना पिछले वर्ष की 31 मार्च की स्थिति के अनुसार बैंक के कुल बकाया अग्रिमों (वाणिज्यिक पत्र सहित) के संबंध में की जायेगी। गैर निधिक सुविधायें और अपरिवर्तनीय डिबेंचरों में तथा इसी तरह की अन्य लिखतों (वाणिज्यिक पत्रों को छोड़कर) में बैंकों के निवेश, बैंक के कुल बकाया अग्रिमों की गणना के लिए शामिल नहीं किये जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, पूंजी बाज़ार के लिए ऋण जोखिम, बैंकों द्वारा शेयरों में प्रत्यक्ष निवेश की उच्चतम सीमा की गणना शेयरों के लागत मूल्य पर की जायेगी।

    पांच प्रतिशत की उच्चतम सीमा में कार्यशील पूंजी के लिए जमानती ऋण तथा अन्य उत्पादक प्रयोजनों के लिए वे जमानती ऋण शामिल नहीं होंगे जिनमें शेयर दलाली नहीं है अथवा पूंजी बाज़ार में निवेश नहीं है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को छोड़कर अन्य कंपनियों द्वारा बैंक को प्रस्तुत ईक्विटी शेयरों/बांडों और डिबेंचरों की संपार्श्विक जमानत शामिल नहीं होगी। शिक्षा, आवास, उपभोग आदि निजी प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को बैंकों द्वारा दिये गये अग्रिम भी पांच प्रतिशत की उच्चतम सीमा से बाहर होंगे।

    शेयरों आदि में प्रत्यक्ष निवेश पर उच्चतम सीमा

    पूंजी बाज़ार को कुल ऋण जोखिम के लिए पांच प्रतिशत की उपर्युक्त समग्र सीमा के अंतर्गत किसी बैंक द्वारा शेयरों, परिवर्तनीय बांडों और डिबेंचरों और ईक्विटी उन्मुख पारस्परिक निधि के यूनिटों में निवेश अब तक की तरह शुद्ध मूल्यवत्ता के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए।

    जिन ईक्विटी शेयरों के भाव अस्थिर रहते हैं, उनमें निवेश करते समय बैंकों को निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का ध्यान रखना चाहिए :

    1. शेयरों आदि में निवेश के लिए उच्चतम सीमा (अर्थात् मूल्यवत्ता का 20 प्रतिशत) अधिकतम अनुमत सीमा है और बैंक का निदेशक मंडल समग्र जोखिम और कंपनी कार्य नीति को ध्यान में रखते हुए अपने बैंक के लिए इससे कम सीमा निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
    2. बैंक अपने निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित निवेश नीति के अनुसार बैंक में ही उपलब्ध निपुणता को ध्यान में रखते हुए शेयर में सीधे निवेश कर सकते हैं, जो जोखिम प्रबंधन और नीचे बताये गये आंतरिक नियंत्रण प्रणाली के अनुपालन की शर्त पर होगा।
    3. बैंक, भारतीय यूनिट ट्रस्ट के यूनिटों तथा सेबी द्वारा अनुमोदित विशाखीकृत अन्य पारस्परिक निधियों के यूनिटों में भी निवेश कर सकते हैं। ये निवेश अच्छे रिकाड़ वाली पारस्परिक निधियों में और निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित निवेश नीति के अनुसार होने चाहिए। इस प्रकार के निवेश यूटीआइ/पारस्परिक निधियों की विनिर्दिष्ट स्कीमों में होने चाहिए और उनकी ओर से पूंजी बाज़ार में निवेश के लिए यूटीआइ/पारस्परिक निधियों के पास निधियां नहीं रखी जानी चाहिए।
    4. प्रारंभिक निर्गमों के संबंध में बुक बिल्डिंग के रास्ते बैंकों द्वारा की गयी हामीदारियां भी उपर्युक्त समग्र उच्चतम सीमा के अंतर्गत होनी चाहिए।
    5. कंपनियों के ईक्विटी शेयरों और किसी एकल ऋणकर्ता और ऋणकर्ताओं के समूह के लिए उच्चतम सीमा के बारे में विवेकपूर्ण मानदंड निकालने के प्रयोजन से परिवर्तनीय बांडों तथा डिबेंचरों में निवेश अब तक की तरह हिसाब में लिये जाने चाहिए।

    शेयरों और डिबेंचरों की जमानत पर अग्रिम

    (क) व्यक्तियों को अग्रिम

    शेयरों और डिबेंचरों की जमानत पर व्यक्तियों को अग्रिमों की वर्तमान उच्चतम सीमा (अर्थात् भौतिक शेयरों की जमानत पर 10 लाख रुपये और अभौतिकीकृत शेयरों की जमानत पर 20 लाख रुपये) जारी रहेगी। इस प्रकार के ऋण वास्तविक वैयक्तिक निवेशकर्ताओं के लिए होते हैं और बैंकों को व्यक्तियों के उन बड़े समूह द्वारा सांठ-गांठ पूर्ण कार्रवाई का समर्थन नहीं करना चाहिए, जो उसी कंपनी अथवा परस्पर सम्बद्ध कंपनियों के हों और जो किसी विशेष स्क्रिप अथवा संबंधित फर्मों की शेयर दलाली गतिविधि का समर्थन देने के लिए अनेक ऋण लेते हैं।

    (ख) आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आइपीओ) का वित्तपोषण

    आइपीओ के लिए किसी व्यक्ति को दिये जानेवाले वित्त की अधिकतम राशि (अर्थात् 10 लाख रुपये) वर्तमान की तरह अपरिवर्तित रहेगी। कंपनियों को अन्य कंपनियों के आइपीओ में निवेश के लिए वित्त नहीं दिया जाना चाहिए और आइपीओ के लिए व्यक्तियों को आगे ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वित्त नहीं दिया जाना चाहिए। किसी बैंक द्वारा आइपीओ के लिए दिया गया वित्त पूंजी बाज़ार में ऋण जोखिम के रूप में माना जाना चाहिए।

    (ग) कुछ स्टॉक ब्रोकिंग संस्थाओं में जमाव (काँसेन्ट्रेशन) से बचना

    बैंक अपने वाणिज्य निर्णयों के आधार पर शेयर दलालों और बाज़ॉर निर्माताओं (मार्केट मेकर्स) को उनके निदेशक मंडलों द्वारा अनुमोदित नीतिगत ढांचे के अंतर्गत ऋण सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए स्वतंत्र हैं। तथापि एक दूसरे से संबद्ध शेयर दलाली की संस्थाओं और बैंकों के मध्य पनपने वाली दुरभि-संधि से बचने के लिए प्रत्येक बैंक के निदेशक मंडल को पांच प्रतिशत की समग्र उच्चतम सीमा के भीतर

    (i) सभी शेयर दलालों और बाज़ॉर निर्माताओं (दोनों निधि आधारित और गैर निधि आधारित जैसे गारंटियों) और

    (ii) सहयोगी कंपनियों/आंतरिक रूप से संबद्ध कंपनियों सहित किसी एकल शेयर दलाल संस्था को कुल अग्रिमों के लिए एक उच्चतम उप सीमा निश्चित करनी चाहिए।

    (घ) अग्रिमों पर मार्जिन

    सभी अग्रिमों/आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आइपीओ) के वित्तपोषण/गारंटियां जारी करने पर एकसमान न्यूनतम 40 प्रतिशत मार्जिन लागू होगा। बैंकों द्वारा जारी की गयी गारंटियों के संबंध में न्यूनतम 20 प्रतिशत का नकदी मार्जिॅन (40 प्रतिशत के मार्ज़िॅन के भीतर) रखा जायेगा। उपर्युक्त 40 प्रतिशत का मार्जिन सभी नये दिये गये अग्रिमों/जारी की गयी गारंटियों पर लागू होगा। पहले जारी किये विद्यमान अग्रिमों/गारंटियों पर उनके नवीकृत होने तक पूर्व के मार्ज़िॅन जारी रहेंगे।

    (ङ) अंतरपणन परिचालनों (आर्बीट्रेज)का वित्त पोषण

    बैंकों को स्वयं अंतरपणन परिचालनों में भाग नही लेना चाहिए या शेयर बाज़ॉरों (स्टॉक एक्सचेंजों) में अंतरपणन परिचालनों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शेयर दलालों को ऋण सुविधाएं प्रदान नहीं करनी
    चाहिए। यद्यपि बैंकों को गौण बज़ार से शेयर प्राप्त करने की अनुमति दी जाती है, उन्हें यह देख लेना चाहिये कि अपने निवेश खाते में शेयरों को वास्तविक रूप में प्राप्त किये बिना बिक्री के कोई लेनदेन नहीं किये जाते हैं।

    दिशा-निर्देशों में जोख़िम प्रबंधन, आंतरिक नियंत्रण प्रणालियों, कार्यपरक उत्तरदायित्वों को अलग करने तथा मूल्यांकन और प्रकटीकरण के संबंध में भी ब्यौरे दिये गये हैैं।

    संक्रमणकालीन प्रावधान

    शेयरों में निवेश तथा शेयरों की जमानत पर अग्रिम के रूप में जिन बैंकों का पूंजी बाजार में ऋण आदि जोखिम निर्धारित उच्चतम सीमा से अधिक हो, उनके लिए निम्नलिखित संक्रमणकालीन प्रावधान किये जा रहे हैं ताकि वे संशोधित दिशा-निर्देशों की ओर आसानी से संक्रमण कर सकें :

    (क) पूंजी बाजार में जिन बैंकों के ऋण आदि जोखिम निर्धारित उच्चतम सीमा से अधिक हों, उन्हें शेयर बाजार में अपना ऋण आदि जोखिम क्रमिक रूप से कम करते हुए अब निर्धारित विवेकपूर्ण उच्चतम सीमा तक लाने के लिए एक समयबद्ध योजना तैयार करनी चाहिए। समयबद्ध योजना तैयार करते समय निवेश के प्रयोजनों के लिए लिये गये शेयरों की जमानत पर अलग-अलग व्यक्तियों को स्वीकृत अग्रिम वापस नहीं माँगे जाने चाहिए तथा इस कारण कोई कठिनाई होने पर बैंक मानदण्डों में उपयुक्त ढील के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से संपर्क कर सकते हैं। यह समयबद्ध योजना निवेश तथा विभिन्न श्रेणियों के अग्रिमों/गांरटियों के अंतर्गत ऋण आदि जोखिम संबंधी आंकड़ों सहित 15 जून 2001 तक भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस बीच, इन बैंकों को ईक्विटी शेयरों में/शेयरों की जमानत पर अग्रिमों में कोई नया निवेश नहीं करना चाहिए तथा गारंटी जारी नहीं करनी चाहिए।

    (ख) 40 प्रतिशत का मार्जिन सभी नये अग्रिमों/आंरभिक सार्वजनिक निर्गमों (आइपीओ) के वित्तपोषण/गारंटियां जारी करने पर लागू होगा। पहले के अग्रिम/गारंटियां वर्तमान मार्जिनों पर तब तक जारी रहेंगी जब तक उनका नवीकरण न कराया जाये।

    (ग) सभी बैंकों के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशकों/मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को शेयरों में निवेश/शेयरों की जमानत पर अग्रिम/गारंटियों के अपने वर्तमान संविभाग की समीक्षा करनी चाहिए और यदि निवेश/अग्रिम/गारंटियां उसके बोड़ द्वारा निर्धारित सीमाओं से अधिक हों अथवा उनसे 10 नवंबर 2000 के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हो रहा हो तो ऐसे निवेश/अग्रिमों/गारंटियों को यथाशीघ्र कम किया जाना चाहिए। इस समीक्षा में किसी विशिष्ट संस्था और उसकी अंतर-संबद्ध कंपनियों के पक्ष में दिये गये अत्यधिक अग्रिमों/गारंटियों के मामलों को भी समाविष्ट किया जाना चाहिए।

    दिशा निर्देशों की समीक्षा

    भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी की तकनीकी समिति छ: महीनों के बाद संशोधित दिशा-निर्देशों की पुन:समीक्षा करेगी।

    फिल्म उद्योग के लिए बैंक वित्त

    जून 1998 में भारतीय बैंक संघ ने बैंकों और फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों को लेकर एक कार्यकारी दल गठित किया था ताकि फिल्म उद्योग, जो मनोरंजन उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, के वित्तपोषण के लिए यथोचित प्रणाली सुझायी जा सके। कार्यकारी दल ने मई 1999 में भारतीय बैंक संघ को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे भारतीय बैंक संघ ने आवश्यक कार्रवाई हेतु सदस्य बैंकों में परिचालित किया। साथ ही, भारत सरकार ने फिल्मों सहित मनोरंजन उद्योग को फिल्म उद्योग का रुतबा दिया। परंतु, उपर्युक्त गतिविधियों के बावजूद फिल्मों के लिए वित्तपोषण का मामला बहुत अधिक आगे नहीं बढ़ पाया है।

    इसी पृष्ठभूमि में, बैंकों की जानकारी के लिए फिल्म उद्योग को ऋण प्रदान करने के विभिन्न पहलुओं पर दिशानिर्देश तैयार करना वांछनीय समझा गया ताकि बैंक वित्तपोषण की इस महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि में सहभागी हो सकें।

    भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों, भारतीय बैंक संघ और फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों से व्यापक परामर्श करने के बाद फिल्मों के निर्माण के लिए बैंक वित्तपोषण के संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश तैयार किये हैं।

    तथापि, रिज़र्व बैंक ने इस बात को दोहराया है कि ऋण वितरण के मामले में बैंकों को दी जानेवाली परिचालनगत स्वतंत्रता के संबंध में वह कोई परिवर्तन करना नहीं चाहता है और बैंक अपने स्वयं के अनुभव और अन्य संबंधित जानकारी के आधार पर रिज़र्व बैंक को सूचित किये बिना, दिशा-निर्देशों की मूल बातों को ध्यान में रखते हुए ऋण संबंधी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

    बैंकों से प्राप्त होने वाले फीडबैक के आधार पर एक वर्ष के बाद दिशानिर्देशों की समीक्षा की जाएगी।

    पात्रता

    बैंक ऐसे फिल्म प्रोड्यूसरों (कॉर्पोरेट तथा नॉन-कॉर्पोरेट कंपनियां) को ऋण प्रदान कर सकते हैं, जिनका संबंधित क्षेत्र में अच्छा ट्रैक रिकॉड़ है। बैंक, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) की सहभागिता से इन कंपनियों को फिल्म निर्माण के लिए ऋण प्रदान कर सकते हैं।

    फिल्म निर्माण के लिए प्रत्यक्ष बैंंक वित्त

    वित्तपोषण के मानदंड

    बैंक हर फिल्म के लिए निर्माताओं से विस्तृत बजट प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें फिल्म के लिए समग्र अनुमानित लागत और वित्तपोषण जुटाने के के लिए साधनों का स्पष्टत: उल्लेख हो। सामान्यत: निर्माताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे प्रवर्तक (प्रोमोटर) के अंशदान के रूप में परियोजना लागत के कम से कम 25 प्रतिशत की राशि जुटायेंगे। निर्माताओं से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे नेमी पद्धति के अनुसार बजट का 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत इकट्ठा करने के लिए वितरकों से अग्रिम (बिक्री अग्रिम) की व्यवस्था करें। इस तरह, परियोजना लागत के शेष 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के लिए बैंक अग्रिम आवश्यक होगा। फिर भी ऐसे सुपात्र मामलों में, जहां बैंक परियोजना तथा प्रोड्यूसरों की पृष्ठभूमि से संतुष्ट हैं ऐसे मामलों में गुणवत्ता के आधार पर परियोजना लागत के 50 प्रतिशत तक वित्त पोषण बढ़ाया जा सकता है।

    बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण करें जहां फिल्म के निर्माण की कुल लागत 10 करोड़ रुपये से अधिक न हो। स्वीकृत की गयी राशि रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित विवेकपूर्ण निवेश मानदंडों की समग्र उच्चतम सीमा के भीतर होनी चाहिए। बैंकों को यह भी चाहिए कि वे फिल्म उद्योग के अपने समग्र निवेश के लिए आंतरिक रूप से एक यथोचित सीमा निर्धारित करें।

    सामान्यत: बैंक ऋण का वितरण प्रवर्तक का अंशदान और वितरकों के अग्रिम भुगतानों का इस्तेमाल किये जाने के बाद ही शुरू होना चाहिए। परंतु वितरकों द्वारा आनुपातिक आधार पर भुगतान प्राप्त करने के साथ-साथ बैंक ऋण के वितरण के लिए कोई आपत्ति नहीं होगी। परियोजना के शुरू होते ही यह व्यवस्था की जानी चाहिए। तथापि, किसी भी मामले में बैंकों को चाहिए कि परियोजना के लिए प्रवर्तक द्वारा अपना अंशदान लगाये जाने के बाद ही वे ऋण वितरण करें।

    ऋण की अवधि

    ऋण की अवधि, परियोजना के लिए नकदी जुटाने के संबंध में वित्तपोषक बैंक के मूल्यांकन के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए।

    ज़मानत

    बैंकों को चाहिए कि वे उधारदाताओं के पक्ष में निगेटिव्ज़ पर अधिकार प्रदान करनेवाला लैबोरेटरी का पत्र प्राप्त करें।

    लैब पत्र के रूप में निगेटिव के अधिकारों के साथ उचित प्रलेखन के माध्यम से प्रमुख जॅमानत के रूप में म्युज़िक ऑडिओ/वीडीओ अधिकार, सीडी/डीवीडी/इंटरनेट अधिकार, सैटेलाइट अधिकार, चैनेल अधिकार, निर्यात/अंतर्राष्ट्रीय अधिकार भी बैंकों को सौंपे जायें।

    परियोजना के अंतर्गत सभी वास्तविक चल परिसंपत्तियों पर प्रथम बंधक प्रभार(चार्ज), उधारदाताओं के पक्ष में सभी प्रभार, उधारदाताओं के पक्ष में सभी करार और इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स सौंपे जाने चाहिए। सभी आइपीआर के मूल्यांकन की बातचीत (नेगोसिएश्ंस)पर उधारदाताओं का अधिकार होना चाहिए।

    संपार्श्विक ज़मानतें, यदि कोई हों तो बैंकों के विवेकाधीन प्राप्त की जायें।

    पूंजी और साथ ही साथ राजस्व के नाम पर आनेवाली और जानेवाली समस्त राशियों के लिए एक ट्रस्ट एण्ड रिटेंशन एकाउंट (टीआरए) रखा जाये। इस तरह से, आइपीआर की बिक्री से प्राप्त होनेवाली समस्त राशियां टीआरए में जमा लिखी जायें। टीआरए इस प्रकार से रखा जाये यह बात उधारदाताओं की संतुष्टि को देखते हुए अलग-अलग मामले के आधार पर तय कर ली जाये। टीआरए व्यवस्था के लिए अभी संबंधित पार्टियों से एक अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करने की ज़रूरत होगी। उधारदाताओं का टीआरए पर पहला चार्ज होगा। बैंक लैबोरेटरी पत्र, म्यूज़िक ऑडियो/विडियो अधिकार आदि को सौंपने के कानूनी पहलुओं की भी छानबीन कर सकते हैं।

    बीमा

    बैंकों को स्वीकार्य मौजूदा बीमा उत्पाद फिल्म निर्माताओं से प्राप्त किये जायें।

    अनुवर्ती कार्रवाई निगरानी

    बैंकों को चाहिए कि वे निर्माताओं से समय-समय पर सूचना प्राप्त करने के लिए यथोचित लेखाकरण तथा सूचना/आंकड़े प्रस्तुत करने के लिए फार्मेट तैयार करें। वे आवधिक प्रगति रिपोर्टें, नकदी के आगमन के विवरण, लेखा परीक्षा रिपोर्टें और आवश्यक समझी जानेवाली आय रिपोर्टें भी प्राप्त करें। बैंक इस बात पर भी विचार कर सकते हैं कि वे समय पर शूटिंग/फिल्म की प्रोसेसिंग की निगरानी करने तथा व्यय के यथोचित होने का आकलन करने के लिए किसी विशिष्ट एजेंसी को नियुक्त करें।

    जोखिम तत्व

    किसी भी फिल्म के निर्माण से जुड़ा हुआ सबसे बड़ा जोखिम यह है कि उसका निर्माण पूरा हो जाये। इस जोखिम को कम करने के लिए बैंकों के लिए यह ज़रूरी होगा कि वे परियोजनाओं का भलीभांति मूल्यांकन करें और निर्माताओं और साथ ही साथ वितरकों के ट्रैक रिकाड़ पर यथोचित ध्यान दें। यदि आवश्यक हो, तो बैेंक, प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिए उद्योग के विशेषज्ञों/परामर्शदाताओं की सेवाएं ले सकते हैं। जोखिमों, खास खास कर्मियों आदि का बीमा व्यवस्थित किया जाना होगा। यथोचित जोखिम बीमा उत्पादों के विकसित होने तक, मौजूदा उत्पादों जैसे, उपकरण बीमा, खास-खास व्यक्तियों का बीमा आदि का लाभ उठाया जा सकता है।

    राष्ट्रीय फिल्म विकास निगमके ज़रिये /राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम को वित्त

    इस बात पर विचार करते हुए कि फिल्म परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए विशिष्ट दक्षता की जरूरत होती है (हो सकता है, शुरू-शुरू के वर्षोंं में बैंकों के पास यह न हो) बैंक, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के अनुरोध पर एनएफडीसी के सहभागिता में फिल्मों के निर्माण के लिए ऋण देने पर विचार कर सकते हैं। यह फिल्म उद्योग के लिए ऋण देने के लिए एक अतिरिक्त चैनल का काम करेगा।

    इस संबंध में विस्तृत रूपरेखाएं (सिक्यूरिटी कवर सहित) बैंकों और एनएफडीसी द्वारा आपस में तय की जा सकती है।

    बैंक, ऋण देते समय सामान्य रक्षोपायों का पालन करते हुए एनएफडीसी को यथोचित ऋण सुविधा देने पर भी विचार कर सकते हैं।

    भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) घटाया

    भारतीय रिज़र्व बैंक ने 19 मई 2001 से प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात में इसके 8.0 प्रतिशत के मौजूदा स्तर में आधे प्रतिशत की कटौती की है। बैंकों को 7.5 प्रतिशत की दर पर प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात रखना होगा। इस उपाय से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से करीब 4500 करोड़ रुपये के संसाधन प्राप्त होंगे।

    अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिए गए निर्यात ऋण पर ब्याज की दरें

    (प्रतिशत प्रतिवर्ष)

    निर्यात ऋण की श्रेणियाँ

    ब्याज की दरें

     

    4 मई 2001 तक लागू वर्तमान दरें

    संशोधित @5(मई 2001 से लागू)

    1. पोतलदानपूर्व ऋण
    क) (i) 180 दिन तक

    10.0 प्रतिशत

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    (ii) 180 दिन से अधिक और
    270 दिन तक

    13.0 प्रतिशत

    मूल उधार दर से अनधिक + 1.5 प्रतिशत बिन्द ु

    ख) निर्यात ऋण गारंटी निगम की
    गारंटी में शामिल, सरकार से प्राप्य प्रोत्साहन (इंसेंटिव) पर - 90 दिन तक

    10.0 प्रतिशत

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    2. प्ाोतलदानोत्तर ऋण
    क) पारवहन अवधि के लिए मांग बिलों पर (फेडाई द्वारा यथानिर्दिष्ट)

    10.0 प्रतिशत से अनधिक

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्दु कम

    ख) मीयादी बिल (निर्यात बिलों की मीयाद, फेडाई द्वारा निर्दिष्ट पारवहन अवधि और जहाँ लागू हो वहाँ छूट की अवधि सहित कुल अवधि के लिए)

       

    (i) 90 दिन तक

    10.0 प्रतिशतसे अनधिक

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    (ii) पोतलदान की तारीख से 90 दिन से अधिक और 6 माह तक

    12.0 प्रतिशत

    मूल उधार दर से अनधिक + 1.5 प्रतिशत बिन्द ु

    ग) निर्यात ऋण गारंटी निगम की गारंटी में शामिल, सरकार से प्राप्य प्रोत्साहन
    (इंसेंटिव) पर - 90 दिन तक

    10.0 प्रतिशत से
    अनधिक

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    घ) आहरित न की गई शेष राशि पर
    (90 दिन तक)

    10.0 प्रतिशत से अनधिक

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    ङ) पोतलदान की तारीख से एक वर्ष के अंदर भुगतान योग्य प्रतिधारण धन
    (केवल आपूर्ति भाग पर) (90 दिन तक)

    10.0 प्रतिशत से
    अनधिक

    मूल उधार दर से अनधिक में से 1.5 प्रतिशत बिन्द ु कम

    3. आस्थगित ऋण
    180 दिन से अधिक अवधि के लिए
    आस्थगित ऋण

    मुक्त *

    मुक्त *

    4. अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया निर्यात ऋण

       

    (क) पोतलदानपूर्व ऋण

    मुक्त *

    मुक्त *

    (ख) पोतलदानोत्तर ऋण

    मुक्त *

    मुक्त *

    नोट @: चूंँकि ये उच्चतम दरें हैं, अत: बैंक उच्चतम दर से कम कोई भी दर निर्धारित कर सकते हैं ।

    *मुक्त: मूल उधार दर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए बैंक लिए जाने वाले ब्याज की दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं।

    अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा में दिए जाने वाले
    निर्यात ऋण पर 19 अप्रैल 2001 से
    लिए जाने वाले ब्याज की दरें

    (प्रतिशत प्रतिवर्ष)

    पोतलदानपूर्व ऋण

    180 दिन तक

     
    180 दिन से अधिक और 360 दिन तक

    पोतलदानोत्तर ऋण

    पारवहन अवधि के लिए माँग बिलों पर (फेडाई द्वारा यथानिर्दिष्ट)
    मीयादी बिल (निर्यात बिलों की मीयाद, फेडाई द्वार निर्दिष्ट पारवहन अवधि और जहाँ लागू हो वहाँ छूट की अवधि सहित कुल अवधि के लिए)

    पोतलदान की तारीख से 6 माह की अवधि तक
    नियत तारीख के बाद लेकिन
    क्रिस्टलाइज़ेशन की तारीख तक वसूले गए निर्यात बिल (माँग या मीयादी)

    अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया निर्यात ऋण
    पोतलदानपूर्व ऋण
    पोतलदानोत्तर ऋण


    लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर से 1% से अनधिक दर पर

    ऋण दिए जाने के समय 180 दिन की प्रारंभिक अवधि के लिए लागू दर + 2.0 प्रतिशतता बिन्दु

    लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर से 1% से अनधिक दर पर

     

     

    लिबॉर / यूरो लिबॉर / यूरीबॉर से 1% से अनधिक दर पर
    ऊपर 2 (ख) के लिए लागू दर + 2.0 प्रतिशतता बिन्दु


    मुक्त@
    मुक्त@

    @ बैंक मूल उधार दर तथा स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों को दृष्टिगत रखते हुए
    रुपया ऋण दर होने के कारण
    लिए जाने वाले ब्याज की दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं।

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