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RBI Announcements
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असेट प्रकाशक

110994992

जून 2001

क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू

263
जून
2001

विषय वस्तु

नीति समीक्षा

शहरी सहकारी बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करने और उन्हें सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक उपाय सुझाने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा श्री के माधव राव, भूतपूर्व मुख्य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार की अध्यक्षता में शहरी सहकारी बैंकों पर एक उच्चाधिकार-प्राप्त समिति गठित की गयी। समिति को जो कार्य करने थे, वे इस प्रकार थे :(i) शहरी सहकारी बैंकों को संगठित करने की ज़रूरत तथा क्षमता निर्धारित करने के लिए वस्तुपरक मानदंड तय करना; मौजूदा प्रवेश बिंदु के मानदंडों की समीक्षा करना और कम/बहुत ही कम विकसित क्षेत्रों आदि के लिए विशेष वितरण की सार्थकता की जांच करना; (ii) शाखा लाइसेंसीकरण तथा शहरी सहकारी बैंकों के परिचालनों के क्षेत्र से संबंधित मौजूदा नीति की समीक्षा करना; (iii) कमजोर/बिना लाइसेंस प्राप्त बैंकों के भावी सेट-अप को निर्धारित करने के लिए उपाय सोचना; (iv) शहरी सहकारी बैंकों के लिए पूंजी पर्याप्तता मानदंड शुरू करने की संभावनाओं का पता लगाना; (v) को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटियों को प्राथमिक सहकारी बैंकों में बदलने की ज़रूरत की जांच करना; तथा (vi) शहरी बैंकिंग आंदोलन को मज़बूत करने के लिए बैंकिग विनियमन अधिनियम तथा विभिन्न राज्यों के

को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ अधिनियमों में आवश्यक विधायी आशोधन सुझाना।

तदनुसार, समिति ने निम्नलिखित पांच व्यापक लक्ष्य अपने सामने रखे:

(i) शहरी सहकारी बैंकों के सहकारी चरित्र को बनाये रखना:

 (ii) जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करना:

(iii) वित्तीय प्रणाली को सिस्टेमेटिक जोखिमों से बचाना:

(iv) प्रवेश बिंदु पर ही मजबूत विनियामक मानदंड लागू करना ताकि प्रतिस्पर्धात्मक परिवेश में शहरी सहकारी बैंकों की परिचालनगत दक्षता बनी रहे और कमजोर बैंकों की बढ़ती हुई संख्या के संदर्भ में विश्ेाष रूप से मौजूदा शहरी सहकारी बैंक ढांचे को मजबूत बनाने के लिए उपाय तैयार करना;

 (v) विवेकशील मानदंडों को पूरी तरह लागू करने के संदर्भ में तथा दोहरे नियंत्रण तंत्र की परेशानियों को दूर करने के प्रयोजन से शहरी बैंकिंग क्षेत्र को अन्य बैंकिंग क्षेत्र के साथ एक सीध में लाना।

समिति की इन सिफारिशों के आधार पर रिज़र्व बैंक ने शहरी सहकारी बैंकों पर लागू नीति संशोधित की है। नीति समीक्षा के ब्यौरे क्रेडिट इन्फर्मेशन रिव्यू के इस अंक में संक्षेप में दिये जा रहे हैं।

शाखाओं के लिए लाइसेंस

ऐसे लाइसेंसीकृत शहरी सहकारी बैंक जिन्हें दुर्बल/बीमार बैंकों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, अपनी वार्षिक कार्य योजना के अंतर्गत केंद्रों के आबंटन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन कर सकते हैं। वार्षिक कार्य योजना वर्ष की पहली अप्रैल से आरंभ होकर बारह महीने की अवधि की होगी तथा उसके लिए बोड़ का अनुमोदन प्राप्त करना होगा। केंद्रों के आबंटन के लिए आवेदन करने से पहले बैंकों को निम्नलिखित मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए:

(i) बैंकों का पूंजी में जोखिम आस्ति अनुपात (सीआरएआर) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित सीआरएआर से कम नहीं होना चाहिए। (यह शर्त शहरी सहकारी बैंकों को सीआरएआर लागू होने के बाद प्रभावी होगी)।

(ii) बैंकों ने पिछले दो वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष में शुद्ध लाभ कमाया हो।

(iii)बैंकों की शुद्ध गैर-निष्पादक आस्तियां पिछले तुलन-पत्र की तारीख को शुद्ध ऋणों और अग्रिमों के 10 प्रतिशत से कम होनी चाहिए और उसके लिए उन्होंने रिज़र्व बैंक के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार आवश्यक प्रावधान कर लिया हो।

(iv)बैंकों ने प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर लिया हो।

(v)बैंकों ने बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों को यथा लागू), भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के उपबंधों और रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी अनुदेशों/दिशानिर्देशों के अनुपालन में ट्रैक रेकाड़ दर्शाया हो। वे सीआरआर और एसएलआर का अपेक्षित स्तर बनाए रखने और सांविधिक एवं अन्य विवरणियां समय पर प्रस्तुत करना सुनिश्चित करें।

इकाई बैंक

इकाई बैंक के रूप में स्थापित ऐसे बैंक जिन्हें प्रवेश बिंदु पूंजी में छूट दी गई है, अपनी स्वाधिकृत निधियों को, जहां बैंक स्थापित किया गया था उस स्थान पर नया बैंक (इकाई बैंक से इतर) खोले जाने के लिए अथवा जहां शाखा खोली जानी है उस स्थान के लिए निर्धारित स्वाधिकृत निधियों, इनमें से जो भी अधिक हो, के अपेक्षित स्तर तक बढ़ा लेने के बाद शाखाएं खोलने के पात्र होंगे।

उसी प्रकार, इकाई बैंक के अलावा, कोई अन्य बैंक यदि अपने पंजीकरण के जिले के अंदर अपनी स्थापना के केंद्र से उच्च श्रेणी के केंद्र पर कोई शाखा खोलना चाहता है तो ऐसे बैंक की स्वाधिकृत निधियां कम से कम उस केंद्र के लिए निर्धारित प्रवेश बिंदु पूंजी के बराबर होनी चाहिए। इसके अलावा, यदि कोई शहरी सहकारी बैंक अपने पंजीकरण जिले से इतर लेकिन पंजीकरण के राज्य के भीतर किसी अन्य केंद्र पर अपनी कोई शाखा खोलना चाहता है तो उसकी स्वाधिकृत निधियां उस राज्य में उच्चतम श्रेणी के केंद्र में नया शहरी सहकारी बैंक (इकाई बैंक से इतर) स्थापित करने के लिए लागू प्रवेश बिंदु पूंजी से कम नहीं होना चाहिए।

कुछ मौजूदा बैंक, चूंकि शाखा विस्तार के लिए पात्र होने हेतु अपनी स्वाधिकृत निधियों को वांछित स्तर तक तुरंत बढ़ाने की स्थिति में नहीं हो सकते, इसलिए उन्हें इससे पहले रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए प्रवेश बिंदु पूंजी मानदंडों का अनुपालन किये जाने पर सीमित आधार पर, केंद्र आबंटित किये जाएंगे। तथापि, उन्हें 31 मार्च 2003 तक अपनी स्वाधिकृत निधियों को निर्धारित स्तर तक बढ़ाना होगा अन्यथा वे और आगे शाखा विस्तार के लिए पात्र नहीं होंगे।

शहरी सहकारी बैंकों की उत्पत्ति और संरचना

शहरी सहकारी बैंकों ने शहरी और अर्ध-शहरी निम्नतर आय समूहों के जनसाधारण की भलाई के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है। शायद भारत का शहरी सहकारी ऋण वितरण आंदोलन अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में लघु ऋण वितरण का सबसे पहला प्रयास था। शहरी सहकारी बैंक और अन्य सहकारी बैंकों पर संबंधित राज्य सहकारी समिति अधिनियमों के प्रावधानों के अंतर्गत राज्य सरकारों का नियंत्रण होता है। परंतु सहकारी बैंकों के लिए निक्षेप बीमा की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए यह महसूस किया गया कि इन्हें बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे के अंतर्गत लाया जाये। अत: शहरी सहकारी बैंकों को पहली मार्च 1966 से बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अंतर्गत लाया गया। इसके साथ शहरी सहकारी बैंक, बैंकिंग से संबद्ध कार्य के लिए रिज़र्व बैंक के नियंत्रण में और प्रबंधकीय, प्रशासकीय और अन्य मामलों के लिए राज्य सरकारों के नियंत्रण में, इस तरह दोहरे नियंत्रण में आ गये।

परिचालन के क्षेत्र में विस्तार

शहरी सहकारी बैंकों के परिचालन के क्षेत्र में विस्तार से संबंधित नीति में भी संशोधन किये गये हैं।

सहलग्न जिलों तक

बैंकों को और अधिक परिचालनगत स्वतंत्रता प्रदान करने के उद्देश्य से यह निर्णय किया गया है कि नये और मौजूदा शहरी सहकारी बैंकों को रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति लिए बिना अपने पंजीकरण के संपूर्ण जिले तक और पंजीकरण के राज्य के भीतर सहलग्न ज़िलों तक कार्यक्षेत्र के विस्तार की अनुमति दी जाए। तदनुसार, अब से बैंकों को इस संबंध में अनापत्ति प्राप्त करने के लिए रिज़र्व बैंक से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है और वे अपने पंजीकरण के संपूर्ण जिले और पंजीकरण के राज्य के भीतर सहलग्न जिलों तक कार्यक्षेत्र के विस्तार के लिए संबंधित राज्य के निबंधक, सहकारी सोसायटियां से सीधे संपर्क करें। केवल ऐसे लाइसेंस प्राप्त शहरी सहकारी बैंक जो दुर्बल/बीमार के रूप में वर्गीकृत नहीं किये गये हैं, अपनी सीमाओं से परे परिचालन के लिए विस्तार के लिए पात्र होंगे।

सहलग्न जिलों से परे

अपने पंजीकरण के जिले से सहलग्न जिलों से परे लेकिन राज्य के भीतर अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का इच्छुक कोई भी शहरी सहकारी बैंक निम्नलिखित मानदंडों के अनुपालन के अधीन रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति से अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार कर सकता है:

उसकी स्वाधिकृत निधियां (शेयर पूंजी+निर्बाध प्रारक्षित निधियां), रिज़र्व बैंक द्वारा पूर्व में बताए गए अनुसार नया बहु-शाखा बैंक स्थापित किए जाने के लिए उस जिले में उच्च श्रेणी केंद्र के लिए निर्धारित प्रवेशबिंदु पूंजी से कम नहीं होनी चाहिए। चूंकि, मौजूदा बैंकों को संशोधित प्रवेश बिंदु मानदंडों को प्राप्त करने में कुछ समय लग सकता है, इसलिए कार्य क्षेत्र के विस्तार के बारे में उनके अनुरोधों पर पहले निर्धारित प्रवेश बिंदु मानदंड के आधार पर 31 मार्च 2003 तक विचार किेया जायेगा। उसके बाद, केवल उन्हीं बैंकों के अनुरोधों पर विचार किया जायेगा जिन्होंने 30 अगस्त 2000 में निर्धारित प्रवेशबिंदु मानदंडों को प्राप्त कर लिया हो।

इसके अलावा, शहरी सहकारी बैंक ने प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण, अनुत्पादक आस्तियों, नकदी प्रारक्षित निधि अनुपात, सांविधिक चलनिधि अनुपात, तथा लाभ आदि से संबंधित अन्य मानदंडों को भी पूरा कर लिया हो।

पंजीकरण के राज्य से परे

कोई भी सहकारी बैंक, रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति के बिना अपने पंजीकरण के राज्य से परे अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार कर सकता है बशर्ते उसकी स्वाधिकृत निधियां 50 करोड़ रुपये से कम न हों और वह सभी निर्धारणों को पूरा करता हो।

कार्यक्षेत्र के विस्तार से संबंधित अनुरोध रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय को किये जायें जिसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शहरी सहकारी बैंक कार्य कर रहा है।

विस्तार पटल खोलना

शहरी सहकारी बैंकों द्वारा विस्तार पटल खोलने से संबंधित नीति भी संशोधित की गयी है।

पात्रता संबंधी मानदंड

विस्तार पटल खोलने के लिए इच्छुक किसी भी शहरी सहकारी बैंक को निम्नलिखित मानदंडों का अनुपालन करना होगा:

ऐसे लाइसेंसीकृत शहरी सहकारी बैंक जिन्हें दुर्बल/बीमार बैंकों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, विस्तार पटल खोलने के लिए पात्र हैं। केवल वही अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं, रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति लिए बिना विस्तार पटल खोल सकते हैं। तथापि, ऐसे बैंकों को कार्योत्तर अनुमोदन के लिए विस्तार पटल खोलने की तारीख से एक माह के भीतर एक आवेदन रिजॅर्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करना चाहिए। गैर अनुसूचित बैंकों को उन शैक्षणिक संस्थाओं, बड़े कार्यालयों, फैक्टरियों तथा अस्पतालों के परिसर में विस्तार पटल खोलने के लिए रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा जिनका संबंधित शहरी सहकारी बैंक प्रधान बैंक है। अन्य बैंकों द्वारा संस्थाओं से किये गये अनुरोधों पर तभी विचार किया जायेगा जब प्रधान बैंकर द्वारा विस्तार पटल खोलना व्यावहारिक नहीं समझा गया है और/अथवा विस्तार पटल से उसकी आधार शाखा 10 किमी की दूरी पर हो। बाजार, आवासीय कॉलोनी, शॉपिंग सेंटर आदि में कोई विस्तार पटल नहीं खोला जाना चाहिये। संस्था से संबंधित लाभार्थियों/खातों की संख्या कम से कम 500 होनी चाहिये। विस्तार पटल, श्ुाल्क जमा करने, बिजली, पानी, टेलिफोन आदि के बिलों का भुगतान करने मात्र वे लिए नहीं खोला जाना चाहिये क्योंकि यह संबंधित संस्था की प्राथमिक जिम्मेवारी है।

सुविधाएं

विस्तार पटल पर दी जानेवाली सुविधाओं को निम्नलिखित तक सीमित रखना चाहिए : जमाराशियां स्वीकारना, ड्राफ्ट और डाक अंतरणों का जारी किया जाना और उनकी भुनाई, यात्री-चेकों की भुनाई और, बिलों की उगाही

पूंजी पर्याप्तता मानदंड

यह निर्णय लिया गया है कि शहरी सहकारी बैंकों के लिए 31 मार्च 2002 से चरणबद्ध तरीके से नीचे बताए गए अनुसार सीआरएआर लागू किया जाए।

अनुसूचित शहरी सहकारी
बैंक

गैर अनुसूचित शहरी
सहकारी बैंक

निम्न तारीख की स्थिति के
अनुसार

8 प्रतिशत

6 प्रतिशत

31 मार्च 2002

9 प्रतिशत

7 प्रतिशत

31 मार्च 2003

वाणिज्य बैंकों को यथालागू

9 प्रतिशत

31 मार्च 2004

वाणिज्य बैंकों को यथालागू

वाणिज्य बैंकों को यथालागू

31 मार्च 2005

शहरी सहकारी बैंकों का वर्गीकरण

दिनांक 31 मार्च 2002 से शहरी सहकारी बैंक (गैर-अनुसूचित, अनुसूचित, वेतन अर्जक और नये रूप से लाइसेंसीकृत बैंकों सहित) निम्नलिखित मानदंडों के अनुसार दुर्बल या बीमार श्रेणी में वर्गीकृत किया जायेगा :

मानदंड

दुर्बल बैंक

बीमार बैंक

सीआरएआर

जिनका सीआरएआर न्यूनतम निर्धारण के 75 प्रतिशत के स्तर से कम हुआ हो

या

यदि सीआरएआर न्यूनतम निर्धारण के 50 प्रतिशत के स्तर से कम हुआ हो

और

अनर्जक
आस्तियों का
स्तर

निवल अनर्जक आस्तियां 10 प्रतिशत या अधिक परंतु 31 मार्च को बकाया ऋणों और अग्रिमों के 15 प्रतिशत से कम

 

 

या

निवल अनर्जक आस्तियाँं 15 प्रतिशत या 31 मार्च को बकाया ऋणों और अग्रिमों से अधिक (परंतु यदि किसी शहरी बैंक की निवल अनर्जक आस्तियां 31 मार्च को बकाया ऋणों और अग्रिमों से अधिक है, किन्तु उसे ‘बीमार’ श्रेणी में वर्गीकृत करने के लिए अन्य मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं तो उसे ‘दुर्बल’ बैंक की श्रेणी में वर्गीकृत किया जाएगा)

या

लाभप्रदता

पिछले लगातार तीन वित्तीय वर्षों में से दो वर्ष परिचालन में निवल हानियां दर्शाते हों।

पिछले लगातार तीन वित्तीय वर्षों में परिचालन में निवल हानियां दर्शाते हों।

बैंक स्तरीय पुनर्वास समिति के गठन की प्रणाली तत्काल प्रभाव से बंद कर दी गयी है। "दुर्बल’ श्रेणी में वर्गीकृत शहरी सहकारी बैंक अपने पुनर्वास के लिए स्वयं या बैंकिंग/प्रबंधन क्षेत्र के विशेषज्ञों की सहायता से कार्य-योजना तैयार करें। परंतु उनके पुनरूज्जीवन में हुई प्रगति पर रिज़र्व बैंक और राज्य स्तरीय समीक्षा समिति निगरानी करना जारी रखेंगे।

निधियों का निवेश

चूंकि शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अन्य शहरी सहकारी बैंकों के पास निधियां/जमाराशियां रखने से प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न हो सकता है और जमा स्वीकारने वाले बैंक में यदि कोई वित्तीय समस्या उत्पन्न होती है तो उसकी वजह से जमाकर्ता बैंक के वित्तीय मामलों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि शहरी सहकारी बैंकों को अपनी समाशोधन एवं विप्रेषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उनके चालू खातों में शेष बनाए रखने के मामलों को छोड़कर, अन्य शहरी सहकारी बैंकों में जमाराशियां रखने से प्रतिबंधित किया जाए।

ऐसे शहरी सहकारी बैंक जो इन निधियों को अन्य शहरी सहकारी बैंकों के पास सावधि अथवा मीयादी जमाराशि के रूप में रख रहे हैं उनसे यह अपेक्षित है कि वे जून 2002 की समाप्ति से पहले अन्य शहरी सहकारी बैंकों के पास रखी अपनी सावधि जमाराशियों की स्थिति की रिपोर्ट संलग्न प्रोफार्मा में तिमाही आधार पर उस क्षेत्रीय कार्यालय को भेजें जिसके क्षेत्राधिकार में वे कार्य कर रहे हैं। ऐसा पहला विवरण 31 मार्च 2001 की स्थिति के संबंध में भेजा जाना चाहिए।

मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में लेन-देन

शहरी सहकारी बैंकों द्वारा मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में दैनिक आधार पर उनका उधार लेना पिछले वित्तीय वर्ष में मार्च की समाप्ति पर उनकी सकल जमाराशियों के दो प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। तथापि, शहरी सहकारी बैंक मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में बिना किसी सीमा के उधार देने के लिए स्वतंत्र होंगे। मांग/सूचना मुद्रा बाजॉर में दिये गये उधारों की सूचना संबंधित पखवाड़े की समाप्ति के बाद 10 दिन के भीतर पाक्षिक आधार पर (रिपोर्टिेंंग पखवाड़े के अनुसार) रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी जाये।

शहरी सहकारी बैंकों के भुगतान आदेशों की पुनर्भुनाई पर सीमाएँ

शहरी सहकारी बैंकों को ध्यान रखना चाहिए कि वाणिज्य बैंक, शहरी सहकारी बैंकों द्वारा जारी किए गए भुगतान आदेशों की पुनर्भुनाई के लिए उनके आकार और उनकी जमाराशियों/शुद्ध मालियत आदि को विचार में लेते हुए उपयुक्त अंतर बैंक मौद्रिक सीमाएं निर्धारित कर सकते हैं।

ईक्विटी वित्त

यह निर्णय लिया गया है कि शहरी सहकारी बैंक द्वारा शेयरों/डिबेंचरों की जमानत पर वित्तपोषण प्रदान करने के बारे में निम्नानुसार परिवर्तन किये जायें:

(i) शहरी सहकारी बैंक व्यक्तियों/स्टॉक ब्रोकरों अथवा किसी भी संस्था को शेयरों की जमानत पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उधार देने के नए प्रस्तावों को स्वीकार न करें। वे प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावों (आईपीओ) के लिए वित्तपोषण प्रदान करने हेतु अग्रिम न दें।

(ii)शहरी सहकारी बैंकों ने यदि स्टॉक ब्रोकरों को उधार दिया है अथवा शेयरों में सीधे निवेश किया है जोकि अनुमत कार्यकलाप नहीं है, उन्हें चाहिए कि वे ऐसे अग्रिमों को वापस लेने तथा ऐसे निवेशों का निपटान करने के बारे में तुरंत आवश्यक उपाय करें।

(iii)जहां शहरी सहकारी बैंकों ने स्टॉक/डिबेंचरों की जमानत पर व्यक्तियों को अनुमत सीमा (अर्थात 10 लाख रुपये/20 लाख रुपये प्रत्यक्ष पर्ची (फिजिकल स्क्रिप्स)ल/डिमैट शेयरों की जमानत पर) तक अग्रिम स्वीकृत और वितरित कर दिये हैं, वहां ऐसे उधारकर्ताओं को संविदाकृत तारीख तक ऐसे अग्रिमों की चुकौती कर देनी चाहिए। उसके बाद किसी भी परिस्थिति में ऐसी सुविधाओं का पुन: नूतनीकरण नहीं किया जाना चाहिए।

  शहरी सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे संबंधित उधारकर्ताओं को उक्त अनुदेशों की और नये दिशा निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए किये जा रहे उपायों की तुरंत सूचना दें।

शहरी सहकारी बैंक, शेयरों की जमानत पर व्यक्तियों और संस्थाओं को दिये गए अग्रिमों की मौजूदा बकाया राशि निर्धारित फार्मेट में तिमाही आधार पर रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित करें। इन अनुदेशों का किसी भी तरह से उल्लंघन होने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

अन्य निवेश

यह निर्णय लिया गया है कि अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों की अपनी शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के प्रतिशत के रूप में सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में एसएलआर धारिता के अनुपात को निम्नानुसार बढ़ाया जाये :

शहरी सहकारी बैंकों की श्रेणी

शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के प्रतिशत में सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के निवेश

अनुसूचित शहरी सहकारी बेंक

15

20

गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक

25 करोड़ रुपये और अधिक की एनडीटीएल वाले शहरी सहकारी बैंक

10

15

25 करोड़ रुपये से कम की एनडीटीएल वाले शहरी सहकारी बैंक

कुछ नहीं

10

शहरी सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे संशोधित मानदंडों को मार्च 2002 के अंत तक प्राप्त करें।

  इसके अलावा पहली अप्रैल 2003 से सभी अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को अपनी एनडीटीएल के 25.0 प्रतिशत की समस्त एसएलआर आस्तियों को केवल सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाए रखना होगा।

पच्चीस करोड़ रुपये और अधिक की एनडीटीएल वाले सभी अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक और गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक अब से अपना सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश केवल भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एसजीएल खाते में अथवा सरकारी बैंकों और प्राइमरी डीलरों के पास कांस्टिटयूएंट एसजीएल खाते में रखेंगे। 25 करोड़ रुपये से कम की एनडीटीएल वाले बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को प्रत्यक्ष या पर्ची के रूप में रख सकते हैं।

निवेशों का वर्गीकरण और उनके मूल्यन

  31 मार्च 2002 को समाप्त होने वाले वर्ष से शहरी सहकारी बैंकों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे 31 मार्च 2002 की स्थिति के अनुसार अपने समस्त निवेश संविभाग को तीन श्रेणियों, नामत: परिपक्वता तक धारित, बिक्री के लिए उपलब्ध और ट्रेडिंग के लिए धारित में वर्गीकृत करें। परंतु निवेशों का मौजूदा वर्गीकरण के अनुसार प्रकटन जारी रहेगा।

  बिक्री के लिए उपलब्ध और ट्रेडिंग के लिए धारित श्रेणियों के अंतर्गत आनेवाले निवेशों को आवधिक रूप से अथवा कम अवधि के अंतरालों पर बाज़ार भावों पर दर्शाया जाना चाहिए।

  अवधिपूर्णता तक धारित श्रेणी के अंतर्गत आनेवाले निवेशों को वर्तमान में स्थायी प्रतिभूतियों की तरह बाज़ार भावों पर दर्शाने की आवश्यकता नहीं है।

  निवेशों का वर्गीकरण, निवेशों का तीनों श्रेणियों के बीच अंतरण (शिफ्टिंग), निवेशों का मूल्यन, निवेशों की बिक्री पर लाभ/हानि दर्ज करने की कार्यपद्धति और मूल्यहृास के लिए प्रावधान करना आदि दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप होने चाहिए।

  शहरी सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे संशोधित दिशा निर्देशों के अंतर्गत निवेशों के वर्गीकरण, अंतरण और मूल्यन की अपेक्षाओं का ध्यान रखने के लिए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से एक निवेश नीति बनायें। इसके अलावा, नीति में जोखिम-प्रबंध संबंधी पहलुओं पर यथोचित ध्यान दिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संशोधित दिशा-निर्देशों के अंतर्गत बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाली क्रियाविधियां स्थिर, पारदर्शी और सुप्रलेखित हों ताकि निरीक्षकों और सांविधिक लेखा-परीक्षकों को उनका सत्यापन करने में आसानी हो सके।

कोई संक्षिप्त नाम नहीं

  शहरी सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे विज्ञापनों, लेखन-सामग्री की मदों आदि के लिए संक्षिप्त नामों का प्रयोग करते समय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों का कड़ाई से अनुपालन करें। यह देखा गया था कि अधिकांश प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाणपत्र तथा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी लाइसेंस के अनुसार अब भी अपने नाम में सहकारी शब्द का इस्तेमाल नहीं करते तथा विभिन्न लेखन-सामग्री की मदों, विज्ञापन, होर्डिंग्ज, नाम-पट्ट आदि पर संक्षिप्त नामों का प्रयोग जारी रखते हैं। इससे न केवल जनसामान्य भ्रमित होते हैं बल्कि सहकारी बैंक की सही स्थिति भी सामने नहीं आती।

शहरी बैंक : रूपरेखा

प्राथमिक सहकारी बैंकों की संख्या 1966-67 के 1106 से बढ़कर मार्च 2000 के अंत में 2050 हो गयी है। उनमें 90 वेतन अर्जक बैंक शामिल हैं। इनमें से 51 प्राथमिक सहकारी बैंक अनुसूचित थे। उनमें से 78.9 प्रतिशत गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में हैं और जमा संसाधनों में इनका अंश 75 प्रतिशत है। मार्च 2000 के अंत में प्राथमिक सहकारी बैंकों की सकल जमाराशियां 28,544.61 करोड़ रुपये थीं जबकि इसी अवधि के दौरान बकाया अग्रिम 17,285.51 करोड़ रुपये थे। प्राथमिक सहकारी बैंकों का ऋण जमा अनुपात जून 1999 के अंत में 63.3 प्रतिशत था। मार्च 1999 के अंत में 1,748 प्राथमिक सहकारी बैंकों की सकल अनुत्पादक आस्तियां 4,534.60 करोड़ रुपये अथवा उनके कुल अग्रिमों का 12.2 प्रतिशत थीं।

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