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विदेशी मुद्रा प्रारक्षित रिपोर्ट

विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी रिपोर्ट

 

भारतीय रिज़र्व बैंक

केंद्रीय कार्यालय मुंबई

 

2007-2008 (मार्च 2008 तक की अवधि सम्मिलित)

 

विषयवस्तु

1.  परिचय
2.  विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर और संरचना

3.  1991 से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की समीक्षा 4. विदेशीमुद्राभंडारमेंवृद्धिकेस्रोत

 

5.  बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भंडार 6. बाह्यऋणकासमयपूर्वभुगतान

 

7.  आईएमएफ की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी) 8. विदेशीमुद्राभंडारकीपर्याप्तता

 

9.  विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरुप और उससे  आय

 

विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी रिपोर्ट : 31 मार्च 2008 की स्थिति

 

1.परिचय

 

वर्ष 2003 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने पारदर्शिता और प्रकटन के साथ विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन संबंधी प्रमुख नीति और परिचालनगत मामलों की समीक्षा की और अधिक पारदर्शिता लाने एवं प्रकटन के स्तर में वृद्धि लाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया कि विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन के संबंध में अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाए एवं उसे सार्वजनिक किया जाए। इस प्रकार की पहली रिपोर्ट 30 सितंबर, 2003 की स्थिति के अनुसार तैयार की गई और 3 फरवरी 2004 को इसे पब्लिक डोमेन पर प्रदर्शित किया गया। यह रिपोर्ट अब 3 माह के अंतराल में प्रत्येक वर्ष 31 मार्च और 30 सितम्बर की स्थिति के संदर्भ में तैयार की जाती है। 31 मार्च 2008 की स्थिति पर आधारित विदेशी मुद्रा भण्डार की यह 10 वीं रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में बाह्य भंडारे जैसे विदेशी मुद्रा भण्डार का स्तर, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के स्रोत ,विदेशी मुद्रा भण्डार के परिप्रेक्ष्‍य में देयताएं, बाह्य ऋण का समयपूर्व भुगतान , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी), विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता आदि के संबंध में मात्रात्मक जानकारी संकलित की गई है। पुनरावृत्ति को टालने के लिए पहली रिपोर्ट के खण्ड II और III; जो कि क्रमश: विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधनात्मक पहलू की गुणात्मकता और विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में विभिन्‍न देशों के प्रकटन की तुलना से संबंधित है, को इस रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है, जिन्‍हें इच्छुक पाठक भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन के मार्च 2004 के अंक में अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाईट (www.rbi.org.in) पर विदेशी मुद्रा भण्डार संबंधी पहली रिपोर्ट में देख सकते हैं।

 

 

2. विदेशी मुद्रा भण्डार का स्तर एवं संरचना

 

विदेशी मुद्रा भण्डार, जिसमें विदेशी मुद्रा आस्तियां, विशेष आहरण अधिकार, स्वर्ण और आईएमएफ में रिज़र्व ट्रांच की स्थिति साम्मिलित है, का स्तर मार्च 1991 के अंत में 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से मार्च 2006 के अंत तक 151.6 बिलियन अमरीकी डॉलर और उसके बाद मार्च 2007 के अंत तक 199.2 बिलियन अमरीकी डॉलर तक नियमित रुप से बढ़ता रहा। मार्च 2008 के अंत में वह 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हुआ (तालिका 1)। यद्यपि अमरीकी डॉलर और यूरो मध्यवर्ती मुद्राएं हैं, विदेशी मुद्रा भण्डार को केवल अमरीकी डॉलर के रुप में मूल्यांकित एवं व्यक्त किया जाता है।

 

तालिका 1 : विदेशी मुद्रा भण्डार की स्थिति

 

(मिलियन अमरीकी डॉलर में)

दिनांक

एफसीए

एसडीआर

स्वर्ण

आरटीपी

कुल विदेशी मुद्रा भण्डार

(1)

(2)

(3)

(4)

(5)

       (6)

 (1+2+3+4+5) 

31-03-06

145,108

3(2.0)

5,755

756

151,622

30-09-06

158,340

1(0.9)

6,202

762

165,305

31-03-07

191,924

2(1.0)

6,784

469

199,179

30-09-07

239,954

2(1.0)

7,367

438

247,761

31-03-08

299,230

18(11.0)

10,039

436

309,723

 

टिप्पणी :

एफसीए(विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां) : एफसीए एक बहुमुद्रा संविभाग है जिसमें अमरीकी डॉलर, यूरो, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन आदि प्रमुख मुद्राएं सम्मिलित रहती है और इसका मूल्य अमरीकी डॉलर में निर्धारित किया जाता है।
2.  एसडीआर (विशेष आहरण अधिकार) :एसडीआरमेंमूल्यकोष्ठकमेंदियागयाहै।

 

3.  स्वर्ण : वास्तविक स्टाक करीब 357 टन; अपरिवर्तित रहा है।
4.  आरटीपी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में रिज़र्व ट्रांच पोजीशन को दर्शाता है।

 

3. 1991 से विदेशी मुद्रा भण्डार में वृध्दि की समीक्षा

 

भारत के  विदेशी मुद्रा भण्डार में 1991 से काफी वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा भण्डार जोकि मार्च 1991 के अंत में 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर था, क्रमिक रुप से बढकर मार्च 1995 के अंत में 25.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। 1990 के दशक के दूसरे आधे हिस्से में भी इसमें लगातार वृद्धि होती रही और मार्च 2000 के अंत में यह 38.0 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर को छू गया। बाद में यह मार्च 2004 के अंत में 113.0 बिलियन अमरीकी डॉलर, मर्च 2005 के अंत में 141.5 बिलियन अमरीकी डॉलर, मार्च 2006 के अंत में 151.6 बिलियन अमरीकी डॉलर , मार्च 2007 के अंत में 199.2 बिलियन अमरीकी डॉलर और बाद में मार्च 2008 के अंत में बढ़कर 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया (चार्ट 1) । यह उल्‍लेखनीय है कि 2002-03 से पहले के विदेशी मुद्रा भण्‍डार के आंकडों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में  रिज़र्व ट्रांच पोजी़शन (आरटीपी) सम्मिलित नहीं है।

 

चार्ट 1 : विदेशी मुद्रा भण्डार की स्थिति

 

 

4. विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि के स्रोत

 

सारणी 2 में मार्च 1991 से मार्च 2008 तक की अवधि के दौरान विदेशी मुद्रा भण्डार में हुई वृद्धि के प्रमुख स्रोतों के विवरण दिए गए हैं।

 

सारणी 2: 1991 से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि  के स्रोत

(बिलियन अमरीकी डॉलर)

मद

1991-92 से 2007-08
 (मार्च 2008 के अंत  तक)

 

मार्च 1991 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार

5.8

 ख.I.

 

चालू खाता शेष

 (-­) 52.4

ख.II.

 

पूंजी खाता (निवल) (क से च)

 322.6

 

विदेशी निवेश,
जिसमें से:
(i) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

(ii)  विदेशी संस्थागत निवेश

152.4

59.2
66.6

 

अनिवासी भारतीय जमाराशियां

29.8

 

 ग

बाह्य सहायता 

16.0

 

बाह्य वाणिज्यिक उधार

59.7

 

पूंजी खाते  की अन्य मदें*

64.7

ख III

 

मूल्यांकन परिवर्तन

33.7

 

 

कुल (क+ख।+ख।।+ख।।।)

309.7

* कृपया सारिणी 3 के अंत में दी गई टिप्पणी देखें

 

सारिणी 3 में अप्रैल-मार्च 2007-08 में और उसके पहले के वर्ष में उसी अवधि‍ में हुई वृद्धि के विवरण दिए गए हैं। पूंजी एवं अन्य अंतर्वाहों के कारण विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि हुई है। वर्ष 2007-08 में विदेशी मुद्रा भण्डार में हुई वृद्धि के मुख्य स्रोत (क) विदेशी निवेश (ख) बाह्य वाणिज्यिक उधार (ग) अल्पावधि ऋण और (घ) बैंकिंग पूंजी रहे ।

 

सारिणी 3 : विदेशी मुद्रा भण्डार में हुई वृद्धि के स्त्रोत

 

(बिलियन अमरीकी डॉलर में)

 

 

  मद

अप्रैल-मार्च

अप्रैल-मार्च

 

 

 

2007-08

2006-07

I.

 

चालू खाता शेष

-17.4

-9.8

II.

 

पूंजी खाता(निवल) (क से छ)

109.6

46.4

 

विदेशी निवेश i) + ii)

44.8

15.6

 

 

i) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

15.5

8.5

 

 

ii) संविभाग निवेश

29.3

7.1

 

बैंकिंग – पूंजी

11.8

1.9

 

 

जिसमें से : एनआरआई जमा राशियां

0.2

4.3

 

अल्पावधि ऋण

17.7

6.6

 

बाह्य सहायता

 

2.1

1.8

 

बाह्य वाणिज्यिक उधार                                                                     

22.2

16.2

 

पूंजी खाते की अन्‍य मदें *                                                                   

11.0

4.3

III.

 

मूल्यन परिवर्तन

18.3

11.0

 

 

कुल (I+II+III)

110.5

47.6

 

* अन्य पूंजी में भूल और चूक के अलावा निर्यात में अग्रता और पश्चता, विदेश में रखी निधि, प्राप्त अग्रिम, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्गत जारी शेयर और पूंजीगत प्राप्तियों, जो और कहीं शामिल नहीं हुई हैं, के लेन-देन शामिल हैं । इन पूंजीगत प्राप्तियों के लेन-देन में मुख्यत: वित्तीय डेरि‍वेटि‍व और हेजिंग (मार्जिन भुगतान और निपटान) से संबधित सीमापार लेन-देन , प्रवासी अंतरण और अन्‍य पूंजीगत अंतरण (विदेशी भारतीय प्रवासियों द्वारा पूंजीगत आस्तियों का अंतरण,निवेश अनुदान,क्षतिपूर्ति भुगतान) गारंटी भुनाना,आदि शामिल हैं।

 

1991 के बाद आर्थिक सुधारों की संपूर्ण अवधि में विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि के स्रोतों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि संचयी निवल विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश (एफ डी आई) में 1991-92 के 129 मिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में 2007-08 में 59.2 बिलियन अमरीकी डॉलर तक हुई मात्रात्‍मक वृद्धि के कारण विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि संभव हुई । वर्ष 2007-08 के दौरान निवल एफडीआई 15.5 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। भारतीय पूंजी बाजार में एफआईआई निवेश, जो कि जनवरी 1993 से शुरु हुआ; इसमें भी बाद के वर्षों में काफी वृद्धि देखी गई। संचयी निवल एफआईआई अंतर्वाह में वर्ष 2007-08 के दौरान 20.3 बिलियन अमरीकी डॉलर की निवल वृध्दि के साथ मार्च 1993 के अंत में 1 मिलियन अमरीकी डॉलर से मार्च 2008 के अंत मे 66.6 बिलियन अमरीकी डॉलर तक वृद्धि हुई। बकाया अनिवासी भारतीय जमाराशियां मार्च 1991 के अंत मे 14.0 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढकर मार्च 2007 के अंत में 41.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गईं । मार्च 2008 के अंत में बकाया अनिवासी भारतीय जमाराशियां 43.7 बिलियन अमरीकी डॉलर रहीं। चालू खाते के अंतर्गत, भारत के निर्यात जोकि 1991-92 के दौरान 18.3 बिलियन अमरीकी डॉलर थे, बढकर 2007-08 में 158.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गए । भारतीय आयात, जोकि 1991-92 मे 24.1 बिलियन अमरीकी डॉलर थे ,बढकर 2007-08 में 248.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गए। अदृश्य (invisible); विशेषत: निजी विप्रेषणों का भी चालू लेखा में काफी योगदान रहा। निवल अदृश्य अंतर्वाहों, जिसमें मुख्यत: निजी अंतरण विप्रेषण और सेवाएं शामिल रहती हैं, में भी 1991-92 में 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर से 2006-07 में 53.4 बिलियन अमरीकी डॉलर तक की वृद्धि हुई। अप्रैल-मार्च 2007-08 के दौरान निवल इन्विजि़बल्स 72.7 बिलियन अमरीकी डॉलर थे। भारत का चालू खाता शेष, जो कि 1990-91 में जीडीपी के 3.1 प्रतिशत घाटे में था, 2001-02 में 0.7 प्रतिशत और 2002-03 मे 1.3 प्रतिशत अधिशेष में बदल गया। वित्तीय वर्ष 2003-04 के दौरान चालू खाते में मुख्यत: अदृश्य खातों में अधिशेष के कारण 14.1 बिलियन अमरीकी डॉलर (जीडीपी का 2.3 प्रतिशत) के अधिशेष की प्रविष्टि की गई। तथापि, 2004-05 के दौरान निरंतरता के न रहते हुए चालू खाते में 2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर (जीडीपी का 0.4 प्रतिशत) के घाटे की प्रविष्टि की गई। 2005-06 के दौरान चालू खाता घाटा बढ़कर 9.9 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्थात जीडीपी का 1.2 प्रतिशत हो गया था जोकि तेल और गैर-तेल के आयात की जोरदार मांग का परिणाम था।  वर्ष 2006-07 के दौरान चालू खाता घाटा 9.8 बिलियन अमरीकी डॉलर; जीडीपीका 1.1 प्रतिशत रहा। वर्ष 2007-08 में चालू खाता घाटा बढकर 17.4 बिलियन अमरीकी डॉलर (जीडीपी का 1.5 प्रतिशत) हो गया।

 

5. बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भण्डार

 

विदेशी मुद्रा भण्डार में हुई वृद्धि को देश की कुल बाह्य देयताओं के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। दिसंबर 2007 के अंत में भारत की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) जोकि देश की बाह्य वित्तीय आस्तियों और देयताओं के स्टॉक का संक्षिप्त रेकॉर्ड है, सारिणी 4 के अनुसार है ।

 

सारिणी 4 : भारत की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति

 

(बिलियन अमरीकी डॉलर में)

 

  मद

   दिसंबर 2007 (पी)                                         

कुल विदेशी आस्तियां

      331.73  

1.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

       38.95

2.

संविभाग निवेश

        0.56

3.

अन्य निवेश

       16.90

4.

विदेशी मुद्रा भंडार

      275.32

कुल विदेशी देयताएं

      405.64

1.

भारत में प्रत्यक्ष निवेश

      102.38

2.

संविभाग निवेश

      124.58

3.

अन्य  निवेश

      178.68

 

निवल विदेशी देयताएं (ख -क)

       73.91

पी : प्रोविजनल

 

6.  बाह्य ऋण का समय-पूर्व भुगतान

 

विदेशी मुद्रा भण्डार  में हुई काफी वृध्दि के कारण फरवरी 2003 में भारत सरकार द्वारा एशियन विकास बैंक (एडीबी) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक(आईबीआरडी)/विश्व बैंक से लिए गए 3.03 बिलियन अमरीकी डॉलर के कुछ उच्च लागत वाले विदेशी मुद्रा ऋणों का समय-पूर्व भुगतान संभव हो पाया। वर्ष 2003-04 में सरकार द्वारा आईबीआरडी और एडीबी से लिए गए 2.6 बिलियन अमरीकी डॉलर के उच्च लागत वाले ऋणों का समय-पूर्व भुगतान किया गया। इसके अतिरिक्त 1.1 मिलियन अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋणों का भी समय-पूर्व भुगतान किया गया। इस प्रकार से वर्ष 2003-04 के दौरान कुल 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की कुल राशि का समय-पूर्व भुगतान किया गया । वर्ष 2004-05 के दौरान 30.3 मिलियन अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋणों का भुगतान किया गया । 2006-07 के दौरान माह अप्रैल 2006 में 58.7 मिलियन अमरीकी डॉलर का एक समय-पूर्व भुगतान किया गया। 2007-08 के दौरान किसी ऋण का पूर्व भुगतान नहीं किया गया।

 

7. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी)

 

फरवरी 2003 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपनी वित्तीय लेनदेन योजना में भारत को ऋणदाता के रुप में प्राधिकृत किया गया। इस व्यवस्था के अनुसार भारत ने मार्च-मई 2003 में बुरुंडी को 5 मिलियन एसडीआर और जून-सितम्बर 2003 में ब्राजील को 350 मिलियन एसडीआर के आईएमएफ द्वारा किए गए वित्तीय सहयोग में अंशदान किया। एफटीपी के अंतर्गत इंडोनेशिया को दिसंबर 2003 में 43 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए। वर्ष 2004-05 के दौरान एफटीपी के अंतर्गत उरुग्वे,हैती, डोमिनिकन रिपब्लिक और श्रीलंका आदि देशों को 61 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए। मई-जून 2005 में टर्की और उरुग्वे को 34 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए। उसके बाद वर्ष 2007-08 में 2 लेनदेनों मे; 7 अप्रैल 2008 को बंग्‍लादेश द्वारा 32 मिलियन एसडीआर और 14 मई 2008 को टर्की द्वारा 55 मिलियन एसडीआर खरीदे गए। इस तरह से जून 2008 के अंत तक कुल 580 मिलियन एसडीआर खरीदे गए। एफटीपी की पुनर्खरीद लेनदेनों में नवंबर 2005 से भारत को शामिल किया गया। नवंबर 2005 से जून 2008 तक की अवधि में टर्की, अल्‍जेरिया, ब्राजील, इंडोनेशिया, उरुग्वे और युक्रैन आदि 6 देशों से 749 मिलियन एसडीआर के  17 पुनर्खरीद लेनदेन किए गए।

 

8. विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता

 

विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी उतार-चढ़ावों को सहने की किसी देश की क्षमता को नापने संबंधी महत्वपूर्ण मापदण्ड के रुप में उभर रही है। पूंजी प्रवाहों के बदलते स्वरुप के साथ आयात के लिए सुरक्षित पूंजी के अनुसार विदेशी मुद्रा भण्डार पर्याप्तता का मूल्यांकन करने का पारंपरिक दृष्टिकोण विस्तृत हो गया है और अब इसमें विभिन्न प्रकार के पूंजी प्रवाहों के आकार, संरचना और जोखिम के स्वरुप के साथ-साथ बाहरी उतार-चढ़ावों के प्रकार जो अर्थव्‍यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं; से संबंधित अन्य कई मानदण्ड भी शामिल किए गए हैं।  इस संबंध में डॉ.सी. रंगराजन, तत्कालीन गवर्नर, भारिबैंक की अध्यक्षता में भुगतान संतुलन पर बनी उच्चस्तरीय समिति एवं श्री एस.एस.तारापोर,भूतपूर्व उप गवर्नर  भारिबैंक की अध्यक्षता में पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति एवं पूर्णतर पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति द्वारा कई सुझाव दिए गए। हाल के वर्षों में नए उपायों के लागू किए जाने से विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का  मूल्यांकन प्रभावित हुआ है। ऐसे ही एक उपाय के अनुसार प्रयोज्य विदेशी मुद्रा भंडार अगले वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा ऋणों के अनुसूचित परिशोधन (रोल-ओवर के बगैर) से अधिक होना चाहिए । एक अन्य उपाय ' जोखिम में चलनिधि '  दृष्टिकोण पर आधारित है जिसमें किसी देश के संदर्भ में संभावित जोखिमों का ध्‍यान रखा जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार यह अपेक्षित है कि वित्तीय स्थिति को प्रभावित करनेवाले मदों; जैसेकि चालू खाता शेष, एफडीआई, एफआईआई निवेश, बाह्य वाणिजिक उधार, अनिवासी जमाएं इ.जैसे पूंजी लेखा प्रवाहों के संभाव्य परिणामों की विस्तार-सीमा के अंतर्गत उस देश की विदेशी मुद्रा तरलता की स्थिति का परिकलन किया जाए। भारिवैंक विदेशी मुद्रा भंडार के "जोखिम में चलनिधि" (एलएआर) का अंदाज लगाने के लिए अंत:प्रेरणा और जोखिम प्रतिमानों के आधार पर कार्य कर रहा है।

विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का पारंपरिक लेनदेन आधारित निर्देशांक, अर्थात आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा, जो दिसंबर 1990 के अंत में 3 सप्ताहों के आयात तक कम हो गया था, उसमें मार्च 2002 के अंत में 11.5 माह की आयात तक और आगे 14.2 माह की आयात तक वृद्धि हो गई।  मार्च 2004 के अंत में यह 16.9 माह था और मार्च 2005 के अंत मे वह 14.3 माह तक और आगे मार्च 2005 के अंत मे 11.6 माह तक कम हो गया। मार्च 2007 के अंत में यह 12.5 माह था और सितंबर 2007 के अंत में 12.4 माह था। मार्च 2008 के अंत पर वह 15 माह था। लघु अवधि ऋण, 2005-06 से आपूर्तिकर्ता की साख 180 दिनों के साथ पुनर्व्‍याख्यित, का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 1991 के अंत में 146.5 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2005 के अंत तक  12.5 प्रतिशत हो गया किंतु मार्च 2006 के अंत मे बढ़ कर 12.9 प्रतिशत और मार्च 2007 के अंत में 13.2 प्रतिशत और सितंबर 2007 के अंत मे 13.9 प्रतिशत हो गया। अल्पावधि ऋण और विदेशी मुद्रा भंडार का अनुपात मार्च 2008 के अंत में 14.3 प्रतिशत तक बढ गया। अल्पावधी ऋण और पोर्ट-फोलियो स्टॉक का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 1991 के अंत में 146.6 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2007 के अंत मे 45.3 प्रतिशत और मार्च 2008 के अंत में 44.4  प्रतिशत हो गया।

 

9. विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरुप और उससे आय

 

सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के व्यापक अनुसरण में बने मौजूदा मानदण्डों के अनुरुप विदेशी मुद्रा आस्तियों का निवेश बहु मुद्रा, बहु आस्ति संविभागों मे किया जाता है। मार्च 2008 के अंत की स्थिति के अनुसार  299.2 बिलियन अमरीकी डॉलरों की कुल विदेशी मुद्रा आस्तियों में से 103.6 बिलियन अमरीकी डॉलरों का निवेश प्रतिभूतियों में किया गया, 189.6 बिलियन अमरीकी डॉलर अन्य केंद्रीय बैंकों,अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में जमा किए गए और 6.0 बिलियन अमरीकी डॉलर विदेशी वाणिज्‍य बैंकों/बाह्य आस्ति प्रबंधकों (इएएम्स) के पास जमा किए गए (सारिणी 5) ।

 

(मिलियन अमरीकी डॉलर में)

         

31मार्च 2008
की स्थिति 

30 सितंबर 2007 की स्थिति      

    विदेशी मुद्रा आस्तियां

        299,230              

     239,954

क) प्रतिभूतियां

 

        103,569                                                        

      67,212

ख) अन्‍य केंद्रीय बैंकों,बीआईएस और
 आईएमएफ में जमाराशियां

 

         189,645                         

 
      137,348

ग) विदेशी वाणिज्य बैंकों में जमा राशियां
   / इएएम्‍स के पास खी गई निधियां  

           6,016                     

      35394

 

 

 

विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण से प्राप्त आय, मूल्‍यह्रास की गणना के बाद वर्ष 2005-06 के दौरान 3.9 प्रतिशत थी परंतु वर्ष 2006-07 (जुलाई - जून) के दौरान वह बढ़ कर  4.6 प्रतिशत हो  गई।

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