नए भारत का नया बैंकिंग परिदृश्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
नए भारत का नया बैंकिंग परिदृश्य
श्री एस.एस. मूंदड़ा, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक
उद्बोधन दिया
भारतीय स्टेट बैंक की अध्यक्षा श्रीमती अरुंधंती भट्टाचार्य; आई सी आई सी आई बैंक लि. की प्रबंध निदेशक तथा मुख्य कार्यपालक आधिकारी श्रीमती चंदा कोचर, एक्सिस बैंक लि. की प्रबंध निदेशक तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्रीमती शिखा शर्मा, एचडीएफसी बैंक लि. के प्रबंध निदेशक श्री आदित्य पुरी, स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक के भारत तथा दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय मुख्य कार्यपालक श्री सुनील कौशल तथा बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र के अन्य वरिष्ठ सदस्य गण; प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सदस्यगण; देवियों और सज्जनों । 2. सर्वप्रथम, मैं तमाल तथा मिंट प्रबंधन को धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने मुझे मिंट की इस वार्षिक बैंकिंग सभा में प्रमुख व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया। यह कार्यक्रम बैंकरों के कैलेंडरमें सबसे अधिक प्रतीक्षित कार्यक्रमों में से एक बन चुका है। मैं इस कार्यक्रम में पिछली बार जनवरी 2014 में एक पैनलिस्ट के रूप में शामिल हुआ था और उस वर्ष पैनल परिचर्चा का विषय था “भारतीय बैंकिंग: एक नया बैंकिंग परिदृश्य’ जिसे इस बार और विस्तार प्रदान करते हुए “नए भारत का नया बैंकिंग परिदृश्य “ कर दिया गया है। 3. जब मैं इस सभा के विषय के बारे में सोच रहा था, तो मेरे मन में बार-बार यह ख्याल आ रहा था कि भारत के बारे में नया क्या है? क्या यह नई राजनीतिक व्यवस्था और उसके बाद होने वाले नीतिगत परिवर्तन हैं? क्या यह वैश्विक अर्थ व्यवस्था में नए विकास नेता होने का लेबल है? क्या यह अधिक वित्तीय समावेशित भारत है जैसा कि सोचा जा रहा है या यह एक ‘डिजिटल’ या ‘सबसे जुड़ा हुआ’ भारत है जो कि नया है। मेरे विचार से यह इन सभी का मिश्रण और उससे भी कहीं अधिक है। हम सभी जानते हैं कि विश्व के किसी भी देश में एक दीर्घकालीन आर्थिक विकास हेतु राजनीतिक स्थिरता सबसे जरूरी पहली शर्त है तथा एक निर्णायक जनादेश के साथ लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई सरकार महत्वपूर्ण विकास समर्थक सुधारों को प्रारम्भ करने में सक्षम होती है। नए भारत की रूपरेखा के परिचायक 4. नए भारत की रूपरेखा के परिचायक क्या हैं? वे कौन से ऐसे मुद्दे हैं जो अगले दस या बीस वर्षों के दौरान बने रहेंगे? मेरे विचार से, सात ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं जो आने वाले दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था तथा बैंकिंग क्षेत्र को परिभाषित करेंगे। वे हैं :-
मैं इनमें से कुछ पर विस्तार से बात करना चाहूंगा तथा आगे चलकर बैंकिंग प्रणाली पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर भी हम गहन चर्चा करेंगे । ए) जनसांख्यिकी 5. इस समय भारत के पास उपलब्ध जनसांख्यिकी लाभ पर काफी चर्चा हो रही है। इसकी वर्तमान वृद्धि दर को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 तक भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। इसके अतिरिक्त, चीन की कामकाजी जनसंख्या 2015 तक अपने अधिकतम पर पहुंच जाएगी और अगले एक या डेढ़ दशक में वह संकुचित हो जाएगी जबकि भारत की 68 प्रतिशत जनसंख्या 2030 तक कामकाजी श्रेणी (15-64) में होगी। 2030 तक भारतीय जनसंख्या का अनुमानित जीवनकाल भी लगभग 70 वर्षों का हो जाएगा। ग्राहकों के नए प्रवाह की दृष्टि से यह आंकड़े बैंकों के लिए एक ओर जहां दीर्घकालीन अवसर प्रदान करेंगे वहीं दूसरी ओर इनसे चुनौतियाँ भी उत्पन्न होंगी जो अलग-अलग आयु वर्ग के ग्राहकों के अलग-अलग तौर-तरीकों से जुड़ी होंगी। बैंकों को ग्राहकों की अपेक्षा का सतत पूर्वानुमान करना होगा और उन्हें तत्परतापूर्वक पूरा करने हेतु रणनीति तैयार करनी होगी। बी) शहरीकरण 6. भारत तेजी से बढ़ती हुई शहरीकरण की प्रवृत्ति से भी रूबरू हो रहा है। यह अनुमान है कि 2030 तक शहरी जनसंख्या समग्र जनसंख्या में 1.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि की तुलना में 2.6 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 631 मिलियन तक बढ़ जाएगी। इसका तात्पर्य यह है कि आज की 31 प्रतिशत की तुलना में 41.8 प्रतिशत जनसंख्या शहरी समुदायों में जीवन-यापन करेगी। हालांकि शहरी जनसंख्या का यह प्रतिशत 50 प्रतिशत के मौजूदा वैश्विक औसत की अपेक्षा काफी कम होगा किन्तु इससे मूलभूत संरचना निर्माण, आवास, उपभोग, ग्राहकों की शिक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति इत्यादि के संबंध में बैंकों को अत्यधिक व्यावसायिक अवसर प्राप्त होंगे। सी) डिजिटाइजेशन 7. डिजिटाइजेशन एक और ऐसा क्षेत्र है जिस पर नई सरकार सतत ज़ोर दे रही है। तेज गतिवाली ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी द्वारा देश में इन्टरनेट के प्रसार पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है। इन्टरनेट प्रसार में पिछले वर्ष के दौरान तेजी से बढ़ोतरी हुई है; तथापि, इन्टरनेट प्रसार का 20 प्रतिशत का यह स्तर अन्य विकासशील देशों जैसे चीन (46 प्रतिशत), ब्राज़ील (53 प्रतिशत) तथा रूस (59 प्रतिशत) की तुलना में फीका है; जबकि विकसित देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड तथा जापान में यह 85 प्रतिशत से अधिक है। इन्टरनेट के इस कम प्रसार में बैंकिंग क्षेत्र के लिए अवसर छुपे हुए हैं। जैसे-जैसे देश में इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ेगी, बैंक एक डिलिवरी चैनल के रूप में इसका बेहतर इस्तेमाल कर सकेंगे। दूसरी ओर, देश में मोबाइल प्रसार उल्लेखनीय रूप से काफी अधिक लगभग 930.20 मिलियन है तथा इसमें भी पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं जिनका दोहन किया जाना है। डी) औद्योगीकरण 8. नई सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ मंत्र ने भी सही तार छू लिए हैं तथा सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की कमोबेश स्थिर रही मौजूदा 15 प्रतिशत की सहभागिता को 2025 तक लगभग 25-30 प्रतिशत तक बढ़ाने हेतु प्रयास जारी हैं। अगर यह प्रयास सफल होता है तो इसका तात्पर्य होगा घरेलू रोजगारों में 90 मिलियन की वृद्धि के साथ ही सहयोगी कॉर्पोरेट एवं खुदरा कारोबार के अवसरों में बढ़ोतरी। ई) शिक्षा 9. इसी प्रकार, देश में चार ई अर्थात Expansion (विस्तार), Equity and inclusion (समान हिस्सेदारी तथा समावेशन); Excellence (दक्षता) और Employability (नियोजनीयता) पर विशेष रूप से ध्यान देते हुए शिक्षा का स्तर सुधारने की काफी संभावनाएं मौजूद हैं। इससे ग्राहक जागरूकता, आवश्यकता, मांग तथा अपेक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं। एफ) वित्तीय समावेशन 10. प्रत्येक घर में एक बैंक खाते पर ध्यान देते हुए शुरू की गई प्रधानमंत्री जन धन योजना को अत्यंत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। पिछली गणना तक, इस योजना के अंतर्गत खोले गए खातों की संख्या 12.14 करोड़ तक पहुँच गई थी। इस योजना की वजह से बैंकरों को उपलब्ध हुए अवसरों का उल्लेख करने की मुझे कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती। इसके अतिरिक्त, यह तो केवल एक शुरुआती कदम है, इस कार्य के बड़े हिस्से की तो अभी शुरूआत की जानी है। जी) वैश्विक एकीकरण 11. इसके साथ ही मैं बढ़ते वैश्विक एकीकरण के अंतिम मुद्दे पर पहुंच चुका हूँ जो मुझे लगता है कि पहले ही वित्तीय क्षेत्र को काफी प्रभावित कर चुका है। चाहे फिर वो उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा दी गई मात्रात्मक सहूलियतें और बाद में उनको हटाया जाना हो या फिर मुद्रा की परिवर्तनीयता, अर्थव्यवस्थाओं तथा मुद्राओं इत्यादि की क्षेत्रीय संधि का बनना या टूटना इत्यादि हो। वित्तीय दृष्टिकोण से वैश्विक संरचना को प्रभावित करने वाली कुछ अन्य ऐसी घटनाएँ भी हो सकती हैं जो अभी तक सामने न आई हों। मैं यहां फाइनेंशियल टाइम्स में हाल ही में प्रकाशित दो मुख्य समाचारों का उल्लेख करना चाहूँगा : पहला है, स्विफ्ट भुगतान प्रणाली से रूस को अलग कर दिया जाना तथा दूसरा विश्व के तीन सबसे बड़े बैंकों द्वारा 30 क्षेत्राधिकारों में अभिकर्ता बैंकिंग सम्बन्धों से बाहर निकल आने के बारे में है। प्रत्यक्ष रूप से इन बैंकों के लिए, विकासशील देशों में ऋणदाताओं के साथ संबंध तोड़ने के कारण हैं - उल्लंघनों, धन शोधन तथा आतंकवाद के लिए वित्तपोषण के कारण विनियामक प्रतिबंधों के प्रभाव से हानेवाले जोखिम को सीमित करना। इस प्रकार की घटनाएँ, हालांकि विशिष्ट क्षेत्राधिकारों में उत्पन्न होती हैं, तथापि यह विश्व में कहीं भी व्यवसाय तथा वित्त को बुरी तरह से प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। 12. इन परिस्थितियों में, बैंकों के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वे ऐसी प्रवृत्तियों पर नजर रखें तथा सन्निकट चुनौतियों से निपटने के लिए न केवल तैयार रहें बल्कि उसके साथ ही सामने आनेवाले अवसरों को भी हाथ से न जाने दें। नए बैंकिंग परिदृश्य में प्रमुख कर्ता/कार्य 13. आइए अब एक नज़र इस पर भी डाली जाए कि नए बैंकिंग परिदृश्य में प्रमुख कर्ता/कार्य पर इन मुद्दों/गतिविधियों का क्या प्रभाव पड़ेगा। 14. ग्राहक, कर्मचारी, मालिक तथा विनियामक बैंकिंग प्रणाली के प्रमुख हिताधिकारी हैं। उभरते हुए परिदृश्य में, बैंकों को ग्राहकों के ऐसे वर्ग को संतुष्ट करना होगा जो शिक्षित, सुविज्ञ तथा अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। संभवत: बैंकों को विभिन्न माध्यमों द्वारा डिजिटल तथा वास्तविक दुनिया में अपने उत्पाद तथा सेवाएँ बेचने हेतु विवश होना पड़ेगा। जैसे-जैसे ग्राहकों द्वारा मांगे गए उत्पादों/सेवाओं की जटिलता बढ़ेगी, वैसे–वैसे बैंकों को न केवल अपने कर्मचारियों की कार्य-क्षमता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा बल्कि उन्हें अपने साथ बनाए रखने का भी ख्याल रखना होगा। इसके अलावा नई प्रतिस्पर्धा संभवत: आरओई को समाप्त कर देगी जिसका लाभ मालिकवर्ग इस समय उठा रहा है, इससे बैंकों में और अधिक पूंजी लगाने के लिए भावी निवेशकों को प्रोत्साहित करना कठिन हो जाएगा। सरकारी बैंकों के मामले में, उनके स्वामित्व में बदलाव आ सकता है और सरकार उनमें अपनी शेयरधारिता को कम कर सकती है। इस तरह से वे भी निजी पूंजी की दौड़ में शामिल हो जाएँगे। 15. जैसा कि हमने देखा, उपभोक्ता संरक्षण, धन शोधन तथा बाज़ार के सही संचालन पर विनियमित कंपनियों की विफलताओं से समस्त विश्व में विनियामक विशेष रूप से काफी सख्त हो गए हैं। यह विनियामक सक्रियता समस्त विश्व में बैंकों पर दंडों को बार-बार लगाए जाने और उसकी मात्रा से पता चल जाती है। संकट के बाद, केवल अमेरिका तथा यूरोप में ही बैंकों को अब तक दंडराशि और कानूनी खर्चों में लगभग 230 बिलियन डॉलर व्यय करने पड़े हैं।2 अगले दो वर्षों में बैंकों को इस प्रयोजन के लिए संभवत: 70 बिलियन डॉलर और खर्च करने पड़ सकते हैं। यह संख्या चौंकाने वाली है। हमने अपने क्षेत्राधिकार में भी कुछ प्रतिबंधात्मक कार्रवाईयां देखी हैं किन्तु वह इनके मुकाबले बिलकुल भी सख्त नहीं हैं। मेरा विश्वास करें, भारतीय विनियामक अब तक तुलनात्मक रूप से अधिक सहनशील रहे हैं। आप में से कुछ लोग जो विदेश में कार्य-संचालन कर रहे हैं, वे भली भांति जानते हैं कि मेजबान विनियामक संस्थाएं कितना सख्त रुख अपनाती हैं। बैंकों को सख्त विनियामक दौर का सामना करने के लिए अपने आपको तैयार करना होगा। 16. नया बैंकिंग परिदृश्य इस क्षेत्र में वर्तमान में जारी प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगा। मैं इनमें से कुछ पर विस्तार से बात करना चाहूँगा। प्रतिस्पर्धा तथा समेकन 17. इस क्षेत्र का आनेवाला दौर प्रतिस्पर्धा तथा तथा समेकन का होगा बैंकों को कभी न कभी जिसका सामना करना होगा। इस कैलेंडर वर्ष में दो नए निजी बैंक कार्य करना आरंभ कर देंगे। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष के अंत में या अगले वर्ष के प्रारम्भ में छोटे वित्त बैंक तथा भुगतान बैंक भी मैदान में उतर सकते हैं। बाज़ार के मौजूदा खिलाड़ियों के बीच समेकन तथा विलयन हो सकते हैं। निसंदेह बाज़ार के इन नए खिलाड़ियों के लिए लाभ के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं और इन पूर्ण-संगठित तथा मंझे हुए विनियमित खिलाड़ियों के पास अविनियमित शैडो बैंकिंग इकाइयों के चंगुल से ग्राहकों को बाहर निकालने के ढेरों अवसर हैं। किन्तु, मौजूदा खिलाड़ी अपने जोखिम पर वहाँ डटे रह सकते हैं। हमने देखा है कि प्रतिस्पर्धा से एकाधिकार रखनेवाले को कड़ी चुनौती मिलती है। ऐसा विमानन एवं दूरसंचार क्षेत्र में घटित हो चुका है और बैंकिंग क्षेत्र में ऐसा नहीं होने का कोई कारण नहीं है। और मेरा विश्वास करें यह आपके लिए नई प्रतिस्पर्धा का अंत नहीं है। रिज़र्व बैंक ने संकेत दिया है कि बैंक लाइसेंसिंग प्रक्रिया को मांग के अनुसार ढालने की संभावना के साथ ही विविध स्वरूप वाले बैंकों को आरंभ किया जा सकता है। इसके अलावा, इस देश में निवेश करने हेतु विदेशी बैंकों के लिए भी अनुकूल माहौल है। 18. ऐसा नहीं हैं कि नए प्रतिस्पर्धियों के प्रवेश करने भर से ही जल्द नाटकीय परिवर्तन हो जाएंगे। बैंकिंग एक स्तरीय व्यवसाय है जिसे नए खिलाड़ी रातों-रात हासिल नहीं कर सकते। नए बैंक एक छोटी शुरूआत के साथ आरंभ कर समय के साथ-साथ विकास की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। प्रतिस्पर्धा केवल कारोबार के लिए ही नहीं बल्कि कौशल के लिए भी होगी। प्रक्रिया को और दक्ष बनाने के लिए दबाव होगा। प्रौद्योगिकी 19. मैं परस्पर सामाजिक संबंध स्थापित करने में प्रौद्योगिकी द्वारा लाए जा रहे आमूल-चूल बदलाव के बारे में पहले ही चर्चा कर चुका हूँ। लोगों के बीच मोबाइल और इंटरनेट की बढ़ती पैठ ने उद्यमियों के लिए नए मार्ग प्रशस्त का दिए हैं। वर्तमान समय के ग्राहक जिस प्रकार अपने कारोबार में लेन-देन करते हैं उसमें इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यदि सभी पारंपरिक-कारोबार प्रौद्योगिकी से प्रभावित हो सकते हैं तो बैंकिंग क्षेत्र भला इससे अछूता कैसे रह सकता है। सेवा-आपूर्ति की क्षमता एवं प्रभावात्मकता के संदर्भ में प्रौद्योगिकी के सुलेखित लाभों का दूसरा पक्ष यह भी है कि इसने ग्राहक को तेजी से अलग-थलग भी कर दिया है जिसमें सर्वप्रथम एटीएम तथा उसके बाद इंटरनेट एवं मोबाइल बैंकिंग का समावेश है। इस अर्थ में बैंक एक चेहरा विहीन संस्था बन गए हैं। इस संक्रमण काल में बैंक किस प्रकार अपने ग्राहकों से परस्पर संबंध स्थापित करते हैं एवं उनको बनाए रखते हैं उसमें बदलाव लाए जाने की जरूरत है। मैं बैंकिंग सेवाओं के साथ टेक्नॉलॉजी के जुड़ने और बैंकों पर होनेवाले उसके प्रभाव पर थोड़ी देर बाद चर्चा करूंगा। जोखिम प्रबंधन 20. बैंकों में जोखिम प्रबंधन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि स्वयं बैंक। बैंक का कारोबार जोखिम भरा होता है अत: उनके पास जोखिम प्रबंधन ढांचे का होना जरूरी है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने डेढ़ दशक पूर्व पहली बार भारत में बैंकों के लिए जोखिम प्रबंधन से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए थे। लेकिन मेरा यह मानना है कि हमारी बैंकिंग प्रणाली में जोखिम प्रबंधन का अनुसरण अनुपालन बाध्यताओं की वजह से अधिक किया जाता है और बैंक के कारोबार में उतने प्रभावी ढंग से इसे लागू नहीं किया जाता जितना कि किया जाना चाहिए। चूंकि वैश्विक वित्तीय क्षेत्र में जटिलताएँ बढ़ रही हैं, अतः बैंक अपने पूंजी स्तर के साथ-साथ जोखिम प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों के कौशल के मूल्यांकन के बाद ही जोखिम वहन करने की अपनी क्षमता को तय करें। 21. जैसा कि मैंने पहले बताया, नए भारत के पारिभाषिक कारकों का नए बैंकिंग परिदृश्य के प्रत्येक कर्ता एवं कार्य पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। ये तत्व पास्परिक रूप से नई बैंकिंग व्यवस्था को आकार प्रदान करेंगे। इन 7 ढांचों, 4 कर्ताओं और 3 कार्यों को चुनना तथा उनके आपसी संबंध से संभाव्य कारोबारी परिदृश्यों का निर्माण करना आपके लिए रोचक होगा। आप संभावनाओं और चुनौतियों की व्यापकता को देखकर हैरान हो सकते हैं। अब मैं प्रौद्योगिकी से संबंधित विषय पर लौटता हूँ जिसे व्यापक रूप से नई बैंकिंग में ‘सब कुछ’ माना जा रहा है। प्रौद्योगिकी – एक महत्वपूर्ण सुविधा प्रदायक 22. मैं सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘बैंक 3.0’ के लेखक ब्रेट्ट किंग के इस उद्धरण से प्रारंभ करना चाहूंगा: “ग्राहक चैनल/उत्पादों का एक-दूसरे से अलग-थलग प्रयोग नहीं करते। प्रतिदिन ग्राहक विभिन्न माध्यमों द्वारा बैंक से संपर्क करते हैं। वे किसी तीसरी पार्टी को ऑनलाइन मुद्रा दे सकते हैं, नकद आहरण हेतु एटीएम जा सकते हैं, वेतन जमा होने की जांच ऑन-लाइन कर सकते हैं, उपभोक्ता बिलों का भुगतान कर सकते हैं, खुदरा विक्रेता से वस्तुओं को खरीदने के लिए अपने क्रेडिट कार्ड का प्रयोग कर सकते हैं, व्यक्तिगत ऋण आवेदन पत्र ऑन-लाइन भर सकते हैं, क्रेडिट कार्ड की शेष राशि जानने अथवा गुम कार्ड की रिपोर्ट के लिए कॉल-सेंटर से संपर्क कर सकते हैं। यदि वे अधिक सुविज्ञ हैं तो शेयरों की खरीद फरोख्त भी कर सकते हैं, अपने यूरो खाता से यूएसडी खाता में नकदी का अंतरण भी कर सकते हैं, म्यूचुअल फंड में एकमुश्त रकम जमा कर सकते हैं अथवा आवास बीमा पॉलिसी के लिए ऑन-लाइन आवेदन कर सकते हैं।‘’ 23. उपर्युक्त कथन बैंकिंग एप्लीकेशन्स के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाता है जिसमें प्रौद्योगिकी सहायक हो सकती है। वास्तव में, बहु-उत्पादों को प्रदान करने के लिए एकल चैनल निपटान की आवश्यकता है। तथापि, यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रौद्योगिकी एक सुविधा प्रदायक है, न कि सभी समस्याओं का निदान। अधिकांश भारतीय बैंकों ने वेब-आधारित और मोबाइल-आधारित डिलीवरी उपायों में बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है। इनमें से प्रत्येक चैनल अलग-अलग वेंडरों के सहयोग से तैयार किए गए हैं और प्रत्येक वेंडर ने अलग-अलग तकनीकों का प्रयोग किया है जिससे जटिलताएँ एवं लागत बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त, प्रौद्योगिकी में हमेशा परिवर्तन होते रहते हैं एवं उसे समकालीन बनाए रखने के लिए नए तकनीक को अपनाना एक खर्चीला उपाय हो जाता है। अतः जब तक हम तकनीकी आधारित लेन-देन उपायों की अधिकतम क्षमता का लाभ नहीं उठा पाते तब तक हम अनुत्पादक निवेश में ही लगे रहेंगे। 24. यद्यपि, मोबाइल बैंकिंग और मोबाइल से भुगतान को अपनाने को लेकर बहुत ही उत्साह है, परंतु यह मॉडल कुछ ही देशों सफल रहा है जहां पर कि इसके लिए उपयुक्त परिवेश मौजूद हैं। मैं यहां मोबाइल उपकरण का प्रयोग करते हुए वित्त एवं भुगतान संबंधी सेवाएं प्रदान करने की बात कर रहा हूँ न कि इन्टरनेट बैंकिंग के माध्यम के रूप में इसके इस्तेमाल की। भारत के परिप्रेक्ष्य में, वास्तविक विश्लेषण करने पर इसे अपनाने की धीमी गति के विभिन्न कारणों का खुलासा होगा। दूसरी ओर, तकनीकी मुद्दे हैं जैसे कि हैंडसेटों के प्रकार, ऑपरेटिंग सिस्टम की विविधता, इंक्रिप्शन आवश्यकताएँ, इंटर-ओपरेबल प्लेटफॉर्म अथवा इसका अभाव, मानकीकृत संचार संरचना का अभाव, एप्लिकेशन को डाउनलोड करने में कठिनाइयाँ, सक्रिय करने में समय का लगना आदि। ये सभी ऑन-बोर्डिंग मर्चेन्ट और ग्राहकों तथा ग्राहक मालिकाना संबंधी परिचालनगत कठिनाइयों से और भी प्रखर हो जाते हैं। इन कारकों के पारस्परिक प्रभाव की वजह से एक प्रभावकारी और वैश्विक रूप से लेन-देन का स्वीकृत चैनल बन चुके मोबाइल बैंकिंग के विस्तार एवं स्वीकार्यता में गतिरोध पैदा हो रहा है। बैंकों एवं दूरसंचार कंपनियों के बीच समन्वय एवं सहयोग संबंधी अन्य मुद्दे भी हैं जो मोबाइल बैंकिंग के विस्तार अथवा रुकावट का कार्य करते हैं। यदि भारत में बैंकिंग उत्पादों और सेवाओं हेतु प्रभावकारी लेन-देन चैनल के रूप में मोबाइल को अपनाया जाना है तो इन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाए जाने की आवश्यकता है। 25. मैं प्रौद्योगिकी से उत्पन्न होनेवाले कुछ अवसरों पर भी प्रकाश डालना चाहूंगा। उदाहरण के रूप में पर्सनालाइज्ड गूगल सर्च पेज पर प्रदर्शित होनेवाले परिणाम को ही लें। एक व्यक्ति जब कभी गूगल पर सर्च करता है तो वह वेबसाइट उस व्यक्ति द्वारा विजिट किए गए साइट / उस व्यक्ति द्वारा क्लिक किए गए लिंक के ब्योरे को स्टोर कर लेता है और भविष्य में जब कभी दोबारा उन वेबसाइटों को सर्च किया जाता है तो वेबसाइट उन्हीं साइटों को ज्यादा लोड करता है जिन्हें वह व्यक्ति पहले देख चुका होता है। वर्तमान में एटीएम द्वारा किए गए अंतरणों की संख्या गूगल वेब पेज पर किए गए सर्च से कहीं ज्यादा है। तथापि, गूगल द्वारा अपने सर्च में हासिल किए गए पर्सनालाइजेशन की तर्ज पर एटीएम पर दिए जाने वाले विज्ञापनों के संबंध में अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है। यह एक ऐसा क्षेत्र हो सकता है जिस पर बैंक एवं उनके सॉफ्टवेयर वेंडर भविष्य में कार्य कर सकते हैं ताकि इससे आगे विक्रय को और भी बढ़ाया जा सके। कुछ सवाल जो जवाब चाहते हैं : 26. मैं आप लोगों के सामने कुछ प्रश्न रखना चाहता हूं जिनका हल बैंकिंग कारोबार और बैंक कर्मियों को तलाशना है ताकि बदलते परिदृश्य में उनकी प्रासंगिकता बनी रहे। (i) क्या मोबाइल नंबर पोर्टबिलिटी की तरह अकाउंट नंबर पोर्टबिलिटी की संभावना हो सकती है? ताकि, यदि कोई व्यक्ति किसी बैंक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा से संतुष्ट नहीं हो तो उसके पास अपना बैंकिंग संबंध, लॉकर, स्टॉक एवं बैरल किसी दूसरे बैंक में शिफ्ट करने का विकल्प मौजूद हो। हां, ऋण करार आदि से संबंधित मुद्दे हो सकते हैं लेकिन ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है कि इस प्रकार की चुनौतियों पर विजय नहीं पाई जा सकती है और आज जिस प्रकार बैंकिंग की जा रही है उसमें बड़ा फेरबदल नहीं किया जा सकता। (ii) बैंक कब तक अपने खुदरा ऋण पोर्टफोलियो को लगातार बढ़ाते रहेंगे? इन ऋणों को एकत्र करने और बाजार में अन्य निवेशकों को इसे वितरित करने के लिए यदि कोई माध्यम नहीं बनाया जाता है तो खुदरा ऋण पाइप लाइन में शीघ्र ही रुकावट आ सकती है। (iii) सामूहिक वित्तपोषण भविष्य में बैंकों के उधारी कारोबार को कैसे प्रभावित कर सकता है? पूरे विश्व में सामूहिक वित्तपोषण के जरिए उगाही जाने वाली राशि में क्रमिक वृद्धि देखी गई है, यह 2011 में $ 1.5 बिलियन से 2012 में $ 2.7 बिलियन और फिर 2013 में $ 5.1 बिलियन तक बढ़ गया है। मैंने आप में से कुछ को यह कहते सुना है कि यह राशि नगण्य है। यद्यपि, विकास की यह दर काफी तेज है और ‘पियर टू पियर’ उधारी कारोबार के साथ जुड़ने पर यह कम से कम उन खिलाड़ियों के लिए बाधाएं उत्पन्न कर सकता है जो एक समान क्षेत्र में परिचालन करते हैं। (iv) यदि मोबाइल बैंकिंग सफल हुआ तो क्या प्लास्टिक मुद्रा की आवश्यकता तब भी होगी? इसमें मुख्य रूप से एक साथ दो प्रश्न जुड़े हुए हैं – पहला क्या मोबाइल बैंकिंग सफल होगी और अगर ऐसा हुआ तो इसका एटीएम और बैंकों द्वारा जारी किए जाने वाले डेबिट कार्ड के भविष्य पर क्या असर होगा। इस समय नकदी प्रणाली के महत्व को देखते हुए उस पर निर्भरता को कम करने की जरूरत कमोबेश उचित लगती है और इसलिए, यदि ज्यादा से ज्यादा लोग मोबाइल / इन्टरनेट आधारित भुगतानों की ओर उन्मुख होते हैं तो प्लास्टिक कार्ड और अभी तक किए गए इस तरह के निवेश निरर्थक हो जाएंगे यदि उनकी अन्यत्र उपयोगिता पर ध्यान न दिया गया तो। (v) बैंकिंग प्रणाली के लिए आईएफ़आरएस को लागू करने के क्या मायने हैं? आईएफ़आरएस अकाउंटिंग संभवतः आस्तियों अथवा पूंजी की स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकता है। प्रश्न यह है कि आईएफ़आरएस के साथ-साथ विवेकपूर्ण विनियमन कैसे अस्तित्व में रहेगा? आईएफ़आरएस के अंतर्गत प्रस्तावित क्षति गणना, प्रभावी ब्याज दर पर ब्याज द्वारा प्राप्त आय की गणना और विभिन्न पोर्टफोलियो के परिचालन एवं गणना के लिए बहु प्रणाली के होने का अर्थ है आईएफ़आरएस की ओर उन्मुख होने के लिए आईटी प्रणाली का अपग्रेडेशन / पुनः निर्माण करना। बैंकों से यह भी अपेक्षित होगा कि वे वित्तीय विवरणियों को तैयार करने के लिए वित्तीय लेखाकरण और कर लेखाकरण के लिए अभिसरण नीतियों संबंधी चुनौतियों पर काबू पाएं। इसके अलावा वे आईएफ़आरएस लेखा में दक्षता हासिल करने हेतु क्रेडिट, कोषागार आदि जैसे क्षेत्रों में अपने स्टाफ को प्रशिक्षित करें। (vi) क्या बड़े कार्पोरेट बैंकों से उधार लेते रहेंगे? हाल ही में, वैश्विक बाजार, विशेष रूप से उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में निधियों के प्रवाह में तेजी देखने में आई है और ऐसा विकसित अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों द्वारा प्रारम्भ किए गए क्यूई के प्रकारों के कारण हुआ है। कई कार्पोरेट घरानों को बैंकों के पास गए बिना सस्ते दर पर निधि प्राप्त हो जा रही है। यूरो क्षेत्र और जापान में निरंतर बनी मुद्रा अवस्फीति की स्थितियां क्यूई के लौट आने का संकेत कर रही हैं जो उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं के बैंकों के उधारी कारोबार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, विकसित देशों में बड़े कार्पोरेट अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए वाणिज्यिक बैंकों के बजाय वित्तीय बाज़ारों से सीधे ही संपर्क करते हैं। अतः, एक ओर जहां समय-विशेष के दौरान घटित क्यूई का असर कम होने लगेगा वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाज़ारों के परिपक्व होने के साथ ही अधिकाधिक बड़े कार्पोरेट अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों के मुहताज नहीं रह जाएंगे। (vii) क्या पहले किए गए ऋण-पुनर्संरचना के प्रभाव बैंकों के लिए पुनः बाधा उत्पन्न करेंगे? मेरा यह मानना है कि दीर्घकालीन वैश्विक आर्थिक मंदी ने संकट के तत्काल बाद की गई अग्रिमों की पुनर्संरचना के समय पहले किए गए अनुमानों को परिवर्तित कर दिया होगा। जैसे ही अधिस्थगन अवधि पूरी होने वाली होगी, बैंकों को इन प्रोजेक्टों के तकनीकी-वाणिज्यिक व्यवहार्यता पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा और जहां भी व्यवहार्यता पर खतरा प्रतीत होगा उससे संबंधित हानि उठानी होगी। जहां भी वित्तीय संभावनाएं अलाभकारी होंगी, वहां ऋण की वापसी / वसूली हेतु समय पर निर्णय लेना महत्वपूर्ण होगा। निष्कर्ष 27. निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले मैं, वैश्विक विनियामक सुधार किस प्रकार भारतीय बैंकों को प्रभावित कर सकते हैं इस पर प्रकाश डालना चाहूंगा। बासल-III मानकों की घोषणा हो चुकी है और उन्हें निश्चित समय-सीमा के अनुसार कार्यान्वित किया जाना है जिसमें लिक्विडिटी सीमा को 01 जनवरी, 2015 से पहले ही लागू किया जा चुका है। अतः आप सभी लोग लीवरेज, कैपिटल कंजर्वेशन बफर, काउंटर साइक्लिकल कैपिटल बफर जैसी नई विनियामक संकल्पनाओं से वाकिफ हो ही चुके हैं। डी-एसआईबी दिशा-निर्देशों की भी घोषणा की जा चुकी है और घरेलू परिप्रेक्ष्य में प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण माने गए बैंकों की सूची अगस्त 2015 में जाहिर की जाएगी। पूंजी और लिक्विडिटी बफर के कड़े अनुपालन के अलावा इन बैंकों को व्यापक ‘वसूली एवं विश्लेषण योजना’ तैयार करने की होड़ में शामिल होना पड़ेगा। डी-एसआईबी के लिए पहचाने गए बैंकों के लिए टीएलएसी (कुल क्षति अवशोषकता पूंजी) ढांचे को लागू करने के लिए वित्तीय स्थिरता बोर्ड के स्तर पर चर्चा भी चल रही है। ऊपर की गई समस्त चर्चा का मूल सार यह है कि बैंकों को कारोबार में बने रहने के लिए अपने पूंजी आधार में उल्लेखनीय वृद्धि करनी होगी। प्रश्न यह है कि “आप ऐसी पूंजी कहाँ पाएंगे? 28. मैं मूलत: जितनी बातें करना चाहता था उससे कहीं अधिक विषयों पर मैंने चर्चा कर डाली है। मुझे आशा है कि आज यहां उपस्थित महानुभाव मेरी चर्चा में उठाए गए मुद्दों पर विचार करेंगे और बाद में उस पर प्रकाश डालेंगे। आमंत्रित करने के लिए मैं पुनः मिंट को धन्यवाद देता हूँ और सार्थक विचार-विमर्श के लिए आप सभी को मेरी शुभकामनाएं । धन्यवाद। 1. मिंट द्वारा आयोजित वार्षिक बैंकिंग सभा, 2015 में श्री एस एस मूंदड़ा, उप गवर्नर, भा.रि.बैं द्वारा दिनांक 29 जनवरी 2015 को “नए भारत का नया बैंकिंग परिदृश्य’ पर दिया गया प्रमुख व्याख्यान । 2. http://www.irishtimes.com/business/financial-services/us-european-banks-have-paid-230bn-in-legal-costs-since-2009-1.2064163 |