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प्लैटिनम जुबिली महोत्सव : स्टाफ सदस्यों को गवर्नर महोदय का संबोधन 1 अप्रैल 2009

डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

उद्बोधन दिया

प्लैटिनम जुबिली महोत्सव : स्टाफ सदस्यों को गवर्नर महोदय का संबोधन
1 अप्रैल 2009

प्रिय साथियो

75 वें वर्ष में प्रवेश करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक आज इस महान सरकारी संस्था के इतिहास में मील के पत्थर जैसा एक यादगार क्षण बना रहा है । इस ऐतिहासिक अवसर पर आप सभी एवं भारतीय रिज़र्व बैंक परिवार को संबोधित करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है ।

2. 75 वीं वर्षगांठ मनाने का समय खुशी एवं उत्सव का है। आज का अवसर आत्म विश्लेषण का भी है, एक ऐसा अवसर जब संस्था के विकास पर नजर डालें, जिस पथ हम पर चले उसे देखें और आगे यह सोचें कि भारतीय रिज़र्व बैंक के परिवार का हर व्यक्ति प्रत्येक भारतीय के जीवन में सकारात्मक बदलाव कैसे लाता रहे ।

3. मानव परिप्रेक्ष्य में देखें तो 75 वर्ष का समय काफी लंबा होता है, परंतु किसी संस्था के जीवन काल के नज़रिये से देखें तो 75 वर्ष का समय अपेक्षाकृत कम होता है। यह सब होते हुए भी विगत 74 वर्ष की अवधि रिज़र्व बैंक के लिए ऐतिहासिक सफर रहा क्योंकि यह अपने शुरुवाती  काल से लेकर इस देश की सर्वोच्च व्यावसायिक एवं अनुक्रियाशील सार्वजनिक नीति संस्थाओं में से एक संस्था बन गयी है । यह एक स्वअर्जित सम्मान है और इसके लिए हम पिछले गवर्नरों, उप गवर्नरों  पिछले बोर्ड सदस्यों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के सेवानिवृत्त स्टाफ सदस्यों के कर्जदार हैं ।  भारतीय रिज़र्व बैंक के आज के परिवार के लिए यह कार्य चुनौतीपूर्ण है तथा उसकी प्रतिष्ठा बनाये रखने की बाध्यता भी है  भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अब हमें पुन: समर्पित हो जाना है ।

4. महात्मा गांधी ने कहा था - " यह प्रश्न हमें खुद से पूछना चाहिए कि हम निर्धन व्यक्तियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए क्या क्या करना चाहते है और उसे कैसे पूरा कर रहे है। अब मैं इसी प्रश्न को आज के संदर्भ में दोहराना चाहूंगा; भारतीय रिज़र्व बैंक के एक परिवार के रूप में हम सभी को स्वयं से पूछना चाहिए कि " मैं किस तरह से अपने काम को बेहतर ढंग से करूं ताकि हम देश के भीतर एक सकारात्मक बदलाव ला सकें ।

5. भारतीय रिज़र्व बैंक का स्वाधीनता पूर्व दिनों का समृद्धशाली इतिहास रहा है । भारत के लिए केंद्रीय बैंकिंग संस्था का प्रश्न रायल कमीशन एवं विधान मंडल द्वारा हिल्टन-यंग कमीशन के समक्ष विचाराधीन रहा है जिन्होंने 1926 में यह सिफारिश की थी कि भारत के वित्तीय ढांचे को  पूर्णरुप देने के लिये रिज़र्व बैंक का गठन किया जाए। 1914 में जारी चेंबरलेन कमीशन की रिपोर्ट में एक सदस्य जान मेनार्ड केली द्वारा प्रस्तुत एक व्यापक ज्ञापन भी था जिसमें यह प्रस्ताव किया गया था कि तीन प्रेसीडेंसी बैंकों का एक केंद्रीय बैंक में विलय कर देना चाहिए। इसकी वजह से रिज़र्व बैंक के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसकी शुरुवात 1927 में हुई थी। तथापि, सात वर्षों की अवधि के पश्चात मार्च 1934 में यह अधिनियम बन पाया । इस तरह से बैंक की उत्साहजनक एवं महत्वपूर्ण यात्रा 01 अप्रैल 1935 से प्रारंभ हुई ।

6.  भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना पहले शेयरधारक बैंक के रूप में हुई थी । उसके बाद इसका राष्टीयकरण 1949 में हुआ । भारत 1947 में स्वतंत्र हो गया । राष्ट्र निर्माण में भारतीय रिज़र्व बैंक का प्रयास राष्ट्र की नियति एवं निर्माण के साथ-साथ चलता रहा । वर्ष 1949 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम बनाया गया जिसके अंतर्गत भारत में बैंक विनियमन का व्यापक एवं औपचारिक  ढाँचा तैयार किया गया था ।

7. भारत की आजादी के पहले दो दशकों में बैंकिंग बड़े पैमाने पर हमारे शहरों और बड़े कस्बों में केंद्रित थी । बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्र इस सुविधा से वंचित रह गये थे । इस कमी के चलते ग्रामीण बचत का दोहन नहीं हो पा रहा था तथा ऋण संबंधी ग्रामीण आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पा रही थीं । ये वे वर्ष भी थे जब बैंकिंग राजनीतिक ध्यान का केंद्र बन चुकी थी।

8.  आर्थिक परिप्रेक्ष्य में 1960 के बाद के वर्ष कठिन थे । भारत ने 1962  में चीन के साथ लड़ाई लड़ी तथा इसके तुरंत बाद 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ। देश ने मानसून के 3 खराब वर्ष भी देखे। देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी तथा 1966 में मुद्रा का अवमूल्यन भी करना पड़ा। आर्थिक समस्याएं बढ़ रही थी तथा बढ़ती कीमतों, आवश्यक वस्तुओं तथा सेवाओं की कमी, मूल्य  वृद्धि तथा बढ़ती बेरोजगारी में यह तथ्य परिलक्षित हो रहा था। इस परिदृश्य के मद्देनज़र तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री ने वाणिज्य बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण की वकालत की थी।

9. सामाजिक नियंत्रण पर आम सहमति बननी शुरू ही हुयी थी जब जुलाई 1969 में शीघ्रता तथा एकदम अप्रत्याशित ढंग से 14 बड़े भारतीय वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा हो गई । आज़ादी से लेकर उस समय तक भारत सरकार द्वारा लिए गए आर्थिक निर्णयों में से इस निर्णय को सबसे महत्वपूर्ण निर्णय माना जा सकता है। राष्ट्रीयकरण से बैंकिंग नेटवर्क का तेजी से विस्तार हुआ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी अच्छी पैठ हो गयी।

10. सामाजिक एवं आर्थिक घटनाक्रम के साथ-साथ रिज़र्व बैंक का भी विकास हुआ । कृषि तथा वित्तीय बाजारों हेतु आधारशिला रखने के लिए औद्योगिक विकास संबंधी नीतियों के कार्यान्वयन तथा उनकी रूपरेखा बनाने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृषि और ग्रामीण विकास बैंक,  भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय यूनिट ट्रस्ट, आदि जैसे आज के कई प्रमुख विकासात्मक/बाजार संबंधी संस्थानों की जड़ें भारतीय रिज़र्व बैंक में ही हैं। ये सभी संस्थान भारतीय रिज़र्व बैंक के विशिष्ट विभाग अथवा प्रभाग थे।

11. वर्ष 1991 के अभूतपूर्व आर्थिक सुधारों के दौर में जो संदर्भं एवं परिस्थितियां थीं उनके बारे में हम सब अवगत ही है । तत्कालीन वित्त मंत्री तथा हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह , जो प्रसंगवश भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी रहे हैं , के नेतृत्व में शुरू हुए ` खुलेपन ' के दौर के चलते भारत विश्व की प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है। भारत आज क्रय शक्ति समता के हिसाब से विश्व की चौथी सबसे बड़ी तथा विश्व की दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का ही प्रतिसाद है कि जहां आज संपूर्ण विश्व गहरी मंदी के दौर से गुजर रहा है वहीं भारत वृद्धिमान अर्थव्यवस्था बना हुआ है। निस्संदेह हमारी वृद्धि में कमी आई है पर लगभग संपूर्ण विश्व में मची उथल-पुथल की तुलना में यह कम ही है। 

12. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियामक तथा विकासात्मक उत्तरदायित्वों में विस्तार हुआ है। विश्व के अधिकांश अन्य केंद्रीय बैंकों की तुलना में आज हमारी संस्था का स्वरुप बड़ा तथा जटिल है। इन वर्षों में जिन विभिन्न विभागों से मिलकर बैंक बना है उनसे आर्थिक विकास और वित्तीय क्षेत्र की वृद्धि की प्रक्रिया से जुड़े विविधतापूर्ण वित्तीय तथा आर्थिक कार्यों का पता चलता है। वर्ष 1935 में जब हमारी संस्था की शुरूआत हुई थी तब केवल बैंकिंग विभाग, निर्गम विभाग तथा कृषि ऋण विभाग नामक तीन विभाग ही थे। आज केंद्रीय कार्यालय में हमारे 26 विभाग है, 26 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, चार सहयोगी संस्थाएं (बीआरबी नोट मुद्रण प्रेस लिमिटेड, डीआइसीजीसी, नाबार्ड और राष्ट्रीय आवास बैंक ) हैं तथा 20,000 से अधिक कर्मचारी हैं । बाद में समय के साथ भारत में ज्यों-ज्यों वित्तीय क्षेत्र का विस्तार हुआ तथा इसमें विविधता आई त्यों-त्यों भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी बदलती रूपरेखा एवं बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपना विस्तार किया तथा अपने आप को नया रूप भी दिया।

13. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की प्रस्तावना में भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि " बैंक नोटों का निर्गमन करने, भारत में मुद्रा स्थिति की सुदृढ़ता बनाए रखने तथा देश की करेंसी एवं ऋण प्रणाली को देश के लाभार्थ चलाने " का  कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक करेगा। आप समझ सकते हैं कि यह व्यापक तथा लचीला अधिदेश है। आज हम कई महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। हम मौद्रिक प्राधिकारी हैं, बैंकों तथा गैर-बेंकिंग वित्तीय कंपनियों के विनियामक और पर्यवेक्षक हैं, नोट जारी करने वाले हैं तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों के ऋण प्रबंधक हैं। इसके अलावा, हम देश के विदेशी मुद्रा भंडार का और भुगतान संतुलन के पूंजी खाते का प्रबंधन करते हैं तथा भुगतान प्रणाली के डिजाइन एवं कार्यान्वयन का काम देखते हैं । साथ ही हम बैंकिंग लोकपालों के माध्यम से बैंक ग्राहकों के लिए चलाई जा रही शिकायत निवारण योजना का परिचालन करते हैं और ग्राहकों के साथ यथोचित व्यवहार के लिए नीतियों का निर्धारण करते हैं । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मौद्रिक एवं वित्तीय क्षेत्र को संचालित करने वाली हर प्रमुख आर्थिक नीति को आकार देने एवं इनके कार्यान्वयन में भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णयात्मक प्रभाव होता है। भारतीय रिज़र्व बैंक की विकासात्मक भूमिका भी विस्तृत हो गयी है । आज हमारे प्रयासों में वित्तीय समावेशन तथा विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में, कृषि और छोटे तथा मझौले उद्यमों के लिये ऋण  वितरण प्रणाली को मजबूत बनाना प्रमुख हैं ।

14.   वैश्विक वृद्धि की कहानी में भारत एक मुख्य खिलाड़ी के रूप में उभरने के साथ-साथ भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों ने भी अंतर्राष्ट्रीय आयाम अर्जित किये हैं । आज भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे अनेक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सक्रिय सहभागी है जो बेहतर और प्रभावी विनियामक वित्तीय और प्रणालीबद्ध स्थिरता विकसित करने की कोशिश करते हैं। हम पिछले कुछ समय से अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक के शेयरधारक और वैश्विक वित्तीय प्रणाली, बाजार समिति और बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासले समिति के तत्त्चावधान में कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय संपर्क समूह के सदस्य हैं तथा अब वित्तीय स्थिरता मंच और बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासले समिति के सक्रिय सदस्य बन रहे हैं ।  

15. बैंक की व्यापक और विभिन्न जिम्मेदारियां, बुनियादी सुविधाओं और मानव क्षमताओं के संदर्भ में अपार संसाधनों की मांग करती है । वस्तुत: चूंकि हमारा अधिदेश  विकसित हुआ है तथा बढ़ा है, हमारे संसाधन और इन संसाधनों को सुव्यवस्थित करने की प्रक्रिया में भी उल्लेखनीय परिवर्तन हुए    हैं । बैंक मानता है कि हमारे कर्मचारी हमारी मुख्य परिसंपत्ति है और यह कि कोई भी संस्था बुनियादी रूप से न केवल अपनी कुल व्यक्तिगत मानव पूंजी पर निर्भर होती है बल्कि यह बात भी मायने रखती है कि वह संस्था अपने मानव संसाधनों से उसकी  कार्यक्षमता का कितनी उत्कृष्टता से इस्तेमाल कर पाती है । हमारा ऐसा कार्य माहौल पैदा करने  का सतत प्रयत्न है जिसमें हम बेहतर सेवाएं प्रदान कर सकें, सक्षमता से कार्य कर सकें और कार्य-जीवन के बेहतर संतुलन का आनंद उठा सकें ।

16. जैसा कि मैंने अपने नववर्ष संदेश  में भी उल्लेख किया था आज की अर्थव्यवस्था एक असाधारण चुनौती का सामना कर रही है। युद्ध के बाद के युग में आज की वैश्विक मंदी, अप्रत्याशित वित्तीय संकट अब तक की गंभीरतम आर्थिक समस्या है । यह खतरा है कि गिरावट और गहरी होगी और इससे उबरने में हमें पूर्वानुमान से अधिक समय लगेगा। भारतीय रिज़र्व बैंक ने संकट का प्रबंधन और समायोजन की पीड़ा को न्यूनतम करने में अग्रणी भूमिका निभायी है तथा आगे भी निभाता   रहेगा । यह भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों है। चुनौती इसलिए क्यों कि हमसे बहुत अपेक्षाएं है; अवसर इसलिए क्यों कि यह हमें यह प्रदर्शित करने का मौका देती है कि हम इस प्रसंग में डटकर खड़े हो सकें¸ दायरे से बाहर सोच सकें अग्रणी रहकर नेतृत्व कर सकें तथा अत्यंत तत्परता से और कार्यक्षमता से कार्य कर सकें।

17.  अगले एक माह में हम भारतीय रिज़र्व बैंक की प्लैटिनम जुबिली मनाने के लिए एक विस्तृत योजना बनाने पर विचार कर रहे हैं । इस समारोह में अनेक प्रसंग होंगे परन्तु मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि यह केवल समारोह की घटनाओं से परे कैसे जाता है। प्लैटिनम जुबिली में अनेक पहलुओं और गतिविधियों की श्रृंखला होनी चाहिए जो रिज़र्व बैंक को अधिक  संवेदनशील, प्रासंगिक, व्यावसायिक और प्रभावी सार्वजनिक संस्था बना सके; हममें से हरेक को इस बात की याद दिला सके कि हम इस संस्था की और उसके द्वारा देश की बेहतर रूप से कैसे सेवा कर सकते हैं । संक्षेप में हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम स्थिति में सकारात्मक बदलाव ला  सकें ।

18.  अन्त में, प्लैटिनम जुबिली के इस अवसर पर मैं आप और आपके परिवार को स्वास्थ्य प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए हार्दिक शुभकामना देता हूँ ।

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