किस्सा 4: सिरफिरे, केंद्रीय बैंक और लोक नीति - आरबीआई - Reserve Bank of India
किस्सा 4: सिरफिरे, केंद्रीय बैंक और लोक नीति
फाइलों से
देश का केंद्रीय बैंक होने के नाते रिजर्व बैंक को अक्सर आम आदमी से सार्वजनिक नीति और हित के मामलों पर पत्र प्राप्त होते रहते हैं। इनमें से कुछ पत्र केंद्रित होते हैं और नीतिगत निर्णयों से संबंधित होते हैं। वैसे, कइयों में सुधारवादी उत्साह का भावनात्मक उफान और परिस्थितियों पर विलाप होता है जो किसी भी कार्रवाई की ओर नहीं ले जाते। हालाँकि, इनके लेखक अपने समुदाय कल्याण ('प्रो बोनो पब्लिको') प्रयासों पर तुले रहते हैं। ऐसे पत्र केंद्रीय बैंक को, प्राय: गवर्नर को, संबोधित होते हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक कुछ मायनों में देश की आर्थिक नीति निर्माण से जुड़ा हुआ है।
बैंक में परंपरा के अनुसार प्राप्त सभी पत्रों को 'इनवर्ड', किया, जाँचा और 'मार्क ऑफ़' किया जाता है। सिरे से 'सिरफिरे' पत्रों पर भी कोई न कोई निर्णय लेना होता है। बाह्य निवेश और परिचालन विभाग (DEIO) में इस तरह के एक पत्र पर दर्ज एक नोट नीचे प्रस्तुत है।
राष्ट्र की पीड़ाएं: इसमें आरबीआई की भूमिका - थिरु एक्सवाईजेड का 26.12.1988 का पत्र
थिरु एक्सवाईजेड से प्राप्त एक पत्र इसके साथ प्रस्तुत है जिसमें हर चीज पर रोष व आक्रोश है – जिसमें वे अपने मन के अनुसार बदलाव लाकर खुश होना चाहेंगे। तथापि क्या, कैसे और किस स्वरूप में ये स्पष्ट नहीं है। उनका मानना है कि प्रमुख आर्थिक जिम्मेदारी से संबंधित एजेंसियों में से एक होने के नाते, आरबीआई इन हालातों में कुछ हद तक खलनायक है।
हो सकता है उनका आक्रोश न्यायोचित हो, पर उनका पत्र
- उठाए गए मुद्दों,
- कारणों की पहचान और विश्लेषण, और
- बताई गई कार्य योजना
की दृष्टि से विषयांतर से भरा हुआ और अस्पष्ट है।
पत्र एक्सचेंज रेट पॉलिसी (डीईआईओ) से भटकता हुआ चिट फंड्स के पर्यवेक्षण (डीएफसी) तथा वहाँ से उमड़ता घुमड़ता श्री देसाई के नेतृत्व में स्वर्ण के विक्रय (डीजीबीए) की ओर जाता है। हालातों पर किसी सकारात्मक कदम का सुझाव तो नदारद है, और परिस्थितियों और व्यवस्थाओं पर रुदन और कितना व कब तक के विक्षिप्त विलाप से भरा हुआ पत्र है। अपितु, क्यों का उत्तर उन्हें चाहिए!
दुर्भाग्यवश, क्यों का उत्तर हम भी नहीं जानते। अधिक सामान्य धरातल पर इनका उद्गम व कारण संभवत: निम्नलिखित है
- लोलुपता और लालच,
- नैतिकता में गिरावट,
- प्रतिबद्धता और बौद्धिक ईमानदारी की कमी,
- मानवता और बंधुत्व पर विघटनकारी प्रवृत्तियों का हावी होना।
एक केंद्रीय बैंक के रूप में, हम इस तरह के जवाब नहीं दे सकते हैं और भाई एक्सवाईजेड को राष्ट्र के उत्थान के लिए कड़ी मेहनत करने और नैतिक जागरूकता फैलाने का काम करने का आग्रह कर सकते हैं। हम
- उनके पत्र को अनदेखा करें,
- उन्हें लिखें कि वे अपने विचारों को सुलझाएं और स्पष्ट टिप्पणी दें (आवश्यक हो तो उन्हें इससे हटाने के लिए दो प्रतियों में) जिस पर हम खुशी से विचार कर सकते हैं। इससे वे कुछ समय तक व्यस्त रहेंगे, उनके विचारों में स्पष्टता आएगी और राष्ट्रीय निर्माण में सहभागिता का उन्हें अहसास मिलेगा।हमारे लिए, यह रूटीनी मामलों की एकरसता से कुछ राहत देगा (ड्राफ्ट पत्र प्रस्तुत है)
- उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उनका आयकर रिटर्न मंगाया जाए जिससे उनके प्रश्न की ज्वाला ठंडी पड़े।
कार्य योजना (i) जहाँ सबसे विवेकपूर्ण होगा, (ii) अधिक उत्साही सुझाव है। यदि अनुमोदन हो तो, मामले को आवश्यक कार्रवाई के लिए पीआरओ को भेजा जाए।
बी एस
निवेश अधिकारी
उपर्युक्त नोट भले ही हल्के लहजे में दर्ज हो, विश्लेषण यथार्थपरक है। हमें नीति के आलोचकों को बड़े मुद्दों को समझाना होगा और ठोस सुझाव देना होगा। प्रस्तावित उत्तर प्रेस संपर्क कार्यालय से जारी हो।
पीबीके
मुख्य अधिकारी
पुनश्च: प्रसंगवश, (i) पर बताई गई विवेकपूर्ण कार्रवाई को अपनाया गया।
टिप्पणी:
ओ टेम्पोरा! ओ मोर्स! : 'कैसा काल, कैसे रीति-रिवाज ....', तानाशाह स्कुल्ला के खिलाफ एक किताब लिखने वाले पुराने जनरल के बचाव में सिसरो के वक्तव्य का अंश।
कोस्क टेंडेम: 'कितना दीर्घ'। कैटालिना के विरुद्ध सिसरो की अंतिम आलोचना की प्रारंभिक पंक्तियाँ - 'कितना दीर्घ, केटालिना, क्या हमारे धैर्य का दुरुपयोग होगा ...।'
फोंस एट ओरिगो माली: ' बुराई का सोता और जड़ '