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ब्रिटिश इंडिया के सिक्के
भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ में किए गए अधिवास को मुख्यतया तीन बड़े समूहों में बांटा जा सकता है: पश्चिम भारत ( मुंबई और सूरत), दक्षिण भारत (मद्रास) और बंगाल का पूर्वी प्रांत (कलकत्ता)। पहले के इंग्लिश सिक्कों को व्यापार के लिए स्थानीय रूप से मान्य सिक्कों के अनुरूप तीन ब्रॉड स्ट्रैंड के साथ-साथ निर्मित किया गया।
बंगाल में सिक्कों का विकास मुगल पैटर्न से हुआ, मद्रास में सिक्कों की ढलाई डिजाइन और मेट्रोलॉजी (पगोडा) दोनों ही दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुरूप हुई। पश्चिम भारत में इंग्लिश सिक्कों का विकास मुगल और इंग्लिश दोनों ही तरीकों से हुआ। इंग्लिश ने सम्राट फरु ख्शियर से 1717 ई. में बॉम्बे मिंट में मुगल सिक्कों की ढलाई करने की अनुमति मांगी। इंग्लिश तरीके के सिक्कों की ढलाई बॉम्बे मिंट में की गई। स्वर्ण सिक्कों को केरोलिना, चांदी के सिक्कों को एंजलिना, ताम्र सिक्कों को कपेरून और जस्ते के सिक्कों को टिनी नाम दिया गया। 1830 के आरंभिक काल तक इंग्लिश हुकूमत भारत में अपने पैर पूरी तरह जमा चुकी थी। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही उठापटक के बाद उभरकर आई सार्वभौम शक्ति ने सिक्का ढलाई अधिनियम 1835 को अधिनियमित करने और ढलाई कर जारी किए जानेवाले सिक्कों में एकरूपता लाने को संभव किया।
नई डिजाइन वाले सिक्कों, जिनके मुखभाग पर विल्यम चतुर्थ का चित्र और पृष्ठ भाग पर अंग्रेजी और फारसी भाषा में उसका मूल्य लिखा होता था, को 1835 में जारी किया गया।
1840 के बाद जारी सिक्कों पर महारानी विक्टोरिया का चित्र हुआ करता था। राभा के नाम में पहले सिक्के 1862 में जारी हुए थे और महारानी विक्टोरिया ने 1877 में भारत की साम्राज्ञी की उपाधि प्राप्त की |
महारानी विक्टोरिया के बाद एडवर्ड VII ने सत्ता संभाली और बाद में जारी हुए सिक्कों में उसका चित्र हुआ करता था। भारतीय सिक्का अधिनियम, 1906 पारित हुआ जिसके द्वारा टकसालों की स्थापना तथा भविष्य में जारी किए जानेवाले सिक्कों और प्रचलन में रखे जानेवाले मानकों को शासित किया जाता था (रुपया 180 ग्रेन रजत 916.66 मानक आधा रुपया 90 ग्रेन, चौथाई रुपया 45 ग्रेन) । एडवर्ड VII के बाद जॉर्ज V ने शासन संभाला। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण चांदी का भारी संकट छा गया था, जिसके कारण ब्रिटिश सरकार को एक रुपया और ढाई रुपए के कागजी नोट छापने के लिए विवश होना पड़ा। छोटे मूल्यवर्ग के चांदी के सिक्कों को तांबा-निकेल धातु में जारी किया गया। समय आने पर जॉर्ज V का उत्तराधिकारी एडवर्ड VIII हो गया। तथापि उसके लघु शासनकाल में कोई भी सिक्का जारी नहीं हुआ। 1936 में जॉर्ज VI राजसिंहासन पर आसीन हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध से उपजी विवशता ने सिक्कों में विभिन्न प्रकार के प्रयोगों को अंजाम दिया जिसके तहत मानक रुपया की जगह "चौकोन रजत मिश्र धातु के सिक्के" आ गए। चौकोर रजत सिक्के 1940 से जारी हुए थे। 1947 में इनकी जगह शुद्ध निकेल के सिक्कों ने ले ली।
भारत ने 15 अगस्त 1947 में आजादी पाई। तथापि प्रचलित सिक्के ही अवरुद्ध शृंखला के रूप में 26 जनवरी 1950 तक, जब भारत एक गणतंत्र बना, जारी होते रहे।