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भारतीय ढलुवा सिक्के
सिंहावलोकन
भारत विश्व के उन प्राचीनतम देशों में से एक है जहाँ सिक्के जारी किए जाते थे (सिरका छठी शताब्दी ईसा पूर्व)सिक्कों की विविधता के मामले में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले बहुत कम देश हैं, चाहे वह ढलाई की तकनीक, रूपांकन, आकार, आकृतियां, प्रयुक्त धातुएं हों या भारत के मौद्रिक मानकों से उत्पन्न मौद्रिक इतिहास (त्रि-धातुवाद, द्वि-धातुवाद, रजत मानक, स्वर्ण विनिमय मानक तथा फिएट मुद्रा)।
इतिहास में एक लंबे समय से राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के प्रलेखन में भारतीय सिक्कों की अहम भूमिका रही है। भारत में पाया गया विदेशी सिक्कों का खजाना प्राचीन काल, मध्ययुगीन और बाद के कोलोनियल पूर्व युग में रहे भारतीय व्यापार के तरीकों को प्रदर्शित करता है। सिक्को पर अंकित अवधारणा पर विभिन्न कालावधि के दौरान भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के सांस्कृतिक प्रभुत्व का प्रभाव पड़ा है।
हमारे सिक्कों के पृष्ठों में विभिन्न युगों के भारतीय सिक्कों के नमूनों को दर्शाने का प्रयास किया गया है परंतु इनमें सिक्कों का संपूर्ण इतिहास नहीं समा सकता हमारा प्रस्ताव है कि हम भविष्य में इन पृष्ठों में और भी जानकारी देंगे हम आम जन / दर्शकों से सुझावों तथा जानकारी का स्वागत करते हैं।
इन सिक्कों की पहचान के लिए कृपया हमारे पृष्ठों को ब्राउज करें।
प्रारंभिक शृंखलाओं में बैंक ऑफ हिन्दोस्तान (1770-1832), जनरल बैंक ऑफ बंगाल एण्ड बिहार में (1773-75, वॉरन हेस्टिंग्ज द्वारा स्थापित) द्वारा जारी शृंखलाएं और अन्यों में बंगाल बैंक ( 1784-91) द्वारा जारी शृंखलाएं आती हैं। इनमें से कुछ ही नोट चलन में रह पाए ।
कागजी मुद्रा अधिनियम, 1861 ने भारत सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार दे दिया जिसके कारण निजी और प्रेसिडेन्सी बैंकों द्वारा नोट जारी किया जाना समाप्त हो गया। भारत में कागजी मुद्रा का श्रेय सर जेम्स विल्सन की बौद्धिक प्रेरणा और वैयक्तिक क्रियाशीलता को जाता है। वे भारत के वाइसरॉय की कार्यपालक परिषद में पहले वित्त सदस्य थे। सर जेम्स की अकाल मृत्यु के साथ भारत में सरकारी कागज़ीमुद्रा जारी करने का कार्य जारी रखने की जिम्मेदारी उनके उत्तराधिकारी सैम्युअल लाइंग पर आ गई, जिन्होंने बाद में विल्सन के मूल प्रस्तावों में महत्वपूर्ण संशोधन किए।
भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक की 1 अप्रैल 1935 में स्थापना होने तक मुद्रा नोट जारी करने का कार्य जारी रखा। युद्ध के समय के उपाय के रूप में जब अगस्त 1940 में एक रुपए का नोट फिरसे शुरु किया गया तब भारत सरकार ने उसे सिक्के की हैसियत में जारी किया। भारत सरकार ने 1994 तक एक रुपए का नोट जारी करने का कार्य किया।
भारतीय मुद्रा के नोटों पर दिखाई देनेवाली अवधारणाओं में बदलती सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं और उस समय के वैश्विक दृष्टिकोण की झलक मिलती है : समुद्री लुटेरे और वाणिज्यवाद, उपनिवेशिक संघटन, निरंकुश साम्राज्यवाद, साम्राज्य की श्रेष्ठता से लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रतीकों और उसके बाद की प्रगति के रूप और अंत में गांधीवादी मूल्यों की याद दिलानेवाली अद्यतन शृंखलाओं तक ।
To understand these issues we invite you to browse through our pages.
करेंसी टाइमलाइन



भारतीय कागजी मुद्रा एक सिंहावलोकन : 1770-1998
भारत में वित्तीय लिखत और 'हुंडियों का प्राचीन इतिहास है। आधुनिक अर्थ में कागजी मुद्रा का आरंभ अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ जब निजी बैंकों और साथ ही अर्ध-सरकारी बैंकों (बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास जो प्रेसिडेन्सी बैंकों जैसे थे) द्वारा मुद्राएं जारी की गईं।
हुंडी
भारतीय उप महाद्वीप में व्यापार और ऋण लेनदेनों के लिए वित्तीय लिखतों के रूप में हुडी का इस्तेमाल किया जाता था। उनका इस्तेमाल
• विप्रेषण लिखत (एक स्थान से दूसरे स्थान तक निधियों के अंतरण) के रूप में
• ऋण लिखत ( पैसे उधार लेने (आइओयू) ), के रूप में
• व्यापार लेनदेनों के लिए (विनिमय बिल के रूप में) होता था।
तकनीकी रूप से हुडी व्यक्ति द्वारा लिखा गया बिना शर्त आदेश है जिसमें दूसरे व्यक्ति को निदेश होता है कि वह आदेश में लिखे गये व्यक्ति को कतिपय मुद्रा राशि का भुगतान करे। हुंडी अनौपचारिक प्रणाली का भाग होने के कारण कानूनी रूप से मान्य नहीं है और वह परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अधीन नहीं आती हैं। यद्यपि सामान्य तौर पर यह विनिमय बिल की तरह है फिर भी अक्सर उसका प्रयोग देशी बैंकरों द्वारा जारी किए गए चेकों के समान किया जाता रहा है।.
हुंडी : नमूने







दर्शनी हुंडी का नमूना
20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में
निसानी हमारे घरू खाते नाम मंदना
दस्तखत ब्रिजकिशोर भार्गव के हुडी लिखे मुजीब सिकर देसी
'श्री रामजी
सिद्ध श्री पटना शुभस्थाने चिरंजीव भाई रिखबचंद ब्रिद्धिचन योग श्री जयपुर से लिखी ब्रिजकिशोर भार्गव की आसीस बांचना, आपरांच हुंडी एक रुपिया 2,000 अक्षरे रुपया दो हजार के निमे रूपिया एक हजार का दूना यहां रखा साह श्री पूनमचंदजी हरकचंदजी पास मिति nirie बाद बारस (12वीं) पुगा तुरत साह-जोग रुपिया चालान का देना. संबत 1990. मिति मांगसीर बाद बारस
रु.2,000
नेमे नेमे रुपिया पांच सौ का चौगुना पूरा दो हजार कर दीजो।
'1' चिरंजीव रिखबचंद ब्रिद्धिचंद, पटना।
अनुवाद
यह राशि हमारे खाते में नामे लिखे।
हस्ताक्षर ब्रिजकिशोर भार्गव द्वारा लिखित हुंडी स्वीकार करें।
मेसर्स रिखबचंद ब्रिद्धिचंद, स्वनामधन्य पटना शहर का पुत्र जिनके नाम पर जयपुर से ब्रिजकिशोर भार्गव द्वारा रु. 2,000 (अक्षरों में दो हजार रुपए मात्र) के लिए हुंडी लिखी गई है। यदि एक हजार रुपए को दुगना किया जाता है तो हुंडी की राशि बनती है। यहां से मेसर्स पूनमचंद हरकचंद के नाम में 12 मांगसीर 1990 को हुंडी आहरित की गई है जिसे प्रस्तुत किए जाने पर प्रचलित मुद्रा में भुगतान करें।
2,000 रुपए
500/- रुपए का भार गुना 2000/- रुपए जिसके लिए हुंडी आहरित की गयी
हुंडी पर वाटरमार्क

हुंडी पर राजस्व मुहर का प्रतीत होना






सरकारी वचनपत्र ( जी पी नोट), बांड और शेयर





भारत में आधुनिक बैंकिंग का आगमन 1720 से 1850 तक
स्थापित | असफल (एफ) अथवा विलय (एम) | बैंक | स्थान |
---|---|---|---|
1720 | 1770 | बैंक ऑफ बॉम्बे | बंबई |
1770 | एफ 1832 | बैंक ऑफ हिंदोस्तान | कलकत्ता |
1773 | एफ 1775 | जनरल बैंक ऑफ बेंगाल और बिहार | कलकत्ता |
1784 | एफ 1791 | बेंगाल बैंक | कलकत्ता |
1786 | एफ 1791 | जनरल बैंक ऑफ इंडिया | कलकत्ता |
1788 | अज्ञात | दि कर्नाटिक बैंक | अज्ञात |
1806 | एम 1920 | बैंक ऑफ कलकत्ता बैंक ऑफ बेंगाल, 1808 | कलकत्ता |
1819 | एफ 1828 | दि कमर्शियल बैंक | कलकत्ता |
1824 | एफ 1829 | दि कलकत्ता बैंक | कलकत्ता |
1828 | अज्ञात | बैंक ऑफ इंडिया | |
1829 | एफ 1848 | दि यूनियन बैंक | कलकत्ता |
1833 | अज्ञात | दि गवर्नमेंट सेविंग् बैंक | कलकत्ता |
1833 | एफ 1866 | दि आगरा एण्ड & यूनाइटेड सर्विस बैंक लि.(पहले दि आगरा बैंक और बाद में दि आगरा एण्ड मास्टरमैन को बैंक, लंदन) | आगरा |
1835 | एफ 1837 | दि बैंक ऑफ मिर्गापुर | मिर्गापूर |
1836 | जन्म से ही मृत | बैंक ऑफ इंडिया (लंदन) | |
1840 | एफ 1859 | नॉर्थ वेस्टर्न बैंक ऑफ इंडिया | मसूरी |
1840 | एम 1920 | बैंक ऑफ बॉम्बे 1868 में पुनः स्थापित | |
1841 | 1842 | बैंक ऑफ एशिया | लंदन |
1841 | एम 1849 | दि बैंक ऑफ सिलोन (ओरिएंटल बैंकिंग कार्पोरेशन द्वारा अधिग्रहीत ) | कोलंबो |
1842 | जन्म से ही मृत | दि. ईस्ट इंडिया बैंक, लंदन | |
1842 | एफ 1884 | दि ओरिएंटल बैंक कार्पोरेशन (पूर्व का नाम बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया) | बंबई |
1842 | 1863 | दि आगरा सेविंग्ग फंड | आगरा |
1843 | एम 1920 | बैंक ऑफ मद्रास | मद्रास |
1844 | अज्ञात | दिल्ली बैंक कार्पोरेशन लि. | दिल्ली |
1844 | एफ 1850 | दि बनारस बैंक | बनारस |
1844 | एफ 1893 | सिमला बैंक लि. | सिमला |
1845 | एफ 1866 | दि कमर्शियल बैंक ऑफ इंडिया | बंबई |
1845 | एफ 1851 | दि कानपुर बैंक | कानपुर |
1846 | एम 1862 | ढाका बैंक (बैंक ऑफ बंगाल में विलीन) | ढाका |
1846 | एफ 1894 | बिना गारंटी की सेवाएं | आगरा बैंक लि. |
1852 | जन्म से ही मृत ड | लंदन बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया एण् & इंडिया | आगरा |
1852 | एफ 1855 | चार्टर्ड बैंक ऑफ एशिया | लंदन |
1853 | चार्टर्ड मर्कटाइल बैंक ऑफ इंडिया, लंदन &चाइना | लंदन | |
1853 | एण्ड गाइना चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया, ऑस्ट्रेलिया एण्ड चाइना | लंदन | |
1854 | F 1857 | दि लंदन एण्ड ईस्टर्न बैंकिंग कार्पो.. | लंदन |
1854 | दि कॉम्पतोहर ही एस्कॉमष्ट एण्ड पैरिस | पैरिस | |
स्रोत: कुकी, नट,टंडन, महाराष्ट्र राज्य अभिलेखागार और भारिबैं |
भारतीय ढलुवा सिक्के
सिंहावलोकन
भारत विश्व के उन प्राचीनतम देशों में से एक है जहाँ सिक्के जारी किए जाते थे (सिरका छठी शताब्दी ईसा पूर्व)सिक्कों की विविधता के मामले में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले बहुत कम देश हैं, चाहे वह ढलाई की तकनीक, रूपांकन, आकार, आकृतियां, प्रयुक्त धातुएं हों या भारत के मौद्रिक मानकों से उत्पन्न मौद्रिक इतिहास (त्रि-धातुवाद, द्वि-धातुवाद, रजत मानक, स्वर्ण विनिमय मानक तथा फिएट मुद्रा)।
इतिहास में एक लंबे समय से राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के प्रलेखन में भारतीय सिक्कों की अहम भूमिका रही है। भारत में पाया गया विदेशी सिक्कों का खजाना प्राचीन काल, मध्ययुगीन और बाद के कोलोनियल पूर्व युग में रहे भारतीय व्यापार के तरीकों को प्रदर्शित करता है। सिक्को पर अंकित अवधारणा पर विभिन्न कालावधि के दौरान भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के सांस्कृतिक प्रभुत्व का प्रभाव पड़ा है।
हमारे सिक्कों के पृष्ठों में विभिन्न युगों के भारतीय सिक्कों के नमूनों को दर्शाने का प्रयास किया गया है परंतु इनमें सिक्कों का संपूर्ण इतिहास नहीं समा सकता हमारा प्रस्ताव है कि हम भविष्य में इन पृष्ठों में और भी जानकारी देंगे हम आम जन / दर्शकों से सुझावों तथा जानकारी का स्वागत करते हैं।
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भारतीय कागजी मुद्रा एक सिंहावलोकन : 1770-1998
भारत में वित्तीय लिखत और 'हुंडियों का प्राचीन इतिहास है। आधुनिक अर्थ में कागजी मुद्रा का आरंभ अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ जब निजी बैंकों और साथ ही अर्ध-सरकारी बैंकों (बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास जो प्रेसिडेन्सी बैंकों जैसे थे) द्वारा मुद्राएं जारी की गईं।



प्रारंभिक शृंखलाओं में बैंक ऑफ हिन्दोस्तान (1770-1832), जनरल बैंक ऑफ बंगाल एण्ड बिहार में (1773-75, वॉरन हेस्टिंग्ज द्वारा स्थापित) द्वारा जारी शृंखलाएं और अन्यों में बंगाल बैंक ( 1784-91) द्वारा जारी शृंखलाएं आती हैं। इनमें से कुछ ही नोट चलन में रह पाए ।
कागजी मुद्रा अधिनियम, 1861 ने भारत सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार दे दिया जिसके कारण निजी और प्रेसिडेन्सी बैंकों द्वारा नोट जारी किया जाना समाप्त हो गया। भारत में कागजी मुद्रा का श्रेय सर जेम्स विल्सन की बौद्धिक प्रेरणा और वैयक्तिक क्रियाशीलता को जाता है। वे भारत के वाइसरॉय की कार्यपालक परिषद में पहले वित्त सदस्य थे। सर जेम्स की अकाल मृत्यु के साथ भारत में सरकारी कागज़ीमुद्रा जारी करने का कार्य जारी रखने की जिम्मेदारी उनके उत्तराधिकारी सैम्युअल लाइंग पर आ गई, जिन्होंने बाद में विल्सन के मूल प्रस्तावों में महत्वपूर्ण संशोधन किए।
भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक की 1 अप्रैल 1935 में स्थापना होने तक मुद्रा नोट जारी करने का कार्य जारी रखा। युद्ध के समय के उपाय के रूप में जब अगस्त 1940 में एक रुपए का नोट फिरसे शुरु किया गया तब भारत सरकार ने उसे सिक्के की हैसियत में जारी किया। भारत सरकार ने 1994 तक एक रुपए का नोट जारी करने का कार्य किया।
भारतीय मुद्रा के नोटों पर दिखाई देनेवाली अवधारणाओं में बदलती सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं और उस समय के वैश्विक दृष्टिकोण की झलक मिलती है : समुद्री लुटेरे और वाणिज्यवाद, उपनिवेशिक संघटन, निरंकुश साम्राज्यवाद, साम्राज्य की श्रेष्ठता से लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रतीकों और उसके बाद की प्रगति के रूप और अंत में गांधीवादी मूल्यों की याद दिलानेवाली अद्यतन शृंखलाओं तक ।
To understand these issues we invite you to browse through our pages.
करेंसी टाइमलाइन
हुंडी
भारतीय उप महाद्वीप में व्यापार और ऋण लेनदेनों के लिए वित्तीय लिखतों के रूप में हुडी का इस्तेमाल किया जाता था। उनका इस्तेमाल
• विप्रेषण लिखत (एक स्थान से दूसरे स्थान तक निधियों के अंतरण) के रूप में
• ऋण लिखत ( पैसे उधार लेने (आइओयू) ), के रूप में
• व्यापार लेनदेनों के लिए (विनिमय बिल के रूप में) होता था।
तकनीकी रूप से हुडी व्यक्ति द्वारा लिखा गया बिना शर्त आदेश है जिसमें दूसरे व्यक्ति को निदेश होता है कि वह आदेश में लिखे गये व्यक्ति को कतिपय मुद्रा राशि का भुगतान करे। हुंडी अनौपचारिक प्रणाली का भाग होने के कारण कानूनी रूप से मान्य नहीं है और वह परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अधीन नहीं आती हैं। यद्यपि सामान्य तौर पर यह विनिमय बिल की तरह है फिर भी अक्सर उसका प्रयोग देशी बैंकरों द्वारा जारी किए गए चेकों के समान किया जाता रहा है।.
हुंडी : नमूने







दर्शनी हुंडी का नमूना
20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में
निसानी हमारे घरू खाते नाम मंदना
दस्तखत ब्रिजकिशोर भार्गव के हुडी लिखे मुजीब सिकर देसी
'श्री रामजी
सिद्ध श्री पटना शुभस्थाने चिरंजीव भाई रिखबचंद ब्रिद्धिचन योग श्री जयपुर से लिखी ब्रिजकिशोर भार्गव की आसीस बांचना, आपरांच हुंडी एक रुपिया 2,000 अक्षरे रुपया दो हजार के निमे रूपिया एक हजार का दूना यहां रखा साह श्री पूनमचंदजी हरकचंदजी पास मिति nirie बाद बारस (12वीं) पुगा तुरत साह-जोग रुपिया चालान का देना. संबत 1990. मिति मांगसीर बाद बारस
रु.2,000
नेमे नेमे रुपिया पांच सौ का चौगुना पूरा दो हजार कर दीजो।
'1' चिरंजीव रिखबचंद ब्रिद्धिचंद, पटना।
अनुवाद
यह राशि हमारे खाते में नामे लिखे।
हस्ताक्षर ब्रिजकिशोर भार्गव द्वारा लिखित हुंडी स्वीकार करें।
मेसर्स रिखबचंद ब्रिद्धिचंद, स्वनामधन्य पटना शहर का पुत्र जिनके नाम पर जयपुर से ब्रिजकिशोर भार्गव द्वारा रु. 2,000 (अक्षरों में दो हजार रुपए मात्र) के लिए हुंडी लिखी गई है। यदि एक हजार रुपए को दुगना किया जाता है तो हुंडी की राशि बनती है। यहां से मेसर्स पूनमचंद हरकचंद के नाम में 12 मांगसीर 1990 को हुंडी आहरित की गई है जिसे प्रस्तुत किए जाने पर प्रचलित मुद्रा में भुगतान करें।
2,000 रुपए
500/- रुपए का भार गुना 2000/- रुपए जिसके लिए हुंडी आहरित की गयी
हुंडी पर वाटरमार्क

हुंडी पर राजस्व मुहर का प्रतीत होना






सरकारी वचनपत्र ( जी पी नोट), बांड और शेयर





भारत में आधुनिक बैंकिंग का आगमन 1720 से 1850 तक
स्थापित | असफल (एफ) अथवा विलय (एम) | बैंक | स्थान |
---|---|---|---|
1720 | 1770 | बैंक ऑफ बॉम्बे | बंबई |
1770 | एफ 1832 | बैंक ऑफ हिंदोस्तान | कलकत्ता |
1773 | एफ 1775 | जनरल बैंक ऑफ बेंगाल और बिहार | कलकत्ता |
1784 | एफ 1791 | बेंगाल बैंक | कलकत्ता |
1786 | एफ 1791 | जनरल बैंक ऑफ इंडिया | कलकत्ता |
1788 | अज्ञात | दि कर्नाटिक बैंक | अज्ञात |
1806 | एम 1920 | बैंक ऑफ कलकत्ता बैंक ऑफ बेंगाल, 1808 | कलकत्ता |
1819 | एफ 1828 | दि कमर्शियल बैंक | कलकत्ता |
1824 | एफ 1829 | दि कलकत्ता बैंक | कलकत्ता |
1828 | अज्ञात | बैंक ऑफ इंडिया | |
1829 | एफ 1848 | दि यूनियन बैंक | कलकत्ता |
1833 | अज्ञात | दि गवर्नमेंट सेविंग् बैंक | कलकत्ता |
1833 | एफ 1866 | दि आगरा एण्ड & यूनाइटेड सर्विस बैंक लि.(पहले दि आगरा बैंक और बाद में दि आगरा एण्ड मास्टरमैन को बैंक, लंदन) | आगरा |
1835 | एफ 1837 | दि बैंक ऑफ मिर्गापुर | मिर्गापूर |
1836 | जन्म से ही मृत | बैंक ऑफ इंडिया (लंदन) | |
1840 | एफ 1859 | नॉर्थ वेस्टर्न बैंक ऑफ इंडिया | मसूरी |
1840 | एम 1920 | बैंक ऑफ बॉम्बे 1868 में पुनः स्थापित | |
1841 | 1842 | बैंक ऑफ एशिया | लंदन |
1841 | एम 1849 | दि बैंक ऑफ सिलोन (ओरिएंटल बैंकिंग कार्पोरेशन द्वारा अधिग्रहीत ) | कोलंबो |
1842 | जन्म से ही मृत | दि. ईस्ट इंडिया बैंक, लंदन | |
1842 | एफ 1884 | दि ओरिएंटल बैंक कार्पोरेशन (पूर्व का नाम बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया) | बंबई |
1842 | 1863 | दि आगरा सेविंग्ग फंड | आगरा |
1843 | एम 1920 | बैंक ऑफ मद्रास | मद्रास |
1844 | अज्ञात | दिल्ली बैंक कार्पोरेशन लि. | दिल्ली |
1844 | एफ 1850 | दि बनारस बैंक | बनारस |
1844 | एफ 1893 | सिमला बैंक लि. | सिमला |
1845 | एफ 1866 | दि कमर्शियल बैंक ऑफ इंडिया | बंबई |
1845 | एफ 1851 | दि कानपुर बैंक | कानपुर |
1846 | एम 1862 | ढाका बैंक (बैंक ऑफ बंगाल में विलीन) | ढाका |
1846 | एफ 1894 | बिना गारंटी की सेवाएं | आगरा बैंक लि. |
1852 | जन्म से ही मृत ड | लंदन बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया एण् & इंडिया | आगरा |
1852 | एफ 1855 | चार्टर्ड बैंक ऑफ एशिया | लंदन |
1853 | चार्टर्ड मर्कटाइल बैंक ऑफ इंडिया, लंदन &चाइना | लंदन | |
1853 | एण्ड गाइना चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया, ऑस्ट्रेलिया एण्ड चाइना | लंदन | |
1854 | F 1857 | दि लंदन एण्ड ईस्टर्न बैंकिंग कार्पो.. | लंदन |
1854 | दि कॉम्पतोहर ही एस्कॉमष्ट एण्ड पैरिस | पैरिस | |
स्रोत: कुकी, नट,टंडन, महाराष्ट्र राज्य अभिलेखागार और भारिबैं |
रिज़र्व बैंक की मुद्रा की कहानी

बैंक की सामान्य मुद्रा, जिसका उपयोग बैंक के प्रतीक के रूप में करेंसी नोटों, चेकों और प्रकाशनों में करना था, का चयन एक ऐसा मुद्दा था जिसे बैंक की स्थापना के आरंभिक काल में ही तय करना था।
मुद्रा पर सामान्य विचार निम्नानुसार थे;
1. मुद्रा में बैंक की सरकारी हैसियत पर बल दिया जाना चाहिए, परंतु अत्यधिक घनिष्ठता न दर्शाते हुए।
2. उसकी डिजाइन में भारतीयता की झलक हो।
3. वह सादी, कलात्मक और संदेश की दृष्टि से सटीक होनी चाहिए; तथा
4. डिजाइन ऐसी होनी चाहिए कि बिना मूलभूत परिवर्तन किए उसका प्रयोग पत्र शीर्ष, आदि में किया जा सके।
इस प्रयोजन से विभिन्न मुद्रा, पदक और सिक्कों की जांच की गई। ईस्ट इंडिया कंपनी की सिंह और ताड़ के पेड़ के रेखाचित्र वाली दोहरी मुहर अधिक उपयुक्त पाई गई, परंतु यह निर्णय लिया गया कि भारत के वैशिष्टपूर्ण प्राणी के रूप में सिंह के स्थान पर बाघ को रखा जाए।
बैंक शेयर सर्टिफिकेट पर मुहर लगाने की तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह काम मद्रास की एक फर्म को दिया गया। बोर्ड ने 23 फरवरी 1935 को हुई अपनी बैठक में मुद्रा की डिजाइन को अनुमोदित किया परंतु प्राणी की आकृति में सुधार करने की इच्छा व्यक्त की दुर्भाग्य से उस समय कोई प्रमुख परिवर्तन करना संभव नहीं था परंतु उप गवर्नर सर जेम्स टेलर इससे संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने भारत सरकार की टकसाल और प्रतिभूति मुद्रण प्रेस, नासिक द्वारा नये रेखाचित्र तैयार किए जाने में काफी रुगि ली। अच्छी डिजाइन के लिए आधार उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने बेलवेदेरे, कलकत्ता के प्रवेशद्वार पर अवस्थित बाघ की मूर्ति की तस्वीर लेने की व्यवस्था की रेखाचित्रों के साथ कुछ न कुछ गड़बड़ी होती रही जिसके चलते सर जेम्स को सितंबर 1938 में निम्नानुसार टिप्पणी करनी पड़ी
...... का पेड़ ठीक है परंतु उसका बाघ ऐसे दिखाई दे रहा है मानो वह श्वान वर्ग का प्राणी हो और मुझे आशंका है कि श्वान और पेड़ के डिजाइन से तिरस्कार के साथ उपहास की भावना पैदा होगी। ...... का बाघ निश्चित रूप से अच्छा है परंतु पेड़ के कारण वह खराब दिख रहा है। पेड़ का तना बहुत लम्बा है और शाखाएं मकड़ी की तरह हैं, परंतु मेरे विचार से बाघ के पैर के नीचे ठोस पंक्ति का प्रयोग करने और पेड़ को अधिक मजबूत एवं छोटा करने से हम उसकी डिजाइन का अच्छा प्रभाव प्राप्त कर सकेंगे।
बाद में और अधिक प्रयास किए जाने पर प्रतिभूति मुद्रण प्रेस, नासिक द्वारा तैयार किए गए बेहतर प्रूफ मिलना संभव हुआ। तथापि, अंतिम रूप से यह निर्णय लिया गया कि बैंक की विद्यमान मुद्रा में कोई परिवर्तन न किया जाए और नये रेखाचित्रों का प्रयोग बैंक द्वारा जारी बैंक के मुद्रा नोटों, पत्र- शीर्षों, चेकों और प्रकाशनों पर प्रतीक चिह्न के रूप में किया गाए।
स्रोत: 'हिस्ट्री ऑफ दि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया'