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ब्रिटिश इंडिया शृंखलाएं
कागजी मुद्रा अधिनियम 1861 के साथ ही ब्रिटिश इंडिया शृंखलाओं का प्रारंभ हुआ। इस अधिनियम ने सरकार को भारत में नोट जारी करने का एकाधिकार सौंप दिया। भारतीय उप-महाद्वीप के भौगोलिक विस्तार को देखते हुए उसमें कागजी मुद्रा का प्रबंधन करने का काम काफी जटिल था। प्रारंभ में प्रेसीडेंसी बैंकों की विद्यमान स्थिति को देखते हुए इन नोटों का परिचालन बढ़ाने के लिए उन्हें एजेंट के रूप में नियुक्त किया गया। अधिनियम, 1861 ने प्रेसिडेन्सी बैंकों को प्राधिकृत किया कि वे राज्य के सचिव के साथ करार करें कि वे भारत सरकार के निर्गम, भुगतान और वचन पत्रों के विनिमय के लिए एजेंट के रूप में काम करेंगे। भारतीय उप महाद्वीप के विस्तृत विस्तार के कारण इन नोटों के प्रतिदान की समस्या सुलझाने के लिए 'मुद्रा सर्किल की संकल्पना सामने आ गई जहाँ ये नोट वैध मुद्रा मानी जाती थी।
गैसे-जैसे सरकार ने इस काम का अधिग्रहण किया वैसे-वैसे इन मुद्रा सर्किलों की संख्या बती गई। प्रेसिडेन्सी बैंकों के साथ किए गए करार अंतिमतः 1867 में समाप्त किए गए। बाद में कागजी मुद्रा का प्रबंधन टकसाल मास्टरों, महालेखाकारों और मुद्रा नियंत्रक को सौंपा गया।
विक्टोरिया के चित्र की शृंखला
ब्रिटिश इंडिया नोटों का पहला सेट विक्टोरिया मित्र शृंखला थी और इसे 10, 20, 50, 100, 1000 मूल्यवर्ग में जारी किया गया था। इनमें दो भाषा पैनल थे और उन्हें लवरस्टाक पेपर मिल (पोर्टल्स) में हाथ से बनाए गए पेपर पर एकतरफा मुद्रित किया जाता था। इनकी सुरक्षा विशेषताएं थीं- वॉटर मार्क (भारत सरकार, रुपए दो हस्ताक्षर और लहरदार रेखाएं), मुद्रित हस्ताक्षर और नोटों का पंजीकरण ।
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ब्रिटिश इंडिया नोटों से निधियों के एक स्थान से दूसरे सुदूरवर्ती स्थान (इंटर स्पाशियल) में अंतरण किए जाने में सुविधा हो गई। सुरक्षा के पूर्वोपाय के रूप में नोटों के दो टुकड़े किए जाते थे। एक टुकड़ा डाक द्वारा भेजा जाता था उसकी प्राप्ति की पुष्टि हो जाने पर दूसरा आधा टुकड़ा डाक द्वारा भेज दिया जाता था।
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अंडरप्रिंट शृंखला
बढ़ती जालसाजी को देखते हुए विक्टोरिया मित्र की शृंखला समाप्त की गई और उसका स्थान लिया एकतरफा अंडरप्रिंट शृंखला ने जिसकी शुरुआत 1867 में हुई थी। जनता की मांग दर किनार करते हुए पांच रुपए मूल्यवर्ग के नोट आरंभ किए गए। प्रारंभ में, जिस मुद्रा सर्किल द्वारा ये नोट जारी गए उसी मुद्रा सर्किल में उन्हें कानूनी रूप से भुनाया जा सकता था; तथापि 1903 और 1911 के बीच 5, 10, 50 और 100 रुपए के मूल्यवर्ग में नोटों को 'सार्वदेशिक' किया गया अर्थात मुद्रा निर्गमन क्षेत्र से बाहर भी कानूनी रूप के उन्हें भुनाना संभव हो गया।
अंडरप्रिंट शृंखला वाले नोट हाथ से बनाए गए कागज़ (मोल्डेड पेपर) पर मुद्रित होते थे और उस पर चार भाषा पैनल थे (हरित शृंखला)। मुद्रा निर्गमन क्षेत्र के अनुसार भाषाएं अलग-अलग होती थीं। लाल अंडरप्रिंट शृंखला में भाषा पैनलों की संख्या बढ़ाकर आठ कर दी गई सुधारित सुरक्षा विशेषताओं में लहरदार रेखाओंवाले वाटरमार्क, वाटरमार्क में निर्माता का कोड ( तिथि निर्धारण में भ्रम पैदा करता था) ज्यामितीय डिजाइन और रंगीन अंडरप्रिंट शामिल थीं।
यह शृंखला 1923 में राजा के मित्र की शृंखला के आरंभ होने तक मुख्यतः अपरिवर्तित रही। हरित अंडरप्रिंट पांच सौ रुपए
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छोटे मूल्यवर्ग के नोट
भारत में छोटे मूल्यवर्ग के नोटों का आरंभ अत्यावश्यक कारणों से हुआ था। पहले विश्व युद्ध की अनिवार्यताओं की वजह से छोटे मूल्यवर्ग की कागजीमुद्रा प्रारंभ की गई। 30 नवंबर 1917 को एक रुपए के नोट प्रारंभ किए गए और उसके बाद दो रुपए आठ आने के नए आकर्षक नोट जारी किए गए। लागत लाभ पर विचार करने पर 1 जनवरी 1926 में ये नोट बंद कर दिए गए। इन नोटों पर सर्वप्रथम किंग गॉ v का भित्र था। ये नोट इसके बाद शुरु की गई राधा के मित्र की शृंखला के प्रारंभिक नोट थे।
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राजा के चित्र की शृंखला
इस शृंखला का नियमित निर्गम मई 1923 में दस रुपए के नोट पर गॉ v के मित्र को दर्शाते हुए प्रारंभ किया गया। राधा के मित्र का मुद्रण ब्रिटिश भारत की सभी कागजी मुद्रा निर्गमों की अनिवार्य विशेषता बनी रही। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा नियंत्रक का कार्य ग्रहण किए जाने तक अर्थात 1935 तक भारत सरकार ने मुद्रा नोट जारी करने का कार्य जारी रखा। ये नोट 5, 10, 50, 100, 500, 1000, 10,000 रुपए के मूल् गए।
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1928 में नासिक में मुद्रा नोट प्रेस की स्थापना के साथ भारत में मुद्रा नोटों का क्रमिक रूप से मुद्रण किया जाने लगा। नासिक प्रेस में 1932 तक संपूर्ण भारतीय मुद्रा नोटों का मुद्रण किया जाने लगा। उन्नत सुरक्षा विशेषताओं से वाटरमार्क में परिवर्तन हो गया और जटिल चित्र के डिजाइन तथा बहुरंगी मुद्रण किया जाने लगा।
ब्रिटिश इंडिया रिज़र्व बैंक के निर्गम
भारतीय रिज़र्व बैंक का पहला केंद्रीय कार्यालय
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सरकार द्वारा मुद्रा नियंत्रक और दी इम्पीरियल बैंक द्वारा सरकारी लेखा और लोक ऋण के प्रबंधन के तब तक किए जा रहे कार्यों को रिजर्व बैंक ने अपने हाथ में लेते हुए अपने कार्य का प्रारंभ किया। कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, रंगून, कराभी, लाहौर और कानपुर में विद्यमान मुद्रा कार्यालय बैंक के निर्गम विभाग की शाखाएं हो गई (तब दिल्ली में कार्यालय का होना आवश्यक प्रतीत नहीं हुआ था। )
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 22 ने उसे अपने स्वयं के नोट जारी करने की तैयारी न होने तक भारत सरकार के नोट जारी करने का काम करते रहने के अधिकार दिए । बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने सिफारिश की कि संशोधनों के साथ ही विद्यमान नोटों के सामान्य आकार, स्वरूप और डिजाइन को बनाए रखा जाए।
1937 की गरमी के दिनों में एडवर्ड VIII के मित्र के साथ नोट जारी करना निश्चित हो गया था। परंतु सांसारिकता से विरक्ति हो जाने के कारण एडवर्ड द्वारा पद परित्याग किए जाने से बैंक की शृंखला जनवरी 1938 तक विलंबित हो गई जब जॉर्ज VI के चित्र के साथ प्रथम पांच रुपए के नोट को जारी किया गया।
पांच रुपए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया पहला नोट
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इसके बाद फरवरी में 10 रुपए मार्च में 100 रु पए और जून 1938 में 1,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट जारी किए गए।
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पहले गवर्नर सर ओसबोर्न स्मिथ ने किसी भी बैंक नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए थे रिजर्व बैंक के प्रथम निर्गम पर दूसरे गवर्नर सर जेम्स टेलर ने हस्ताक्षर किए थे।
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![](/documents/87730/49025973/sir-james-taylor.webp/ffbce068-aeff-ad9d-da49-890e5aae5305?t=1684514180449)
अगस्त 1940 में एक रुपए का नोट पुनः प्रचलन में लाया गया। एक बार फिर युद्ध के समय के उपाय के रूप में एक रुपए के सिक्के की हैसियतवाला यह सरकारी नोट मुद्रा अध्यादेश 1940 (1940 का IV) के अनुसरण में जारी किया गया। 2 रुपया और 8 आना के प्रचलन पर विचार किया गया परन्तु उसके स्थान पर 3 मार्च 1943 को 2 रुपए का नोट भारी किया गया।
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युद्ध के दौरान भारतीय मुद्रा को अस्थिर करने के लिए जापानी कारगुजारियों में आम तौर पर गवर्नर सी. डी. देशमुख के द्वारा हस्ताक्षरित 10 रु पए के नोटों में उच्च गुणवत्तावाली गालसा भी की गई।
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इसके कारण वाटरमार्क और मुखभाग डिजाइन में परिवर्तन करना आवश्यक हो गया और उसमें VI के अर्द्ध मुख चित्र के स्थान पर पूर्ण मुख चित्र किया गया। एक अतिरिक्त सुरक्षा उपाय के रूप में, भारत में पहली बार सुरक्षा धागा शुरु किया गया।
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![](/documents/87730/49025973/george-vi-frontal.webp/58c5804e-7e58-0346-e4ce-0656f56443a9?t=1684514173455)
गॉर्मVI की शृंखला 1947 तक और उसके बाद अवरुद्ध शृंखला के रूप में 1950 तक, जब तक स्वतंत्रता के बाद नोट जारी किए गए, भारी रही ।