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Musm_Title and Description - Late Pre-Colonial Indian Coinage

ऑपनिवेश से पहले का भारत और रियासती राज्यों के समय के सिक्के

औरंगजेब को मृत्यु के बाद से ही मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत हो गई। मराठों का सामरिक सफलता को देखकर थोड़े समय के लिए ऐसा प्रतीत हुआ कि मुगलों के कूच करने से उपजे शून्य को वे भरेंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ एक अराजकता की स्थिति पैदा हो गई. और ऐसे में क्षेत्रीय शक्तियों में अपना वर्चस्व पुनः प्राप्त करने की होड़ लग गई और जिन राज्यों का वर्चस्व बोते समय में कभी रहा था, उनमें से कई राज्य भो मध्यकाल में स्वतंत्र भी थे, जैसे- राजपूताना, वे राज्य पुनः अस्तित्व में आ गए। केंद्रीय सत्ता के कमजोर पड़ने के कारण मुगलों के सूबों के सूबेदारों में स्वतंत्र राज्य कायम (अवध और हैदराबाद राय) करने की हिम्मत बढ़ी। अस्थिरता के माहौल के कारण सैनिकी दुस्साहस के कारनामों की घटनाएं होने लगी जिनमें सैन्यशक्ति के बूते पर राजाओं ने स्वयं के लिए राज्य अलग कर लिए यथा- सिंधिया (ग्वालियर) और हैदरअली (मैसूर) राज्य अंत में सहूलियतवाले राज्य'- नाममात्र के राज्य हो गए जिनके राजवंश को ब्रिटिश (जैसे- वडियार ) का समर्थन था अथवा वे उच्च राजनीति के हित में क्षेत्रीय क्षत्रप बने हुए थे। जब ब्रिटिश क्राउन ने 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी से देश की बागडोर अपने हाथ में ली तब उस समय पूरे देश में सौ से भी अधिक राधे-रजवाड़े थे जो मुगल बादशाह के नाम में सिक्के जारी कर रहे थे। अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह को देश निकाला देकर रंगून भेज दिए जाने के पश्चात क्षेत्रीय राजाओं ने अपने सिक्कों पर से मुगलकाल से संबंधित इबारतों को हटाकर उसकी जगह इंग्लैंड की रानी का नाम अथवा उनका चित्र ढालना शुरू किया जो इस बात की स्वीकारोक्ति थी कि उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत स्वीकार कर ली है। कुछ सिक्के जैसे मेवाड़ के सिक्कों पर 'दोस्ती लंदन' अर्थात् 'लंदन के दोस्त ख़ुदा हुआ पाया गया। ब्रिटिश हुकूमत ने बाद में धीरे-धीरे देशी राज्यों के स्वयं के सिक्केजारी करने के अधिकारों को खत्म कर दिया। कुछ राज्यों के प्रातिनिधिक सिक्कों को नीचे दर्शाया गया है।

Musm_Simple Image Card - The Maratha Confederacy

मराठा राज्य संघ

यद्यपि मराठों का एक लंबा इतिहास है, तथापि उन्होंने युगप्रवर्तक नेता शिवाजी के नेतृत्व में सत्रहवीं शताब्दी में अपना झंडा गाड़ा मराठा राज्य संघ ने 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद अपने आपको एकजुट कर मजबूत किया। उनकी सैन्य सफलताओं के चलते 1738 ई. तक भारत का अधिकांश भाग उनके आधिपत्य में आ चुका था। भारत में केवल मराठा शक्ति हो बादशाही हुकूमत को टक्कर देकर भारतीय साम्राज्य की स्थापना कर सकती थी। परंतु उन्हें 1761 ई. में पानीपत के युद्ध में मुंह की खानी पड़ी। तथापि उन्होंने शताब्दी के अंत तक अपना वर्चस्व दक्खन में बनाए रखा। केंद्र की सत्ता के खात्मे के साथ ही मराठा परिवारों ने बड़ौदा, ग्वालियर, इंदौर, आदि राज्यों को स्थापना की। 1674 ई. में रायगढ़ में जब शिवाजी का राज्याभिषेक कर उन्हें राजा को उपाधि से अलंकृत किया गया तब इस राज्याभिषेक के स्मरणार्थ स्मारकीय सिक्के पुनः जारी किए गए। ये सिक्के दुर्लभ हैं। मराठा टकसालों और सिक्कों ने लगभग 18वीं सदी के मध्य अपनी स्थिति मजबूत बना ली। इस अवधि के दौरान तीन प्रकार के सिक्के प्रचलन में रहे थे जिनके नाम हैं- हाली सिक्का, अकुशी रुपया जो पुणे का मानक रुपया था, और चंदेरी रुपया जो अंकुशी के सममूल्य था।

मराठों के सिक्के
ताम्र
ताम्र
ताम्र
ताम्र
चांदी, पुणे टकसाल
चांदी, पुणे टकसाल
चांदी, पुणे टकसाल
चांदी, पुणे टकसाल

Musm_Simple Image Card - Awadh

अवध

1720 ई. के आस-पास उत्तर भारत में अवध राज्य पर मुगलों की ओर से नवाब बजारों ने शासन किया। मुगल साम्राज्य के अस्त के बाद माक्वीस ऑफ हेस्टिंग्स ने गाजीउद्दीन हैदर को, जो अवध के नवाब वजीर थे, मुगल आधिपत्य से अलग करने और खुद को स्वतंत्र घोषित करने के लिए मनाया। गाजीउद्दीन हैदर का राजतिलक 1819 में हुआ परंतु इतिहास गवाह है कि अवध का राज्य, जिसकी राजधानी लखनऊ थी और जो भारत की सांस्कृतिक राजधानी होने का दावा करती थी. चार दशकों तक भी बनाया नभा सका। गाजीउद्दीन के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति की घोषणा करने के बावजूद स्वतंत्र रूप से भारी सिक्के का प्रथम निर्गम मुगल साम्राज्य के नाम से ही था, जिसके पृष्ठ भाग पर असलहों की अवध चित्रकारी थी। असलहों के चित्र इंग्लिश की नकल थे और परंपरागत मुगल डिजाइन का परित्याग किया जाना इनमें साफ दिखाई दे रहा था । गाजीउद्दीन के बाद एक के बाद एक नसीरु दीन हैदर, मुहम्मद अली, और वाजिद अली ने गहरी संभाली मौद्रिक प्रणाली में स्वर्ण अशा (आधी, चौथाई और अशर्फी का एक बटा आठ तथा एक बटा सोलह ), पांच मूल्यवर्गों में चांदी का रुपया और ताम्र फूलस प्रचलन में थे। बक्सर (1764) में अवध के नवाब की हार के बाद से अवध राज्य का सूर्यास्त होना प्रारंभ हुआ। वाजिद अली शाह, अंतिम नवाब को 1856 में लॉर्ड डलहौजी ने सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया। 1857 की क्रांति के दौरान लखनऊ में लड़ी गई जंग सर्वाधिक खूंखार जंग थी। कहा जाता है कि क्रांतिकारियों ने नवाब वजारत के नाम के सिक्के जारी किए थे।

अवध के सिक्के

Musm_Simple Image Card - Mysore

मैसूर

मैसूर राज्य भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थापित था और विभिन्न हिंदू राजाओं ने इस पर शासन किया। 1761 में हैदर अली, जो सैन्य दुस्साहस दिखाया करता था. ने वडियार राजा को बेदखल कर स्वयं को राजा घोषित किया। इस क्षेत्र में मुगल और विजयनगर दोनों के ही मानक सिक्के प्रचलन में रहे थे उसके द्वारा जारी सिक्कों में पगोडा प्रकार के सिक्केही चलन में रहे (अर्थात हर-गौरी) जिस पर उसके आद्याक्षर होते थे तथा पृष्ठ भाग पर ही अक्षर ख़ुदा होता था। उसके बेटे टोपू ने बाद में गहरी संभाली और खुद को सुल्तान घोषित किया। उसने पगोडा, मुहर को जारी रखते हुए अपने सिक्कों में तमाम नवोन्मेषी और नायाब प्रयोग किए तथा स्वयं के मानकों का प्रचलन किया। उसके सिक्कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनमें कहीं भी उसके नाम का उल्लेख नहीं है। टीपू सुल्तान, जो प्रगतिशील शासक था, उन मुठ्ठी भर राजाओं में से था जिसने ब्रिटिश के साम्राज्यवादी नजरिए को भांपा और उनका डटकर विरोध किया। परंतु 1799 में श्रीरंगपट्टणम के युद्ध में वह मारा गया जिसके बाद ब्रिटिश ने कृष्णराज वडियार को पुनः मैसूर राज्य का राजा बना दिया। कृष्णराज वडियार ने विजयनगर और मुगल मानकों के सिक्केजारी रखे। स्वर्ण सिक्कों पर हर- गौरी रूपांकन तथा पृष्ठ भाग पर राजा का नाम छापना जारी रखा गया। चांदी के सिक्के मुगल परंपरा में थे जिसके मुखभाग पर मुगल शासक शाह आलम II का नाम और पृष्ठ भाग पर टकसाल का नाम होता था कुछ छोटे मूल्य के सिक्कों पर वडियार परिवार की कुलदेवी चामुंडा की छवि भी उकेरी गाती थी अन्य सिक्कों पर प्रकृति के रूपांकन और समय- समय पर नागरी, फारसी, कन्नड़, और अंग्रेजी भाषाओं में मुद्रा लेख उकेरे गाते थे।

हैदरअली के सिक्के
टीपू सुल्तान का रुपया

Musm_Simple Image Card - Coins of the Sikhs

सिक्खों के सिक्के

गुरुनानक ने धार्मिक समुदाय की स्थापना की थी जो कालान्तर में सिक्ख साम्राज्य बनकर उत्तर पश्चिम भारत में शक्तिशाली सामरिक शक्ति के रूप में उभरा यह परिवर्तन लगातार चले आ रहे मुगल अत्याचारों के कारण हुआ। सिक्खों के इस्लाम कबूल न करने के कारण मुगल सत्ताधारकों द्वारा लगातार उन्हें यातनाएं दी जाती रही जिसके कारण सिक्ख सैनिक शक्ति उभर कर सामने आई। तथापि 1710 में सरहिंद सूबे में अहमदशाह दुर्रानी की हार के बाद सिक्ख लीग, जिसे खालसा के नाम से भी जाना जाता है, ने स्वतंत्र रूप से अपना आधिपत्य कायम किया। झेलम और सतलज के बीच का संपूर्ण भू-भाग सिक्ख सरदारों के कब्जे में आ चुका था 1777 ई. में अमृतसर में सिक्के भारी हुए जिन पर मुगल बादशाह का नाम नदारद था और इन्हें नानकशाही नाम से जाना जाता था। इन सिक्कों पर गुरु गोबिंद सिंह का नाम लिखा था जो सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु थे। सिक्ख सरदारों में सर्वाधिक विलक्षण राजनीतिज्ञ का नाम था रणनीत सिंह जिन्होंने सफलतापूर्वक अमृतसर, लुधियाना, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर पर फिर से अपना कब्जा जमाया। 1809 में ब्रिटिश हुकूमत के साथ की गई संधि में यह पुष्टि की गई है कि सतलज के दक्षिण भाग, जिसे रणभीत सिंह ने फतह किया था, पर रणनीत सिंह का ही शासन रहेगा। परंतु उनकी मृत्यु के बाद सिक्ख साम्राज्य का पतन होना शुरू हो गया और अंततः 1849 में उसका विलय ब्रिटिश साम्राज्य के साथ हो गया। रणनीत सिंह के शासनकाल में ढाले गए अधिकांश सिक्कों में एक ओर लंबी पत्ती होती थी और दूसरी और फारसी इबारत लिखी होती थी। उन्होंने गुरुमुखी में लिखी इबारतवाले सिक्के भी चलाए जिनमें से अधिकांश ताम्र सिक्के थे।

सिक्खों के सिक्के

Musm_Simple Image Card - Hyderabad

हैदराबाद

नवाबी राज्य हैदराबाद की स्थापना लगभग 1724 ई. में तब हुई जब मीर कमरुद्दीन, दक्खन का मुगल वजीर ने असफ जहाँ की उपाधि लेकर स्वतंत्रता प्राप्त कर ली और निजाम हैदराबाद शासन की स्थापना की। 1857 के बाद के इतिहास में जितने भी रियासती राज्य थे उनमें सर्वाधिक बड़ा राज्य था हैदराबाद, जिसे बाद में परम महामहिम निजाम का स्वतंत्र उपनिवेश के नाम से जाना गया। उनकी सल्तनत में आज के आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटकके क्षेत्रों का समावेश था, जिन्हें सितंबर 1948 में भारतीय संघ में मिला लिया गया। करेंसी और सिक्कों के मामले में 1858 तक निजाम के सिक्केमुगल बादशाह के नाम में जारी किए जाते रहे जिन पर उसके संस्थापक असफ़ जहां के नाम की इबारत लिखी जाती थी। इसके बाद इन सिक्कों की ढलाई स्वतंत्र रूप से की जानी लगी और नए सिक्कों को 'हाली सिक्का नाम दिया गया अर्थात प्रचलित सिक्के। 1903-04 में पहली बार सिक्कों की ढलाई मशीन से शुरू हुई। इन सिक्कों पर मुख भाग में अंकित चार मीनार के साथ चारों ओर फारसी लिखावट में निजाम-उल-मुल्क बहादुर असफ़ जहां लिखा होता था । पृष्ठ भाग पर मूल्य लिखा होता था। ये सिक्के मूल्यवर्गों और धातुओं के संदर्भ में ब्रिटिश सिक्कों के समकक्ष होते थे।

अशर्फी
मुख भाग
पृष्ठ भाग
रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग
8 आना
मुख भाग
पृष्ठ भाग
4 आना
मुख भाग
पृष्ठ भाग
2 आना
मुख भाग
पृष्ठ भाग

Musm_Simple Image Card - Some Representative Coins of other Princely States

कुछ अन्य राणे-रजवाड़ों के सिक्के

दतिया राज्य के सिक्के

फरीदकोट राज्य के सिक्के

उदयपुर के सिक्के

रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग
आधा रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग
चौथाई रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग
एक बटा आठ रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग
एक बटा सोलह रुपया
मुख भाग
पृष्ठ भाग

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