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इस पृष्ठ में दी गई जानकारी वह जानकारी है जो हमारे सिक्का ढलाई की औपचारिक संरचना के पृष्ठों अर्थात इंडो-फ्रेंन सिक्कों, इंडो- पुर्तगाली सिक्कों इत्यादि में सिक्का डिजाइन अवधारणाओं (रूपांकनों), टकसाली तकनीक और साथ ही सिक्का ढलाई के इतिहास के विभिन्न पक्षों से संबंधित जानकारी में सम्मिलित नहीं हो सकी है।

दोहा अंकित सिक्के

इतिहास के प्रारंभ से ही कलाकारों द्वारा लक्ष्मी और सरस्वती (मुद्रा और म्यूजेस) के संगम के विरोध के बावजूद दोनों के बीच एक क्षीणकाय परंतु अटूट रिश्ता बना रहा है। माना जाता है कि सरस्वती और लक्ष्मी साथ-साथ नहीं रहती तथा उनमें अल्प संबंध रहता है फिर भी पूरे इतिहास में कलाकारों के विरोध के बावजूद इन दोनों का साहचर्य बना हुआ है। सामान्यतया आम जनता के बीच समकालीन उत्कीर्णकों की कला का प्रदर्शन करने में सिक्के सर्वाधिक शक्तिशाली साधन हैं। अवधारणाओं (रूपांकनों) में राजा के चित्र, व्यक्तित्वों, वीरोगित कार्य, प्राणी और वनस्पति से लेकर प्रतीकों तक की विविधता पाई जाती है। पुराने भारतीय सिक्कों का रोचक अभिनव पहलू है उत्कीर्णक द्वारा सिक्कों पर कलात्मक रूप से अंकित किया गया काव्य, गो शब्दों के अलंकरण से दृश्यात्मक संदेश को सुशोभित करता है।

गुप्त राजाओं (तीसरी से छठी शताब्दी तक) द्वारा सिक्कों पर काव्यात्मक मुद्रा-लेख (मुख्यतः प्रशंसात्मक) दिए जाने की शुरुआत की गई। उदाहरण के लिए गुप्तकालीन घुड़सवार छवि वाले सिक्कों पर काव्यात्मक ढंग से निम्नलिखित मुद्रा लेख अंकित है :

गुप्तकुलामलचन्द्रो महेन्द्र विक्रमाजितो
यह गुप्त परिवार में दागरहित चंद्रमा गैसा, अपराजेय.
महेन्द्र की तरह पराक्रमी है जो शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेता है।

इसी प्रकार चंद्रगुप्त || के सोने के सिक्कों पर वामस्थविला मान में निम्नानुसार मुद्रा-लेख पाया गया है।

नरेन्द्र चन्द्रः प्रथिता रणो रणे
•भयत्य• यो भूवि सिंहविक्रमः

राजाओं के बीच चन्द्र अपनी युद्ध कला के लिए विख्यात, सिंह की तरह
पराक्रमी, अपराजेय और रण क्षेत्र में विजय प्राप्त करनेवाला है।

मध्यकालीन अवधि में चित्रात्मक और प्रतिमात्मक अवधारणाओं की जगह धीरे-धीरे अमूर्त डिजाइन और लिखावट की कला ने ले ली। कला के ये रूप सिक्कों पर काव्य प्रतिभा अंकित करने के लिए विशेष रूप से सहायक साधन बन गए। तथापि संदेशों में राजा की अधिकाधिक प्रशंसा ही की जाती रही मुहम्मद शाह II (1442-1451 ई.) के सिक्कों पर गुजरात के सुल्तान ने निम्नानुसार दोहा मुद्रित किया जो अपनी तरह का पहला उदाहरण है।

सिक्का-ए-सुलतान गियासुद्दीन मुहम्मद शाह बाद
ता बदर गर्व गर्दन कुर्स ई- मिहिर ओ माह

जब तक सूरज चांद जन्नत के खजाने में रहेंगे
सुल्तान गियासुद्दीन मुहम्मद शाह के सिक्केबने रहेंगे।

यह काव्य परंपरा मुगलों द्वारा नारी रखी गई और औरंगजेब के समय तक दोहे सिक्कों के डिजाइन का अंतर्निहित भाग बन चुके थे। बादशाह जहांगीर ने बेगम नूरजहां (विश्व का प्रकाश) के नाम से सिक्के शुरू किए भिन पर उत्कीर्णित अनूठा दोहा पढ़ा जा सकता है:

बा हुक्म शाह जहांगीर याफता सत जेवर
वा नाम-ए-नूर जहां बादशाह बेगम जेर

नूर जहाँ, बादशाह बेगम (सम्राजी) के नाम के मुद्रा लेख के साथ शाह जहांगीर के आदेश से जारी (सिक्का).
(इस) सोने के हाथ की सौ विशेषताएं हैं।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने काव्यात्मक दोहों की परंपरा जारी रखी। शाह आलम II के नाम मुर्शिदाबाद में जारी मुहर पर निम्नलिखित दोहा मुद्रित है।

सिक्का जद बार हफ्त किश्वर साया फजले इलाह
हमी दीन-ए-मुहम्मद शाह आलम बादशाह

धर्मरक्षक शाह आलम द्वारा जारी सिक्के अल्लाह की कृपा से
सात देशों में प्रचलित बने रहें

वर्ष 1835 में इंग्लिश प्रकार के सिक्के जारी किए जाने के साथ धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त हो गई।

दोहा अंकित सिक्का

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