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प्रारंभिक शृंखलाएं
जैसाकि हम जानते हैं, भारत में कागजीमुद्रा का आरंभ अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। मुगल साम्राज्य के धराशायी हो जाने के कारण यह समय अत्यधिक राजनितिक उथल- पुथल और उपनिवेशवादी शक्तियों के उदय का था। राशक्ति ढांचे में परिवर्तन, क्रांति, युद्ध और उपनिवेशवाद के पांव पसारने के कारण देशी बैंकरों को ग्रहण लग गया और भारत में उनके पास जो भारी धन था वह ऐसे एजेंसी हाउस के हाथ में चला गया जिन्हें राज्य का समर्थन प्राप्त था। कई एजेंसी हाउस ने बैंकों की स्थापना की।
नोटों के प्रारंभिक निर्गमकर्ताओं में जनरल बैंक ऑफ बंगाल एण्ड बिहार ( 1773-75 ) था जो एक राज्य प्रायोजित संस्था थी और जिसमें स्थानीय विशेषज्ञों की सहभागिता थी। इन नोटों को सरकारी समर्थन प्राप्त था। सफल और लाभप्रद होते हुए भी बैंक को सरकार की ओर से बंद कर दिया गया और वह अल्पजीवी रही। एलेक्वेंडर एजेंसी हाउस द्वारा बैंक ऑफ हिन्दोस्तान (1770-1832) की स्थापना की गई और यह कंपनी विशेष रूप से सफल रही। तीन बार जनता का विश्वास खो चुकने के बाद भी वह बनी रही। अंत में जब इसकी मूल फर्म मेसर्स एलेक्डर एण्ड कंपनी 1832 में वाणिज्यिक संकट में डूबी तब इसी के साथ बैंक ऑफ हिन्दोस्तान भी डूब गया। बैंक नोटों के परिचालन में सरकारी समर्थन और राजस्व भुगतान में नोटों की स्वीकार्यता अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटक है। तथापि, बैंक नोटों का व्यापक प्रयोग अर्ध-सरकारी प्रेसिडेन्सी बैंकों द्वारा जारी किए गए नोटों के साथ चलन में आया। इसमें सर्वाधिक उल्लेखनीय है बैंक ऑफ बंगाल जिसकी स्थापना 50 लाख सिक्का रुपया की पूंजी के साथ 1806 में बैंक ऑफ कलकत्ता के रूप में की गई थी। इन बैंकों की स्थापना सरकारी चार्टर द्वारा की गई थी और इनका सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध था। इन बैंकों को अपने- अपने सर्किल में परिचालन के लिए नोट जारी करने के विशेषाधिकार चार्टर के तहत दिए गए थे।
बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए नोटों को मोटे तौर पर 3 श्रृंखलाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है: यूनिफेस्ड' शृंखला, वाणिज्य शृंखला और ब्रिटानिया' शृंखला। बैंक • ऑफ बंगाल के प्रारंभिक नोट यूनिफेस्ड थे और एक स्वर्ण मुहर (कलकत्ता में सोलह सिक्का रुपए) के रूप में और उन्नीसवीं शताब्दी की प्रारंभिक अवधि में सुविधाजनक मूल्यवर्गों में अर्थात 100 रुपए, 250 रुपए, 500 रुपए, आदि में जारी किए गए थे।
बैंक ऑफ बंगाल के यूनिफेस्ट नोट
बाद में बैंक ऑफ बंगाल के नोटों पर बेलबुटे की डिजाइन में लाक्षणिक स्त्री की प्रतिमा उकेरी जाने लगी जो घाट पर बैठकर किए जानेवाले 'वाणिज्य को साकार करती थी। नोटों को दोनों तरफ मुद्रित किया गया था। मुख भाग पर बैंक का नाम और मूल्यवर्ग तीन लिपियों उर्दू, बांगला और नागरी में मुद्रित किया गया था। ऐसे नोटों के पृष्ठभाग में अलंकरण के साथ बैंक का नाम दर्शाने वाली पट्टी मुद्रित की गई थी। उन्नीसवीं शताब्दी की मध्यावधि में "वाणिय' अभिधारणा का स्थान ब्रिटानिया ने ले लिया। गालसाभी की आशंका का निर्मूलन करने के लिए इन नोटों में जटिल आकृतियाँ और बहुविध रंग होते थे।
दूसरे प्रेसिडेन्सी बैंक की स्थापना 1840 में बंबई में की गई जिसका प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र के रूप में विकास हुआ। बैंक का इतिहास विविधतापूर्ण है। कपास के भावों में तेजी रुक पाने के कारण आए संकट से 1868 में बैंक ऑफ बॉम्बे बंद हो गया। तथापि उसी वर्ष उसका पुनर्गठन किया गया। बैंक ऑफ बॉम्बे द्वारा जारी किए गए नोटों पर टाउन हॉल और माउंटस्टुअर्ट एलफिन्स्टन तथा जॉन मॅल्कोल्म के चित्र मुद्रित किए गए थे।
बैंक ऑफ बॉम्बे द्वारा जारी किए गए नोट
वर्ष 1843 में स्थापित बैंक ऑफ मद्रास तीसरा प्रेसिडेन्सी बैंक था। जितने भी प्रेसिडेन्सी बैंक थे, उनमें सबसे कम नोट इस बैंक ने जारी किए। बैंक ऑफ मद्रास के नोटों पर मद्रास के गवर्नर (1817-1827) सर थॉमस मुनरो का चित्र मुद्रित किया गया था ।
बैंक नोट जारी करनेवाले अन्य निजी बैंक थे ओरिएंट बैंक कारपोरेशन जिसकी स्थापना 1842 में पश्चिमी भारत के बैंक के रूप में बंबई में की गई थी। इसके नोटों पर बंबई के टाउन हाल का आकर्षक मित्र था कमर्शियल बैंक ऑफ इंडिया जिसकी स्थापना 1845 में बंबई में की गई थी (जो विनिमय बैंक भी था ) ने पश्विमी और पूर्वी अवधारणाओं का संमिश्रण करते हुए बिल्कुल ही अलग तरह के असाधारण नोट जारी किए। वर्ष 1866 की भारी गिरावट की चपेट से बैंक बंद हो गया। कागजी मुद्रा अधिनियम 1861 ने इन बैंकों को नोट जारी करने के अधिकार से वंचित किया परंतु प्रेसिडेन्सी बैंक को सरकारी शेष का प्रयोग करते रहने दिया गया और प्रारंभ में उन्हें भारत सरकार की नोट शृंखलाओं का प्रबंध करने का अधिकार दिया गया।