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Musm_Simple Image Card - Other Issues - Burma Issues

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उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक के भारत को मोटे तौर पर ब्रिटिश भारत रियासतों, पुर्तगाली क्षेत्र (गोवा, दमण और दीव) तथा पांडिचेरी के फ्रेंच क्षेत्र में विभाजित किया जा सकता है।

जहाँ कई रियासतें अपने स्वयं के सिक्के जारी कर रही थीं, केवल दो जम्मू और कश्मीर तथा हैदराबाद रियासतों ने वास्तविक रूप से कागजीमुद्रा जारी की पुर्तगाली और फ्रेंच दोनों क्षेत्रों ने कागजी मुद्रा जारी की बर्मा, जहां रंगून में रिजर्व बैंक का कार्यालय था, 1 अप्रैल 1937 से राजनीतिक रूप में भारत से अलग हो गया । इंडो-बर्मा मौद्रिक व्यवस्थाओं के तहत रिजर्व बैंक बर्मा की मुद्रा का प्रबंधन करता रहा।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई छोटी-छोटी रियासतों ने सिक्कों के स्थान पर सांकेतिक आपातकालीन टोकन जारी किए जिन्हें 'नकद कूपन' माना जाता था जापानियों का कब्जा समाप्त होने के बाद विनिमय की सुविधा के लिए बर्मा में भी आपातकालीन मुद्रा जारी की गई।

पारंपरिक रूप से फारस की खाड़ी के क्षेत्र में भारतीय मुद्रा व्यापक रूप से चलन में रही है। भारत ने भी फारस की खाड़ी के क्षेत्र में परिचालन के लिए नोट तथा हज यात्रियों के लिए विशेष नोट जारी किए हैं।

बर्मा के लिए जारी नोट

नोट निर्गम के इतिहास का सर्वाधिक कौतूहल भरा विषय यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए नोट भारत में वैध मुद्रा नहीं थी। बर्मा की राजधानी रंगून मुद्रा नियंत्रक के मूल मुद्रा सर्किल कार्यालयों में से एक था। बर्मा 1938 में भारत से अलग हो गया, तथापि भारतीय रिजर्व बैंक ने बर्मा सरकार के बैंकर के रूप में कार्य किया और वह बर्मा मौद्रिक व्यवस्था आदेश, 1937 के अनुसार नोट जारी करने के लिए उत्तरदायी था। बैंक ने मई 1938 में केवल बर्मा के लिए नोट जारी किए जो भारत में वैध मुद्रा नहीं थी। जून 1942 में जापानियों ने बर्मा पर कब्जा किया जो 1945 तक बना रहा। तदनंतर बर्मा के मौद्रिक मामलों को बर्मा का ब्रिटिश सैनिक प्रशासन देखता था। रिजर्व बैंक ने अपना रंगून कार्यालय 1945 में फिर से प्रारंभ किया और 1 अप्रैल 1947 तक बर्मा सरकार के बैंकर के रूप में कार्य किया।

भारतीय रिजर्व बैंक, रंगून कार्यालय
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वर्मा के लिए जारी नोट

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Emergency Issues Princely States

रियासतों के लिए आपातकालीन शृंखला नकद कूपन

दूसरे विश्व युद्ध के कारण संसाधनों पर युद्ध का प्रभाव हुआ। टकसाल भी इसका अपवाद नहीं थे और उनकी क्षमता का अधिकाधिक दोहन शाही प्रयोजनों के लिए सिक्के की ढलाई करने में किया जाने लगा। पूरे भारत में 1942 तक छोटे सिक्कों की अत्यधिक कमी महसूस की जाने लगी थी। जहां ब्रिटिश भारत ने डाक प्रतिनिधियों के साथ व्यवस्था की वहीं पश्चिमी भारत की छोटी-छोटी रियासतों जैसे बल्वा बीकानेर, बूंदी, गोंडल, इंदरगढ़, गूनागढ़, जसदान, कच्छ मेंगनी, मुली, मोरवी, मंग्रोल, नवानगर, नवलगढ, पलिताना, राजकोट, सैलाना, सायला, विलगढ़ ने कमी पूरी करने के लिए सांकेतिक नकद कूपन जारी किए। अधिकांश नकद कूपन मुद्रण फलक पर अपरिष्कृत रूप से मुद्रित किए गए थे। भारतीय कागजी मुद्रा के इतिहास में उनका स्थान आपातकालीन मुद्रा (आपातकालीन शृंखला) के रूप में है। प्रसंगवश केवल दो रियासतों ने कागजी मुद्रा जारी की जम्मू और कश्मीर ने - 1876 में और हैदराबाद ने 1918 से यद्यपि कच्छ सरकार ने मुद्रा नोटों के नमूने तैयार किए थे परंतु उन्हें जारी नहीं किया गया।

बूंदी ( अब राजस्थान में)
बीकानेर (अब राजस्थान में)
जूनागढ़ राज्य (अब गुजरात में)
मॅगनी (अब गुजरात में)
नवानगर (अब गुजरात में)
सैलाना राज्य (अब मध्य प्रदेश में)
सायला राज्य (अब गुजरात में)

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Haj Issues

हज शृंखला

भारत सरकार ने हज यात्रियों के लिए भारत से सऊदी अरब जाने वालों के लिए नोट जारी किए। ये नोट दस रुपए और सौ रुपए के मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे और नोट के मुख भाग पर 'हज' अक्षर मुद्रित किया गया था। नोटों पर क्रम संख्या के पहले एचए' अक्षर थे। इन नोटों को तब बंद कर दिया गया जब केवल खाड़ी के देशों में प्रचलन के लिए जारी नोटों को चलन से वापस लिया गया।

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Hyderabad Issues

हैदराबाद की शृंखलाएं

मीर कमर-उद्-दीन ने 1724 के आस-पास, जब वह दक्खन का वजीर था, असफ जहाँ की उपाधि से स्वयं को विभूषित करते हुए स्वतंत्रता प्राप्त कर ली और हैदराबाद रियासत की स्थापना की तथा हैदराबाद के निजामों का राजवंश स्थापित किया। 1857 के बाद के समय हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी और बाद में उसे परम महामहिम निजाम का 'स्वतंत्र उपनिवेश' के नाम से जाना जाने लगा। इस रियासत में आज के आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के क्षेत्र सम्मिलित थे, जिनका विलय भारतीय संघ में किया जा चुका है। मुद्रा और सिक्कों के संबंध में निजामों के सिक्के 1858 तक मुगल बादशाह के नाम में जारी किए गए। इसके बाद वे स्वतंत्र रूप से जारी किए गए और नये सिक्कों का नाम रखा गया 'हाली सिक्का' अर्थात वर्तमान सिक्का । जहाँ तक कागजीमुद्रा का संबंध है हैदराबाद सरकार ने निजी बैंकरों और स्थानीय साहूकारों को संगठित करते हुए ऐसी बैंकिंग कंपनी स्थापित करने के लिए अपनी तरफ से कई प्रयास किए जो अन्य कार्य के साथ कागजी मुद्रा जारी कर सके। भारतीय रायों द्वारा कागजीमुद्रा जारी किए जाने के प्रति ब्रिटिश सरकार के प्रतिरोध के कारण कागजी मुद्रा जारी करने के इस रियासत के सभी प्रयास विफल रहे। पहले विश्व युद्ध के संकट, ब्रिटिश सरकार की लड़ाई के प्रयास में भारतीयों और हैदराबाद के द्वारा दिए गए योगदान और उप महाद्वीप में चांदी में आई तीव्र कमी के कारण इस रियासत का कागजी मुद्रा जारी करने का मार्ग 1918 में प्रशस्त हुआ और उसने हैदराबाद मुद्रा अधिनियम के अधीन कागजी मुद्रा जारी की नोटों को 100 रुपए और 10 रूपए के मूल्यवर्गों में जारी किया गया। मुद्रा का नाम उस्मानिया सिक्का निर्दिष्ट किया गया और नोटों की छपाई मेसर्स वॉटलू एण्ड सन्स द्वारा की गई। बाद में 1919 में एक रुपया और पांच रुपए के नोट जारी किए गए और 1926 में एक हजार रुपए के नोट जारी किए गए। नासिक में भारतीय मुद्रा नोट प्रेस स्थापित किए जाने के बाद हैदराबाद के नोटों का मुद्रण भी मितव्ययिता और सुरक्षा के कारणों से वहीं होने लगा। हैदराबाद रियासत पुलिस कार्रवाई के बाद भारतीय संघ में सम्मिलित होने पर सहमत हो गई। उस्मानिया सिक्के का 1959 में विमुद्रीकरण किया गया। भाषावार राज्यों का पुनर्गठन किए जाने के साथ ही हैदराबाद राज्य का अस्तित्व समाप्त हो गया।

पांच रुपए के नोट (मुख भाग और पृष्ठ भाग )
दस रुपए के नोट (मुख भाग और पृष्ठ भाग )

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Indo-French Issues

इंडो-फ्रेश शृंखलाएं

भारत और पूरब में व्यापार संबंध स्थापित करने में पुर्तगालियों ने फ्रांसीसियों की प्रारंभिक योजनाओं को विफल किया। वर्ष 1664 में लुईस XIV के शासनकाल में फ्रांसीसी वित्त मंत्री जीन बाप्टिस्ट कॉल्बर्ट को पहली अर्थक्षम फ्रांसीसी कंपनी (फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी) स्थापित करने में सफलता मिली। कंपनी ने पश्चिमी भारत में सूरत में अपनी एक फैक्टरी स्थापित की और 1674 में पांडिचेरी अधिग्रहीत करते हुए दक्षिण भारत में अपने पाँव जमाए। मुगल साम्राज्य के विघटन और इससे उपजे शून्य को भरने के लिए स्थानीय राजशक्तियों में लगी आपसी होड़ के कारण अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को भारत में अंग्रेणी- फ्रांसीसी संघर्ष प्रारंभ करने के लिए जमीन मिल गई। इसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसियों ने अपने अधिकतर क्षेत्र गवाएं। फ्रांसीसी क्षेत्र भारतीय संघ को अंतरित किए गए। वास्तव में पांडिचेरी का अंतरण । नवंबर 1954 को किया गया और कानूनन यह अंतरण 28 मई 1956 को हो गया। बैंक डी ल इन्डोचीन ने डिक्रियों के अधीन, जिसका उल्लेख नोटों पर है, फ्रांसीसी इंडिया के लिए कागजी मुद्रा जारी की। सबसे पहले रूपी मूल्यवर्ग के नोट 1898 में जारी किए गए। एक रूपी में 8 फेनोन्स' होते थे और एक फेनोन दो आनों के बराबर था ये 50 और 10 के मूल्यवर्गों में थे। पहले विश्व युद्ध के तुरंत बाद एक रुपया के नोट जारी किए गए। भारत में फ्रांसीसियों के साम्राज्य की नींव डालनेवाले डुप्लीक्स का चित्र 50 रुपए के नए नोटों पर अंकित किया गया था। ये नोट 1954 में भारतीय मुद्रा के प्रचलन में आने तक चलन में थे।

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Indo-Portuguese Issues

इंडो- पुर्तगाली शृंखलाएं

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी और ई चौथी शताब्दी के बीच यूनानी और रोमन सभ्यता के साथ भारत के बहुत ही व्यापक संबंध थे। अलेक्सेंडर द्वारा पंजाब पर किए गए आक्रमण से यूनानी संबंधों को और अधिक मजबूती मिली तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार के कारण रोमन साम्राज्य के साथ गहरे संबंध स्थापित हो गए। पश्चिम के साथ नये संबंधों का आरंभ पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा के 1948 में कालिकत में प्रवेश के साथ हुआ। फ्रान्सिस्को डी अलमेडा और अफान्सो डी अल्बुकर्क ने भारत और पूरब में पुर्तगाली राजशक्ति स्थापित करने और उसे मजबूत करने में सहायत की। पश्चिमी भारत में गोवा क्षेत्र पर 1510 में आधिपत्य प्राप्त किया गया। एक शताब्दी से भी अधिक समय तक भारत के साथ व्यापार में पुर्तगालियों का वास्तविक रूप से एकाधिकार रहा डच और अंग्रेजों के आगमन से उनका यह एकाधिकार भंग हुआ। तथापि उन्होंने 1961 तक गोवा, दमण और दीव क्षेत्रों पर अपना अधिकार बनाए रखा। पहली इंडो- पुर्तगाली कागजी मुद्रा लगभग 1883 में रुपिया मूल्यवर्ग के नोटों में जारी की गई। इन नोटों पर पुर्तगाली राणा का चित्र छापा गया था। ये नोट 5, 10, 20, 50, 100 और 500 के मूल्यवर्गों में थे। भारत में पुर्तगाली शासित क्षेत्रों के लिए कागजी मुद्रा जारी करने की जिम्मेदारी 1906 में 'बको नेसियोनाल अल्टामेरिनो को सौंपी गई। बैंक द्वारा जारी प्रारंभिक नोटों पर बैंक की मुद्रा अंकित होती थी। वर्ष 1917 में 4 टांगा, 8 टांगा और रुपिया तथा 2½ रु पिया के नये मूल्यवर्ग की मुद्रा जारी की गई। अधिकतर शृंखलाओं पर वाणिज्य और पानी पर चलते जहाजों की अवधारणा अंकित की गई थी, जो कई उपनिवेशवादी शृंखलाओं में समान बात थी। कुछ नोटों पर भारतीय प्रतीक और अवधारणाएं (वास्तुशिल्पीय और दुर्लभ प्राणी) अंकित की गई थीं। बाद के नोटों में अफान्सो डी अल्बुकर्क के चित्र अंकित थे। गोवा में प्रचलित मुद्रा प्रणाली रेइस, टांगा और रुपिया थी और एक रुपिया 16 टांगों से बनता था। 1959 में मूल्यवर्गीय इकाई रुपिये से बदलकर एस्क्यूडो हो गई जिसमें एक एस्क्यूडो 100 सेंट एवोज का होता था। 30, 60, 100, 300, 600 और 1000 के मूल्यवर्गों में नये नोट प्रारंभ किए गए। ये नोट 1961 तक चलन में थे। जब गोवा का विलय भारतीय संघ में किया गया तब इन नोटों का स्थान भारतीय मुद्रा ने ले लिया।

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Jammu & Kashmir Issues

जम्मू और कश्मीर शृंखला

मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही अफगानों और बाद में 1819 में सिक्खों और इसके बाद ब्रिटिशों ने 1845 में कश्मीर पर कब्जा किया। ब्रिटिशों ने 1846 में गुलाब सिंह को जम्मू और कश्मीर के मुख्य जागीरदार के रूप में समर्थन दिया। महाराजा ने 1947 में तत्कालीन भारत के अधिराज्य में विलय करने का निर्णय लिया।

महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में 1877 में वाटरमार्क पेपर पर कागजी मुद्रा जारी की गई। ये नोट अधिक लोकप्रिय नहीं थे और बहुत ही छोटी अवधि के लिए चलन में रहे। इन नोटों पर डोगरा परिवार के अधिष्ठाता सूर्य को अंकित किया गया था।

Musm_Simple Image Card - Other Issues - Persian Gulf Issues

फारस की खाड़ी के लिए शृंखला

भारतीय रुपया और बाद में कागजी मुद्रा की शृंखलाएं पारंपरिक रूप से फारस की खाड़ी में प्रचलन में बनी रही। इन क्षेत्रों में बैंकों द्वारा रिजर्व बैंक को ये नोट प्रस्तुत किए जाने पर समकक्ष विदेशी मुद्रा में प्रतिदेय होते थे।  

स्वतंत्रता प्राप्त करने के समय भारत के पास विदेशी मुद्रा की स्थिति संतोषजनक थी। विकास की आकांक्षा और बती मांग से विदेशी मुद्रा स्थिति पर काफी दबाव आ गया। विदेशी मुद्रा की अपर्याप्तता की स्थिति के कारण खाड़ी के साथ पारंपरिक मुद्रा व्यवस्थाओं को काम में लाने की संभावनाओं की तलाश की गई। कुप्रथाओं का निवारण करने अथवा कम से कम उन्हें न्यूनतम करने के रूप में केवल खाड़ी (कुवैत, बहरिन, कतार और टुशियाल राज्यों (अब संयुक्त अरब अमीरात) में चलन हेतु 1950 के दशक में भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोटों की अलग शृंखला जारी की गई नोटों का सम-सामयिक डिजाइन यथावत था परंतु उनका रंग अलग था और उन पर 'जेड' उपसर्ग था। ये नोट एक रुपया, दस रुपए और सौ रुपए के मूल्य वर्गों में जारी किए गए थे और केवल निर्गम के बंबई कार्यालय में प्रतिदेय थे। जैसे-जैसे खाड़ी के देशों ने अपनी स्वयं की मुद्रा जारी करनी शुरु किया वैसे-वैसे 1960 के दशक के प्रारंभ से समय के साथ-साथ ये नोट हटा लिए गए और 1970 तक उनका प्रयोग समाप्त हो गया।

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