द करेंसी म्यूजियम, मुंबई - एक्सप्लोर द कलेक्शन पेज - मुगल कोइनेज - आरबीआई - Reserve Bank of India
मुगलकालके सिक्के
तकनीकी रूप से देखा जाए तो भारत में मुगलकाल का आरंभ 1526 ई. में हुआ जब बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराया तथा 1857 ई. में इसका अंत तब हुआ जब सबसे बड़ी क्रांति के पश्चात अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफ़र को ब्रिटिश ने गद्दी से हटा दिया और देश निकाला कर दिया। शाह आलम-II के बाद के बादशाह केवल नाममात्र के बादशाह रह गए थे।
मुगलों का सर्वाधिक बड़ा योगदान था पूरे साम्राज्य में सिक्कों की प्रणाली में एकरूपता और समेकन लाना। यह प्रणाली मुगलों के पूरी तरह समाप्त होने के बाद लंबे समय तक अमल में रही तीन धातुओं की प्रणाली, जिसके कारण मुगलकाल के सिक्कों की पहचान बनी, मुख्य रूप से शेर शाह सूरी (1540 से 1545 ई.), जो अफगानी था और जिसने दिल्ली पर अल्पकाल के लिए शासन किया, की देन थी न कि मुगलों की शेर शाह ने चांदी का सिक्का जारी किया जिसका नाम था रुपया इसका वजन 178 ग्रेन था और यह आधुनिक रुपया का जनक था। यह 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक उसी रूप में प्रचलन में रहा। चांदी के रुपए के साथ ही स्वर्ण सिक्के भी जारी किए गए, जिन्हें मुहर के नाम से जाना जाता था और जिनका वजन 169 ग्रेन था तथा ताम्र के सिक्के भी जारी किए गए जिन्हें दाम नाम से जाना जाता था।
सिक्कों की डिजाइन और उनकी ढलाई की बात जब भी आती है, मुगलकालीन सिक्कों में मूल डिजाइन और नवोन्मेषी प्रतिभा को झलक पाई जाती है। मुगलकाल के सिक्कों में परिपक्वता अकबर महान के शासनकाल में आई। डाइ पर फूलपत्तियों के अलंकरणों की सजावटवाली पृष्ठभूमि लाने जैसे नवोन्मेषी कार्य प्रारंभ किए गए। जहाँगीर ने अपने सिक्कों में व्यक्तिगत रुगि ली थी। प्रचलन में बने रहे बड़े आकारवाले ये सिक्के विश्व में जारी किए गए सिक्कों में सर्वाधिक थे। राशिनक्र से संबंधित चिह्न, चित्र और साहित्यिक उक्तियां और उत्कृष्ट प्रकार की लिखावट, जो उसके सिक्कों की विशेष पहचान बन चुके थे, के कारण मुगलकाल के सिक्कों ने नई ऊंचाइयां प्राप्त की।
मुगल साम्राज्य के सिक्के
शाहजहाँ के प्रारंभिक शासनकाल में सिक्कों के विभिन्न प्रकारों की सर्वाधिक बड़ी शृंखला बनी सिक्कों की डिजाइन में मानकीकरण उसके शासन के उत्तरार्द्ध में आया मुगल साम्राज्य का अंतिम बादशाह औरंगजेब अपने तौर-तरीकों को लेकर हठी था और अपने पुरातनवादी विचारों का कायल था उसने कलीमा, जो इस्लामी मत का लेख था, को अपने सिक्कों से हटवा दिया तथा सिक्कों के फॉर्मेट को इस प्रकार मानकीकृत किया कि उनमें शासक का नाम, टकसाल का नाम और उसे जारी करने की तारीख लिखी जाने लगी।