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वापस प्रवर्तन विभाग

अवलोकन

भारतीय रिजर्व बैंक को बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में लागू विभिन्न क़ानूनों के तहत दंड लगाने का अधिकार प्राप्त है। प्रवर्तन प्रक्रिया विभिन्न पर्यवेक्षी / विनियामक विभागों में फैली हुई थी। अप्रैल 2017 में प्रवर्तन विभाग की स्थापना, अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुसरण में विनियामक / पर्यवेक्षण प्रक्रिया से प्रवर्तन कार्रवाई को अलग करने के लिए की गई थी ताकि विनियमित संस्थाओं द्वारा उल्लंघनों की पहचान करके उस पर कार्रवाई के लिए एक संरचित, नियम आधारित दृष्टिकोण तैयार किया जा सके और सभी संस्थाओं में समान रूप से उसे लागू किया जा सके।

विभाग का मुख्य कार्य रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं के विरुद्ध पर्यवेक्षण रिपोर्टों और विनियामक संदर्भों के आधार पर उद्देश्यपूर्ण और सुसंगत तरीके से प्रवर्तन कार्रवाई करना है ताकि एक वित्तीय प्रणाली स्थिरता के व्यापक नियमों का अनुपालन, अधिक से अधिक सार्वजनिक हित और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा प्रवर्तन नीति में अन्य बातों के साथ-साथ उल्लंघनों के महत्व के निर्धारण के लिए विचारणीय कारकों और जुर्माना की राशि के निर्धारण के लिए वित्तीय पर्यवेक्षण के लिए बोर्ड की मंजूरी पर तैयार ढांचे को शामिल किया गया है।

प्रारंभ में, विभाग को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (बीआर अधिनियम) की धारा 47 ए के तहत बनाए गए नियम और दिशानिर्देश/ विनियम तथा रिज़र्व बैंक द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के संबंध में जारी निदेश के तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) को उल्लंघनों के लिए मौद्रिक दंड लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके बाद, बीआर अधिनियम के तहत सहकारी बैंकों तथा रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 58जी के तहत गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफ़सी) से संबंधित प्रवर्तन कार्य भी 3 अक्तूबर 2018 से प्रभावी रूप में विभाग के कार्यक्षेत्र में लाया गया। रिज़र्व बैंक को भुगतान और भुगतान प्रणाली अधिनियम, 2007 की धारा 30, फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 की धारा 22, ऋण सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 25 और सरफ़ेसी अधिनियम, 2002 की धारा 30 क के तहत विनियमन अधिनियम के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने का अधिकार है। विभाग को एससीबी, सहकारी बैंकों और एनबीएफसी द्वारा उल्लंघनों के लिए उक्त अधिनियमों के तहत प्रवर्तन कार्रवाई करने के लिए भी अधिदेश दिया गया है। संबंधित विनियामक / पर्यवेक्षी विभागों द्वारा फेमा, 1999 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए मौद्रिक दंड और अन्य विनियामक या पर्यवेक्षी कार्रवाई की जाती रहेगी।

प्रवर्तन कार्रवाई की प्रक्रिया में विनियमित इकाई को कारण बताओ नोटिस जारी करना और इसे 'उचित प्रक्रिया' वाले प्रासंगिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप सुनने का एक उचित अवसर प्रदान करना शामिल है। वर्तमान में कार्यपालक निदेशकों की तीन सदस्यीय समिति मामले से संबंधित न्याय-निर्णयन करती है और सकारण (स्पीकिंग) आदेश पारित करती है। प्रवर्तन कार्रवाई का विवरण प्रेस प्रकाशनियों और रिज़र्व बैंक के विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।

वर्तमान में आरबीआई को प्रवर्तन कार्रवाई करने में सक्षम करने वाली विधि केवल विनियमित संस्थाओं पर, न कि संस्थाओं के प्रभारी या उल्लंघन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर, मौद्रिक दंड लगाने का अधिकार देती है । यह भी नोट किया जाए कि प्रवर्तन प्रक्रिया ग्राहक शिकायत निवारण की व्यवस्था नहीं है। तथापि, संबंधित पर्यवेक्षी विभाग द्वारा जांच के निष्कर्षों के आधार पर संभावित प्रवर्तन कार्रवाई के लिए उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की जांच की जाती है।

विभाग के छह क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, नागपुर और नई दिल्ली में स्थित हैं।

कार्यपालकों से संपर्क करें

  • श्रीमती मिनल अ. जैन

    प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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जारी आंकड़े

इस खण्‍ड में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था, बैंकिंग और वित्‍त के विभिन्‍न पहलुओं से संबंधित आँकड़े दिये गये हैं। जहां विद्यमान विगत एक वर्ष के आँकड़ों के रूप में परिभाषित किए गये हैं और वे नीचे दिये गए लिंक पर उपलब्‍ध हैं वहीं अनुसंधानकर्ता इस पृष्‍ठ पर दिये गए भारतीय अर्थव्‍यवथा का डाटाबेस लिंक पर आँकड़ा श्रृंखला भी प्राप्‍त कर सकते हैं।

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: जुलाई 15, 2025

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