मास्टर परिपत्र - वित्तीय संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने संबंधी मानदंड - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - वित्तीय संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने संबंधी मानदंड
आरबीआई/2014-15/102 1 जुलाई 2014 अखिल भारतीय मीयादी ऋणदात्री तथा पुनर्वित्त प्रदान महोदय मास्टर परिपत्र - वित्तीय संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने संबंधी मानदंड कृपया उपर्युक्त विषय पर 1 जुलाई 2013 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. एफआइडी.एफआइसी.1/ 01.02.00/2013-14 देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2014 तक उक्त विषय पर जारी किये गये सभी अनुदेशों / दिशानिर्देशों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है। यह मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध कराया गया है। 2. यह नोट किया जाए कि अनुबंध 4 में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित अनुदेशों को इस मास्टर परिपत्र में समेकित किया गया है । भवदीय (सुदर्शन सेन) अनुलग्नक : यथोक्त वित्तीय संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने संबंधी मानदंड पर मास्टर परिपत्र उद्देश्य विशेषीकृत वित्तीय संस्थाओं को अपनी अल्पावधि तथा दीर्घावधि संसाधन आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सहायता देने के लिए ताकि वित्तीय संस्थाओं को उनकी संबंधित संविधि के अनुसार जिन परिचालनों, उद्देश्य तथा लक्ष्यों के साथ स्थापित किया गया था उनसे संबद्ध ऋण की क्षेत्रीय आवश्यकताओं को वित्तीय संस्थाएं पूरा कर सकें। इस परिपत्र का उद्देश्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा बॉण्ड जारी करने के संबंध में उनके बीच विनियामक मानदंडों में व्यापक एकरूपता लाकर उन्हें एक समान अवसर दिलाना भी है। पिछले अनुदेश इस मास्टर परिपत्र में अनुबंध 4 में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित वित्तीय संस्थाओं द्वारा संसाधन जुटाने के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए सभी अनुदेशों /दिशानिर्देशों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है। प्रयोज्यता सभी अखिल भारतीय मीयादी ऋणदात्री तथा पुनर्वित्त प्रदान करनेवाली संस्थाएं अर्थात, भारतीय निर्यात-आयात बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, राष्ट्रीय आवास बैंक तथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक। नब्बे के दशक के आरम्भ से भारतीय वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया का अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं (एफ आइ) के संसाधन जुटाने पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारतीय रिज़र्व बैंक की दीर्घकालीन परिचालन (एलटीओ) निधि से वित्तीय संस्थाओं को निधियां प्रदान करने को धीरे-धीरे समाप्त किए जाने तथा उन्हें एसएलआर बांड के आबंटन की प्रणाली समाप्त किए जाने से, वित्तीय संस्थाएं बांड जारी कर (सार्वजनिक और निजी तौर पर आबंटित दोनों तरह के निर्गमों के ज़रिए) बाजार से संसाधन जुटा रही हैं। बाज़ार से बांडों के ज़रिए दीर्घावधि संसाधन जुटाने के लिए कुछ वित्तीय संस्थाएं सांविधिक निकाय होने के नाते सेबी से अनुमोदन लेती थीं, जबकि अन्य लिमिटेड कंपनियां होने के नाते भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमोदन लेती थीं । इस संबंध में एकरूपता सुनिश्चित करने की दृष्टि से यह निर्णय किया गया कि सभी वित्तीय संस्थाओं को, चाहे वे सांविधिक निकाय हों या लिमिटेड कंपनियां, 1998 से भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियमों के अधीन लाया जाए। ऐसे अन्य परिवर्तन जिन्होंने वित्तीय संस्थाओं की संसाधन जुटाने की क्षमता को प्रभावित किया है, उनमें प्रगामी रूप से विनियमन को हटाना, ब्याज दर स्वैप तथा वायदा दर करार (आइआरएस/एफआरए) जैसे रक्षा प्रदान करनेवाले लिखत शुरू करना, आस्ति देयता प्रबंधन (एएलएम) प्रणाली लागू करना आदि शामिल हैं। पूर्वोक्त गतिविधियों के कारण वित्तीय संस्थाओं के संसाधन जुटाने, खास तौर से बांड जारी करने के जरिए, संबंधी दिशानिर्देशों की समीक्षा की ज़रूरत हुई और भारतीय रिज़र्व बैंक ने 21 जून 2000 को इन दिशानिर्देशों को संशोधित किया। वित्तीय संस्थाओं से बांड निर्गम के संबंध में प्राप्त संदर्भों पर शीघ्र निर्णय लेने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक ने एक `स्थायी समिति' गठित की है जिसमें संबंधित वित्तीय संस्थाओं के नामिती को भी आमंत्रित किया जाता है। संबंधित वित्तीय संस्था से अनुरोध प्राप्त होने के दिन या अगले दिन स्थायी समिति की बैठक आयोजित की जाती है। वित्तीय संस्थाओं से अपेक्षित है कि वे प्रस्तावित बांडों के निर्गम के पूरे ब्यौरे भेजें जिनमें जुटायी जानेवाली राशि, उसे जुटाने का तरीका, वह प्रयोजन जिसके लिए निधियों का उपयोग किया जायेगा प्रस्तावित निर्गम के विशेष तत्व जैसे बिक्री/खरीद विकल्प आदि तथा बांडों पर परिपक्वता आय (वाइटीएम) बतायी गयी हो। 2. `अंब्रेला सीमा' के अंतर्गत संसाधन जुटाने हेतु मानदंड चयनित अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा संसाधन जुटाना 1990 के दशक से मौद्रिक नीति के अनुबद्ध के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमन के अधीन था । प्रारंभ में भारतीय रिज़र्व बैंक ने चयनित वित्तीय संस्थाओं के लिए लिखतवार वह सीमा निर्धारित की थी जहां तक विशिष्ट लिखत के जरिए वित्तीय संस्थाएं संसाधन जुटा सकती थीं। मई 1997 में लिखतवार अधिकतम सीमा के स्थान पर "अंब्रेला सीमा" निर्धारित की गयी जो संबंधित वित्तीय संस्था की `निवल स्वाधिकृत निधि' से संबद्ध थी और जो निर्दिष्ट लिखत के जरिए वित्तीय संस्था द्वारा उधार लेने के लिए समग्र अधिकतम सीमा थी। `अंब्रेला सीमा' की प्रणाली अब भी लागू है, हालांकि पिछले वर्षों में इस सीमा के अंतर्गत कुछ अतिरिक्त लिखतों को शामिल किया गया है । `अंब्रेला सीमा' में वर्तमान में पांच लिखत शामिल हैं - अर्थात् मीयादी जमा, मीयादी मुद्रा उधार, जमा प्रमाण पत्र (सीडी), वाणिज्यिक पत्र और अंतर-कंपनी जमा (आइसीडी)। इन विनिर्दिष्ट लिखतों के जरिए जुटाये जानेवाले कुल उधार कभी भी संबंधित वित्तीय संस्था के नवीनतम लेखा परीक्षित तुलन पत्र के अनुसार निवल स्वाधिकृत निधि के 100 प्रतिशत अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एकल वित्तीय संस्था के लिए अनुमोदित राशि से अधिक नहीं होने चाहिए। इनमें से प्रत्येक लिखत से संबंधित शर्तें नीचे दी गयी हैं :
2.5 अंतर कंपनी जमाराशियां (आईसीडी) भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय संस्थाओं द्वारा अंतर कंपनी जमाराशियों (आइसीडी) के माध्यम से संसाधन जुटाने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं किये हैं। तथापि, जिन वित्तीय संस्थाओं का कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत कंपनी के रूप में विन्यास हुआ है, वे उक्त अधिनियम के अंतर्गत अनुमति के अनुसार अंतर कंपनी जमाराशियां जारी करने के लिए पात्र हैं। अंतर कंपनी जमाराशियों के माध्यम से जुटाये गयी राशि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित समग्र अंब्रेला सीमा के भीतर होनी चाहिए। इस प्रकार अन्य लिखतों जैसे मीयादी मुद्रा, मीयादी जमा, जमा प्रमाणपत्र (सीडी) तथा वाणिज्य पत्र (सीपी) सहित अंतर कंपनी जमाराशियां का निर्गम, लेखा परीक्षा किये गये अद्यतन तुलन पत्र के अनुसार उसकी निवल स्वाधिकृत निधियों के 100 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । 3. बांडों/डिबेंचरों के निर्गम संबंधी मानदंड 3.1 वित्तीय संस्थाओं को बांडों के निर्गम से, चाहे सार्वजनिक निर्गम अथवा निजी तौर पर शेयरों के आबंटन द्वारा हों, संसाधन जुटाने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूर्ण करने के अधीन रिज़र्व बैंक का निर्गम-वार पूर्वानुमोदन/पंजीकरण मांगने की आवश्यकता नहीं है :
3.2 वित्तीय संस्था द्वारा किसी विशिष्ट समय पर जुटाये गये कुल संसाधन, जिनमें रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित `अम्ब्रेला' सीमा के अंतर्गत जुटायी गयी निधियां शामिल हैं, का बकाया उसके नवीनतम लेखा परीक्षित तुलन पत्र के अनुसार उसकी निवल स्वाधिकृत निधियों के 10 गुना अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एकल वित्तीय संस्था के लिए अनुमोदित राशि से अधिक नहीं होना चाहिए । 3.3 संसाधन जुटाने के लिए निर्धारित सीमा, केवल एक समर्थकारी व्यवस्था है । वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया जाता है कि वे अपनी संसाधनों की आवश्यकताओं तथा परिपक्वता ढांचा तथा उस पर प्रस्तावित ब्याज की गणना वास्तविक आधार पर करें, जिसे अन्य बातों के साथ-साथ एएलएम/जोखिम प्रबंधन की स्वस्थ प्रणाली से व्युत्पन्न किया गया हो । 3.4 वित्तीय संस्थाओं को अस्थिर दर बांड के मामले में चयनित `संदर्भ दर' तथा अस्थिर दर निर्धारण की पद्धतियों के संबंध में रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन लेना चाहिए। बाद के अलग-अलग निर्गमों के लिए तब तक उक्त अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी जब तक आधार संदर्भ दर तथा अस्थिर दर निर्धारण की पद्धति अपरिवर्तित बनी रहती है । 3.5 वित्तीय संस्थाओं को अन्य विनियामक प्राधिकरण, जैसे सेबी आदि के विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन भी करना चाहिए । 3.6 वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे जुटाये गये संसाधनों के ब्यौरों के मासिक विवरण अनुबंध 3 तथा 4 में दिये गये फॉर्मेट में भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें। महीने के अंत की स्थिति को दर्शाने वाले विवरण, दूसरे महीने के 10वें दिन अथवा उसके पूर्व प्रस्तुत किये जाने चाहिए। बांड के सार्वजनिक निर्गम से संबंधित ब्यौरे उस महीने के विवरण में शामिल किये जाएं जिसमें संबंधित निर्गम बंद हुआ है । 3.7 यह विवरण मुख्य महाप्रबंधक, वित्तीय संस्था प्रभाग, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, 13वीं मंजिल, केंद्रीय कार्यालय भवन, फोर्ट, मुंबई - 400 001 को भेजें।फैक्स सं. 22701238 । मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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