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माइक्रो वित्त संस्थाओं (एमएफआइ) को ऋण सहायता

आरबीआइ/2010-11/376
बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 74/21.04.132/2010-11

19 जनवरी 2011
29 पौष 1932 (शक)

अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर

महोदय

माइक्रो वित्त संस्थाओं (एमएफआइ) को ऋण सहायता

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 22 दिसंबर 2010 को आंध्र प्रदेश तथा अन्य राज्यों में माइक्रो वित्त क्षेत्र की जमीनी स्थिति का जायजा लेने तथा इस संबंध में किसी प्रकार के अंतरिम उपाय की ज़रूरत का मूल्यांकन करने के लिए चुनिंदा बैंकों के साथ वार्ता की थी । बैंकों ने बताया कि आंध्र प्रदेश में माइक्रो वित्त संस्थाओं के धन संग्रह में भारी गिरावट आई है और अन्य राज्यों में इस प्रवृत्ति के संक्रमण के प्रारंभिक लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं । तदुपरांत, भारतीय बैंक संघ ने बैंकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर प्रस्तावित किया था कि एमएफआइ क्षेत्र के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित पुनर्रचना संबंधी दिशानिर्देशों में कतिपय छूट देना आवश्यक है । भारतीय बैंक संघ ने यह टिप्पणी की थी कि माइक्रो वित्त संस्थाओं को दिए गए बैंक ऋण अधिकांशत: गैर-जमानती हैं जबकि  भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित पुनर्रचना के संबंध में मौजूदा दिशानिर्देशों के अंतर्गत विनियामक आस्ति वर्गीकरण का लाभ लेने के लिए खातों को पूर्णत: जमानती होना चाहिए । जहां तक बैंकों का माइक्रो वित्त संस्थाओं में एक्सपोजर का संबंध है, बैंकों ने एक अंतरिम व्यवस्था बनाने की ज़रूरत पर बल दिया जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ माइक्रो वित्त संस्थाओं में एक्सपोज़र की पुनर्रचना होनी चाहिए, जो कतिपय शर्तों के अधीन हो, उदाहरण के लिए माइक्रो वित्त संस्थाओं को अपने लिवरेज तथा वृद्धि अनुमानों को घटाने के लिए सहमति देनी चाहिए ।

2. बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश पर 27 अगस्त 2008 के हमारे मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. सं. 37/21.04.132/2008-09 के पैराग्राफ 6.2.2 के अनुसार पुनर्रचित खातों में विशेष विनियामक आस्ति वर्गीकरण लाभ उपलब्ध हैं बशर्ते अन्य बातों के साथ-साथ बैंकों के प्रति देय पूर्णत:

जमानती हों । इस तथ्य को मानते हुए कि माइक्रो वित्त संस्थाओं का क्षेत्र जिन मौजूदा समस्याओं से ग्रस्त है वे अनिवार्यत: किसी ऋण दुर्बलता के कारण नहीं हैं, बल्कि वे मुख्य रूप से परिस्थितिजन्य कारणों से हैं, यह निर्णय लिया गया है कि विशेष विनियामक आस्ति वर्गीकरण का लाभ उन पुनर्रचित एमएफआइ खातों में भी दिया जाए जो पुनर्रचना के समय मानक हों भले ही वे पूर्णत: जमानती न हों । दिशानिर्देशों में यह शिथिलता पूर्ण रूप से एक अस्थायी उपाय के रूप में की गई है जो बैंकों द्वारा 31 मार्च 2011 तक पुनर्रचित मानक एमएफआइ खातों पर लागू होगी । उपर्युक्त परिपत्र के अंतर्गत विशेष आस्ति वर्गीकरण का लाभ प्राप्त करने के संबंध में विनिर्दिष्ट अन्य शर्तें पूर्ववत लागू होंगी । यह सूचित किया जाता है कि पुनर्रचना के लिए सहायता संघीय (कंसोर्शियम) दृष्टिकोण को वरीयता दी जाए और किसी एमएफआइ इकाई को वित्त प्रदान करने वाले सभी बैंकों को एकजुट होकर उस इकाई पर की जाने वाली कार्रवाई के बारे में निर्णय लेना चाहिए ।

3. उपर्युक्त उपाय से माइक्रो वित्त संस्थाओं को कुछ चलनिधि सहायता मिलने की संभावना है और इससे मालेगाम समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने और माइक्रो वित्त संस्थाओं के कामकाज में दीर्घकालिक एवं संरचनात्मक परिवर्तन लाने के लिए उपाय किए जाने तक कुछ समय तक एक ‘होल्डिंग ऑन’ परिचालन संभव हो सकेगा । इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि वांछित ‘होल्डिंग ऑन’ परिचालन सफल हो, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे वसूल की गईराशियों का पुन: भुगतान माइक्रो वित्त संस्थाओं को करने का प्रयास करें ।

भवदीय

(बि. महापात्र)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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