बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति – उदारीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति – उदारीकरण
भारिबैंक/2018-19/48 19 सितंबर 2018 सभी श्रेणी - । प्राधिकृत व्यापारी बैंक महोदया/महोदय, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति – उदारीकरण प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I(एडी श्रेणी-I) बैंकों का ध्यान ‘बाह्य वाणिज्यिक उधार, व्यापार ऋण, प्राधिकृत व्यापारियों तथा प्राधिकृत व्यापारियों से इतर व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा में उधार लेने एवं उधार देने’ से संबंधित समय-समय पर यथासंशोधित 01 जनवरी 2016 के मास्टर निदेश सं. 05 के पैराग्राफ 2.4.1 तथा 3.3.3 की ओर आकर्षित किया जाता है। 2. भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि रुपये में मूल्यवर्गीकृत बॉण्ड (RDB) से संबंधित नीति सहित ईसीबी नीति के कुछ पहलुओं को नीचे दिए गए अनुसार उदारीकृत बनाया जाए: (i) विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों द्वारा बाहरी वाणिज्यिक उधार(ईसीबी): मौजूदा मानदंडों के अनुसार पात्र उधारकर्ताओं द्वारा 50 मिलियन अमरीकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य राशि तक न्यूनतम 3 वर्ष की औसत परिपक्वता अवधि की ईसीबी जुटाई जा सकती है। अब यह निर्णय लिया गया है कि विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत पात्र ईसीबी उधारकर्ताओं को न्यूनतम 1 वर्ष की औसत परिपक्वता अवधि की 50 मिलियन अमरीकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य राशि तक की ईसीबी जुटाने की अनुमति दी जाए। (ii) विदेशों में जारी किए गए रुपये में मूल्यवर्गीकृत बॉण्ड (RDB) के लिए भारतीय बैंकों द्वारा हामीदारी तथा बाजार निर्माण: वर्तमान में भारतीय बैंक, यथा लागू विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन, विदेश में जारी किए गए आरडीबी के लिए व्यवस्थापक तथा हमीदार के रूप में कार्य कर सकते हैं तथा किसी निर्गम के लिए हामी भरने के मामले में उसकी धारिता निर्गम जारी होने के 6 महीने बाद उस निर्गम की राशि के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अब यह निर्णय लिया गया है कि यथा लागू मानदंडों के अधीन, भारतीय बैंकों को विदेश में जारी आरडीबी के व्यवस्थापक/ हामीदार/ बाज़ार निर्माता/ व्यापारियों के रूप में सहभागी होने की अनुमति दी जाए। 3. बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति से संबंधित अन्य सभी पहलू अपरिवर्तित बने रहेंगे । प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबन्धित घटकों और ग्राहकों को अवगत कराएं। 4. इन परिवर्तनों को दर्शाने के लिए दिनांक 01 जनवरी 2016 के मास्टर निदेश सं. 5 के संबंधित पैराग्राफ को तदनुसार अद्यतन किया जा रहा है। 5. इस परिपत्र में निहित निर्देश, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11(2) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति / अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किए गये हैं । भवदीय अजय कुमार मिश्र |