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बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति

आरबीआइ/2009-10/335
एपी(डीआईआर सिरीज़)परिपत्र सं.40

02 मार्च , 2010

सेवा में
विदेशी मुद्रा का कारोबार करने के लिए प्राधिकृत सभी बैंक

महोदया /महोदय,

बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों का ध्यान बाह्य वाणिज्यिक उधार से सबंधित 26 सितंबर,2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 29/2000 आरबी ,अर्थात् भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति को गारंटी देने पर भुगतान,30 मार्च 2001 के एपी (डीआईआर सिरीज़)परिपत्र सं.28 और 1अगस्त 2005 के एपी(डीआईआर सिरीज़)परिपत्र सं.5 की ओर आकर्षित किया जाता है ।

2. भारत में रहने वाले दो व्यक्तियों के बीच रुपयों में उधार लिये जाने तथा उधार दिये जाने वाले लेनदेनों पर तब तक विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम का प्रावधान लागू नहीं होता है । उन मामलों में जहाँ पर भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा गारंटी दिये जाने पर रुपयों में ऋण मंजूर किया जाता है ,वहाँ विदेशी मुद्रा विनिमय का तब तक कोई लेनदेन नहीं होता है जब तक कि गारंटी देने वाला अनिवासी व्यक्ति द्वारा गारंटी नहीं दी जाती और गारंटी देने वाले व्यक्ति के लिए गारंटी की देयता पूरी करना अपेक्षित है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने 26 सितंबर,2000 की अधिसूचना सं.फेमा. 29/2000 आरबी द्वारा भारत में रहने वाले मूल देनदार व्यक्ति को सामान्य अनुमति प्रदान की है कि वह भारत से बाहर रहने वाले उस व्यक्ति को भुगतान करे जिसने गारंटी के अंतर्गत आने वाली देयता पूरी की है ।

3. वर्तमान नीति के अनुसार, अनुमोदित मार्ग के तहत अनिवासी व्यक्ति द्वारा स्वदेशी मूल्य-वर्गांकित सुनियोजित दायित्वों को संवृद्ध ऋण की अनुमति है । बुनियादी सुविधा क्षेत्र में निधियों की बढ़ती हुई जरूरतों को ध्यान मे रखते हुए वर्तमान मानदंडों की समीक्षा की गई है और यह निर्णय लिया गया है कि स्वदेशी ऋण में ऋण संवृद्धि पर निम्नवत् एक व्यापक नीतिगत ढाँचा तैयार किया जाए:-

4. अब यह निर्णय लिया गया है कि पात्र अनिवासी संस्थाओं द्वारा ऋण में वृध्दि की सुविधा, केवल संरचना क्षेत्र के विकास में लगी भारतीय कंपनियों द्वारा और इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनियों (आइएफसीएस), जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा 12 फरवरी 2010 के परिपत्र डीएनबीएस.पीडी.सीसी. सं.168/03.02.089 में निहित दिशा-निर्देशों के अनुसार इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है, द्वारा पूंजी बाजार लिखतों, जैसे डिबेंचरों और बांडों के जारी करने के जरिये उठाये गये आंतरिक ऋण तक बढ़ायी जाए, बशर्ते वे निम्नलिखित शर्तें पूर्ण करते हैं :

i. बहुदेशीय/क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं और सरकार के स्वामित्ववाली विकास वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण में वृध्दि प्रदान किये जाने के लिए अनुमति दी जाएगी;

ii. अंतर्निहित ऋण लिखत को सात वर्षों की न्यूनतम औसत परिपक्वता होनी चाहिए;

iii. सात वर्षों की न्यूनतम औसत परिपक्वता तक ऐसे पूंजी बाजार लिखतों के लिए पूर्वभुगतान और क्रय-विक्रय विकल्प की अनुमति नहीं होगी;

iv. ऋण में वृध्दि के संबंध में गारंटी फीस और अन्य लागत, निहित मूल राशि के अधिकतम 2 प्रतिशत तक सीमित रहेगी ;

v. ऋण में वृध्दि लागू करने पर, यदि गारंटीकर्ता देयता चुकाता है और यदि पात्र अनिवासी संस्था को उक्त राशि विदेशी मुद्रा में चुकाने की अनुमति है , तो व्यापार ऋण /बाह्य वाणिज्य उधारों (ईसीबीएस) की संबंधित परिपक्वता अवधि को लागू समग्र लागत सीमा नवीकृत ऋण के लिए लागू होगी । वर्तमान में, औसत परिपक्वता अवधि पर निर्धारित समग्र लागत सीमा निम्नवत् लागू है :

ऋण में वृध्दि लागू करने पर ऋण की औसत परिपक्वता अवधि

6 माह लिबोर से उपर समग्र लागत सीमा*

3 वर्षों तक

200 आधार बिंदु

तीन वर्ष और पांच वर्षों तक

300 आधार बिंदु

पांच वषो से अधिक

500 आधार बिंदु

* उधार की संबंधित मुद्रा अथवा लागू बेंचमार्क के लिए

vi. चूक होने पर और यदि ऋण का भुगतान भारतीय रुपयों में किया जाता है तो ब्याज की लागू दर, नवीकरण की तारीख को बांड के कूपन अथवा 250 आधार बिंदु से उपर 5 वर्ष की भारत सरकार की प्रतिभूति की प्रचलित अनुषंगी बाजार प्रतिफल, जो भी उच्चतर हैं, होगी ;

vii. ऋण में वृध्दि सुविधा का लाभ उठाने का प्रस्ताव रखनेवाली इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनियों (आइएफसीएस) को 12 फरवरी 2010 के परिपत्र डीएनबीएस.पीडी.सीसी. सं.168/03.02.089 में निर्धारित पात्रता मानदंड और विवेकपूर्ण मानदंड का पालन करना होगा और यदि नवीकृत ऋण विदेशी मुद्रा में नामित किया जाता है तो इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनी को समग्र विदेशी मुद्रा जोखिम का बचाव करना होगा; और

viii. बाह्य वाणिज्य उधार (ईसीबी) को यथा लागू रिपोर्टिंग व्यवस्था नवीकृत ऋणों के लिए लागू होगी ।

5. 3 मई 2000 की विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा में उधार लेना और देना) विनियमावली, 2000 में जहां आवश्यक हो, आवश्यक संशोधन अलग से जारी किये जा रहे हैं ।

6. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने निर्यातक घटकों को और संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दें ।

7. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अंतर्गत जारी किये गये हैं और किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है ।

भवदीय

सलीम गंगाधरन
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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