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भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश-बिक्री के रुप में शेयरों/अधिमान शेयरों/परिवर्तनीय डिबेंचरों का अंतरण- संशोधित रिपोर्टिंग व्यवस्था

आरबीआई/2008-09/447
ए.पी. (डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं. 63

22 अप्रैल 2009

सभी श्रेणी-। प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/महोदय

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश-बिक्री के रुप में शेयरों/अधिमान शेयरों/परिवर्तनीय डिबेंचरों
का अंतरण- संशोधित रिपोर्टिंग व्यवस्था

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। (ए.डी. श्रेणी-।) बैंकों का ध्यान 4 अक्तूबर 2004 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 16 के अनुबंध के पैराग्राफ 6 की ओर आकर्षित किया जाता है, जिसमें, यह शर्त लगायी गयी है कि किसी निवासी से अनिवासी /अनिवासी भारतीय को और इसके विपरीत शेयरों के अंतरण के मामले में, आंतरित / उनके विधिवत् नियुक्त एजेंट को एफसी-टीआरएस फार्म में प्रमाणपत्र के साथ नामित प्राधिकृत व्यापारी बैंक की शाखा से उनकी बहियों में अंतरण दर्ज करवाने के लिए , निवेशक कंपनी से संपर्क करना अपेक्षित है कि अंतरणकर्ता को धन-प्रेषण प्राप्त हो गया है/आंतरित व्यकित द्वारा भुगतान किया जा चुका है ।इसके अतिरिक्त, नामित प्राधिकृत व्यापारी बैंक की शाखा को अपने घटकों/ग्राहकों से प्राप्त, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक द्वारा आइबीडी/वि.मु.वि. अथवा इस प्रयोजन के लिए नामित सम्पर्क-कार्यालय को बिक्री के रुप में शेयरों के अंतरण के संबंध में प्राप्त/प्रेषित किये गये धनप्रेषणों के कारण निधियों के आगमन/बहिर्गमन का विवरण के साथ एफसी-टीआरएस फार्म की दो प्रतियां प्रस्तुत करना भी अपेक्षित है ।आइबीडी/वि.मु.वि.अथवा प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक का सम्पर्क-कार्यालय अपनी बारी आने पर एक निर्धारित प्रोफार्मा में शाखाओं द्वारा रिपोर्ट किये गये सभी लेनदेनों से संबंधित समेकित मासिक विवरण भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करता है । साथ ही , यह ध्यान रहे कि समय समय पर यथासंशोधित 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 20/2000-आरबी के विनियम 2 के अनुसार, ‘‘अधिमान शेयर’’ का अर्थ अनिवार्यत: और अधिदेशात्मक रुप से परिवर्तनीय अधिमान शेयर है और ‘‘डिबेंचर’’ का अर्थ अनिवार्यत: और अधिदेशात्मक रुप से परिवर्तनीय डिबेंचर है ।

2. किसी भारतीय कंपनी के अधिक व्यापक तरीके से बिक्री के रुप में मौजूदा शेयरों /अधिदेशात्मक रुप से परिवर्तनीय अधिमान शेयरों (सीएमसीपीएस) /डिबेंचरों ड अब इसके आगे से ईक्विटी लिखत के रुप में निर्दिष्ट के अंतरण के रुप में प्राप्त निवेश के ब्योरे प्राप्त करने के लिए फार्म एफसी-टीआरएस संशोधित किया गया है (अनुबंध । में फॉर्मेट) । तदनुसार, आइबीडी/वि.मु.वि.अथवा प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक द्वारा बिक्री के रुप में ईक्विटी लिखतों के अंतरण के संबंध में प्राप्त/प्रेषित किये गये धनप्रेषणों के कारण निधियों के आगमन/बहिर्गमन के रिपोर्टिंग के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किया जानेवाला प्रोफार्मा भी संशोधित किया गया है (अनुबंध ।।। में फॉर्मेट) ।

3. भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा खरीदे गये ईक्विटी लिखतों के संबंध में सामान्य बैंकिंग चैनलों के जरिये भारत में प्रेषित बिक्री प्रतिफल, धनप्रेषण प्राप्तकर्ता प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक द्वारा निधियों की प्राप्ति के समय अपने ग्राहक को जानिये जांच- पड़ताल(अनुबंध ।। में फॉर्मेट) के अधीन होगा । यदि, धनप्रेषण प्राप्तकर्ता प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक, अंतरण लेनदेन का व्यवहार करनेवाले बैंक से भिन्न है, तो अपने ग्राहक को जानिये जांच , प्रेषण प्राप्तकर्ता बैंक द्वारा की जाएगी और ग्राहक द्वारा ,फार्म एफसी-टीआरएस के साथ , अपने ग्राहक को जानिये की जांच रिपोर्ट , लेनदेन करने वाले प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक को, प्रस्तुत की जाएगी ।

4. साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए कि फार्म एफसी-टीआरएस यथोचित समय सीमा के भीतर प्रस्तुत किया जाता है, यह निर्णय किया गया है कि अब इसके आगे से फार्म एफसी-टीआरएस, प्रतिफल की राशि प्राप्त करने की तारीख से 60 दिनों के भीतर प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक को प्रस्तुत किया जाए । निर्धारित समय सीमा के भीतर फार्म एफसी-टीआरएस के प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी भारत में निवासी अंतरणकर्ता/अंतरिती की होगी ।

5. ईक्विटी लिखतों के अंतरण के मामले में जहां अनिवासी प्राप्तिकर्ता प्रतिफल की राशि के भुगतान के स्थगन का प्रस्ताव करता है, पहले की तरह भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित होगा । साथ ही, यदि लेनदेन के लिए अनुमोदन प्रदान किया जाता है तो प्रतिफल की पूर्ण और अंतिम राशि की प्राप्ति की तारीख से 60 दिनों के भीतर प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक द्वारा विधिवत् प्रमाणित फार्म एफसी-टीआरएस में इसकी सूचना दी जानी चाहिए ।

6. ये निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे ।

7. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने निर्यातक घटकों को और संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दें ।

8. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अंतर्गत जारी किये गये हैं और किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है ।

भवदीय

सलीम गंगाधरन
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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