भारत में विदेशी निवेश - सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों, अर्हताप्राप्त विदेशी निवेशकों और सेबी के पास पंजीकृत दीर्घकालिक निवेशकों द्वारा क्रेडिट वृद्धि बाण्डों में सहभागिता - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में विदेशी निवेश - सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों, अर्हताप्राप्त विदेशी निवेशकों और सेबी के पास पंजीकृत दीर्घकालिक निवेशकों द्वारा क्रेडिट वृद्धि बाण्डों में सहभागिता
भारिबैंक/2013-14/368 11 नवंबर 2013 सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक महोदया/महोदय, भारत में विदेशी निवेश - सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों, अर्हताप्राप्त विदेशी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों का ध्यान, समय-समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा.20/2000-आरबी के जरिये अधिसूचित विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) विनियमावली, 2000 की अनुसूची 5 की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक, अर्हताप्राप्त विदेशी निवेशक और सरकारी धन निधियां, बहुपक्षीय एजेंसियां, पेंशन/बीमा/एन्डॉउमेंट निधियां, विदेशी केंद्रीय बैंक जैसे दीर्घकालिक निवेशक सरकारी प्रतिभूतियों और किसी भारतीय कंपनी द्वारा जारी अपरिवर्तनीय डिबेंचरों (NCDs)/बांडों को, उनमें विनिर्दिष्ट शर्तों तथा तत्संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक और सेबी द्वारा, समय-समय पर यथा विनिर्दिष्ट सीमाओं के अंतर्गत, प्रत्यावर्तनीय आधार पर, खरीद सकते हैं। सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों, अर्हताप्राप्त विदेशी निवेशकों और दीर्घकालिक निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और कार्पोरेट कर्ज (प्रतिभूतियों) में निवेश की वर्तमान सीमाएं क्रमश: 30 बिलियन अमरीकी डालर और 51 बिलियन अमरीकी डालर हैं। 2. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों का ध्यान 2 मार्च 2010 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.40 और 26 जून 2013 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.120 की ओर भी आकृष्ट किया जाता है जो बाह्य वाणिज्यिक उधार नीति-सुनियोजित दायित्व (Structured Obligation) से संबंधित हैं। 26 जून 2013 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र के अनुसार स्वचालित मार्ग के तहत बाह्य वाणिज्यिक उधार लेने के लिए पात्र सभी उधारकर्ताओं द्वारा भारतीय रुपये में बांडों/डिबेंचरों के निर्गम के जरिये लिए गये घरेलू ऋणों का पात्र अनिवासी संस्थाओं द्वारा ऋण-उच्चीकरण (क्रेडिट वृद्धि) किया जा सकता है। 2 मार्च 2010 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.40 के पैरा 4(iv), (vi) से (viii) में उल्लिखित सभी अन्य शर्तें अपरिवर्तित बनी रहेंगी। 3. समीक्षा करने पर, यह निर्णय लिया गया है कि सेबी के पास पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों, अर्हताप्राप्त विदेशी निवेशकों और सरकारी धन निधियां, बहुपक्षीय एजेंसियां, पेंशन/बीमा/एन्डॉउमेंट निधियां, विदेशी केंद्रीय बैंकों जैसे दीर्घकालिक निवेशकों को 26 जून 2013 के ए. पी. (डीआईआर सरीज़) परिपत्र सं. 120 के पैराग्राफ 3 और 4 के अनुसार, कार्पोरेट कर्ज के लिए चिह्नित 51 बिलियन अमरीकी डालर की समग्र सीमा के भीतर 5 बिलियन अमरीकी डालर की सीमा तक ऋण-उच्चीकरण (क्रेडिट वृद्धि) बांडों में निवेश करने की अनुमति प्रदान की जाए। 4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत कराएं । 5. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब संबंधित विनियमावली में 4 अक्तूबर 2013 की अधिसूचना सं. फेमा. 289/ 2013 के द्वारा संशोधन कर दिया है जो 11 अक्तूबर 2013 के जीएसआर सं. 681(ई) के द्वारा अधिसूचित की गई है। 6. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/अनुमोदन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किये गये हैं । भवदीय, (रुद्र नारायण कर) |