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अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी)के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा

आरबीआई/2014-15/271
बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 45/21.04.132/2014-15

21 अक्तूबर 2014

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
अखिल भारतीय मीयादी ऋण तथा पुनर्वित्‍त प्रदान करने वाली संस्‍थाएं
(एक्जिम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी तथा सिडबी)

महोदय

अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता
फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी)के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा

कृपया 30 जनवरी 2014 को हमारी वेबसाइट पर जारी "अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा" तथा इस संदर्भ में जारी (i) 26 फरवरी 2014 का परिपत्र बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 – "संयुक्त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के संबंध में दिशानिर्देश" (ii) 26 फरवरी 2014 का परिपत्र बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 98/21.04.132/2013-14 – "परियोजना ऋणों को पुनर्वित्‍त प्रदान करना, एनपीए का विक्रय तथा अन्‍य विनियामक उपाय" के साथ पठित (iii) 13 फरवरी 2014 का परिपत्र बैंपर्यवि. केंका. ओसमोस संख्या. 9862/33.01.018/2013-14 – "बड़े ऋणों से संबंधित सूचनाओं की सेंट्रल रिपोजीटरी (सीआरआईएलसी) - रिपोर्टिंग में संशोधन" (iv) 22 मई 2014 का परिपत्र बैंपर्यवि. केंका. ओसमोस संख्या 14703 /33.01.001/2013-14 – "बड़ी राशि के ऋणों की सूचनाओं की सेंट्रल रिपोजीटरी (सीआरआईएलसी) को रिपोर्टिंग" देखें।

2. बैंकों तथा भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा इसके प्रभावी कार्यान्वयन में पायी गयी कठिनाईयों पर प्राप्त अभ्यावेदनों के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने हाल ही में ढांचे की समीक्षा की तथा ढांचे में कतिपय परिवर्तन करने का निर्णय लिया गया है, जैसा कि आगे के पैराग्राफों में दर्शाया गया है:

3. एसएमए-2 की रिपोर्टिंग

3.1 30 जनवरी 2014 को जारी 'ढांचे' के अंतर्गत बैंकों को सूचित किया गया है कि ढांचे के अंतर्गत आनेवाले उधारदाता को आवश्‍यक प्रबंध सूचना और रिपोर्टिंग प्रणाली तैयार करनी चाहिए ताकि किसी भी खाते का मूलधन या ब्‍याज 60 दिनों से अधिक अतिदेय होने पर 61वें दिन एसएमए-2 के रूप में स्‍वतः रिपोर्ट हो सकें। इसके अलावा, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (डीबीएस) के 13 फरवरी 2014 के परिपत्र डीबीएस. सं. ओसमोस.9862/33.01.018/2013-14 तथा 22 मई 2014 के परिपत्र बैंपर्यवि. ओसमोस सं. 14703/33.01.001/2013-14 के माध्‍यम से बैंकों को सूचित किया गया है कि जब कभी बड़े उधारकर्ताओं के खाते 61 दिन तक अतिदेय हो जाते हैं, तो उन खातों को एसएमए2 के रूप में सीआरआईएलसी को रिपोर्ट करना आवश्‍यक है।

3.2 समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों को एसएमए-2 खाते और जेएलएफ फॉर्मेशन के बारे में साप्‍ताहिक आधार पर प्रत्‍येक शुक्रवार को कारोबार समाप्ति पर रिपोर्ट करने की अनुमति दी जाएगी। शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश होने की स्थिति में वे इसे सप्‍ताह के पिछले कारोबार दिन पर रिपोर्ट करेंगे।

4. कतिपय एक्‍सपोजरों को सीआरआईएलसी को रिपोर्ट करने से छूट

4.1 ढांचे तथा 26 फरवरी 2014 के परिपत्र के अनुसार बैंकों से अपेक्षित है कि वे अपने सभी उधारकर्ता जिनका निधि आधारित और गैर-निधि आधारित एक्‍सपोजर 50 मिलियन रुपये तथा उससे अधिक है के लिए खाते के एसएमए के रूप में वर्गीकरण के साथ ही सीआरआईएलसी को ऋण सूचना रिपोर्ट करें।

4.2 समीक्षा के बाद, यह निर्णय लिया गया है कि फसल ऋणों को ऐसी रिपोर्टिंग से छूट दी जाएगी। तथापि, उपर्युक्‍त अनुदेशों के अनुसार बैंक को अपने अन्‍य कृषि ऋणों को रिपोर्ट करना जारी रखना चाहिए।

4.3 यह भी स्‍पष्‍ट किया जाता है कि बैंकों को नाबार्ड, सिडबी, एक्जिम बैंक और एनएचबी के एक्‍सपोजरों सहित अपने अंतर बैंक एक्‍सपोजरों को सीआरआईएलसी को रिपोर्ट करने की आवश्‍यकता नहीं है।

5. कतिपय मामलों में ढांचे की प्रयोज्‍यता

5.1 यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि बैंकों को हस्‍तांतरित एलसी/प्रवर्तित गारंटी के कारण उत्‍पन्‍न ओवरड्राफ्ट सहित अपने कैश क्रेडिट (सीसी) तथा ओवरड्राफ्ट खातों (ओडी) को एसएमए-2 के रूप में सीआरआईएलसी को रिपोर्ट करना चाहिए जब ये खाते 60 दिनों से अधिक दिनों तक अनियमित हो जाते हैं। उसी प्रकार खरीदे या भुनाये गये बिल (बैंकों द्वारा जारी एलसी से सुरक्षित बिलों के अतिरिक्‍त) तथा मार्क टू मार्केट पॉजेटिव मूल्‍य दर्शाने वाली प्राप्‍य राशियों वाले डेरिवेटिव एक्‍सपोजर, जो 60 दिनों से अधिक अतिदेय हैं, को एसएमए-2 के रूप में सीआरआईएलसी को रिपोर्ट किया जाना चाहिए।

5.2 बैंकों को अपनी विदेशी शाखाओं द्वारा दिए गए ऋणों सहित ऋण  संबंधी क्रेडिट सूचना तथा एसएमए स्थिति सीआरआईएलसी रिपोर्ट करना जारी रखना चाहिए। तथापि ऑफशोर उधारकर्ताओं के मामले में, जो सहायक कंपनी, मूल या समूह संस्‍था के रूप में भारत में मौजूद नहीं है, जेएलएफ स्‍थापित करना अनिवार्य नहीं होगा। इसके अतिरिक्त, जेएलएफ के भाग के रूप में आफशोर ऋणदाताओं को शामिल करना अनिवार्य नहीं होगा।   

5.3 सीआरआईएलसी मुख्‍य (तिमाही प्रस्‍तुति) विवरणी के अनुसार रिपोर्ट किए जाने वाले उधारकर्ता के प्रति उनका कुल निवेश एक्‍सपोजर रिपोर्ट करना अपेक्षित है। यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि निवेश पोर्टफालियो को एसएमए के रूप में रिपोर्ट करने पर जेएलएफ का गठन अनिवार्य नहीं है, सिवाय प्राईवेट प्‍लेसमेंट आधार पर प्राप्‍त बांड/डिबेंचर या अग्रिमों की पुनर्रचना के अंतर्गत ऋण के परिवर्तन के मामलों को छोड़कर।

6. जेएलएफ द्वारा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी)

6.1 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 97/21.04.132/2013-14 के पैरा 3.3 के अनुसार जेएलएफ से यह अपेक्षित है कि वह (i) एक या एक से अधिक ऋणदाताओं द्वारा किसी खाते के एसएमए-2 रिपोर्ट होने की तिथि, अथवा (ii) यदि उधारकर्ता आसन्‍न दबाव का पूर्वानुमान ठोस आधार पर करता है तो जेएलएफ गठित करने हेतु उससे अनुरोध मिलने की तिथि से 30 दिन के भीतर सीएपी के लिए अपनाए जाने वाले विकल्‍प पर समझौता करे। जेएलएफ को इस प्रकार का समझौता तैयार होने की तिथि से अगले 30 दिनों के भीतर विस्‍तृत अंतिम सीएपी (कैप) पर हस्‍ताक्षर करना चाहिए। 

6.2 यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्‍त समय-सीमा 45 दिनों तक बढ़ायी जाए।

7. स्‍वतंत्र मूल्‍यांकन समिति (आईईसी) द्वारा मूल्‍यांकन

7.1 दिनांक 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 के पैरा 4.3.3  और 4.4.4 के अनुसार 5000 मिलियन रुपए से अधिक के एई वाले खातों के लिए सीडीआर प्रकोष्‍ठ/जेएलएफ द्वारा तैयार किए गए टीईवी अध्‍ययन तथा पुनर्रचना पैकेज का विशेषज्ञों की एक स्‍वतंत्र मूल्‍यांकन समिति (आईईसी) से मूल्‍यांकन करवाना होगा। आईसीसी यह सुनिश्चित करने के बाद कि पुनर्रचना की शर्तें ऋणदाताओं के प्रति उचित हैं, अर्थक्षमता से संबंधित पहलुओं पर ध्‍यान देगी तथा इस पक्ष पर अपनी संस्‍तुतियां सीडीआर कक्ष/जेएलएफ को 30 दिनों के भीतर देगी।

7.2 यह निर्णय लिया गया है कि आईईसी को पुनर्रचना पैकेज का मूल्‍यांकन करने तथा 5000 मिलियन रुपए से अधिक के एई वाले खातों की पुनर्रचना के लिए अपनी संस्‍तुतियां देने के लिए 30 दिनों के स्‍थान पर 45 दिनों की समय सीमा दी जाए।

8. विनिर्दिष्‍ट समय-सीमा में पुनर्रचना – विशेष आस्ति वर्गीकरण

8.1 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 के पैरा 5.2 के साथ पठित उक्‍त परिपत्र के पैरा 6.2 के अनुसार पुनर्रचना पैकेज के त्‍वरित कार्यान्‍वयन के लिए प्रोत्‍साहन के रूप में, मौजूदा अनुदेशों के अनुसार खातों की पुनर्रचना पर विशेष आस्ति वर्गीकरण लाभ उन्‍हीं खातों की पुनर्रचना के लिए उपलब्‍ध होगा, जिनकी पुनर्रचना इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत की गई है, बशर्ते पुनर्रचना पैकेज के अनुमोदन के लिए समग्र समय-सीमा का पालन किया गया है तथा अनुमोदन की तिथि से 90 दिनों के भीतर अनुमोदित पैकेज का कार्यान्‍वयन किया गया है। साथ ही, यदि जेएलएफ/सीडीआर किसी कार्य के लिए निर्धारित समय सीमा से कम समय लेता है, तो बचाए गए समय का अन्‍य कार्यों के लिए उपयोग करने का विवेकाधिकार उसके पास होगा, बशर्ते कुल समय सीमा का उल्‍लंघन न किया गया हो।

8.2 इस संबंध में, यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि विशेष आस्ति वर्गीकरण लाभ उन्‍हीं खातों की पुनर्रचना के लिए उपलब्‍ध है जिनकी पुनर्रचना इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत की गई है बशर्ते पुनर्रचना पैकेज के अनुमोदन और कार्यान्‍वयन में समग्र सीमा का पालन किया गया हो। अतः जेएलएफ/सीडीआर यदि किसी कार्य के लिए निर्धारित समय सीमा से कम समय लेता है तो, बचाए गए समय का अन्‍य कार्यों के लिए उपयोग करने का विवेकाधिकार उसके पास है बशर्ते कुल समय सीमा का उल्‍लंघन न किया गया हो।

9. त्‍वरित प्रावधानीकरण

9.1 26 फरवरी 2014 के परिपत्र सं. 97 के पैरा 7.3 के अंतर्गत यदि उधारदाता जेएलएफ संयोजित करने में असफल रहते हैं या निर्धारित समय-सीमा में एक सामान्‍य सीएपी पर सहमति बनाने में असफल रहते हैं और यदि खाते को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाता है तो खाता त्‍वरित प्रावधानीकरण के अधीन रहेगा। यदि उन उधारदाता की बहियों में खाता मानक है तो प्रावधानीकरण अपेक्षाएं 5% होगी। इस संबंध में बैंकों ने हमें अभ्‍यावेदन दिया है कि कई मामलों में सहायता संघ के अग्रणी बैंक के कारण जेएलएफ का गठन नहीं किया गया/बहु बैंकिंग व्‍यवस्‍था के अंतर्गत बड़े एई वाले बैंक ने जेएलएफ का आयोजन नहीं किया तथा मामले के संदर्भ में पहल नहीं की गई है।

9.2 इस बात पर बल दिया जाता है कि ढांचे की सफलता न केवल समय पर रिपोर्ट करने में हैं बल्कि जेएलएफ द्वारा समय पर सुधारात्‍मक कार्रवाई करने पर भी निर्भर है। इस प्रकार जेएलएफ के गठन में किसी भी प्रकार के विलंब के कारण ढांचे का उद्देश्‍य पूरा नहीं होगा। तदनुसार,  यह निर्णय लिया गया है कि यदि किसी भी उधारदाता द्वारा सीआरआईएलसी को एसएमए-2 के रूप में खाता रिपोर्ट किए जाने पर जेएलएफ का तुरंत गठन नहीं किया जाता है या उपर्युक्‍त कारणों से निर्धारित समय सीमा में सीएपी निर्धारित नहीं किया जाता है, तो केवल जेएलएफ के आयोजनके लिए जिम्मेदार बैंक पर त्‍वरित प्रावधानीकरण लागू होगा, न कि सहायता संघ के सभी उधारदाता/बहु बैंकिंग व्‍यवस्‍था पर। अन्‍य मामलों में सहायता संघ/बहु बैंकिंग व्‍यवस्‍था के सभी बैंकों पर त्‍वरित प्रावधानीकरण लागू होंगे। बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि सहायता संघ की अग्रणी बैंक/बहु बैंकिंग व्‍यवस्‍था के अंतर्गत बड़े एई  वाला बैंक एसएमए स्थिति-2 के रिपोर्ट होने के बाद 15 दिनों के भीतर जेएलएफ का आयोजन नहीं करता है तो अगले 15 दिनों में दूसरे बड़े एई वाले बैंक को जेएलएफ का आयोजन करना चाहिए तथा उस पर अग्रणी बैंक/बड़े एई वाले बैंक के समान जिम्मेदारी तथा दंडात्‍मक कार्रवाई लागू होगी।

9.3 26 फरवरी 2014 के परिपत्र सं. 97 के पैरा 7.4 के अंतर्गत यदि जेएलएफ़/सीडीआर प्रणाली के अंतर्गत एस्‍क्रो मेंटेन करने वाला कोई बैंक उधारकर्ता द्वारा चुकौती के आगमों को निर्धारित शर्तों के अनुसार ऋणदाताओं में वितरित नहीं करता है, जिसके कारण अन्य ऋणदाताओं की बहियों में खाते के आस्ति वर्गीकरण में गिरावट होती है, तो एस्‍क्रो मेंटेन करने वाले बैंक में जो खाता है उस पर वह आस्ति वर्गीकरण लागू होगा जो ऋणदाता सदस्य बैंकों के बीच न्यूनतम है तथा उस पर संगत प्रावधानीकरण अपेक्षित होगा।

9.4 समीक्षा के बाद, यह निर्णय लिया गया है कि ऐसे मामलों में एस्‍क्रो मेंटेन करने वाले बैंक में जो खाता है, उस पर न केवल वह आस्ति वर्गीकरण लागू होगा जो ऋणदाता सदस्य बैंकों के बीच न्यूनतम है बल्कि उस पर सामान्‍य प्रावधाने के बजाए तदनुरूप त्‍वरित   प्रावधानीकरण अपेक्षित होगा। इसके अतिरिक्त, ऐसे त्वरित प्रावधान प्रावधानीकरण या भूल-सुधार की प्रभावी तारीख, जो भी बाद में हो, से एक वर्ष के लिए लागू होंगे।

10. अतिरिक्‍त वित्‍तीयन से बाहर निकलने का विकल्‍प तथा प्रतिभीतीकरण कंपनी (एससी)/ पुनर्रचना कंपनी (आरसी) को वित्‍तीय आस्तियों की बिक्री

10.1 कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना (सीडीआर) प्रक्रिया के अंतर्गत आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा अग्रिमों से संबंधित प्रावधानीकरण पर 1 जुलाई 2014 के मास्‍टर परिपत्र के अनुबंध 4 के पैरा 5.5.1 के अनुसार ऋणदाता (न्‍यूनतम 75 प्रतिशत और 60 प्रतिशत से बाहर) जो किसी आंतरिक कारण से अतिरिक्‍त वित्‍त नहीं लगाना चाहता है के लिए एक एग्जिट विकल्प है। साथ ही "फ्री राइडर" समस्‍या से बचने के लिए इस विकल्‍प को अपनाने के इच्‍छुक ऋणदाता के लिए कुछ निरुत्‍साहक कार्रवाई करना जरूरी है। ऐसे ऋणदाता (क) नए या वर्तमान ऋणदाता द्वारा प्रदान किए जाने वाले अतिरिक्‍त वित्‍त में से अपने हिस्‍से की व्‍यवस्‍था करे या (ख) सीडीआर पैकेज प्रभावी हो जाने के बाद प्रथम वर्ष के लिए देय ब्‍याज को आस्‍थगित करने हेतु सहमत हो। प्रथम वर्ष का आस्‍थगित ब्‍याज, बिना चक्रवृद्धि ब्‍याज के ऋणदाता को देय मूलधन की अंतिम किस्‍त के साथ अदा करना होगा।

10.2 इसके अलावा, उपर्युक्‍त मास्‍टर परिपत्र के अनुबंध 4 के पैरा 5.5.2 में यह निर्दिष्‍ट किया है कि न्‍यूनतम 75 प्रतिशत और 60 प्रतिशत के भीतर सभी ऋणदाताओं के लिए बाहर निकलेन (एग्जिट) का विकल्‍प उपलब्‍ध होगा, बशर्ते क्रेता अधिकार प्राप्‍त समूह द्वारा अनुमोदित पुनर्रचना पैकेज को मानने हेतु सहमत हों। एग्जिट करने वाले  ऋणदाताओं को उधारकर्ता के प्रति विद्यमान एक्सपोजर के स्तर पर बने रहने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते वे वर्तमान ऋणदाताओं के साथ या अतिरिक्‍त वित्‍त के अपने अंश का वहन करने वाले नए ऋणदाताओं के साथ गठजोड़ करें।

10.3 यह निर्णय लिया गया है कि अब से अतिरिक्‍त वित्‍त प्रदान करने हेतु उपर्युक्‍त एक्जिट विकल्‍प का प्रयोग केवल नए या विद्यमान ऋणदाता द्वारा उसके हिस्‍से के लिए दिए जाने वाले अतिरिक्‍त वित्‍त उपलब्‍ध कराये जाने के तहत कर सकते हैं, इस बात पर ध्‍यान दिए बिना कि वे न्‍यूनतम 75 प्रतिशत और 60 प्रतिशत के भीतर है या बाहर। विद्यमान एक्जिट विकल्‍प के अन्‍य प्रावधान (उक्त मास्‍टर परिपत्र के अनुबंध 4 का पैरा 5.5.3 के अनुसार)  अर्थात् अपने वर्तमान शेयर विद्यमान उधारकर्ता या नए उधारकर्ता को बेचकर पैकेज से बाहर जाने का विकल्‍प जारी रहेगा।

10.4 26 फरवरी 2014 के परिपत्र सं. 98 के पैरा 3.2 के अंतर्गत बैंक/वित्‍तीय कंपनी द्वारा एससी/आरसी को वित्‍त्‍ीय आस्तियां बेची जा सकती हैं, जहां बैंक/वित्‍तीय कंपनी द्वारा सीआरआईएलसी को एसएमए-2 के रूप में आस्ति रिपोर्ट की गयी है।

10.5 हमें यह अभ्‍यावेदन मिला है कि जेएलएफ के अंतर्गत सीएपी निर्धारित करने के बाद एसी/आरसी को खातों की बिक्री से सीएपी का कार्यान्‍वयन बाधित होता है, विशेषतः ऐसे मामलों में, जहां ऋणदाता से पुनर्रचना के अंतर्गत अतिरिक्‍त वित्‍त अपेक्षित है। उपर्युक्‍त को ध्‍यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि यदि सीएपी के रूप में पुनर्रचना करने का निर्णय लिया गया है, तो नए या विद्यमान उधारकर्ता द्वारा दिए जाने वाले अतिरिक्‍त वित्‍त की व्‍यवस्‍था किए बिना बैंकों को ऐसी आस्तियां एसी/आरसी को बेचने की अनुमति नहीं होगी।

भवदीय,

(सुदर्शन सेन)

प्रभारी मुख्‍य महाप्रबंधक

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