अपने ग्राहक को जानिए मानदंड /धन शोधन निवारण मानक / आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)/ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत बैंकों के दायित्व - आरबीआई - Reserve Bank of India
अपने ग्राहक को जानिए मानदंड /धन शोधन निवारण मानक / आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी)/ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत बैंकों के दायित्व
आरबीआइ/2009-10/490 10 जून 2010 अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदय अपने ग्राहक को जानिए मानदंड /धन शोधन निवारण मानक / कृपया अपने ग्राहक को जानिए मानदंड/धन शोधन निवारण मानक/आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (सीएफटी) /धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत बैंकों के दायित्व पर 1 जुलाई 2009 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. एएमएल. बीसी. सं. 2/14.01.001/2009-10 देखें। व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा खोले गए ग्राहक खाते 2. 1 जुलाई 2009 के उपर्युक्त मास्टर परिपत्र के पैराग्राफ 2.5(iii) के अनुसार "जब किसी बैंक को यह पता है अथवा ऐसा विश्वास करने का कारण है कि व्यावसायिक मध्यवर्ती द्वारा खोला गया ग्राहक खाता किसी एकल ग्राहक के लिए है तो उस ग्राहक की पहचान कर ली जानी चाहिए । बैंकों के पास म्युच्युअल निधियों, पेंशन निधियों अथवा अन्य प्रकार की निधियों जैसी संस्थाओं की ओर से व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते हो सकते हैं । बैंकों में विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए‘ऑन डिपाज़िट’ अथवा ‘इन एक्रो’ धारित निधियों के लिए वकीलों/चार्टर्ड एकाउंटंट्स अथवा स्टॉक ब्रोकरों द्वारा प्रबंधित ‘समूहित’ खाते भी होते हैं। जहां मध्यवर्तियों द्वारा धारित निधियां बैंक में एक साथ मिश्रित नहीं होती हैं और बैंक में ‘उप-खाते’ भी हैं, जिनमें से प्रत्येक किसी एक हितार्थी स्वामी का खाता हो, वहां सभी हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी होगी । जहां ऐसी निधियों को बैंक में एक साथ मिश्रित किया गया है, वहां भी बैंक को हितार्थी स्वामियों की पहचान करनी चाहिए "। साथ ही, उक्त परिपत्र के पैराग्राफ 2.4(क) के अनुसार यदि बैंक ग्राहक स्वीकृति नीति के अनुसारण में किसी खाते को स्वीकार करने का निर्णय लेता है तो संबंधित बैंक को चाहिए कि वे हितार्थी स्वामी/स्वामियों की पहचान करने हेतु समुचित कदम उठाएं और उसकी/उनकी पहचान का सत्यापन इस प्रकार करें ताकि इस बात की संतुष्टि हो जाए कि हितार्थी स्वामी कौन है। अत: मौजूदा एएमएल/सीएफटी ढांचे में वकील तथा चार्टर्ड एकाउंटंट्स आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों के लिए अपने ग्राहकों की ओर से खाता रखना संभव नहीं है, क्योंकि वे ग्राहक गोपनीयता से बंधे होते हैं जिसके कारण ग्राहक के ब्योरे प्रकट करना प्रतिबंधित है। 3.अत: इस बात को फिर से दोहराया जाता है कि बैंकों को वकीलों तथा चार्टर्ड एकाउंटंट्स आदि जैसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा ग्राहक/ग्राहकों की ओर से खाता खोलने तथा/अथवा रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए क्योंकि वे ग्राहक गोपनीयता की व्यावसायिक बाध्यता के कारण खाते के स्वामी की सही पहचान प्रकट नहीं कर सकते। इसके अलावा,ऐसे किसी भी व्यावसायिक मध्यवर्ती को किसी ग्राहक की ओर से खाता खोलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जो किसी बाध्यता से संबंध होने के कारण जिस ग्राहक की ओर से खाता रखा गया है उसकी सही पहचान अथवा खाते के लाभार्थी स्वामी की सही पहचान जानने तथा सत्यापित करने अथवा लेनदेन के सही स्वरूप तथा प्रयोजन को समझने की बैंक की क्षमता को प्रतिबंधित करता है। 4. ये दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अंतर्गत जारी किए गए हैं। इनका कोई भी उल्लंघन होने पर अथवा अनुपालन न करने पर बैंककारी विनियमन अधिनियम के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है। भवदीय (विनय बैजल) |