वृहत् एक्सपोज़र ढांचा - आरबीआई - Reserve Bank of India
वृहत् एक्सपोज़र ढांचा
आरबीआई/2018-19/196 3 जून 2019 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक महोदया/ महोदय वृहत् एक्सपोज़र ढांचा कृपया वृहत् एक्सपोज़र ढांचा (एलईएफ़) विषय पर दिनांक 01 दिसंबर 2016 का परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी. बीसी.43/21.01.003/2016-17 और 01 अप्रैल 2019 का परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.31/21.01.003/2018-19 द्वारा जारी अनुदेशों को देखें। 2. एक्सपोजर तथा संकेंद्रण को अधिक सटीक रूप से पहचानने तथा अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप उपरोक्त निर्देशों को संरेखित करने के लिए, उक्त अनुदेशों में निम्नलिखित संशोधनों को शामिल किया गया है: i) सरकार से जुड़े संस्थाओं को संबंधित प्रतिपक्षकारों के समूह की परिभाषा से छूट। ii) संबंधित प्रतिपक्षकारों की परिभाषा में आर्थिक परस्पर निर्भरता मानदंड को शामिल करना। iii) संग्रहित निवेश दायित्वों, प्रतिभूतिकरण साधनों और अन्य संरचनाओं के मामले में प्रासंगिक प्रतिपक्षकारों के निर्धारण के लिए लुक-थ्रू दृष्टिकोण (एलटीए) को अनिवार्य करना। 3. उपर्युक्त परिपत्रों के अधिक्रमण में संशोधित दिशा-निर्देश संलग्न हैं। ये परिपत्र 1 अप्रैल 2019 से प्रभावी हैं (जैसा कि पहले हमारे द्वारा दिनांक 1 दिसंबर 2016 को जारी एलईएफ़ परिपत्र में निर्दिष्ट किया गया था), जिसमें अनुच्छेद सं 2 (ii) के संबंध में दिशानिर्देश (अनुबंध के पैराग्राफ 6.2(बी), 6.7, 6.8 6.9, और 6.10 में शामिल है) और केंद्रीकृत रूप से समाशोधित न होने वाले डेरिवेटिव एक्सपोज़र शामिल नहीं है, जो 1 अप्रैल 2020 से प्रभावी होंगे। भवदीय, (सौरभ सिन्हा) वृहत् एक्सपोजर ढांचा 1. प्रस्तावना 1.1 किसी बैंक के अपने प्रतिपक्षकारों के प्रति एक्स्पोजरों के परिणामस्वरूप किसी एक प्रतिपक्षकार अथवा संबंधित प्रतिपक्षकारों के समूह में उसकी आस्तियों का संकेंद्रण हो सकता है। संकेंद्रण जोखिम को संबोधित करने हेतु पहले कदम के रूप में रिज़र्व बैंक ने मार्च 1989 में वैयक्तिक व्यावसायिक फर्म तथा समूह की व्यावसायिक फर्मों के प्रति बैंक के एक्सपोजर की सीमाएं तय कर दी थीं। तब से भारतीय रिज़र्व बैंक के विवेकपूर्ण एक्सपोजर मानदंडों में विकास हुआ है तथा वर्तमान में एकल उधारकर्ता तथा उधारकर्ता समूह के लिए किसी बैंक का एक्सपोजर उसकी पूंजी निधियों के क्रमश: 15 प्रतिशत और 40 प्रतिशत तक सीमित है। इस विषय पर विस्तृत नीतिगत ढांचा मास्टर परिपत्र – एक्सपोजर मानदंड में समेकित किए गए हैं। 1.2 जनवरी 1991 में बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति (बीसीबीएस) ने बड़े एक्स्पोजरों, यथा वृहत् ऋण एक्स्पोजरों की गणना और नियंत्रण पर पर्यवेक्षी दिशानिर्देश जारी किए। साथ ही, बीसीबीएस द्वारा अक्तूबर 2006 में प्रकाशित (तथा सितंबर 2012 में संशोधित) प्रभावी बैंकिंग पर्यवेक्षण के मूल सिद्धान्तों (मूल सिद्धान्त सं.19) में यह निर्धारित किया गया है कि स्थानीय कानून तथा बैंक विनियमों में एकल उधारकर्ता अथवा उधारकर्ताओं के निकट संबंध वाले समूह को वृहत् एक्सपोजर के लिए विवेकपूर्ण सीमाएं निर्धारित की जाएं। वृहत् एक्स्पोजरों से निपटने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के विनियमों में एकरूपता लाने की दृष्टि से बीसीबीएस ने अप्रैल 2014 में “वृहत् ऋण एक्स्पोजरों की गणना और नियंत्रण के लिए पर्यवेक्षी ढांचा” पर मानक जारी किए। रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकों के लिए इन मानकों को उचित रूप से अपनाने का निर्णय लिया और तदनुसार, निम्नलिखित परिच्छेदों में बैंक के वृहत् एक्स्पोजरों (एलई) पर अनुदेशों का वर्णन किया गया है। 2. प्रयोज्यता का दायरा 2.1 बैंकों को वृहत् एक्स्पोजरों पर ढांचा (एलईएफ) उसी स्तर पर लागू करना है, जिस पर जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाएं लागू की गई हैं, अर्थात् कोई बैंक एलईएफ मानदंडों का अनुपालन दो स्तरों पर करेगा: (क) समेकित (समूह)1 स्तर पर तथा (ख) एकल स्तर2 पर। 2.2 समेकित स्तर पर एलईएफ को लागू करने का आशय यह होगा कि बैंक को प्रतिपक्षकारों के प्रति सभी बैंकिंग समूह संस्थाओं के एक्स्पोजरों (शाखाओं और अनुषंगियों के माध्यम से विदेशी परिचालनों सहित) पर विचार करना चाहिए, जो समेकन के विनियामक दायरे के अंतर्गत हैं, तथा उन एक्स्पोजरों के योग की बैंकिंग समूह के पात्र समेकित पूंजी आधार के साथ तुलना करनी चाहिए। 3. प्रतिपक्षकारों का दायरा और छूटें 3.1 एलईएफ के अंतर्गत, नीचे सूचीबद्ध किए गए एक्स्पोजरों को छोड़ कर3, बैंक के उसके सभी प्रतिपक्षकारों तथा संबंधित प्रतिपक्षकारों के समूह के प्रति एक्सपोजर को एक्सपोजर सीमाओं के लिए गिना जाएगा। एलईएफ से छूट प्राप्त एक्स्पोजरों की सूची नीचे दी गई है: ए. भारत सरकार और राज्य सरकारों को एक्सपोजर, जो भारतीय रिज़र्व बैंक के बासल III – पूंजी विनियमावली ढांचे के अंतर्गत शून्य प्रतिशत जोखिम भार के लिए पात्र हैं; बी. भारतीय रिज़र्व बैंक को एक्सपोजर सी. ऐसे एक्सपोजर, जहां मूलधन और ब्याज भारत सरकार द्वारा पूर्ण गारंटीकृत हैं। डी. भारत सरकार द्वारा जारी वित्तीय लिखतों द्वारा प्रतिभूत एक्सपोजर, उस सीमा तक, जहां तक वे इस परिपत्र के पैरा 7.III के अनुसार ऋण जोखिम कम करने (सीआरएम) के लिए मान्य पात्रता मानदंडों को पूरा करते हों; ई. अंतर-दिवसीय बैंकों के बीच एक्सपोजर; एफ़. अंतर-समूह एक्सपोजर4 जी. ऐसे उधारकर्ता, जिनकी खाद्य ऋण के लिए सीमाएं रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत की गई हैं; एच. इस परिपत्र के पैरा 10.I में दिए गए ब्योरे के अनुसार अर्हताप्राप्त केंद्रीय प्रतिपक्षकारों (क्यूसीसीपी) के प्रति बैंक के समाशोधन संबंधी एक्सपोजर; आई. प्राथमिकता वाले क्षेत्र के ऋण के लक्ष्यों की प्राप्ति में कमी के कारण नाबार्ड के पास रखी गईं जमाराशियां। 3.2 जहां दो (या अधिक) संस्थाएं जो सरकारी छूट के दायरे से बाहर हैं, वे सरकारी छूट (पैरा 3.1) (ए) और 3.1 (बी)) प्राप्त इकाई द्वारा नियंत्रित या आर्थिक रूप से ऐसे इकाई पर निर्भर हैं, और अन्यथा जुड़ा नहीं है, उन संस्थाओं को जुड़े समकक्षों के एक समूह के रूप में नहीं समझा जाएगा। 3.3 तथापि, किसी छूट-प्राप्त संस्था के प्रति बैंक का एक्सपोजर, जो किसी क्रेडिट डेरिवेटिव द्वारा रक्षित है, को क्रेडिट संरक्षण उपलब्ध कराने वाले प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर माना जाएगा, इस तथ्य के बावजूद कि मूल एक्सपोजर को छूट प्राप्त है। 3.4 बैंक को सभी छूट-प्राप्त एक्सपोजर रिपोर्ट करने चाहिए, जैसा कि नीचे पैरा 4.2 में विनिर्दिष्ट विनियामक रिपोर्टिंग के अंतर्गत अपेक्षित है, यदि ये एक्सपोजर नीचे पैरा 4.1 के अनुसार वृहत् एक्सपोजर की परिभाषा के मानदंड पूर्ण करते हों। 4. वृहत् एक्सपोजर तथा विनियामक रिपोर्टिंग की परिभाषा 4.1 एलईएफ के अंतर्गत किसी प्रतिपक्षकार या संबंधित प्रतिपक्षकारों के समूह (नीचे पैरा 6 में परिभाषित किए गए अनुसार) के प्रति बैंक के सभी एक्सपोजर मूल्यों का जोड़ (इस ढांचे के पैरा 7, 8, 9 और 10 में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार गणना किए गए) यदि बैंक के पात्र पूंजी आधार (अर्थात् नीचे पैरा 5.3 में यथाविनिर्दिष्ट टियर 1 पूंजी) के 10 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक हो, तो उसे वृहत् एक्सपोजर (एलई) के रूप में परिभाषित किया गया है। 4.2 बैंक परिशिष्ट 1 में दिए गए रिपोर्टिंग टेम्पलेट के अनुसार अपने बड़े एक्स्पोजरों को भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय को रिपोर्ट करेंगे। रिपोर्टिंग में अन्य बातों के साथ- साथ निम्नलिखित शामिल होंगे: i. इस ढांचे के पैरा 7, 8, 9 और 10 में विनिर्दिष्ट अनुसार गणना किए गए सभी एक्सपोजर, जिनका मूल्य बैंक की पात्र पूंजी के 10 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक हो (अर्थात् ऊपर पैरा 4.1 के अनुसार वृहत् एक्सपोजर की परिभाषा के अनुरूप); ii. इस ढांचे के पैरा 7, 8, 9 और 10 में विनिर्दिष्ट अनुसार गणना किए गए ऋण जोखिम कम करने (सीआरएम) के प्रभाव के बिना अन्य सभी एक्सपोजर, जिनका मूल्य बैंक के पात्र पूंजी आधार के 10 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक हो; iii. सभी छूट-प्राप्त एक्सपोजर (अंतरदिवसीय अन्तर-बैंक एक्स्पोजरों को छोड़ कर), जिनका मूल्य बैंक के पात्र पूंजी आधार के 10 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक हो; iv. बैंक के पात्र पूंजी आधार में इन एक्स्पोजरों के मूल्यों के बावजूद, प्रयोज्यता के दायरे में शामिल 20 सर्वाधिक एक्सपोजर। 5. वृहत् एक्सपोजर सीमाएं 5.1 एकल प्रतिपक्षकार: किसी एकल प्रतिपक्षकार के प्रति किसी बैंक के सभी एक्सपोजर मूल्यों का योग सभी समय में बैंक के उपलब्ध पात्र पूंजी आधार के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। अपवादात्मक मामलों में, बैंक का बोर्ड बैंक के उपलब्ध पात्र पूंजी आधार के 5 प्रतिशत अतिरिक्त एक्सपोजर की अनुमति दे सकता है। इस संबंध में बैंक एक बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति निर्धारित करेंगे। 5.2 संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह: संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह (इस परिपत्र के पैरा 6 में यथापरिभाषित) के प्रति किसी बैंक के सभी एक्सपोजर मूल्यों का योग सभी समय में बैंक के उपलब्ध पात्र पूंजी आधार के 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। 5.3 इस प्रयोजन के लिए पात्र पूंजी आधार अंतिम लेखापरीक्षित तुलन पत्र के अनुसार टियर 1 पूंजी की प्रभावी राशि है, जो मास्टर परिपत्र बासल III - पूंजी विनियमावली पर 1 जुलाई 2015 (समय समय पर अद्यतित) में परिभाषित मानदंड को पूरा करता हो। तथापि, प्रकाशित तुलनपत्र की तारीख के बाद टीयर I के तहत पूंजी का समावेश करना बड़े एक्सपोजर फ्रेमवर्क के उद्देश्य के लिए ध्यान में रखा जाता है। बैंक पूँजी के संवर्द्धन के पूरा होने पर बाहरी लेखा परीक्षक का प्रमाण पत्र प्राप्त करेंगे और उसे पूँजी निधियों में संवर्धन की गणना करने से पहले भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग) को प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा, भारतीय बैंकों के लिए, वर्ष के दौरान अर्जित लाभ, 01 जुलाई 2015 को बासल III पर जारी मास्टर परिपत्र (समय-समय पर संशोधित), के पैरा 4.2.3.1 (vii) में निहित प्रावधानों के अधीन है, जिसे बड़े एक्सपोजर फ्रेमवर्क के उद्देश्य से टियर I पूंजी के रूप में माना जाएगा। 5.4 एक्सपोजर की गणना उक्त के पैरा 7 – 10 में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार ही की जानी चाहिए। यह नोट किया जाए कि, उक्त के पैरा 10 में यथाउल्लिखित कुछ प्रतिपक्षकारों के मामले में उपर्युक्त वृहत् एक्सपोजर सीमाओं को न्यूनाधिक किया जाएगा। 5.5 उपर्युक्त वृहत् एक्सपोजर सीमाओं का कोई भी उल्लंघन केवल अपवादात्मक परिस्थितियों में तथा बैंक के नियंत्रण से परे स्थितियों में किया जाएगा तथा जिसकी रिपोर्ट तत्काल भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय) को की जाएगी और उसे यथाशीघ्र दुरुस्त किया जाएगा। 6. संबद्ध प्रतिपक्षकारों की परिभाषा 6.1 कुछ मामलों में बैंक के एक्सपोजर प्रतिपक्षकारों के ऐसे समूह के प्रति हो सकते हैं, जिनका विनिर्दिष्ट संबंध या निर्भरता इस प्रकार हो कि यदि इनमें से एक प्रतिपक्षकार विफल होता है, तो सभी प्रतिपक्षकार विफल हो सकते हैं। इस प्रकार का कोई समूह, जिसे इस ढांचे में संबद्ध प्रतिपक्षकारों का समूह कहा गया है, को एकल प्रतिपक्षकार माना जाना चाहिए। इस मामले में संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह की सभी अलग-अलग संस्थाओं के प्रति बैंक के एक्स्पोजरों का योग ऊपर अनुच्छेद सं 5.2 में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार बड़े एक्सपोजर सीमा तथा विनियामकीय रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अधीन है। 6.2 दो या अधिक नैसर्गिक या विधिक व्यक्तियों को संबद्ध प्रतिपक्षकारों का समूह माना जाएगा, यदि इनमें से कम से कम एक मानदंड की पूर्ति हो: क) नियंत्रण संबंध: प्रतिपक्षों में से एक, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, दूसरे पर नियंत्रण रखता है या प्रतिपक्ष, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, किसी तीसरे पक्ष द्वारा नियंत्रित होता है (इस तीसरे पक्ष के प्रति बैंक का एक्स्पोज़र हो या नहीं भी हो सकता है)। नियंत्रक इकाई में वित्तीय समस्या होने पर, इसकी अत्यधिक संभावना है कि नियंत्रित इकाई से पूंजी और / या चलनिधि निकालने की क्षमता का उपयोग कर सकती है, जिससे नियंत्रित इकाई का वित्तीय स्थिति कमजोर हो सकती है। वित्तीय समस्याओं को नियंत्रित इकाई में अंतरित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नियंत्रण करने वाले इकाई और नियंत्रक इकाई दोनों वित्तीय समस्याओं (डोमिनो प्रभाव) का सामना करेंगे। विवेकपूर्ण दृष्टिकोण से, इस प्रकार के ग्राहक (नियंत्रण से जुड़े) एकल जोखिम बनाते हैं। ख) आर्थिक अंतर निर्भरता: यदि प्रतिपक्षों में से एक को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से निधि सम्बंधी या पुनर्भुगतान कठिनाइयों, तो इसके परिणामस्वरूप, दूसरे को निधि सम्बंधी या अदायगी की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। 6.3 संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह के अस्तित्व को स्थापित करने के लिए बैंकों को चाहिए कि वे उक्त (क) और (ख)5 मानदंडों के संदर्भ में प्रतिपक्षकारों के बीच संबंध का मूल्यांकन करें। क्या प्रतिपक्षकारों के बीच कोई नियंत्रण संबंध है, इसे आंकने के लिए बैंकों को स्वत: विचार करना चाहिए कि यदि एक संस्था के पास अन्य संस्था के मताधिकारों के 50 प्रतिशत से अधिक का स्वामित्व है, तो नियंत्रण संबंध मानदंड (ऊपर पैरा 6.2(क)) की स्वत: पूर्ति हो गई है। इसके अतिरिक्त, बैंकों को नियंत्रण के आधार पर निम्नलिखित प्रमाणों का प्रयोग करते हुए प्रतिपक्षकारों के बीच संबद्धता का मूल्यांकन करना चाहिए: क. मत संबंधी करार (जैसे कि अन्य शेयरधारकों के साथ किसी करार के अनुसार बहुलांश मताधिकारों पर नियंत्रण); ख. किसी संस्था के प्रशासनिक, प्रबंधकीय अथवा पर्यवेक्षी निकाय की नियुक्ति या बरखास्तगी पर महत्वपूर्ण प्रभाव, जैसे कि उन निकायों में बहुलांश सदस्यों की नियुक्ति या हटाने का अधिकार, या यह तथ्य कि अधिकतर सदस्यों की नियुक्ति किसी एक ही संस्था द्वारा मताधिकार का प्रयोग करने के परिणामस्वरूप हुई है; ग. वरिष्ठ प्रबंध तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव, जैसे कि किसी संस्था के पास किसी करार के अनुसार या अन्य प्रकार से अन्य संस्था के प्रबंधन या नीतियों पर नियंत्रणात्मक प्रभाव डालने की शक्ति है (जैसे कि महत्वपूर्ण निर्णयों पर सहमति के अधिकार के माध्यम से, किसी इकाई की रणनीति या गतिविधियों को संचालित करने पर निर्णय लेने के लिए, लाभ या हानि के हस्तांतरण जैसे महत्वपूर्ण लेनदेन के बारे में निर्णय लेने के लिए)। घ. उपर्युक्त मानदंड का आकलन एक सामान्य तीसरे पक्ष (जैसे होल्डिग कंपनी) के संबंध में भी किया जा सकता है, भले ही बैंक के पास उस इकाई के प्रति कोई एक्सपोजर हो या नहीं; 6.4 बैंकों से यह भी अपेक्षित है कि नियंत्रण का निर्धारण करते समय और अधिक गुणात्मक मार्गदर्शन के लिए मौजूदा लेखांकन मानकों में विनिर्दिष्ट मानदंडों का संदर्भ लें। 6.5 नियंत्रण संबंध का निर्धारण करते समय, बैंकों को उन मामलों की भी जांच करनी चाहिए जहां ग्राहकों के पास सामान्य स्वामित्व, शेयरधारक या प्रबंधक हो; उदाहरण के लिए, हॉरिज़ंटल समूह जहां एक उपक्रम एक या एक से अधिक उपक्रमों से संबंधित होता है क्योंकि एक एकल नियंत्रित शेयरधारक के बिना सभी में एक ही शेयरधारक संरचना होती है या क्योंकि वे एक एकीकृत आधार पर प्रबंधित होते हैं। यह प्रबंधन उपक्रमों के बीच या संस्था के बहिर्नियम या अंतर्नियम प्रावधानों के लिए या यदि प्रशासनिक प्रबंधन या उपक्रमों के पर्यवेक्षण निकाय और एक या एक से अधिक उपक्रम, उसी व्यक्ति के, प्रमुख हिस्से के लिए, संपन्न अनुबंध उसी के अनुरुप हो सकता है। 6.6 जहां उपर्युक्त में से किसी भी मानदंड के आधार पर नियंत्रण स्थापित हो चुका हो, फिर भी कोई बैंक अपवादात्मक परिस्थितियों, उदाहरणार्थ, विशिष्ट परिस्थितियों और कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुरक्षा के कारण प्रतिपक्षकारों के बीच नियंत्रण का अस्तित्व, में भारतीय रिज़र्व बैंक को यह जता सकता है कि यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे नियंत्रण के परिणामस्वरूप संस्थाओं द्वारा संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह का गठन किया जाए। उदाहरण के लिए, विशिष्ट मामलों में जहां एक विशेष उद्देश्य इकाई (एसपीई) जो किसी अन्य ग्राहक (जैसे एक प्रवर्तक) द्वारा नियंत्रित होती है, पूरी तरह से रिंग-फेंसड और दिवालियापन रिमोट है (व्यवस्था उस प्रभाव के लिए मौजूद है कि मूल उपक्रम के दिवालिया होने की स्थिति में एसपीई की संपत्ति मूल उपक्रम के उधारदाताओं के लिए उपलब्ध नहीं है) - ताकि संक्रमण का कोई संभावित चैनल न हो। इसलिए विशेष उद्देश्य इकाई और नियंत्रित मूल इकाई के बीच कोई एकल जोखिम मौजूद नहीं है। 6.7 आर्थिक निर्भरता पर आधारित संयोजकता स्थापित करने में, बैंकों को कम से कम, निम्न मानदंडों पर विचार करना चाहिए:
अनुबंध 2 में उदाहरण दिए गए हैं: 6.8 हालाँकि, ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं, जहाँ इनमें से कुछ मानदंड अपने आप में आर्थिक निर्भर नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप दो या दो से अधिक प्रतिपक्ष जुड़े हुए हैं। बशर्ते कि बैंक यह प्रदर्शित कर सके कि एक प्रतिपक्ष जो आर्थिक रूप से किसी अन्य प्रतिपक्ष से निकट से संबंधित है, वह वित्तीय कठिनाइयों या यहां तक कि दूसरे प्रतिपक्ष के चूक को वैकल्पिक व्यापार भागीदार या एक उचित समय अवधि के भीतर निधियन स्रोतों को खोजकर, दूर कर सकता है, तो बैंक को इन प्रतिपक्षों को जोड़कर सन्युक्त प्रतिपक्षों का एक समूह बनाने की आवश्यकता नहीं है। 6.9 ऐसे मामलों से बचने के लिए जहां आर्थिक अंतरनिर्भरता की गहन जांच, एक्सपोज़र के आकार के अनुपात में नहीं होगी, बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे सभी मामलों में आर्थिक निर्भरता के आधार पर संभावित जुड़े समकक्षों की पहचान करें, जहां सभी एक्स्पोज़र का योग एक व्यक्तिगत प्रतिपक्ष के पात्र पूंजी के 5% से अधिक है और अन्य मामलों में नहीं। 6.10 आर्थिक निर्भरता के माध्यम से नियंत्रण और परस्पर निर्भरता द्वारा परस्पर निर्भरता के बीच संबंध: नियंत्रण और आर्थिक अन्योन्याश्रय पर आधारित प्रतिपक्षों के समूह का अलग-अलग मूल्यांकन किया जाना है। हालाँकि, ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ दो प्रकार की निर्भरताएँ आपस में जुड़ी होती हैं और इसलिए जुड़े हुए प्रतिपक्षों के एक समूह के भीतर इस तरह से मौजूद हो सकती हैं कि सभी संबंधित ग्राहक एक ही जोखिम का सामना करते हैं। संक्रमण का जोखिम प्रतिपक्षों के भीतर संयुक्तता के प्रकार (अर्थात नियंत्रण या आर्थिक अन्योन्याश्रय) के बावजूद भी मौजूद है। संक्रमण की श्रृंखला संबंधित सभी संस्थाओं के संभावित चूक के लिए प्रासंगिक कारक है और प्रत्येक व्यक्तिगत मामले में मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। परिशिष्ट 3 में उदाहरण दिए गए हैं। 6.11 बैंक उपरोक्त उल्लिखित मानदंडों का उपयोग करके सन्युक्तता को निर्धारित करने के लिए अनुमोदित बोर्ड की रूपरेखा तैयार करेंगे। नीतियां पर्यवेक्षी जांच के अधीन हैं। 7. एक्स्पोजरों के मूल्य 7.I गणना के सामान्य सिद्धान्त 7.1 प्रस्तावित वृहत् एक्सपोजर ढांचे के अंतर्गत किसी प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर में बैंकिंग या ट्रेडिंग बही और लिखतों में शामिल प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम के साथ तुलनपत्र पर और तुलनपत्रेतर, दोनों एक्सपोजर शामिल होंगे। इस खंड में ऐसे एक्सपोजरों की परिभाषा और गणना दी गई है। 7.II वृहत् एक्सपोजर ढांचे के अंतर्गत एक्सपोजर मूल्यों की परिभाषा 7.2 बैंकिंग बही तुलनपत्र में गैर-व्युत्पन्नी आस्तियां: एक्सपोजर मूल्य को एक्सपोजर के लेखांकन मूल्य के रूप में परिभाषित किया गया है।6 एक विकल्प के रूप में बैंक विनिर्दिष्ट प्रावधानों और मूल्य समायोजनों के सकल को एक्सपोजर मूल्य पर मान सकता है। 7.3 बैंकिंग बही और ट्रेडिंग बही ओटीसी डेरिवेटिव (तथा प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम वाले कोई अन्य लिखत): ऐसे लिखत, जो प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम को बढ़ाते हैं और जो लेनदेन का वित्तपोषण करने वाली प्रतिभूतियां नहीं हैं, का एक्सपोजर मूल्य निर्धारण रिज़र्व बैंक द्वारा (चूक के संबंध में एक्सपोजर पर) प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम7 के लिए यथा-निर्धारित मौजूदा अनुदेशों के अनुसार किया जाना चाहिए। 7.4 प्रतिभूति वित्तपोषण लेनदेन (एसएफटी): बैंकों को उसी तरीके का प्रयोग करना चाहिए, जो वे फिलहाल एसएफटी के विरुद्ध अपनी जोखिम-आधारित पूंजी आवश्यकताओं की गणना के लिए प्रयोग करते हैं। 7.5 बैंकिंग बही की “पारंपरिक” तुलनपत्रेतर प्रतिबद्धताएं: वृहत् एक्सपोजर ढांचे के प्रयोजन से तुलनपत्रेतर मदों को जोखिम –आधारित पूंजी अपेक्षाओं के लिए मानकीकृत विधि हेतु निर्धारित निम्नतम 10 प्रतिशत सीसीएफ का प्रयोग करते हुए ऋण संपरिवर्तन कारकों (सीसीएफ) के प्रयोग के द्वारा ऋण एक्सपोजर समतुल्य के रूप में परिवर्तित किया जाएगा। 7.III पात्र ऋण जोखिम कम करने (सीआरएम) की तकनीकें 7.6 वृहत् एक्सपोजर ढांचे के प्रयोजन से पात्र ऋण जोखिम कम करने की तकनीकें वे हैं जो गैर- निधीकृत ऋण संरक्षण8 के लिए न्यूनतम अपेक्षाओं तथा मान्यता हेतु पात्रता मानदंडों को पूरा करती हैं तथा वे वित्तीय संपार्श्विक जो जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं के प्रयोजन से ऋण जोखिम की मानकीकृत विधि के अंतर्गत पात्र वित्तीय संपार्श्विक के रूप में अर्हता प्राप्त हैं। 7.7 संपार्श्विकों के अन्य रूप, जो केवल आंतरिक रेटिंग आधारित (आईआरबी) विधि के अंतर्गत पात्र हैं (प्राप्य, वाणिज्यिक तथा आवासीय स्थावर संपदा और अन्य संपार्श्विक), एलईएफ के प्रयोजन से एक्सपोजर मूल्य घटाने के लिए पात्र नहीं हैं। 7.8 किसी बैंक को ऐसे एक्सपोजर की गणना में पात्र सीआरएम तकनीक को मान्यता देनी चाहिए जहां उसने जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं की गणना के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया हो, बशर्ते कि वह एलईएफ के अंतर्गत मान्यता देने की शर्तों को पूर्ण करता हो। 7.9 सीआरएम में परिपक्वता संबंधी विसंगति का ट्रीटमेंट मास्टर परिपत्र – बासल III पूंजी विनियमावली के पैरा 5.17 और 7 में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार परिपक्वता संबंधी विसंगति वाले बचाव (हेजेस) को केवल तभी मान्यता दी जाएगी जब उनकी मूल परिपक्वताएं एक वर्ष के बराबर या उससे अधिक हैं और बचाव की अवशिष्ट परिपक्वता तीन महीने से कम नहीं हो। 7.10 यदि जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षा में मान्य ऋण जोखिम कम करने वाले तत्वों (संपार्श्विक, तुलनपत्र पर नेटिंग, गारंटियां और ऋण व्युत्पन्नियां) के संबंध में परिपक्वता संबंधी विसंगति हो, वृहत एक्स्पोजरों की गणना के प्रयोजन से ऋण संरक्षण में समायोजन का निर्धारण उसी विधि का प्रयोग करके किया जाएगा, जैसा कि जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षा के लिए किया गया है9। 7.11 तुलन-पत्र पर नेटिंग: जहां बैंक के पास ऋणों और जमाराशियों के लिए विधिक रूप से प्रवर्तनीय नेटिंग व्यवस्था है, वहां वह वृहत् एक्सपोजर प्रयोजन से एक्सपोजर मूल्य की गणना उस गणना के अनुसार कर सकता है, जो वह पूंजी अपेक्षाओं के प्रयोजन से, अर्थात् जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षा10 में तुलन-पत्र पर नेटिंग की विधि में निर्धारित शर्तों के अधीन निवल ऋण एक्स्पोजरों के आधार पर प्रयोग करता है। 7. IV. मूल एक्सपोजर घटाने के लिए सीआरएम तकनीकों को मान्यता देना 7.12 वृहत् एक्सपोजर ढांचे के अंतर्गत कोई बैंक मूल प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर को जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं के प्रयोजन से मान्यता प्राप्त पात्र सीआरएम तकनीक (नीचे पैरा 7.14 में उल्लिखित मामलों को छोड़ कर) की राशि से घटा सकता है। यह मान्य राशि है:
7. V सीआरएम प्रदाताओं के प्रति एक्स्पोजरों को मान्यता 7.13 जहां कोई बैंक किसी अन्य प्रतिपक्षकार (सीआरएम प्रदाता) द्वारा उपलब्ध कराए गए पात्र सीआरएम लिखत के कारण उस एक्सपोजर के संबंध में मूल प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर घटाता है, तो उसे सीआरएम प्रदाता के प्रति एक्सपोजर को भी मान्यता देनी चाहिए। सीआरएम प्रदाता को निर्दिष्ट राशि वह राशि होगी, जिससे मूल प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर को घटाया गया है (नीचे पैरा 7.14 में उल्लिखित मामलों को छोड़ कर)। यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी सीआरएम लिखत (जैसे कि एसबीएलसी / प्रधान कार्यालय / अन्य विदेशी शाखा से बीजी) जिसमें से एक्सपोजर / जोखिम भार आदि को अंतरित करना जैसे सीआरएम लाभ प्राप्त नहीं किया जाता है, को सीआरएम प्रदाता पर एक एक्सपोजर के रूप में नहीं गिना जा सकता है। 7.14 जब ऋण संरक्षण ऋण चूक अदला-बदली (क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप) (सीडीएस) का रूप ले लेता है और सीडीएस प्रदाता या संदर्भित संस्था कोई वित्तीय संस्था नहीं है, तो ऋण संरक्षण प्रदाता को निर्दिष्ट की जाने वाली राशि वह राशि नहीं होगी जिससे मूल प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर को घटाया गया है, बल्कि वह मानकीकृत विधि- प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम (एसए-एससीआर) के अनुसार परिकलित प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम एक्सपोजर मूल्य के बराबर होगी, जब भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस मामले में दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जाएगा। तब तक बैंक प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम के लिए मास्टर परिपत्र - बासल III पूंजी विनियमावली में आरबीआई द्वारा निर्धारित किए गए मौजूदा तरीके का प्रयोग करें। इस पैरा के प्रयोजन से वित्तीय संस्थाओं में शामिल होंगे:
7. VI ट्रेडिंग बही पोज़ीशन के लिए एक्सपोजर मूल्य की गणना 7.15 किसी प्रतिपक्षकार के प्रति कुल एक्स्पोजरों की गणना के लिए किसी बैंक को चाहिए कि उस प्रतिपक्षकार के प्रति ट्रेडिंग बही में उत्पन्न होने वाले किन्हीं एक्स्पोजरों में उसी प्रतिपक्षकार के प्रति बैंकिंग बही में पड़े हुए किन्हीं अन्य एक्स्पोजरों को जोड़ दे। यहां विचार में लिए गए एक्सपोजर ट्रेडिंग बही में शामिल एक्सपोजरों के लिए किसी एकल प्रतिपक्षकार की चूक से संबंधित संकेंद्रण जोखिम से संगत हैं। अतएव किसी प्रतिपक्षकार, जिसे इस ढांचे के अंतर्गत छूट प्राप्त नहीं है, द्वारा जारी वित्तीय लिखतों के प्रति बैंक के एक्सपोजर वृहत एक्सपोजर सीमा के द्वारा अभिशासित होंगे, किंतु किसी विशिष्ट वस्तु अथवा मुद्रा में संकेंद्रण नहीं। 7.16 निश्चित ब्याजयुक्त लिखतों और इक्विटी का एक्सपोजर मूल्य एक्सपोजर के बाजार मूल्य के बराबर होगा12। 7.17 जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं13 का पालन करते हुए स्वैप, फ्यूचर, फॉरवर्ड तथा ऋण डेरिवेटिवों जैसे लिखतों को पोजीशनों में संपरिवर्तित किया जाना चाहिए14। इन लिखतों को उनके अलग-अलग चरणों में पृथक किया जाना चाहिए। किसी प्रतिपक्षकार के प्रति बैंक के कुल एक्स्पोजरों की गणना के लिए केवल लेनदेन वाले चरणों, जो वृहत् एक्सपोजर ढांचे के दायरे के भीतर उस प्रतिपक्षकार के प्रति बैंक के एक्सपोजर का प्रतिनिधित्व करते हैं, पर विचार किया जाना चाहिए15। 7.18 ऋण डेरिवेटिवों के मामले में, जो बेचे गए संरक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक्सपोजर संदर्भित नाम के प्रति होगा, तथा लिखत की शुरुआत करने वाले संबंधित संदर्भित नाम के मामले में इसकी देय राशि ऋण संरक्षण का पूर्ण मूल्य घटा कर होगी16। क्रेडिट लिंक्ड नोट्स (सीएलएन)17 के लिए संरक्षण विक्रेता बैंक से अपेक्षित होगा कि वह नोट के बॉन्ड जारीकर्ता तथा नोट के अंतर्निहित संदर्भिती, दोनों में अपनी पोजीशनों पर विचार करे। 7.19 इस ढांचे के अंतर्गत ऑप्शनों के एक्सपोजर मूल्य की गणना (प्राथमिक तौर पर ऋण ऑप्शन, जहां अनुमत हो, और इक्विटी ऑप्शन के लिए अभिप्रेत) जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं के लिए प्रयुक्त एक्सपोजर मूल्यों से अलग है। इस ढांचे के अंतर्गत ऑप्शन का एक्सपोजर मूल्य संबंधित अंतर्निहित लिखत में किसी चूक के परिणाम से ऑप्शन कीमतों में परिवर्तन(नों) के आधार पर होगा। अतएव, एक सामान्य लॉन्ग कॉल ऑप्शन के लिए एक्सपोजर मूल्य उसका बाजार मूल्य होगा तथा शॉर्ट पुट ऑप्शन के लिए यह ऑप्शन के नियत भाव में से उसका बाजार मूल्य घटा कर प्राप्त राशि के बराबर होगा। किसी शॉर्ट कॉल या लॉन्ग पुट ऑप्शन के मामले में अंतर्निहित में चूक/डिफॉल्ट के कारण हानि के बजाय लाभ होगा (अर्थात् एक ऋणात्मक एक्सपोजर), जिसके परिणामस्वरूप पहले मामले में ऑप्शन के बाजार मूल्य का एक्सपोजर होगा, तथा बाद वाले मामले में उसके नियत भाव में से उसका बाजार मूल्य घटा कर प्राप्त राशि के बराबर होगा। सभी मामलों में परिणामी पोजीशनों का अन्य एक्सपोजरों से प्राप्त पोजीशनों के साथ समेकित किया जाना चाहिए। समेकन के बाद ऋणात्मक निवल एक्सपोजरों को शून्य माना जाएगा। 7.20 लेनदेनों (अर्थात् इंडेक्स पोजीशन्स, प्रतिभूतीकरण, हेज निधियों या निवेश निधियों) में बैंकों के निवेश एक्सपोजर के मूल्य की गणना उन्हीं नियमों का प्रयोग करके की जानी चाहिए, जो बैंकिंग बही में समान प्रकार के लिखतों के लिए प्रयुक्त हैं (8.3 तथा 8.4 के अंतर्गत पैरा देखें) । 7. VII ट्रेडिंग बही में अधिक्रय (लॉन्ग) तथा अधिविक्रय (शॉर्ट) पोजीशनों का समंजन 7.21 एक समान निर्गम में लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशनों का समंजन: बैंक एक समान निर्गम में लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशनों का समंजन कर सकते हैं (दो निर्गमों को एक समान परिभाषित किया गया है, यदि जारीकर्ता, कूपन, मुद्रा और परिपक्वता एक समान हों) । इसके परिणामस्वरूप, बैंक एक विशिष्ट प्रतिपक्षकार के प्रति बैंक के एक्सपोजर की गणना के प्रयोजन से किसी विनिर्दिष्ट निर्गम की निवल पोजीशन पर विचार कर सकते हैं। 7.22 अलग-अलग निर्गमों में लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशनों का समंजन: समान प्रतिपक्षकार के विभिन्न निर्गमों में लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशनों का समंजन केवल तभी किया जाए, जब शॉर्ट पोजीशन लॉन्ग पोजीशन से कनिष्ठ हो, अथवा पोजीशनें एक ही वरीयता वाली हों। 7.23 इसी प्रकार, ऋण डेरिवेटिवों द्वारा बचाव की गई पोजीशनों के लिए बचाव को मान्यता दी जानी चाहिए, बशर्ते कि बचाव के अंतर्निहित और बचाव की गई पोजीशन ऊपर पैरा 7.22 के प्रावधानों को पूर्ण करते हों (शॉर्ट पोजीशन लॉन्ग पोजीशन से कनिष्ठ अथवा एक ही वरीयता वाली हो) । 7.24 पोजीशनों की संबंधित वरीयता का निर्धारण करने की दृष्टि से प्रतिभूतियों को वरीयता श्रेणियों के बड़े समूहों में आवंटित किया जाए (उदाहरणार्थ, “इक्विटी”, “गौण ऋण” और “वरिष्ठ ऋण”) । 7.25 जिन बैंकों को संबंधित वरीयता के आधार पर प्रतिभूतियों को अलग-अलग समूहों में बांटना अत्यधिक कष्टदायक लगता है, उन्हें एक्सपोजरों की गणना में एक ही प्रतिपक्षकार के संबंधित विभिन्न निर्गमों में लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशनों के समंजन को मान्य नहीं करना चाहिए। 7.26 बैंकिंग बही में लॉन्ग पोजीशनों के विरुद्ध ट्रेडिंग बही में शॉर्ट पोजीशनों का समंजन: बैंकिंग और ट्रेडिंग बहियों के बीच नेटिंग की अनुमति नहीं है। 7.27 समंजन के बाद निवल शॉर्ट पोजीशनों की नेटिंग: जब समंजन का परिणाम किसी एकल प्रतिपक्षकार के साथ निवल शॉर्ट पोजीशन हो, तो वृहत एक्सपोजर ढांचे के प्रयोजन से इस निवल एक्सपोजर पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। 8. विनिर्दिष्ट एक्सपोजर प्रकारों का ट्रीटमेंट 8.1 इस भाग में उन एक्स्पोजरों को शामिल किया गया है, जिनके लिए विनिर्दिष्ट ट्रीटमेंट आवश्यक माना गया है। अंतर बैंक एक्सपोजर 8.2 एक दिन के भीतर (अंतर्दिवसीय) अंतर- बैंक एक्स्पोजरों को छोड़ कर अंतर बैंक एक्सपोजर बैंक की टियर 1 पूंजी के 25% की वृहत् एक्सपोजर सीमा (कृपया पैरा 10.III भी देखें) के अधीन होंगे। दबावग्रस्त परिस्थितियों में अंतर बैंक बाजार में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अंतर्दिवसीय सीमाओं के पूर्वव्यापी उल्लंघन को स्वीकार कर सकता है। सामूहिक निवेश उपक्रम (सीआईयू), प्रतिभूतिकरण माध्यम तथा अन्य संरचनाएं – “सूक्ष्मावलोकन विधि” (एलटीए) को अपनाना 8.3 ऐसे मामले हैं, जहां बैंक और उसके एक्स्पोजरों के बीच कोई संरचना आती है, अर्थात्, बैंक किसी ऐसी संस्था के माध्यम से संरचनाओं में निवेश करता है, जो स्वयं संरचनाओं में अंतर्निहित आस्तियों के प्रति एक्सपोजर रखती है (इसके बाद “अंतर्निहित आस्तियां” कहा जाएगा) । ऐसी संरचनाओं में अंतर्निहित आस्तियों वाली निधियाँ18, प्रतिभूतियाँ और अन्य संरचनाएँ19 आती हैं। जहां बैंक नीचे वर्णित एलटीए का प्रयोग करता है, वहां उसे ऐसी एक्सपोजर राशि को, अर्थात् किसी विशिष्ट संरचना में निवेशित राशि को, अंतर्निहित आस्तियों के विनिर्दिष्ट प्रतिपक्षकारों को असाइन करना चाहिए। स्पष्टीकृत उदाहरण परिशिष्ट 4 में दिया गया है। 8.4 ऐसे मामलों में, जहां बैंक यह दर्शा सकता है कि संरचना के प्रति बैंक के ऐसे एक्स्पोजरों की कुल राशि उसके पात्र पूंजी आधार के 0.25 प्रतिशत से कम हो, उस संरचना को ही, एक अलग प्रतिपक्षकार के रूप में मानकर, कुल एक्सपोजर राशि निर्दिष्ट कर सकता है, इसमें अंतर्निहित आस्तियों के प्रति वही एक्सपोजर विचार में लिए जाएंगे, जो उस संरचना में निवेश से उत्पन्न हुए है और पैरा 8.9 और 8.10 में दिए गए एक्सपोजर मूल्य से आकलित किए गए हैं। इस मामले में बैंक को अंतर्निहित आस्तियों की पहचान के लिए संरचना के सूक्ष्मावलोकन की आवश्यकता नहीं है। 8.5 जहां अंतर्निहित एक्सपोजर का मूल्य उसके पात्र पूंजी आधार के 0.25 प्रतिशत के बराबर या अधिक हो, वहाँ बैंक को वैसी अंतर्निहित आस्तियों की पहचान के लिए संरचना का सूक्ष्मावलोकन करना होगा। इस मामले में, प्रत्येक अंतर्निहित आस्ति के संबंधित प्रतिपक्षकार की पहचान की जानी चाहिए ताकि अंतर्निहित आस्ति के प्रति एक्सपोजर को उसी प्रतिपक्षकार के प्रति अन्य प्रत्यक्ष या परोक्ष एक्सपोजर में जोड़ दिया जाए। जहां अंतर्निहित आस्तियों के प्रति बैंक का एक्सपोजर उसके पात्र पूंजी आधार के 0.25% से कम है, वहाँ एक्सपोजर राशि संरचना को ही निर्दिष्ट करनी चाहिए (अर्थात आंशिक सूक्ष्मावलोकन की अनुमति है)। 8.6 यदि बैंक किसी संरचना की अंतर्निहित आस्तियों की पहचान करने में असमर्थ है तो: (क) जहां किसी संरचना के प्रति बैंक का एक्सपोजर उसके पात्र पूंजी आधार के 0.25% से कम है, वहाँ कुल एक्सपोजर राशि संरचना को ही, एक अलग प्रतिपक्षकार मानते हुए, निर्दिष्ट कर देनी चाहिए। (ख) अन्यथा (अर्थात जहां किसी संरचना के प्रति बैंक का एक्सपोजर उसके पात्र पूंजी आधार के 0.25% के बराबर या अधिक है) उसे अपनी कुल एक्सपोजर राशि को अज्ञात ग्राहक को निर्दिष्ट कर देनी चाहिए। वृहत् एक्सपोजर (एलई) सीमाएं ऐसे सभी अज्ञात एक्स्पोजरों के योग पर इस प्रकार लागू होंगी, जैसे कि वे किसी एक प्रतिपक्षकार (अज्ञात ग्राहक) से संबंधित हों। 8.7 जहां एलटीए की आवश्यकता नहीं है (उपर्युक्त पैरा 8.4), वहाँ भी बैंक को यह दर्शाने में सक्षम होना चाहिए कि विनियामक अंतरपणन ने सूक्ष्मावलोकन करने या न करने के निर्णय को प्रभावित नहीं किया है- उदाहरण के लिए, बैंक ने समान अंतर्निहित आस्तियों के साथ कई छोटे-छोटे लेनदेन में निवेश करके वृहत एक्सपोजर सीमा से बचने का प्रयास नहीं किया है। 8.8 यदि एलटीए लगाने की आवश्यकता नहीं है, तो बैंक का किसी संरचना के प्रति एक्सपोजर उसमें निवेश की गई राशि होगी। 8.9 कोई संरचना जिसमें सभी निवेशकों की रैंकिंग एक जैसी (जैसे, सीआईयू) है - जब ऊपर के पैराग्राफ के अनुसार एलटीए की आवश्यकता होती है, तो प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोज़र, बैंक द्वारा संरचना में धारित यथा अनुपात भाग और संरचना में अंतर्निहित आस्ति के मूल्य का गुणनफल होगा। इस प्रकार, यदि बैंक किसी संरचना में ₹1 निवेश करता है, जो 20 आस्तियों में प्रति आस्ति ₹5 का निवेश करता है, तो बैंक को प्रत्येक प्रतिपक्षकार के लिए ₹0.05 का एक्सपोजर निर्दिष्ट करना होगा। ऐसे प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोजर को बैंक द्वारा उसी प्रतिपक्षकार के प्रति अन्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष एक्सपोजर में जोड़ा जाना चाहिए। 8.10 कोई संरचना जिसमें निवेशकों का वरिष्ठता स्तर अलग-अलग है (जैसे, प्रतिभूतिकरण वाहक) - जब ऊपर के पैराग्राफ के अनुसार विभिन्न वरिष्ठता स्तर वाली संरचना में निवेश के लिए एलटीए की आवश्यकता है, तो प्रतिपक्षकार के प्रति एक्सपोज़र मूल्य, संरचना के भीतर प्रत्येक शृंखला के लिए मापा जाना चाहिए और एक शृंखला में निवेशकों के बीच घाटे का यथानुपात वितरण मानना चाहिए। अंतर्निहित आस्ति के प्रति एक्सपोजर मूल्य की गणना के लिए, बैंक को: i. पहले, उस शृंखला, जिसमें बैंक निवेश करता है और प्रत्येक अंतर्निहित आस्ति, जो आस्तियों के अंतर्निहित पोर्टफोलियो में शामिल है, के आंकिक मूल्य में से जो भी कम हो, उसे विचार में लेना चाहिए। ii. दूसरा, शृंखला में बैंक के निवेश के यथानुपात भाग को पहले चरण में निर्धारित मूल्य पर लागू करना चाहिए। 9 अतिरिक्त जोखिमों की पहचान करना 9.1 संरचनाओं के प्रति एक्सपोजर करते समय बैंकों को ऐसे तृतीय पक्षकारों की पहचान करनी चाहिए जो किसी अतिरिक्त जोखिम तत्व का निर्माण कर सकते हैं और जो अंतर्निहित आस्तियों के बजाय स्वयं संरचना में ही निहित हैं। ऐसा तृतीय पक्षकार बैंक द्वारा निवेश किए गए एक से अधिक संरचनाओं के लिए जोखिम तत्व हो सकता है। प्रवर्तक, निधि प्रबंधक, चलनिधि प्रदाता और ऋण संरक्षण प्रदाता अन्य पक्षकारों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं में शामिल हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक अपनी पिलर 2 पर्यवेक्षी समीक्षा और मूल्यांकन क्रियाविधि के एक भाग के रूप में इस पहलू की जांच-पड़ताल करेगा और यदि आवश्यक हो तो एक विशिष्ट कार्रवाई की योजना विनिर्दिष्ट करेगा, जिसमें या तो एक्सपोजर घटाना या अतिरिक्त पूंजी जुटाना शामिल होगा। 9.2 यह विचारणीय है कि बैंक विभिन्न तृतीय पक्षकारों को अतिरिक्त जोखिम का संभाव्य चालक माने। इस मामले में बैंक को संबंधित संरचनाओं में निवेश के फलस्वरूप एक्स्पोजरों को तृतीय पक्षकारों में से प्रत्येक को निर्दिष्ट करना चाहिए। 10. कुछ विशिष्ट प्रतिपक्षकारों के प्रति और उनके बीच एक्सपोजर 10.I केंद्रीय प्रतिपक्षकारों को एक्सपोजर 10.1 समाशोधन गतिविधियों से संबद्ध अर्हताप्राप्त (क्वालिफाइंग) केंद्रीय प्रतिपक्षकारों (क्यूसीसीपी)20 के प्रति बैंक के एक्स्पोजरों को वृहत् एक्सपोजर ढांचे से छूट प्राप्त होगी। तथापि, ये एक्सपोजर पैरा 4.2 में यथापरिभाषित विनियामक रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के अधीन होंगे। 10.2 इस ढांचे के प्रयोजन से क्यूसीसीपी की परिभाषा वही होगी, जो जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षा के प्रयोजन से प्रयुक्त होती है। एक क्यूसीसीपी वह संस्था है, जिसे सीसीपी के रूप में परिचालन करने का लाइसेंस दिया गया है (अपवाद के रूप में पुष्टि करने के लिए दिए गए लाइसेंस सहित) तथा उपयुक्त विनियामक/ निगरानीकर्ता द्वारा प्रस्तावित उत्पादों के संबंध में इस प्रकार परिचालन करने की अनुमति दी गई है। यह इस प्रावधान के अधीन है कि सीसीपी ऐसे क्षेत्राधिकार में स्थित और विवेकपूर्ण पर्यवेक्षण के अधीन हो, जहां संबंधित विनियामक/ निगरानीकर्ता ने यह स्थापित किया हो और सार्वजनिक रूप से बताया हो कि वह सीसीपी पर देशी नियम और विनियम निरंतर रूप से लागू करता है, जो वित्तीय बाजार इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सीपीएसएस-आईओएससीओ सिद्धांतों के अनुरूप हैं। 10.3 गैर क्यूसीसीपी के मामले में, बैंकों को चाहिए कि वे पैरा 10.5 में वर्णित समाशोधन वाले एक्सपोजर तथा पैरा 10.7 में वर्णित शोधन-रहित एक्सपोजर, दोनों के योग की गणना करें तथा यह पात्र पूंजी आधार के 25 प्रतिशत की सामान्य एलई सीमा के अधीन होगी। 10.4 पैरा 6 में वर्णित संबद्ध प्रतिपक्षकारों की अवधारणा उन सीसीपी के प्रति एक्स्पोजरों पर लागू नहीं होती, जो विनिर्दिष्ट रूप से समाशोधन गतिविधियों से संबंधित हैं। 10.5 समाशोधन गतिविधियों से संबंधित एक्स्पोजरों की गणना: बैंकों को सीसीपी के प्रति उन एक्स्पोजरों की पहचान करनी चाहिए, जो शोधन गतिविधियों से संबंधित हैं तथा इन एक्स्पोजरों का एक साथ योग करना चाहिए। नीचे दी गई सारणी में प्रयोग किए जाने वाले एक्सपोजर मूल्य सहित शोधन गतिविधियों से संबंधित एक्स्पोजरों की सूची दी गई है:
10.6 समाशोधन सेवाओं के अधीन एक्स्पोजरों (बैंक समाशोधन के सदस्य के रूप में कार्य करता है या समाशोधन सदस्य का ग्राहक है) के संबंध में बैंक को उस प्रतिपक्षकार का निर्धारण करना चाहिए, जिसपर जोखिम आधारित पूंजी अपेक्षाओं के प्रावधानों का प्रयोग करते हुए एक्सपोजर लगाए जाने हैं। 10.7 अन्य एक्सपोजर: अन्य प्रकार के एक्सपोजर, जैसे इक्विटी हित22, निधीयन सुविधाएं, ऋण सुविधाएं, गारंटी आदि, जो सीसीपी द्वारा उपलब्ध कराई गई समाशोधन सेवाओं से सीधे संबंधित नहीं हैं, की गणना इस ढांचे में किसी अन्य प्रकार के प्रतिपक्षकार के लिए यथानिर्धारित नियमों के अनुसार की जानी चाहिए। ये एक्सपोजर एक साथ जोड़े जाएंगे तथा एलई सीमाओं के अधीन होंगे। 10.II एनबीएफसी को एक्सपोजर 10.8 वृहत् एक्सपोजर ढांचे के अंतर्गत प्रस्तावित एक्सपोजर सीमाएं (i) एनबीएफसी को एक्सपोजर: किसी एकल एनबीएफसी के प्रति बैंक के एक्सपोजर को उनके पात्र पूंजी आधार के 15 प्रतिशत तक सीमित किया जाएगा। तथापि, जोखिम परिप्रेक्ष्य के आधार पर एनबीएफसी की कुछ श्रेणियों के संबंध में अधिक कठोर एक्सपोजर सीमाओं पर विचार किया जाए। (ii) संबद्ध एनबीएफसी के समूह अथवा संबद्ध प्रतिपक्षकारों के समूह, जिन समूहों में एनबीएफसी हों, के प्रति बैंक का एक्सपोजर उनकी टियर I पूंजी के 25 प्रतिशत तक सीमित होगा। 10.9 उपर्युक्त एक्सपोजर सीमाएं एनबीएफसी के प्रति बैंक के एक्सपोजर के संबंध में अन्य सभी अनुदेशों के अधीन हैं23। 10.III वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (जी-एसआईबी) तथा देशी प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (डी-एसआईबी) के लिए वृहत् एक्सपोजर नियम 10.10 एक जी-एसआईबी के किसी अन्य जी-एसआईबी के प्रति एक्सपोजर के लिए लागू वृहत् एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार के 15 प्रतिशत पर निर्धारित की गई है। 10.11 भारत में किसी गैर- जी-एसआईबी बैंक की किसी जी-एसआईबी (शाखा को शामिल करते हुए) तथा किसी बैंकेतर जी-एसआईएफआई के प्रति वृहत् एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार की 20 प्रतिशत होगी। 10.12 उपर्युक्त पैरा के लिए जी-एसआईबी पर बासल समिति द्वारा यथानिर्धारित तथा एफएसबी द्वारा वार्षिक रूप से यथाप्रकाशित सीमाएं लागू होती हैं तथा ये भारत में भी मौजूद हैं, चाहे शाखा के रूप में हों या अनुषंगी के रूप में। जब कोई बैंक एक जी-एसआईबी बन जाता है, तब उसे जी-एसआईबी बनने की तारीख से 12 माह के भीतर अन्य जी-एसआईबी पर 15 प्रतिशत की एक्सपोजर सीमा लागू कर देनी चाहिए। यह सीमा उस समय सीमा के भीतर होनी चाहिए, जो जी-एसआईबी बन चुके बैंक को अपनी उच्चतर हानि अवशोषक पूंजी अपेक्षाओं की पूर्ति करने के लिए आवश्यक हो। उसी प्रकार, जब एक प्रतिपक्षकार बैंक जी-एसआईबी बन जाता है, तब उसे जी-एसआईबी बनने की तारीख से 12 माह के भीतर पैरा 10.10 या 10.11 में, जो भी लागू हो, दिए गए अनुसार सीमा लागू करनी होगी। एलईएफ़ के तहत एक्सपोजर सीमा की गणना करने के लिए, जी-एसआईबी की भारतीय शाखाओं को जी-एसआईबी नहीं माना जाएगा। तदनुसार, विदेशी जी-एसआईबी की भारतीय शाखाओं के लिए, एक जी-एसआईबी के प्रति, उसके मुख्य कार्यालय सहित,24 एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार का 20% होगी और किसी अन्य बैंक (जी-एसआईबी नहीं) के प्रति एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार का 25% होगी। उसी प्रकार, विदेशी गैर-जीएसआईबी की भारतीय शाखाओं के लिए, गैर-जीएसआईबी के प्रति, उसके मुख्य कार्यालय सहित, एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार का 25% और जी-एसआईबी के प्रति एक्सपोजर सीमा पात्र पूंजी आधार का 20% होगी। 10.13 रिज़र्व बैंक ने देशी प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (डी-एसआईबी) से संबंधित ढांचा 22 जुलाई 2014 को जारी किया तथा वार्षिक आधार पर डी-एसआईबी के रूप में वर्गीकृत बैंकों के नामों का प्रकटन करता है। डी-एसआईबी के लिए कोई विनिर्दिष्ट एक्सपोजर सीमा लागू नहीं है, तथा उनको एलईएफ ढांचे के अंतर्गत अंतर-बैंक एक्सपोजर सीमाओं के द्वारा अभिशासित किया जाना जारी रहेगा। 11. कार्यान्वयन की तारीख तथा संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं आर्थिक अंतर-निर्भरता मानदंड और अकेन्द्रीकृत रूप से समाशोधित डेरिवेटिव एक्सपोज़र (ये दोनों 1 अप्रैल, 2020 से लागू होंगे) संबंधी दिशानिर्देशों को छोड़कर, एलई ढांचे के सभी पहलू 1 अप्रैल, 2019 से पूर्ण रूप से लागू हैं (जैसा कि हमारे 1 दिसंबर 2016 के एलईएफ परिपत्र में निर्दिष्ट किया गया था) और आपस में जुड़े एकल/ सामूहिक प्रतिपक्षकारों के लिए लागू एक्सपोज़र मानदंड उस तिथि से लागू नहीं होते हैं25। बैंकों को चाहिए कि वे अपने एक्स्पोजरों को समायोजित कर लें ताकि उस तारीख तक अपने पात्र पूंजी आधार के संबंध में एलई सीमाओं का अनुपालन कर सकें। तदनुसार, 01 अप्रैल 2020 से लागू होने वाले पहलुओं के लिए, बैंकों को इस तिथि से पहले कोई अतिरिक्त एक्सपोजर लेने से बचना/ ऐसे मामलों में एक्सपोजर घटाना चाहिए, जहां उनके एक्सपोजर इस ढांचे के अंतर्गत निर्धारित एक्सपोजर सीमाओं जितने या उससे अधिक हैं। हालांकि अकेन्द्रीकृत रूप से समाशोधित डेरिवेटिव एक्सपोज़र को 31 मार्च 2020 तक छूट दी गई है, बैंकों को इन एक्सपोज़र की अलग से गणना करनी होगी और तिमाही आधार पर बैंकिंग विनियमन विभाग को रिपोर्ट करना होगा। 1 इसमें अपेक्षित है कि बैंक बीमा तथा अन्य वित्तेतर क्रियाकलापों में लिप्त को छोड़ कर, अपने अनुषंगियों/संयुक्त उद्यमों/सहयोगियों (बैंक की शाखाओं के माध्यम से विदेशी परिचालनों सहित) आदि की आस्तियों और देयताओं का समेकन करने के बाद समूह स्तर पर एलई ढांचे को लागू करेंगे। 2 बैंक एकल (स्टैंड-अलोन) स्तर पर भी (शाखाओं के माध्यम से विदेशी परिचालनों सहित) एलई ढांचे को लागू करेंगे, जिसमें किसी प्रतिपक्षकार को एक्सपोजर की गणना उसकी स्टैंड अलोन पूंजी की मजबूती और जोखिम प्रोफाइल के आधार पर की जाएगी। 3 वर्तमान में एक्सपोजरों के लिए उपलब्ध छूटें जो इसमें सूचीबद्ध नहीं की गई हैं, का अस्तित्व बड़े एक्सपोजर ढांचे के अंतर्गत समाप्त हो जाएगा। 4 अंतर-समूह एक्सपोजर ‘मास्टर परिपत्र – एक्सपोजर मानदंड/मास्टर निदेश – बैंक के एक्सपोजरों पर विवेकपूर्ण मानदंड में निहित अंतर-समूह लेनदेन और एक्सपोजर प्रबंध पर दिशानिर्देश’ के द्वारा अभिशासित होना जारी रहेगा। 5 01 अप्रैल, 2020 से आर्थिक निर्भरता के आधार पर बैंकों को संबद्धता का आकलन करने की आवश्यकता है। 6 विनिर्दिष्ट प्रावधानों और मूल्य समायोजनों का निवल 7 समय समय पर यथासंशोधित मास्टर परिपत्र – बासल III पूंजी विनियमावली का संदर्भ लें। 8 गैर-निधीकृत ऋण संरक्षण एकत्रित रूप से उन गारंटियों और ऋण व्युत्पन्नियों के संदर्भ में हैं, जिनका ट्रीटमेंट 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र – बासल III पूंजी विनियमावली के पैरा 5.17 और 7.5 में क्रमश: वर्णित है। 9 कृपया बासल III पूंजी विनियमावली पर मास्टर परिपत्र देखें। 10 बासल III पूंजी विनियमावली पर मास्टर परिपत्र का पैरा 7.4 देखें। 11 बासल III पूंजी विनियमावली पर मास्टर परिपत्र का पैरा 7.3.4 देखें। 12 जैसा कि आरबीआई के मास्टर परिपत्र – एक्सपोजर मानदंड/ बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों पर मास्टर निदेश के अनुसार यथा प्रावधानित। 13 हमारे मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार केवल सीडीएस ही अनुमत ऋण व्युत्पन्नी है तथा बैंकों का इक्विटी डेरिवेटिवों के प्रति कोई प्रत्यक्ष एक्स्पोजर नहीं है। यह स्पष्ट किया जाता है कि इस परिपत्र में निहित अनुदेशों में उसका संदर्भ निहित होने के बावजूद कतिपय प्रकार के लिखतों, आस्तियों तथा डेरिवेटिवों में डीलिंग करने पर प्रतिबंध, जो वर्तमान में लागू हैं, आगे भी जारी रहेंगे। 14 कृपया बासल III पूंजी विनियमावली पर मास्टर परिपत्र देखें। 15 वर्तमान में बैंकों को इक्विटी डेरिवेटिवों में एक्सपोजर की अनुमति नहीं है, तथापि, दृष्टान्त के लिए उदारहणार्थ स्टॉक X पर फ्यूचर, संबंधित निधीयन मुद्रा में स्टॉक X पर अधिक्रय तथा एक जोखिम रहित ब्याज दर एक्स्पोजर में अधिविक्रय की स्थिति में अपघटित/ पृथक हो जाता है, अथवा कोई लाक्षणिक ब्याज दर स्वैप, जो किसी नियत दर पर अधिक्रय की स्थिति में तथा अस्थिर ब्याज दर पर अधिविक्रय की स्थिति में, अथवा इसके उल्टे क्रम का प्रतिनिधित्व करता है। 16 ऐसे मामले में जहां संरक्षण विक्रेता के दृष्टिकोण से ऋण व्युत्पन्नी का बाजार मूल्य सकारात्मक है, तो ऐसे सकारात्मक बाजार मूल्य को संरक्षण विक्रेता के संरक्षण क्रेता के प्रति एक्सपोजर में जोड़ा जाना होगा (प्रतिपक्षकार ऋण जोखिम; इस परिपत्र का पैरा 7.3 देखें)। ऐसी स्थिति विशेषत: तब उत्पन्न हो सकती है यदि पहले से सहमत, किंतु अदा न किए गए आवधिक प्रीमियम का वर्तमान मूल्य ऋण संरक्षण के संपूर्ण बाजार मूल्य से अधिक हो जाता है। 17 आरबीआई के मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार भारत में बैंकों द्वारा सीएलएन जारी किए जाने की अनुमति नहीं है। 18 जैसे कि म्यूचुअल फंड, वेंचर कैपिटल फंड, वैकल्पिक निवेश फंड। 19 जैसे कि प्रतिभूति रसीद, रीयल एस्टेट निदेश फंड, इन्फ्रास्ट्रचर निवेश न्यास। 20 सीसीपी को क्यूसीसीपी के रूप में नामित किए जाने के लिए केंद्रीय प्रतिपक्षकार के प्रति बैंकों का एक्सपोजर- अन्तरिम व्यवस्थाएँ पर दिनांक 7 जनवरी 2014 का परिपत्र बैपविवि.सं.बीपी.बीसी 82/21.06.217/2013-14 देखें। 21 जब प्रविष्ट प्रारंभिक मार्जिन (आईएम) सीसीपी से दिवालिया-असंबद्ध (bankruptcy - remote) हो – इस अर्थ में कि वह सीसीपी के स्वयं के खातों से पृथक किया गया हो, जैसे जब आईएम किसी अन्य पक्षकार अभिरक्षक के द्वारा धारित हो – तो यदि सीसीपी चूक करता है, तो भी बैंक को इस राशि की हानि नहीं होगी; अतएव, बैंक द्वारा प्रविष्ट आईएम को वृहत् एक्स्पोजर सीमा में से छूट दी जा सकती है। 22 यदि किसी सीसीपी में इक्विटी स्टेक उस पूंजी में से घटा दिया जाए, जिस पर वृहत् एक्सपोजर सीमा आधारित है, तो इन्हें सीसीपी के प्रति एक एक्सपोजर के रूप में शामिल नहीं ही किया जाना चाहिए। 23 जैसा कि मास्टर परिपत्र – एक्सपोजर मानदंड/ मास्टर परिपत्र – एनबीएफ़सी को बैंक वित्तपोषण में दिया गया है। 24 अन्य विदेशी शाखा/ अनुषंगी सहित 25 वृहत एक्सपोजर ढांचा किसी बैंक के प्रतिपक्षकारों पर लागू है तथा यह संकेंद्रण जोखिम के अन्य प्रकारों, जैसे क्षेत्रीय एक्सपोजरों के लिए नहीं है। इसलिए, आरबीआई के मास्टर परिपत्र – एक्सपोजर मानदंड/ मास्टर निदेश -बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों में निहित मौजूदा अनुदेश लागू होते रहेंगे, जबतक कि इस ढांचे के प्रावधानों से अधिक्रमित नहीं होते। |