मास्टर निदेश – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण (18 जून 2019 तक अद्यतन) - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर निदेश – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण (18 जून 2019 तक अद्यतन)
आरबीआई/विसविवि/2016-17/34 07 जुलाई 2016 अध्यक्ष महोदय/महोदया, मास्टर निदेश – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - प्राथमिकता-प्राप्त भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 3 दिसंबर 2015 के परिपत्र के माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लिए दिशानिर्देश संशोधित किए गए थे। संलग्न मास्टर निदेश में इस विषय पर अद्यतन दिशानिर्देश/अनुदेश/परिपत्र समाविष्ट किए गए हैं। इस मास्टर निदेश में समेकित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गई है। निदेश को समय-समय पर जब नए अनुदेश जारी किए जाते हैं तब अद्यतन किया जाएगा। यह मास्टर निदेश रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध है। 2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर संशोधित दिशानिर्देश 01 जनवरी 2016 से लागू किए गए थे। तदनुसार इस तारीख से पहले जारी दिशानिर्देशों के अधीन स्वीकृत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण उनकी चुकौती/अवधि पूर्ण होने/नवीकरण तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते रहेंगे। भवदीय, (गौतम प्रसाद बोरा) मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक – प्राथमिकता-प्राप्त बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35 ए द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात से संतुष्ट होने पर कि जनहित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है, एतद्द्वारा, इसके बाद विनिर्दिष्ट किए गए निदेश जारी करता है। अध्याय - I 1.1 संक्षिप्त नाम और प्रारंभ (क) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण) निदेश, 2016 कहलाएंगे। (ख) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर रखे जाने के दिन से प्रभावी होंगे। 1.2 प्रयोज्यता इन निदेशों के उपबंध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में कार्य करने के लिए लाइसेंसीकृत प्रत्येक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) पर लागू होंगे। 3. स्पष्टीकरण यहाँ परिभाषित न की गई अन्य सभी अभिव्यक्तियों के आशय, यथास्थिति वही होंगे, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, अथवा किसी अन्य सांविधिक संशोधन अथवा उनके पुन: अधिनियमन के अंतर्गत विनिर्दिष्ट किये जाएँ अथवा वाणिज्यिक शब्दावली में प्रयुक्त हैं। अध्याय – II 4. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां निम्नानुसार है
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियों के ब्योरे पैरा III में निर्दिष्ट किए गए हैं। 5. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य / उप-लक्ष्य आरआरबी के लिए निम्नानुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने हेतु उनके कुल बकाया अग्रिमों के 75 प्रतिशत का लक्ष्य तथा उप क्षेत्र लक्ष्य होगा :
* निर्धारित सभी श्रेणियों अर्थात कृषि, एमएसएमई, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी संरचना, नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र का समग्र लक्ष्य प्राप्त किया जाए। तथापि, मध्यम उद्यम, सामाजिक बुनियादी संरचना तथा नवीकरणीय ऊर्जा को दिए गए उधार को कुल बकाया के केवल 15 प्रतिशत तक ही प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की उपलब्धि में गिना जाएगा। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्यों/उप लक्ष्यों में उपलब्धि की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को कुल बकाया के आधार पर की जाएगी। अध्याय – III कृषि क्षेत्र को उधार को इस तरह से वर्गीकृत किया गया है (i) कृषि ऋण (जिसमें किसानों को अल्पावधि फसल ऋण और मध्यावधि / दीर्घावधि ऋण शामिल होगा) (ii) कृषि बुनियादी संरचना और (iii) संबद्ध गतिविधियां। तीन उप श्रेणियों के अंतर्गत पात्र कार्यकलापों की सूची नीचे दी गई है :
उप प्रतिशत लक्ष्य की गणना के लिए छोटे और सीमांत किसानों में निम्नलिखित शामिल होंगे :- - एक हेक्टेयर तक के भूधारक किसान सीमांत किसान माने जाते हैं। एक हेक्टेयर से अधिक परंतु 2 हेक्टेयर तक के भूधारक किसान छोटे किसान के रूप में माने जाते हैं। - भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाईदार जिनकी जमीन की जोत में शेयर, छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए निर्धारित सीमा के अंतर्गत हो। - स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े अलग-अलग छोटे और सीमांत किसानों के समूहों को ऋण, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों। - अलग-अलग किसानों की कृषि उत्पादक कंपनियों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी किसानों की सहकारी संस्थाओं को ऋण, जहां छोटे और सीमांत किसानों की सदस्यता संख्या की दृष्टि से 75 प्रतिशत से कम न हो और जिनकी भू-धारिता का शेयर कुल भू-धारिता के 75 प्रतिशत से कम न हो। 7. माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) 7.1. सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 के एस.ओ.1642(ई) द्वारा यथा अधिसूचित विनिर्माण / सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी / उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले बैंक ऋण निम्नालिखित मानदंडों के अनुसार प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे : 7.2. विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर यथा अधिसूचित किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है। 7.3. सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे एमएसएमई को दिया गया सभी बैंक ऋण, बिना किसी अधिकतम ऋण सीमा के, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र होंगे। 7.4. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्यमों हेतु नियत 7.5 प्रतिशत के उप लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 7.5. एमएसएमई को अन्य वित्त (i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्थाओं को ऋण। (ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण। (iii) सामान्य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण। 7.6. यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्यम उद्यम इकाई नहीं रहती है, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा। 7.7. पीएमजेडीवाई के अंतर्गत ओवरड्राफ्ट वित्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, द्वारा दिनांक 24 सितंबर 2018 को जारी संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खाता धारकों के लिए ओवरड्राफ्ट की सीमा को बढ़ाकर ₹ 10,000/- कर दिया गया है एवं 18 से 60 वर्ष की आयु सीमा को बढ़ाकर 18 से 65 वर्ष कर दिया गया है तथा ₹ 2,000/- तक के ओवरड्राफ्ट हेतु कोई भी शर्त नहीं होगा। ये ओवरड्राफ्ट माइक्रो उद्यमों को दिए जाने वाले उधार हेतु निर्धारित लक्ष्य के संबंध में प्राप्ति के पात्र होंगे। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को ₹ 1 मिलियन तक का ऋण चाहे स्वीकृत राशि कुछ भी हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र माना जाएगा। (i) प्रति परिवार, निवासी यूनिट की खरीद / निर्माण के लिए प्रत्येक व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों (01 मिलियन और उससे अधिक की आबादी वाले) में ₹ 3.5 मिलियन तक के ऋण और अन्य केंद्रों में ₹ 2.5 मिलियन तक के ऋण बशर्ते निवासी यूनिट की समग्र सीमा महानगरीय केंद्रों और अन्य केंद्रों में क्रमश: ₹ 4.5 मिलियन और ₹ 3 मिलियन से अधिक न हो। बैंक द्वारा अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले आवास ऋण को इसमें समाहित नहीं किया गया है। (ii) परिवारों के क्षतिग्रस्त निवासी यूनिटों की मरम्मत के लिए ₹ 0.2 मिलियन तक का ऋण। (iii) किसी सरकारी एजेंसी को निवासी यूनिटों के निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहने वालों के पुनर्वास के लिए प्रति निवास यूनिट ₹ 1 मिलियन की अधिकतम सीमा की शर्त पर बैंक ऋण। (iv) केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) और निम्न आय समूह (एलआईजी) के लोगों के लिए मकान बनवाने के प्रयोजन हेतु ऐसी आवास परियोजनाओं जिनकी कुल लागत प्रति निवासी यूनिट ₹ 1 मिलियन से अधिक नहीं है, को बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों की पहचान के प्रयोजन के लिए पारिवारिक आय सीमा को प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत निर्दिष्ट आय मानदंडों के साथ संरेखित करते हुए ईडब्लूएस के लिए ₹ 0.3 मिलियन प्रति वर्ष और एलआईजी के लिए ₹ 0.6 मिलियन प्रति वर्ष के रूप में संशोधित किया गया है। टियर II से टियर VI के केंद्रों में घरेलू स्वच्छता-गृहों के निर्माण/ नवीकरण और घरेलू स्तर पर जल आपूर्ति में सुधार सहित स्कूल, स्वास्थ्य रक्षा सुविधा, पेयजल सुविधा और स्वच्छता सुविधाओं, हेतु सामाजिक बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 50 मिलियन की सीमा तक के बैंक ऋण। सौर आधारित बिजली जनित्र, बायो मास आधारित बिजली जनित्र, पवन मिल, माइक्रो-हैडल संयंत्र के लिए और गैर पारंपरिक ऊर्जा आधारित सार्वजनिक उपयोग जैसे रास्ते पर बत्ती लगाने की प्रणाली तथा सुदूर गांव में विद्युतिकरण के लिए उधारकर्ताओं को ₹ 150 मिलियन की सीमा तक के बैंक ऋण। अलग-अलग परिवारों को प्रति उधारकर्ता ₹ 1 मिलियन की ऋण सीमा होगी। 12.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी / जेएलजी को सीधे दिए जाने वाले प्रति उधारकर्ता ₹ 50,000/- से अनधिक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 0.1 मिलियन से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹ 0.16 मिलियन से अधिक न हो। 12.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही 6.1 (क) (v) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 0.1 मिलियन से अनधिक के ऋण। 12.3 अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और / या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। 13. कमज़ोर वर्ग निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं :
उन राज्यों में जहां अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित कोई समुदाय वास्तव में बहुसंख्यक में है वहां मद (xii) केवल अन्य अधिसूचित समुदायों का समावेश होगा। ये राज्य / संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर, पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। अध्याय – IV 14. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा खरीदे गए बकाया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के संबंधित श्रेणियों के तहत वर्गीकरण के लिए, बशर्ते कि संपत्ति का सृजन बैंकों द्वारा किया गया हो, पात्र होंगे तथा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 07 अप्रैल 2016 को परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.23/04.09.01/2015-16 द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करने पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के रूप में वर्गीकरण के पात्र होंगे। 15. निगरानी आरआरबी द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को दिये गए अग्रिम संबंधी विविध डाटा नाबार्ड को तिमाही तथा वार्षिक अंतराल पर प्रस्तुत करना होगा। तिमाही और वार्षिक रिपोर्टिंग प्रारूप संलग्न है। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्य की गणना हेतु पूर्ववर्ती वर्ष की तदनरूपी तारीख (अर्थात जून 2019 को समाप्त तिमाही के लिए पीएसएल डाटा के रिपोर्टिंग के लिए, 30 जून 2018 की स्थिति के आधार पर विचार के किया जाएगा) की स्थिति के आधार पर कुल बकाया की गणना की जाएगी। 16. अन्य दिशा-निर्देश आरआरबी अपने बकाया अग्रिमों के 75 प्रतिशत से अधिक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्रों के अग्रिमों के संबंध में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आईबीपीसी) जारी कर सकते हैं। 17. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश आरआरबी को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। i. ब्याज की दर बैंक ऋणों पर ब्याज दर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी । ii. सेवा प्रभार ₹ 25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर ऋण संबंधी और तदर्थ सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी / जेएलजी को उधार देने के मामले में, ऋण की सीमा समग्र समूह की अपेक्षा एसएचजी / जेएलजी के प्रति सदस्य पर लागू होगी। iii. प्राप्ति, स्वीकृति / नामंजूर / वितरण रजिस्टर बैंक द्वारा एक रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी / नामंजूरी / वितरण का कारणों सहित उल्लेख, आदि को दर्ज किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए। iv. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जानी चाहिए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। 18. संशोधन ये दिशानिर्देश रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी किए जाने वाले अनुदेशों की शर्त के अधीन हैं। बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले ऋण अनुमोदित प्रयोजनों के लिए हैं और उसके अंतिम उपयोग पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। बैंकों को इस संबंध में उचित आंतरिक नियंत्रण और प्रणालियां स्थापित करनी चाहिए। समेकित परिपत्रों की सूची
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