बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान – समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान – समीक्षा
भारिबै/2015-16/140 30 जुलाई 2015 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक महोदय/महोदया, बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान – समीक्षा कृपया बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं के प्रावधान पर 2 जुलाई 1990 का परिपत्र आईईसीडी.सं.पीएमडी.1/50/90-91, 30 अगस्त 1990 का परिपत्र आईईसीडी.सं. ओपीएमडी.BC.9/50-90/91, 19 फरवरी 1994 का परिपत्र डीबीओडी.सं.बीसी18/24.01.001/93-94, 27 अप्रैल 1995 का परिपत्र आईईसीडी.सं.44/08.12.01/94-95 और 2 जून 1998 का परिपत्र डीबीओडी.सं.एफ़एससी.बीसी.49/24.01.001/97-98 देखें। 2 जुलाई 1990 के परिपत्र आईईसीडी. सं.पीएमडी.1/50/90-91, 30 अगस्त 1990 के परिपत्र आईईसीडी. सं. ओपीएमडी.बीसी.9/50-90/91 और 27 अप्रैल 1995 के परिपत्र आईईसीडी.No.44/08.12.01/94-95 का अधिक्रमण करते हुए तथा 19 फरवरी 1994 के परिपत्र डीबीओडी.सं.बीसी.18/24.01.001/93-94 और 2 जून 1998 के परिपत्र डीबीओडी.सं. एफ़एससी. बीसी.49/24.01.001/97-98 में आंशिक संशोधन करते हुए हम सूचित करते हैं कि बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन के बिना अनुबंध में उल्लिखित शर्तों के अधीन विभागीय रूप में फैक्टरिंग सेवाओं का कारोबार कर सकते हैं। 2. बैंकों द्वारा फैक्टर अनुषंगी कंपनियों की स्थापना या फैक्टरिंग कंपनियों में निवेश बैंकों द्वारा अनुषंगी कंपनियों और अन्य कंपनियों में निवेश से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों के अधीन होगा। साथ ही, फैक्टरिंग कंपनियों के शेयरों में किसी बैंक का निवेश, फैक्टरिंग कारोबार जारी रखने वाले बैंक के अनुषंगी समेत, कुल मिलाकर बैंक की चुकता पूंजी और आरक्षित निधियों के 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। 3. मौजूदा कंपनियों समेत बैंकों की सहायक कंपनियों और उनके संयुक्त उद्यमों का विनियमन दिनांक 23 जुलाई 2012 के परिपत्र डीएनबीएस(पीडी)सीसी.सं.297/फैक्टर/22.10.91/2012-13 के अनुसार एनबीएफ़सी फ़ैक्टर्स के रूप में किया जाएगा। भवदीया (लिली वढेरा) अनुलग्नक : यथोक्त बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन विभागीय रूप में फैक्टरिंग सेवाओं का कारोबार कर सकते हैं: 1. फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 के प्रावधानों का पालन फैक्टरिंग का कारोबार फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 के अंतर्गत सांविधिक प्रावधानों का अनुपालन करते हुए किया जाना चाहिए। समनुदेशिती, समनुदेशक और ऋणी शब्दों का वही अर्थ होगा जो फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में उन्हें दिया गया है, अर्थात, "समनुदेशिती" का आशय है वह फैक्टर जिसके पक्ष में प्राप्य अंतरित किया जाता है; "समनुदेशक" का आशय है वह व्यक्ति जो किसी प्राप्य का मालिक है; और "ऋणी" का आशय है ऐसा व्यक्ति जिसकी, किसी प्राप्य का भुगतान करने के लिए अथवा मौजूदा, वृद्धिशील, भविष्य में, सशर्त या आकस्मिक प्राप्य के संबंध में, किसी संविदा के तहत या अन्यथा, समनुदेशक के प्रति देयता बनती हो। 2. बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बैंक अपने बोर्डों के अनुमोदन से एक व्यापक फैक्टरिंग सेवाएं नीति तैयार करें और अपने ग्राहकों के लिए इस नीति के अनुसार सेवाएँ प्रदान करें। यह नीति विशेष रूप से इस गतिविधि के साथ जुड़े विभिन्न जोखिमों का निवारण कर सकती है और जोखिम शमन के उपयुक्त उपायों की व्यवस्था कर सकती है। 3. फैक्टरिंग के प्रकार फैक्टरिंग सेवाएं दायित्व सहित (With Recourse) या दायित्व रहित (Without Recourse) या सीमित दायित्व (Limited Recourse) आधार पर उपलब्ध कराई जा सकती हैं। 4. जोखिम प्रबंधन इस तरह का कारोबार शुरू करने से पहले उचित और पर्याप्त नियंत्रण और रिपोर्टिंग तंत्र व्यवस्थित किया जाना चाहिए। (क) यह सुनिश्चित करने के लिए कि फैक्टरिंग सेवाएं प्रदान करने वाले बैंक के पास संबंधित बिलों के भुगतान में किसी कमी को कवर करने के लिए पर्याप्त मार्जिन है, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि फैक्टरिंग के तहत अर्जित की गई प्राप्तियों के लिए बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली पूर्व-भुगतान की राशि बिल के मूल्य के 80% से अधिक नहीं होनी चाहिए। (ख) किसी भी फैक्टरिंग व्यवस्था में प्रवेश करने से पहले या निर्यात फैक्टर के साथ ऋण व्यवस्था की स्थापना करने से पहले बैंकों को उधारकर्ताओं का गहन ऋण मूल्यांकन करना चाहिए। (ग) फैक्टरिंग सेवाएं उन बिलों के लिए प्रदान की जानी चाहिए जो वास्तविक कारोबारी लेनदेन से संबंधित हैं। (घ) चूंकि दायित्व रहित फैक्टरिंग लेनदेनों के अंतर्गत फैक्टर ऋण जोखिम की हामीदारी ऋणी के पक्ष में की जाती है ऐसी सभी हामीदारी प्रतिबद्धताओं के लिए बोर्ड द्वारा मंजूर की गई स्पष्ट रूप से निर्धारित सीमा होनी चाहिए। 5. वर्गीकरण - विवेकपूर्ण मानदंड फैक्टरिंग को ऋण और अग्रिम के समान ही माना जाएगा और तदनुसार इस गतिविधि के लिए ऋण और अग्रिम पर लागू वर्तमान विवेकपूर्ण मानदंडों को लागू किया जाएगा। साथ ही यह भी स्पष्ट किया जाता है यदि फैक्टरिंग के तहत अधिग्रहीत प्राप्य का नियत तारीख के 90 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता है तो उसे अनर्जक परिसंपत्ति माना जाए, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि फैक्टर द्वारा अधिग्रहण कब किया गया है तथा फैक्टरिंग का कार्य दायित्व सहित या दायित्व रहित आधार पर किया गया है। जिस इकाई पर एक्सपोजर बुक किया गया उसे एनपीए के रूप में दिखाया जाना चाहिए और उसके अनुसार प्रावधानीकरण किया जाना चाहिए। 6. एक्सपोजर मानदंड - एकल और समूह उधारकर्ता सीमाएं फैक्टरिंग सेवाओं के माध्यम से प्रदान की जाने वाली सुविधाओं को समग्र एक्सपोजर सीमा में शामिल किया जाएगा। एक्सपोजर की गणना निम्नलिखित तरीके से की जाएगी: (क) दायित्व सहित आधार पर फैक्टरिंग के मामले में जोखिम की गणना समनुदेशक पर की जाएगी। (ख) दायित्व रहित आधार पर फैक्टरिंग के मामले में, अंतरराष्ट्रीय फैक्टरिंग के मामलों को छोड़कर जिनमें सम्पूर्ण ऋण जोखिम को आयात फैक्टर द्वारा धारण किया गया है, जोखिम की गणना देनदार पर की जाएगी, चाहे ऋण जोखिम कवर/उपलब्ध कराई गई सुरक्षा कुछ भी हो। 7. ब्याज और फीस पूर्व भुगतान के रूप में दी गई राशि पर लगाया गया कोई ब्याज अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में समय-समय पर यथा संशोधित दिशानिर्देशों के अधीन होगा। फैक्टरिंग गतिविधियों के अंतर्गत प्रदान की गई विभिन्न सेवाओं के लिए लिया गया कोई शुल्क बैंक प्रभारों के औचित्य पर दिशानिर्देशों के अधीन होगा। 8. लेखांकन ट्रीटमेंट और प्रकटीकरण मानदंड फैक्टरिंग के अंतर्गत अर्जित की गई प्राप्तियों को ऋणों और अग्रिमों के हिस्से के रूप में माना जाना चाहिए। तदनुसार, ऐसी प्राप्तियों को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की तीसरी अनुसूची (धारा 29) में निर्धारित प्रारूप के संदर्भ में तैयार बैंकों की बैलेंस शीट की अनुसूची 9 में 'खरीदे गए और बट्टा काटे गए बिल’ शीर्ष के अंतर्गत रिपोर्ट किया जा सकता है। फैक्टरिंग एक्सपोजर के संबंध में लेखा (बैलेंस शीट की अनुसूची 19) के भाग वाले 'नोट्स' में अलग से एक प्रकटीकरण किया जा सकता है। 9. सूचना का विनिमय सूचना के प्रयोजन से समनुदेशक को उधारकर्ता ही माना जाएगा। बैंकों और फ़ैक्टरों को उभयनिष्ठ उधारकर्ताओं के बारे में जानकारी साझा करनी चाहिए। इस तरह की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रयुक्त प्रारूप का निर्णय बैंकों या भारतीय बैंक संघ द्वारा लिया जा सकता है। दोहरे वित्तपोषण से बचने के लिए उधारकर्ता का बैंक समय-समय पर उधारकर्ता से फैक्टरिंग की गई प्राप्तियों के संबंध में प्रमाण पत्र भी प्राप्त करता रहे। दोहरे वित्तपोषण से बचने के लिए फैक्टरों द्वारा ऋण लेने के लिए स्वीकृत सीमाओं के बारे में और फैक्टरिंग की गई प्राप्तियों के ब्योरे संबंधित बैंकों को सूचित करना सुनिश्चित किया जाए। बैंकों द्वारा उधारकर्ताओं से प्राप्त किए गए प्रमाण पत्र के साथ इसकी दुबारा जाँच की जा सकती है। अन्य स्रोतों, जैसे समनुदेशित प्राप्तियों के संबंध में सीईआरएसएआई के पास उपलब्ध सूचना पर भी विचार किया जा सकता है। 10. साख सूचना कंपनियों के लिए साख सूचना प्रस्तुत किया जाना यदि कोई प्राप्य अतिदेय हो जाए तो उस व्यक्ति, जिस पर एक्सपोजर बुक किया गया था, द्वारा देय राशि का भुगतान न करने के संबंध में साख सूचना साख सूचना कंपनियों (विशेष रूप से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत) को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। ऐसी रिपोर्टिंग साख सूचना कंपनियां (विनियमन) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दिशानिर्देशों के अधीन होगी। 11. केवाईसी दिशानिर्देशों का पालन बैंकों के लिए लागू भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए केवाईसी/एएमएल/ सीएफटी पर अनुदेशों/दिशानिर्देशों का सभी फैक्टरिंग सेवाओं के संबंध में पालन किया जाना चाहिए। 12. फेमा दिशानिर्देशों का पालन अंतर्राष्ट्रीय फैक्टरिंग व्यवस्थाएं फेमा दिशानिर्देशों के अनुपालन में होनी चाहिए। 13. वसूली एजेंटों की नियुक्ति फैक्टरिंग के अंतर्गत प्रदान की गई वसूली सेवाओं के भाग के रूप में वसूली एजेंटों की नियुक्ति समय-समय पर यथासंशोधित 24 अप्रैल, 2008 के परिपत्र बैंपविवि.संख्या.एलईजी.बीसी.75/09.07.005/2007-08 में निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार ही होनी चाहिए। 14. कार्यों की आउटसोर्सिंग फैक्टरिंग सेवाओं के भाग के रूप में किसी भी आउटसोर्सिंग व्यवस्था को "बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग में जोखिम प्रबंध और आचार संहिता' पर समय-समय पर यथासंशोधित दिनांक 3 नवम्बर 2006 के परिपत्र बैंपविवि.संख्या.बीपी.40/21.04.158/2006-07 में निहित दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए। |