बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना से संबंधित दिशानिर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना से संबंधित दिशानिर्देश
आरबीआइ सं. 2008-09/340 |
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी.104 /21.04.132/2008-09 |
2 जनवरी 2009 |
12 पौष 1930 (शक) |
समस्त वाणिज्य बैंकों के |
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक /मुख्य कार्यपालक |
महोदय |
बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना से संबंधित दिशानिर्देश |
कृपया उपर्युक्त विषय पर 27 अगस्त 2008 का हमारा परिपत्र आरबीआइ/2008-09/143/बैंपविवि. बीपी. बीसी. 37/21.04.132/2008-09 देखें । इस परिपत्र में परिपूर्ण दिशानिर्देश दिए गए हैं, जिनमें विद्यमान दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाते हुए एकत्रित किया गया है । उपभोक्ता और व्यक्तिगत ऋण, पूंजी बाज़ार एक्सपोज़र तथा वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़र को छोड़कर सभी श्रेणियों के अग्रिमों के आस्ति वर्गीकरण के लिए विशेष विनियामक कार्रवाई (ट्रीटमेंट) की व्यवस्था की गयी थी । इस ट्रीटमेंट में पुनर्रचना के बाद मानक खातों को मानक मानने की अनुमति दी गयी है, बशर्ते कुछ निश्चित शर्तें पूरी की जाएँं । इनमें से एक शर्त यह है कि पुनर्रचना बार-बार की गयी पुनर्रचना न हो । एक अन्य शर्त यह है कि बैंकों की देयताएं पूर्णतया सुरक्षित हों । 27 अगस्त 2008 के परिपत्र में यह भी व्यवस्था है कि पुनर्रचना अनुमोदन प्रक्रिया की अवधि के दौरान अनर्जक हो जानेवाले खातों पर मानक आस्ति वर्गीकरण बहाल किया जा सकता है, बशर्ते पुनर्रचना पैकेज शीघ्रता से लागू किया जाए अर्थात् बैंक द्वारा आवेदन प्राप्त होने की तारीख/पुनर्रचना प्रक्रिया प्रारंभ करने के 90 दिनों के भीतर लागू किया जाए । |
2. वैश्विक मंदी के रिसते प्रभावों ने भारतीय अर्थ-व्यवस्था को विशेषकर सितंबर 2008 के बाद से प्रभावित करना शुरू कर दिया है । इससे अन्य प्रकार से सक्षम इकाइयों/गतिविधियों में भी दबाव पैदा हो गया है । इसे ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त परिपत्र में 8 दिसंबर 2008 के हमारे परिपत्र आरबीआइ/ 2008-09/311 बैंपविवि. बीपी. बीसी. 93/21.04.132/2008-09 के द्वारा एक बारगी उपाय के तौर पर 30 जून 2009 तक की सीमित अवधि के लिए कुछ संशोधन किए गए । उन वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़रों के लिए जिनकी पुनर्रचना पहली बार की गयी थी तथा उन एक्सपोज़रों (वाणिज्यिक स्थावर संपदा, पूंजी बाजार तथा व्यक्तिगत/उपभोक्ता ऋणों के अतिरिक्त) के लिए जो कि अर्थक्षम थे लेकिन जिनके समक्ष अस्थायी नकदी प्रवाह की समस्याएं थीं और जिन्हें द्वितीय पुनर्रचना की आवश्यकता थी, उनके लिए विशेष विनियामक ट्रीटमेंट लागू किया गया । |
3. भारतीय रिज़र्व बैंक को यह अभ्यावेदन किया गया है कि : |
(क) यद्यपि 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र के द्वारा किए गए संशोधन उन खातों पर लागू नहीं होंगे जो 8 दिसंबर 2008 से पहले अनर्जक हो चुके हैं, तथापि इन खातों को विशेष विनियामक ट्रीटमेंट प्रदान करने की आवश्यकता है क्योंकि सितंबर 2008 से भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर वैश्विक मंदी के तीव्र प्रभावों से इन खातों पर भी प्रभाव पड़ा है । इसके अलावा, बैंकों को 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र को लागू करने के लिए कुछ आरंभिक समय की भी आवश्यकता है । (ख) बड़ी संख्या में खातों की संभावित पुनर्रचना की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पुनर्रचना के लिए अनुमत 90 दिनों की अवधि पर्याप्त नहीं है । (ग) स्टॉक की कीमतों/मूल्यों में गिरावट आने के कारण आहरण शक्ति प्रभावित हुई है जिससे पुनर्रचना के बाद अनियमित भागों को कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण (डब्ल्यूसीटीएल) में परिवर्तित करने की आवश्यकता होगी । तथापि, चूंकि वर्तमान संदर्भ में उधारकर्ता और अधिक मूर्त प्रतिभूतियां प्रदान करने में असमर्थ हो सकते हैं, अत: पुनर्रचना करने के बाद भी खातों को अनर्जक रूप में वर्गीकृत किया |
4. भारतीय रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त मुद्दों की जांच की है । हम यह मानते हैं कि 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र के अनुसार जिन खातों को विशेष विनियामक ट्रीटमेंट प्रदान किए गए हैं, उन्होंनें सितंबर 2008 से दबाव महसूस किया गया होगा तथा अनर्जक आस्तियों में परिवर्तित होने के पहले प्रतिकारात्मक कार्रवाई/ पुनर्रचना करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला होगा । इसी प्रकार यह संभव है कि 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र के अंतर्गत कवर हुए कुछ खाते बैंकों द्वारा परिपत्र को लागू करने के लिए आवश्यक आरंभिक समय के दौरान अनर्जक आस्तियां बन गए होंगे । बैंकों को 90 दिनों की निर्धारित अवधि में अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में पुनर्रचना के प्रस्तावों पर कार्रवाई करने में भी परिचालनगत कठिनाई आ सकती है । प्रभावित आस्तियों का आर्थिक तथा उत्पादक मूल्य अक्षुण्ण रखने के लिए यह आवश्यक है कि कमजोरियों का पता लगाने के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए तथा अर्थक्षम खातों के लिए पुनर्रचना पैकेज लागू किया जाए । इस बात को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि - |
(क) 8 दिसंबर 2008 के उक्त परिपत्र में शामिल वे सभी खाते जो 1 सितंबर 2008 को मानक खाते थे, पुनर्रचना के बाद मानक खाते समझे जाएंगे बशर्ते उक्त पुनर्रचना 31 जनवरी 2009 को या उसके पहले की गई हो और पुनर्रचना पैकेज आरंभ करने की तारीख से 120 दिन की अवधि के भीतर लागू किया (ख) 27 अगस्त 2008 के परिपत्र के अधीन शामिल खातों के मामले में भी पुनर्रचना पैकेज को अमल में लाने की अवधि 90 दिन से बढ़कर 120 दिन होगी । (ग) चूक हो जाने पर बैंक को एक्सपोज़र पर होनेवाली संभाव्य हानि के निर्धारण के लिए प्रतिभूति का मूल्य प्रासंगिक है ।पुनर्रचित ऋणों के मामले में यह पहलू बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है । तथापि, वर्तमान गिरावट के कारण हो सकता है कि मूल धन के बकाये के अनियमित हिस्से के परिवर्तन से बने कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण के लिए, स्टॉक जैसी प्रतिभूति के मूल्यों में गिरावट के कारण पूरा प्रतिभूति कवर उपलब्ध न हो । ऐसी असामान्य स्थितियों को देखते हुए 27 अगस्त 2008 तथा 8 दिसंबर 2008 के परिपत्रों में शामिल उन ‘मानक’ तथा ‘अवमानक खातों’ के लिए भी यह विशेष विनियामक ट्रीटमेंट उपलब्ध होगा जहां कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण के लिए पूरा प्रतिभूति कवर उपलब्ध न हो, बशर्ते कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण के बेज़मानती हिस्से के लिए निम्नानुसार प्रावधान किए गए हों :
ये प्रावधान वर्तमान विनियमन के अनुसार प्रचलित प्रावधानों के अतिरिक्त होंगे । |
5. पैरा 4 में उल्लिखित सभी संशोधन एक बारगी उपाय हैं तथा 30 जून 2009 तक लागू किये गये पुनर्रचना पैकेजों के लिए उपलब्ध रहेंगे । |
6. हम इस बात को दोहराना चाहते हैं कि पुनर्रचना का उद्देश्य इकाइयों के आर्थिक मूल्य को अक्षुण्णु रखना है, समस्याग्रस्त खातों को पालना-पोसना नहीं है । यह उद्देश्य बैंकों और उधारकर्ताओं द्वारा खातों की अर्थ क्षमता के सावधानीपूर्वक आकलन, खातों में कमजोरी की त्वरित खोज तथा पुनर्रचना पैकेजों को समयबद्ध रूप से लागू करके ही प्राप्त किया जा सकता है । |
भवदीय |
(प्रशांत सरन) |
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक |