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बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्स्पोज़र के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड

भारिबै/2012-13/139
बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी 31/21.04.157/2012-13

23 जुलाई 2012

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/
मुख्य कार्यपालक अधिकारी (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)
मियादी ऋण एवं पुनर्वित्त प्रदान करने वाली अखिल भारतीय संस्थाएं

महोदय,

बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्स्पोज़र के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड

कृपया दिनांक 13 अक्तूबर 2008 का हमारा परिपत्र बैंपविवि.बीसी.57/21.04.157/2008-09 देखें जिसके अनुसार किसी डेरिवेटिव संविदा के किसी भी मानक में परिवर्तन को पुनर्रचना के रूप में माना जाता है और पुनर्रचना की तिथि को संविदा का बाज़ार-दर आधारित (मार्क टू मार्केट) मूल्य नकदी द्वारा निपटाया जाना चाहिए ।

2. ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ बैंकों के ग्राहक हेजिंग डेरिवेटिव संविदा के नोशनल एक्स्पोज़र को कम करना चाहते हों। ऐसे मामलों में, बैंक अपने विवेक से आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से, संविदा को परिपक्व होने से पहले समाप्त कर सकते हैं और संविदा के नोशनल एक्स्पोज़र को कम कर सकते हैं| नोशनल एक्स्पोज़र में यह कटौती डेरिवेटिव संविदा की पुनर्रचना नहीं मानी जाएगी, बशर्ते मूल संविदा के अन्य सभी मानक अपरिवर्तित रहें।

3. ऐसे मामलों में यदि डेरिवेटिव संविदा के बाज़ार-दर आधारित मूल्य (एमटीएम) का निपटान नकदी द्वारा नहीं किया जाता है, तो बैंक (फोरेक्स फॉरवर्ड संविदा सहित) ऐसी डेरिवेटिव संविदाओं के मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) बाज़ार-दर आधारित मूल्य के किस्तों में भुगतान की निम्नलिखित शर्तों के अधीन अनुमति दे सकते हैं :

(।) इस संबंध में बैंकों की बोर्ड द्वारा मंजूर की गई नीति होनी चाहिए ।

(।।) बैंकों को किस्तों में चुकौती की अनुमति केवल तभी देनी चाहिए जब ग्राहक द्वारा चुकौती की पर्याप्त निश्चचितता हो।

(।।।) चुकौती की अवधि संविदा के परिपक्व होने की तिथि से अधिक नहीं होनी चाहिए।

(।v)  मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) एमटीएम के लिए चुकौती की किस्तें संविदा की बची हुई परिपक्वता के दौरान समान रूप से प्राप्त की जानीं चाहिए और इनकी आवधिकता कम से कम प्रत्येक तिमाही में एक बार होनी चाहिए ।

(v) यदि ग्राहक को मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) एमटीएम का भुगतान किस्तों में करने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है और

(क) यदि रकम डेरिवेटिव संविदा के आंशिक/पूर्ण समापन की तिथि से 90 दिनों के लिए अतिदेय हो जाती है, तो प्राप्य राशि को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।

(ख) यदि रकम बाद की किस्तों के भुगतान की देय तिथि से 90 दिनों के लिए अतिदेय हो जाती है, तो प्राप्य राशि को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।

(v।) बैंकों को चाहिए कि वे उक्त v (क) तथा v (ख) के मामले में लाभ तथा हानि खाते में उपचय आधार पर लिए गए सम्पूर्ण बाज़ार-दर आधारित (एमटीएम) मूल्य की प्रति प्रविष्टि करें। विपरीत रूप में परिवर्तित किए गए एमटीएम के इन मामलों में लेखांकन के लिए बैंकों को वही पद्धति अपनानी चाहिए जो "बैंकों के तुलनपत्रेतर एक्स्पोज़र के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड" पर दिनांक 13 अक्तूबर 2008 के परिपत्र बैंपविवि.बीसी.57/21.04.157/2008-09 तथा दिनांक 11 अगस्त 2011 के परिपत्र बैंपविवि.बीसी.28/21.04.157/2011-12 में निर्धारित की गई है। तदनुसार, इन डेरिवेटिव संविदाओं के मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) एमटीएम को लाभ एवं हानि खाते से प्रति प्रविष्टि कर 'उचंत खाता – मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) प्राप्तियाँ' नामक एक अन्य उचंत खाते में क्रेडिट किया जाना चाहिए।

4. यदि ग्राहक को मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) एमटीएम मूल्य किस्तों में अदा करने की सुविधा प्रदान नहीं की जाती है तथा रकम डेरिवेटिव संविदा के आंशिक/पूर्ण समापन की तिथि से 90 दिनों के लिए अतिदेय हो जाती है, तो सम्पूर्ण प्राप्य राशि को एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए और बैंकों को हमारे दिनांक 13 अक्तूबर 2008 और 11 अगस्त 2011 के परिपत्रों में निर्धारित अनुदेशों का पालन करना चाहिए ।

5. ऐसे मामले हो सकते हैं जिनमें डेरिवेटिव संविदा को, आंशिक अथवा पूर्ण रूप से, समाप्त कर दिया गया हो, और मूर्त (क्रिस्टलाइज्ड) एमटीएम की चुकौती किस्तों में करने की अनुमति दे दी गई हो लेकिन उसी या अन्य बैंक के साथ नया समझौता कर के ग्राहक ने बाद में उसी अंडरलाइंग एक्स्पोज़र की हेजिंग करने का निर्णय लिया हो, (बशर्ते इस प्रकार की रि-बुकिंग रिज़र्व बैंक के मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार अनुमत हो)। ऐसे मामलों में, बैंक ग्राहक को डेरिवेटिव संविदा का प्रस्ताव दे सकते हैं बशर्ते ग्राहक ने उस डेरिवेटिव संविदा से संबंधित सम्पूर्ण बकाया किस्तें पूर्ण रूप से चुका दी हों जिसका उपयोग अंडरलाइंग एक्स्पोज़र की हेजिंग के लिए पूर्व में किया गया था।

भवदीय

(दीपक सिंघल )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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