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बैंकों में ग्राहक सेवा पर दामोदरन समिति की संस्‍तुतियां – इंटरसोल प्रभारों में एकरूपता

आरबीआई/2013-14/110
बैंपविवि. सं. डीआईआर बीसी. 26/13.03.00/2013-14

1 जुलाई 2013

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(ग्रामीण क्षेत्र के बैंकों को छोड़कर)

महोदय/महोदया

बैंकों में ग्राहक सेवा पर दामोदरन समिति की संस्‍तुतियां –
इंटरसोल प्रभारों में एकरूपता

कृपया 3 मई 2013 को घोषित मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2013-14 का पैरा 74 (उद्धरण संलग्‍न) देखें जो इंटरसोल प्रभारों में एकरूपता पर दामोदरन समिति की संस्‍तुतियों से संबंधित है।

2. इस संबंध में ‘बैंक प्रभारों में औचित्‍य सुनिश्चित करने हेतु योजना बनाने के लिए गठित कार्यदल की रिपोर्ट’ पर दिनांक 2 फरवरी 2007 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआईआर. बीसी. 56/13.03.00/2006-07 की ओर भी ध्‍यान आकृष्‍ट किया जाता है, जिसके द्वारा बैंकों को इस उद्देश्‍य के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित कार्यदल द्वारा सुझाए गए व्‍यापक मानदंडों के आधार पर बुनियादी बैंकिंग सेवाओं की पहचान करने और इन मूलभूत बैंकिंग सेवाओं के लिए सेवा प्रभार तय करने एवं उनकी सूचना देने में औचित्‍य सुनिश्चित करने के लिए बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले सिद्धांतों को विनिर्दिष्‍ट करने के लिए कहा गया था।

3. कोर बैंकिंग सोल्‍यूशन (सीबीएस) की शुरुआत के साथ ही यह अपेक्षा की जाती है कि बैंक के ग्राहकों के साथ किसी भी विक्रय स्‍थान या सेवा प्रदान करने के स्‍थान पर समान रूप से बर्ताव किया जाएगा। तथापि, यह पाया गया है कि कुछ बैंक एक शाखा को ‘गृह’ अथवा ‘मूल’ शाखा (होम ब्रांच) का नाम देकर, जहां उत्‍पादों/सेवाओं के लिए प्रभार नहीं लगाए जाते हैं, और उसी बैंक की अन्‍य शाखाओं को 'गैर-गृह शाखाओं' (नॉन–होम ब्रांचेज़) का नाम देकर, जहां उन्‍हीं उत्‍पादों/सेवाओं के लिए प्रभार लगाए जाते हैं, अपने ही ग्राहकों के साथ भेद-भाव कर रहे हैं। आम तौर पर ‘इंटरसोल’ प्रभारों के रूप में संबोधित किये जाने वाले ये प्रभार विभिन्‍न गृह/गैर-गृह शाखाओं के बीच भी समान नहीं हैं। बैंकों द्वारा अपनाई जाने वाली यह प्रथा बैंक प्रभारों के औचित्‍य पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों की मूल भावना के विपरीत है। चूंकि इंटरसोल प्रभार बैंक द्वारा सीबीएस/इंटरनेट/इंट्रानेट प्‍लेटफॉर्म के प्रयोग द्वारा ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करने की लागत की प्रतिपूर्ति करने के लिए लगाए जानेवाले प्रभार हैं, अतः सिद्धांततः यह लागत शाखा/ग्राहक विचार से परे होनी चाहिए। यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि कैश हैंडलिंग प्रभारों को इंटरसोल प्रभारों के अंतर्गत शामिल न किया जाए।

4. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सीबीएस माहौल में बैंक ग्राहकों के साथ बैंकों की सभी शाखाओं/सेवा प्रदाता केंद्रों में बिना किसी भेदभाव के और पारदर्शिता-पूर्ण तरीके से स्‍वच्‍छ और औचित्‍यपूर्ण बर्ताव किया जाता है, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे समान, स्‍वच्‍छ और पारदर्शी मूल्‍य निर्धारण नीति अपनाएं तथा वे अपनी गृह शाखा और गैर-गृह शाखाओं के ग्राहकों के साथ भेदभाव न बरतें। तदनुसार, यदि गृह शाखा में कोई विशिष्‍ट सेवा निःशुल्‍क उपलब्‍ध कराई जाती है तो वह सुविधा गैर-गृह शाखा में भी निःशुल्‍क उपलब्‍ध होनी चाहिए। गृह शाखा और गैर-गृह शाखाओं के ग्राहकों द्वारा किये गये समान लेनदेनों के लिए इंटरसोल प्रभारों से संबंधित कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

भवदीय

(प्रकाश चंद्र साहू)
मुख्‍य महाप्रबंधक

अनुलग्‍लकः यथोक्‍त


मौद्रिक नीति वक्तव्य 2013-14 से उद्धरण

74. कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) के प्रारंभ होने के बाद, यह आशा की जाती है कि बैंक के ग्राहकों के साथ किसी भी बिक्री या सर्विस डिलीवरी प्वाईंट पर एक समान व्यवहार किया जाएगा। तथापि, यह देखा गया है कि कुछ बैंक अपने स्वंय के ग्राहकों के साथ भेदभाव करते हैं, इस प्रकार कि एक शाखा को ‘होम ब्रांच’ का नाम दिया जा रहा है जहाँ उत्पादों/सेवाओं के लिए कोई चार्ज नहीं लग रहा है और दूसरी शाखाओं को ‘नॉन-होम ब्रांच’ कहकर उन्हीं उत्पादों/सेवाओं के लिए के लिए चार्ज लगाया जा रहा है। यह तरीका बैंक प्रभारों की तर्कसंगतता पर रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों की भावना के अनुकूल नहीं है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक की सभी शाखाओं/सर्विस डिलीवरी लोकेशनों में बैंक ग्राहकों के साथ बिना किसी भेदभाव के, न्यायसंगत, यथोचित ढंग और पारदर्शी तरीके से व्यवहार हो, बैंकों को सूचित किया जाता है कि:

  • एकसमान,न्यायसंगत और पारदर्शी मूल्य निर्धारण नीति का पालन करे और होम ब्रांच और नॉन-होम ब्रांच के ग्राहकों के बीच भेदभाव न करें।

जून 2013 के अंत तक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएगें।

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