आरबीआई/2019-20/210 ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.29 7 अप्रैल 2020 प्रति, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी–I महोदया / महोदय, जोखिम प्रबंधन और अन्तर-बैंक लेन-देन–विदेशी मुद्रा विनियम जोखिम हेतु हेजिंग प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I (एडी श्रेणी-I) बैंकों का ध्यान 3 मई 2000 को जारी विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएँ) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा. 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000), समय-समय पर यथासंशोधित, और समय-समय पर यथासंशोधित जोखिम प्रबंधन तथा अन्तर-बैंक लेन-देन विषयक मास्टर निदेश, दिनांक 5 जुलाई 2016 की तरफ आकर्षित किया जाता है। 2. जैसा कि 5 दिसम्बर 2019 को जारी विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य में घोषित किया गया था, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999 के तहत अनुमत संव्यवहारों की वजह से होने वाले विदेशी मुद्रा विनियम जोखिमों से बचाव के लिए अनिवासियों और निवासियों के लिए विद्यमान सुविधाओं को संशोधित किया गया है। संशोधित निदेशों को इस परिपत्र के अनुबंध-I में दिया गया है। इन निदेशों के प्रभावी होने की तारीख से इस संबंध में जारी पूर्ववर्ती सभी दिशानिदेशों, शर्तों और निबंधनों को वापस ले लिया गया माना जाएगा। 3. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएँ) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा. 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में आवश्यक संशोधनों (अधिसूचना सं. फेमा 398/आरबी/2020 दिनांक 18 फरवरी, 2020) (विनियमनों) को 3 मार्च 2020 के शासकीय राजपत्र में राजपत्र आईडी सं. सीजी-एमएच-ई-06032020-216549 में अधिसूचित कर दिया गया था, जिसकी एक प्रति इस परिपत्र के साथ अनुबद्ध है। इन विनियमों को फेमा, 1999 (1999 की 42) की उप-धारा (2) के खंड (ज) के तहत जारी किया गया है। 4. ये निदेश 1 जून 2020 से प्रभावी होंगे और 5 जुलाई 2016 को जारी तथा समय-समय पर यथासंशोधित जोखिम प्रबंधन और अन्तर-बैंक लेन-देन विषयक मास्टर निदेशों के भाग-क-खंड-I और II तथा भाग- घ में विद्यमान निदेशों को प्रतिस्थापित करेंगे। 5. दिनांक 5 जुलाई, 2016 को जारी और समय-समय पर यथासंशोधित प्रबंधन और अन्तर-बैंक लेन-देन विषयक मास्टर निदेशों के भाग-ई में निर्धारित निम्नलिखित रिपोर्टों को इन निदेशों के प्रभावी होने की तारीख से हटा दिया जाएगा।
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क्रॉस-करेन्सी डेरिवेटिव संव्यवहार (छमाही) - अनुबंध-IV
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विगत कार्य निष्पादन के आधार पर वायदा संविदाओं की बुकिंग पर रिपोर्ट (मासिक) - अनुबंध-X
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एफपीआई – क्लाइंट द्वारा लिए गए वायदा कवर पर रिपोर्ट (मासिक) - अनुबंध XIII
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एसएमई और निवासी व्यक्तियों, फर्मों और कम्पनियों द्वारा बुक की गई वायदा संविधाओं/आप्शनों के विवरण जो आगामी माह के पहले सप्ताह के भीतर भेजे जाते हैं (तिमाही) - अनुबंध–XIV
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अनिवासी आयातकों / निर्यातकों द्वारा किए गए डेरेवेटिव संव्यवहार (तिमाही) – अनुबंध–XIX
6. इस परिपत्र में निहित निदेशों को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11(1) के तहत जारी किया गया है और किसी अन्य कानून के तहत यदि कोई अनुमति/अनुमोदन लिया जाना अपेक्षित है, तो उन पर इससे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। भवदीया, (डिम्पल भांडिया) महाप्रबंधक(प्रभारी)
अनुबंध-I 1. परिभाषाएँ
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प्रत्याशित एक्सपोजर – फेमा, 1999 या इसके तहत बनाए गए किसी अन्य नियम या विनियमावली के तहत अनुमेय चालू और पूँजी खाता संव्यवहारों, जो भविष्य में किए जाने प्रत्याशित हैं, के कारण किसी विदेशी मुद्रा के बदले आईएनआर की विनिमय दर का एक्सपोजर।
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संविदाकृत एक्सपोजर – फेमा, 1999 अथवा इसके तहत बनाए गए किसी नियम या विनियम के तहत अनुमति के अनुसार चालूखाते और पूंजी खाते में पहले ही निष्पादित किए जा चुके संव्यवहारों के कारण किसी विदेशी मुद्रा के बदले आइएनआर की विनियम दर से होने वाले एक्सपोजर।
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उक्त (i) और (ii) के प्रयोजन से सावधि एक्सपोजर में निवासियों के बीच किसी विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित किन्तु आईएनआर का प्रयोग करके निपटाए गए या किसी विदेशी मुद्रा से सम्बद्ध या किसी विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित बेन्चमार्क से सम्बद्ध संव्यवहार के कारण उत्पन्न हुए एक्सपोजर शामिल किए जाएंगे।
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हेजिंग – किसी प्रत्याशित या संविदाकृत एक्सपोजर के प्रभाव को निष्प्रभावी करने के लिए डेरिवेटिव लेने के क्रियाकलाप।
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प्रयोक्ता – फेमा, 1999 के पैरा 2(u) में परिभाषित व्यक्ति, चाहे वह भारत में निवास करता हो अथवा भारत के बाहर निवास करता हो
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वित्तीय क्षेत्र विनियामकों से आशय है – भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई), भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी), भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडाई), पेन्शन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) या कोई भी अन्य सांविधिक प्राधिकरण जिसे भारतीय कानूनों के तहत वित्तीय संस्था को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान की गई हो।
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कवर्ड कॉल (पुट) ऑप्शन का आशय है लिखित ऑप्शन जिसमें ऑप्शन के लिए अन्तर्निहित आस्ति में लेखक के पास लॉन्ग (शॉर्ट) पोजिशन रहती है।
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‘सेबी’ का आशय होगा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) के तहत स्थापित भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड।
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‘इरडाई’ का आशय होगा बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (1999 का 41) के तहत स्थापित भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण।
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‘पीएफआरडीए’ का आशय होगा पेन्शन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2013 (2013 का 23) के तहत स्थापित पेन्शन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण।
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निवल मालियत का वही आशय रहेगा जो कम्पनी अधिनियम 2013 (यथा संशोधित) की धारा 2(57) में परिभाषित है।
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अप्रदेय डेरिवेटिव संविदा (एनडीडीसी) का आशय है ऐसी विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा जिसमें रुपया शामिल है, जो कि भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति के साथ की गई हो, और जिसका निपटान रुपये की सुपुर्दगी किए बिना किया जाता है
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एक्सचेंज का आशय रहेगा ‘मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज’ (इसमें इन्टरनेशनल फाइनेन्शियल सर्विसेज सेन्टर्स (आईएफएससी) में स्थापित स्टॉक एक्सचेंज शामिल नहीं हैं) और इनका वही आशय होगा जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2(च) में निर्धारित किया गया है।
2. प्राधिकृत व्यापारियों हेतु निदेश अ. सामान्य निदेश i. प्राधिकृत व्यापारी एक प्रयोक्ता का वर्गीकरण इस निदेश के अनुबंध-II में प्रदत्त प्रयोक्ता वर्गीकरण व्यवस्था के अनुसार करेंगे और प्रत्येक मामले में अनुमेय दिशानिदेशों का पालन करेंगे। ii. प्राधिकृत व्यापारी एक प्रयोक्ता को उक्त पैरा (i) में दिए गए प्रयोक्ता वर्गीकरण के अनुसार डेरिवेटिव संविदा का प्रस्ताव करेंगे। प्रयोक्ता को एनडीडीसी के अलावा अन्य प्रकार से आईएनआर को शामिल करके डेरिवेटिव का प्रस्ताव करते समय और ऐसी संविदाओं की जीवन-अवधि के दौरान, प्राधिकृत व्यापारी सुनिश्चित करेंगे कि –
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संविदा का प्रयोजन इन निदेशों में यथा परिभाषित हेजिंग के लिए है।
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संविदा का नोशनल और कालावधि एक्सपोजर के मूल्य और कालावधि से अधिक नहीं हो।
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इसी एक्सपोजर को किसी अन्य डेरिवेटिव संविदा से हेज नहीं किया गया है।
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आंशिक अथवा पूर्णतया रूप से एक्सपोजर समाप्त होने पर, उक्त ‘ख’ का अनुपालन करने के लिए प्रयोक्ता ने हेज का समानुपातिक समायोजन कर दिया है, जब तक कि मूल डेरिवेटिव संविदा को हेज नहीं किए गए किसी अन्य एक्सपोजर के बदले में संपृक्त नहीं कर दिया जाता है। यदि प्राधिकृत व्यापारी के सुविचारित अभिमत में एक्सपोजर में हुआ परिवर्तन महत्त्वपूर्ण नहीं है तो हेज में कोई समायोजन करना अपेक्षित नहीं है।
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ऐसे मामले जिनमें एक्सपोजर का मूल्य डेरिवेटिव के नोशनल से नीचे चला जाता है, तो नोशनल को समुचित रूप से समायोजित किया जाए जब तक कि इस प्रकार का विचलन एक्सपोजर के बाजार मूल्य में परिवर्तन के कारण नहीं हुआ हो, ऐसी स्थिति में प्रयोक्ता अपने विवेकानुसार डेरिवेटिव संविदा की मूल परिपक्वता तक निरंतरता रख सकता है।
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यदि एक्पोजर का मूल्य निश्चित रूप से निर्धारण योग्य नहीं है, तो डेरिवेटिव संविदा को समुचित आकलनों के आधार पर बुक किया जाए। ऐसे आकलनों की समीक्षा आवधिक रूप से की जाए ताकि उक्त (घ) और (ङ) का अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
iii. प्राधिकृत व्यापारियों को यह अनुमति देनी होगी कि प्रयोक्ता अपनी डेरिवेटिव संविदाओं को मुक्त रूप से रद्द और पुन-बुक कर सकें। हालांकि, प्रत्याशित एक्सपोजर से बचाव करने के लिए बुक की गई संविदा पर निवल अर्जनों (यदि कोई हानियाँ हुई हों तो उनके अलावा हुए अर्जनों) को केवल प्रत्याशित संव्यवहार के नकदी प्रवाह के समय पात्र प्रयोक्ता को देना होगा। आंशिक डिलीवरी के मामले में निवल अर्जनों को यथा-अनुपातिक आधार पर अंतरित किया जाएगा। iv. प्राधिकृत व्यापारी अपवादस्वरूप मामलों में ही प्रत्याशित एक्सपोजर से बचाव हेतु बुक की गई संविदाओं के निवल अर्जनों को उसी स्थिति में प्रदान करेंगे जिनमें अन्तर्निहित नकदी प्रवाह को रूपांतरित नहीं किया गया है, बशर्ते व्यापारी को संतुष्टि हो जाए कि नकदी प्रवाह का अभाव उन कारणों से हुआ है जो प्रयोक्ता के नियंत्रण से परे थे। ऐसे अवसरों को समुचित न्यायासंगतता के साथ प्राधिकृत व्यापारी द्वारा रिकार्डबद्ध किया जाएगा। v. सभी डेरिवेटिव संविदाएं 20 अप्रैल 2007 को जारी डेरिवेटिव विषयक समेकित दिशानिदेशों के परिपत्र सं.डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.86/21.04.157/2006-07 (समय-समय पर यथासंशोधित) के माध्यम से निर्धारित उपयुक्तता और औचित्य की शर्तों के अनुसार होगे। vi. एक्सचेंज में संव्यवहारों की निगरानी के प्रयोजन से प्रयोक्ता द्वारा विशिष्ट रूप से नामित प्राधिकृत डीलरों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रयोक्ता द्वारा आईएएनआर को समाहित करने वाली सभी संविदाओं को सभी एक्सचेंजों के लिए एक साथ मिलाकर, आईएएनआर के संविदागत एक्सपोजर से समर्थन दिया गया है vii. इन दिशानिदेशों की अपेक्षाओं के अनुपालन हेतु जो भी कागजात अनिवार्य समझे जाएं, प्राधिकृत व्यापारी उनकी मांग पात्र प्रयोक्ता से करेगा। viii. जब तक रिज़र्व बैंक से प्राधिकृत डीलरों को बिना आईएनआर वाली संविदाओं की बुक-रन करने की अनुमति नहीं मिल जाए तब तक ऐसी संविदाओं का प्रस्ताव पूर्णतया कवर करते हुए बैक-टू-बैक आधार पर करेंगे। ix. र्ववर्ती निदेशों के प्रावधानों के तहत बुक की गई विद्यमान संविदाओं को उनके समापन की तारीख तक बरकरार रखा जाए। x. फेमा, 1999 के तहत प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I का लाइसेन्स रखने वाले भारत के बैंक जो इन्टरनेशनल फिनान्शियल सर्विसेज सेन्टर (आइएफएससी) बैंकिंग यूनिटों (आईबीयू) का संचालन करते हैं (जैसा कि 1 अप्रैल 2015 को जारी परिपत्रसं.आरबीआई/2014-15/533.डीबीआर.आईबीडी.बीसी. 14570/23.13.004/2014-15 (समय-समय पर यथा संशोधित) में निर्धारित है)), वे बैंक रुपया शामिल करते हुए, या अन्यथा, अप्रदेय डेरिवेटिव संविदाओं का प्रस्ताव भारत में अनिवासी व्यक्तियों को करने के पात्र होंगे। बैंक इन संव्यवहारों को अपने आईबीयू अथवा भारत में अपनी शाखाओं या अपनी विदेश स्थित शाखाओं (भारत में संचालन कर रहे विदेशी बैंकों के मामलों में, अपने मूल बैंक की किसी भी शाखा के माध्यम से) के माध्यम से निष्पादित कर सकते हैं। आ. विशिष्ट निदेश
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घरेलू नॉन-रिटेल कार्पोरेट जिनके पास अपनी आईएनआर देयता है, अपने विवेकानुसार, करेंसी-स्वैप के माध्यम से इसे विदेशी मुद्रा देयता में संपरिवर्तित कर सकते हैं।
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आईएनआर वाली डेरिवेटिव संविदाओं के लिए प्राधिकृत व्यापारी एक प्रयोक्ता को नोशनल मूल्य (किसी भी समय पर बकाया) के समतुल्य यूएसडी10 मिलियन की डेरिवेटिव संविदाएँ करने की अनुमति देगा, इसके लिए अन्तर्निहित एक्सपोजर की विद्यमानता स्थापित करने की जरूरत नहीं होगी।
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प्राधिकृत व्यापारी एक अनिवासी प्रयोक्ता (या इसकी केन्द्रीय ट्रेजरी या इसके समूह के प्रतिष्ठान, जहाँ भी अनुमेय हो) के साथ सीधे ही या ऐसे प्रयोक्ता के विदेश स्थित बैंक के माध्यम से (प्राधिकृत व्यापारी की विदेश स्थित शाखाओं सहित) या स्थानीय विनियमों के अनुसार डेरिवेटिव सौदे करने के लिए पात्र विदेशी प्रतिष्ठानों के माध्यम से कारोबार कर सकते हैं।
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एक अनिवासी प्रयोक्ता की केन्द्रीय ट्रेजरी के मामले में प्राधिकृत व्यापारी यह सुनिश्चित करेगा कि यह केन्द्रीय ट्रेजरी को प्रयोक्ता हेतु और उसकी तरफ से कारोबार करने के लिए समुचित रूप से प्राधिकृत कर दिया गया है।
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प्राधिकृत व्यापारी यह सुनिश्चित करेगा कि अनिवासी प्रयोक्ता के मामले में बचाव हेतु प्रासंगिक रूप से सभी देय राशियों को प्रयोक्ता द्वारा सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से स्वदेश प्रेषणीय निधियों और / या आवक धनप्रेषण के माध्यम से चुकता कर दिया गया है।
3. एक्सचेंजों के लिए निदेश
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प्रयोक्ता आईएनआर वाले सभी मुद्रा-युग्मों में समान रूप से यूएसडी 100 मिलियन की एकल सीमा तक, समग्र रूप से, सभी एक्सचेंजों को मिलाकर, पोजिशन (लॉन्ग अथवा शार्ट) अंतर्निहित एक्सपोजर की विद्यमानता को स्थापित किए बिना ले सकते हैं।
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करेन्सी डेरिवेटिव का प्रस्ताव करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत एक्सचेंज उन प्रयोक्ताओं को सुविधा दी जाएगी जो सभी एक्सचेंजों को एक साथ मिलाकर, रुपया शामिल करते हुए की गई संविदाओं में यूएसडी100 मिलियन (या इसके समतुल्य) से अधिक की पोजिशन लेते हैं, वे प्राधिकृत व्यापारी / कस्टोडियन नामित करेंगे।
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पूर्ववर्ती पैरा में संदर्भित प्रयोक्ताओं के लिए एक्सचेंजों द्वारा दिवस-अंत की ओपन पोजिशन के साथ-साथ उसी प्रयोक्ता के लिए आंतर-दिवसीय उच्चतम पोजिशन की जानकारी प्राधिकृत व्यापारी / कस्टोडियन को दी जाएगी।
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इन निदेशों के अनुपालन का दायित्व प्रयोक्ता पर रहेगा। किसी प्रतिकूलता की स्थिति में प्रयोक्ता स्वयं को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, (फेमा), 1999 के तहत किसी भी कार्रवाई से आबद्ध मानेगा।
अनुबंध-II प्रयोक्ता वर्गीकरण व्यवस्था 1. प्रयोक्ता वर्गीकरण i. एक प्रयोक्ता को डेरिवेटिव संविदाओं का प्रस्ताव करने के प्रयोजन से प्राधिकृत व्यापारी उस प्रयोक्ता को रिटेल प्रयोक्ता या फिर नॉन-रिटेल प्रयोक्ता के रूप में वर्गीकृत करेगा। ii. निम्नलिखित प्रयोक्ता नॉन-रिटेल प्रयोक्ता के रूप में वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगेः
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वित्तीय क्षेत्र के नियामक द्वारा नियंत्रित सभी प्रतिष्ठानों के लिए संबंधित नियामक से सामान्य अथवा विशिष्ट अनुमति लेने की शर्त रहेगी।
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एक्जिम बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी), और लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी)
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न्यूनतम रु.500 करोड़ की निवल मालियत वाली कम्पनियां
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व्यक्तिगत लोगों के अलावा भारत से बाहर के निवासी व्यक्ति
iii. नॉन-रिटेल प्रयोक्ता के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अपात्र प्रयोक्ता को रिटेल-प्रयोक्ता के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। iv. नॉन-रिटेल प्रयोक्ता के तौर पर अन्यथा वर्गीकृत किए जा सकने के पात्र प्रयोक्ता को रिटेल प्रयोक्ता के रूप में वर्गीकृत कराने का विकल्प रहेगा। 2. रिटेल प्रयोक्ताओं के मामले में निदेश
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पात्र प्रोडक्ट – फॉरवर्ड, कॉल तथा पुट आप्शनों की खरीद (केवल यूरोपियन ऑप्शन), कॉल और पुट स्प्रेड की खरीद, स्वैप।
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रिटेल ग्राहकों के साथ सभी वायदा संविदाओं का निष्पादन प्रचलित इन्टर बैंक / बाजार दरों पर होगा और इन पर टाइम-स्टैम्प लगानी होगी। अन्य सभी डेरिवेटिव संविदाओं के संबंध में संविदा करने से पहले ही डेरिवेटिव के मिड-मार्केट मार्क ग्राहक पर प्रकट करने होंगे और इसे टर्म-शीट में शामिल करना होगा। मिड-मार्केट मार्क किसी डेरिवेटिव की वह कीमत होती है जो लाभ, क्रेडिट रिज़र्व हेजिंग, फंडिंग, चलनिधि या किसी अन्य लागत या समायोजन से मुक्त होती है।
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संविदा से सम्बद्ध सभी अनुमेय फीस / कमीशन / सेवा प्रभारों आदि को प्राधिकृत व्यापारी द्वारा अलग से प्रभारित किया जाएगा और ये संविदा की कीमत का हिस्सा नहीं होंगे।
3. नॉन-रिटेल प्रयोक्ताओं के मामले में निदेश
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पात्र प्रोडक्ट – कोई भी डेरिवेटिव संविदा, कवर्ड ऑप्शनों सहित, जिनकी कीमत और मूल्य प्राधिकृत व्यापारी स्वतंत्र रूप से लगा सकता है, और जो प्राधिकृत व्यापारी के बोर्ड द्वारा अनुमोदित हो, बशर्ते किसी भी परिदृश्य में डेरिवेटिव संव्यवहार से प्रयोक्ता को होने वाली प्रत्याशित हानि उस हानि से अधिक नहीं हो जो प्रयोक्ता को तब हुई होती जब उसने इस पोजिशन की हेजिंग नहीं की होती। इस प्रतिबंध के अनुपालन का दायित्व प्रयोक्ता को प्रोडक्ट का प्रस्ताव करने वाले प्राधिकृत व्यापारी पर रहेगा।
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ग्राहक को प्रस्ताव करने से पहले सभी नए प्रोडक्ट को प्राधिकृत व्यापारी के बोर्ड (अथवा इसके समकक्ष) द्वारा अनापत्ति अवश्य दी जाए।
अनुबंध-III 18 फरवरी 2020 सं. फेमा.398/आरबी-2020 विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएँ), (प्रथम संशोधन) विनियम, 2020 विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 47 की उपधारा (2) के खंड (ज) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक एतद् द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएँ) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई, 2000) में निम्नलिखित संशोधन करता है, यथा - 1. लघु शीर्षक और प्रवर्तन –
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इन विनियमों को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएँ) (प्रथम संशोधन) विनियम, 2020, कहा जाएगा।
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ये विनियम शासकीय राजपत्र में प्रकाशन की तारीख से प्रभावी होंगे।
2. संशोधन i. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में (परिभाषाओं) के पैरा-2 के उप-पैरा (ii) में ‘प्राधिकृत व्यापारी’ की परिभाषा के पाठ को निम्नानुसार प्रतिस्थापित किया जाएगा -
‘प्राधिकृत व्यापारी’ का आशय है भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिनियम की धारा 10 की उप-धारा (1) के तहत इस रूप में प्राधिकृत व्यक्ति;
ii. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में (परिभाषाओं) के पैरा-2 के उप-पैरा (v) में ‘विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा’ की परिभाषा को निम्नानुसार प्रतिस्थापित किया जाएगा -
‘विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा’ का आशय है एक वित्तीय संविदा जो अपना मूल्य दो मुद्राओं की विनियम दर में परिवर्तन से व्युत्पन्न करती है, इन दो मुद्राओं में एक मुद्रा भारतीय रुपया नहीं है अथवा जो अपना मूल्य एक विदेशी मुद्रा की ब्याज दर में परिवर्तन और जो भावी तारीख को निपटाए जाने हैं; अर्थात हाजिर निपटान तारीख के बाद की कोई तारीख, प्रावधान किया जाता है कि नेपाल और भूटान की मुद्राओं को समाहित करने वाली संविदाओं को इस परिभाषा के तहत अर्हकता नहीं मिलेगी।
iii. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में (परिभाषाओं) के पैरा-2 में विद्यमान परिभाषाओं के बाद निम्नलिखित को जोड़ दिया जाए -
(xii) ‘संविदाकृत एक्सपोजर’ का आशय है अधिनियम अथवा इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम अथवा विनियम के तहत चालू और पूँजी खाते में अनुमेय संव्यवहारों के कारण पैदा होने वाले मुद्रा जोखिम।
(xiii) ‘प्रत्याशित एक्सपोजर’ का आशय है चालू खाते और पूंजी खाते में अधिनियम अथवा इसके तहत बनाए गए किसी नियम या विनियम के तहत अनुमेय संव्यवहारों, जो भविष्य में किए जाने के लिए प्रस्तावित हैं, के कारण होने वाले करेन्सी जोखिम।
(xiv) ‘मुद्रा जोखिम’ का आशय है एक विदेशी मुद्रा के प्रति रुपये की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण अथवा किसी एक विदेशी मुद्रा का दूसरी मुद्रा के प्रति विनियम दरों में उतार-चढ़ाव के कारण या विदेशी मुद्रा के लिए अनुमेय ब्याज दर में उतार-चढ़ाव के कारण हानि की संभावना।
(xv) ‘हेजिंग’ का आशय है मुद्रा जोखिम का प्रबंध करने के लिए विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संव्यवहार अन्डरटेकिंग के क्रियाकलाप।
(xvi) ‘एक्सचेंज ट्रेडेड करेन्सी डेरिवेटिव’ का आशय है किसी निर्दिष्ट आगामी तारीख को, संविदा की तारीख पर निर्धारित कीमत पर एक के बदले किसी दूसरी मुद्रा को बेचने या खरीदने के लिए मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर मानकीकृत विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा का सौदा करना
iv. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में (परिभाषाओं) के पैरा-2 के विद्यमान उप-पैरा (iii), (iv), (va), (vi) (viii),(ix) और (xi) को विलोपित किया जाएगा। v. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) के पैरा 4 (भारत में निवासी किसी व्यक्ति को विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा करने की अनुमति) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाएगा - “विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा निष्पादित करने की अनुमति – कोई व्यक्ति चाहे भारत में निवासी हो या भारत से बाहर का निवासी हो, इस विनियन की अनुसूची-I में निहित प्रावधानों के अनुसार एक्सचेंज ट्रेडेड डेरिवेटिव अथवा एक्सचेंज ट्रेडेड करेन्सी डेरिवेटिव संविदा निष्पादित कर सकता है। vi. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) के पैरा 5, 5क, 5ख और 5ग -2 को विलोपित किया जाएगा vii. पैरा 7 के उप-पैरा (ग) (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा से संबंधित धनप्रेषण) में विनियम 5 के लिए दिए गए संदर्भ को विनियम 4 से प्रतिस्थापित किया जाएगा। viii. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) की अनुसूची -I का नाम बदल कर – ‘अनुमेय विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा’ – किया जाएगा। ix. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) की अनुसूची-I के तहत दिए गए विद्यमान पाठ को निम्नलिखित से विस्थापित किया जाएगा - 1. एक व्यक्ति, चाहे वह भारत में निवासी है या भारत के बाहर का निवासी है, किसी प्राधिकृत व्यापारी के साथ विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा निष्पादित कर सकता है। रुपया आधारित संविदाओं पर निम्नलिखित शर्ते लागू होंगी : i. कि ऐसी संविदाएँ किसी संविदाकृत या प्रत्याशित एक्सपोजर की हेजिंग के प्रयोजन से की जाएँगी -
प्रावधान किया जाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा अनुमति अनुसार वे संविदाएँ की जा सकती है जो संविदाकृत अथवा प्रत्याशित एक्सपोजर पर आधारित नहीं हैं।
यह भी प्रावधान किया जाता है कि ऐसे संव्यवहार जिनमें रुपया निहित है लेकिन जिनका निपटान विदेशी मुद्रा की डिलीवरी देकर किया जाता है उनका निष्पादन केवल प्राधिकृत व्यापारी द्वारा या भारत के अनिवासी व्यक्ति द्वारा और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा अनुमति दिए अनुसार अन्य व्यक्तियों द्वारा, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस बारे में जारी निदेशों की शर्तों के अनुसार किया जाएगा।
ii. कि जब भी प्राधिकृत व्यापारी द्वारा कहा जाएगा तो ऐसा व्यक्ति एक्सपोजर के विवरणों को प्राधिकृत व्यापारी के साथ साझा करेगा। 2. एक व्यक्ति एक्सचेंज ट्रेडेड करेन्सी डेरिवेटिव संविदा उन एक्सचेंज में कर सकेगा जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 के तहत मान्यता प्राप्त हैं। रुपया शामिल करते हुए की गई संविदाओं पर निम्नलिखित शर्तें लागू होंगीः
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कि ऐसी संविदाएँ इन विनियमों में यथा परिभाषित संविदाकृत एक्सपोजर की हेजिंग के प्रयोजन हेतु की जाएँगी।
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कि ऐसा व्यक्ति भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा निर्धारित सीमाओं से अधिक की पोजिशन लेने पर एक्सचेंज में अपनी पोजिशनों की निगरानी के लिए भारत में प्राधिकृत व्यापारी नामित करेगा।
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कि जब भी व्यापारी द्वारा कहा जाएगा तो ऐसा व्यक्ति संविदाकृत एक्सपोजर के विवरणों को प्राधिकृत व्यापारी के साथ साझा करेगा।
x. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) की अनुसूची-II के तहत दिए गए विद्यमान पाठ को विलोपित किया जाएगा। (डिम्पल भांडिया) महाप्रबन्धक (प्रभारी अधिकारी)
फुटनोट - प्रधान विनियमों को भारत सरकार के राजपत्र – विशेष – द्वितीय भाग, खंड 3, उप खंड (i) में 8 मई 2000 के जी.एस.आर.411(ई) में प्रकाशित और तत्पश्चात निम्नानुसार संशोधित किया गया जी.एस.आर.756(ई) दिनांक 28.09.2000, जी.एस.आर.264(ई) दिनांक 09.04.2002, जी.एस.आर.579(ई) दिनांक 19.08.2002, जी.एस.आर.222(ई) दिनांक 18.03.2003, जी.एस.आर.532(ई) दिनांक 09.07.2003, जी.एस.आर.880(ई) दिनांक 11.11.2003, जी.एस.आर.881(ई) दिनांक 11.11.2003, जी.एस.आर.750(ई) दिनांक 28.12.2005, जी.एस.आर.222(ई) दिनांक 19.04.2006, जी.एस.आर.223(ई) दिनांक 19.04.2006, जी.एस.आर.760(ई) दिनांक 07.12.2007, जी.एस.आर.577(ई) दिनांक 05.08.2008, जी.एस.आर.440(ई) दिनांक 23.06.2009, जी.एस.आर.895(ई) दिनांक 14.12.2009, जी.एस.आर.635(ई) दिनांक 27.07.2010, जी.एस.आर.608(ई) दिनांक 03.08.2012, जी.एस.आर.799(ई) दिनांक 30.10.2012, जी.एस.आर.330(ई) दिनांक 23.05.2013, जी.एस.आर.374(ई) दिनांक 02.06.2014, जी.एस.आर.365(ई) दिनांक 01.06.2016 जी.एस.आर.378(ई) दिनांक 25.10.2016 जी.एस.आर.260(ई) दिनांक 17.03.2017 और जी.एस.आर.1324(ई) दिनांक 24.10.2017 (भारत सरकार के दिनांक 03.03.2020 के राजपत्र – विशेष – भाग III, खंड 4 में राजपत्र आईडी सं.सीजी-एमएच-ई-06032020-216549 के माध्यम से प्रकाशित) |