जोखिम प्रबंधन और अंतर-बैंक लेन देन : अनिवासी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों के लिए परिचालनगत नमनीयता - आरबीआई - Reserve Bank of India
जोखिम प्रबंधन और अंतर-बैंक लेन देन : अनिवासी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों के लिए परिचालनगत नमनीयता
भारिबैं/2016-17/254 दिनांक 21 मार्च 2017 सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक महोदया/महोदय, जोखिम प्रबंधन और अंतर-बैंक लेन देन : अनिवासी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों के लिए परिचालनगत नमनीयता प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - । (एडी श्रेणी-।) बैंकों का ध्यान समय समय पर यथासंशोधित फेमा, 1999 (1999 का 42वाँ अधिनियम) की धारा 47 की उप धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत जारी विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 की ओर और समय समय पर यथासंशोधित जोखिम प्रबंधन एवं अंतर-बैंक लेन देन पर मास्टर निदेश दिनांक 5 जुलाई 2016 की ओर आकृष्ट किया जाता है । 2. बहुराष्ट्रीय संस्थाओं और उनकी भारतीय सहायक कंपनियों को, जो भारत में किये गये चालू खाता लेन देनों से उत्पन्न करेंसी जोखिम से अरक्षित होती हैं, परिचालनगत सहजता प्रदान करने की दृष्टि से वर्तमान हेजिंग दिशानिर्देशों में इस परिपत्र के अनुबंध-। में दी गयी शर्तों के अनुसार संशोधन किया गया है । इस आशय की घोषणा भारतीय रिज़र्व बैंक की विकास एवं विनियामक नीतियों के संबंध में वक्तव्य (पैरा 9) में दिनांक 4 अक्तूबर 2016 को की गयी थी । 3. विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं.फेमा 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) (विनियम) में आवश्यक संशोधन (अधिसूचना सं.फेमा 384/2017-आरबी दिनांक 17 मार्च 2017) शासकीय़ राजपत्र में जी.एस.आर.सं.260(ई) दिनांक 17 मार्च 2017 द्वारा अधिसूचित किये गये हैं, जिसकी प्रतिलिपि इस परिपत्र के साथ अनुबंध ।। में दी गयी है । ये विनियम फेमा, 1999 (1999 का 42 वाँ) की धारा 47 की उप धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत जारी किये गये हैं । 4. एडी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने घटकों और ग्राहकों को अवगत करायें । 5. इस परिपत्र में अंतर्विष्ट निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42 वाँ) की धारा 10(4) और 11(1) के अंतर्गत जारी किये गये हैं और इनसे किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि हो, पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है । भवदीय, (टी. रबिशंकर) [ ए.पी. (डीआइआर सीरीज) परिपत्र सं.41 दिनांक 21 मार्च 2017 का अनुबंध-। ] अनिवासी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों के लिए परिचालनगत सहजता 1. प्रयोजन बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की भारतीय सहायक कंपनियों के चालू खाता लेन देनों से उत्पन्न करेंसी जोखिम को हेज करने के लिए डेरिवेटिव संविदाएँ दर्ज किये जाने हेतु परिचालनगत सहजता प्रदान करना । 2. उपयोगकर्ता किसी भारतीय सहायक कंपनी की अनिवासी मूल कंपनी या इसकी केन्द्रीकृत ट्रेजरी या इसकी क्षेत्रीय ट्रेजरी, जो भारत से बाहर हो । 3. उत्पाद सभी प्रकार के एफसीवाइ-आइएनआर डेरिवेटिव, ओटीसी और एक्सचेंज ट्रेडेड, जिसे भारतीय सहायक कंपनी फेमा, 1999 और उसके अंतर्गत जारी किये गये विनिय़मों एवं निदेशों के अनुसार लेने के लिए पात्र है । 4. परिचालनगत दिशानिर्देश, हेजिंग के लिए शर्तें
[ ए.पी. (डीआइआर सीरीज) परिपत्र सं.41 दिनांक 21 मार्च 2017 का अनुबंध-।। ] भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं. फेमा.384/आरबी-2017 दिनांक 17 मार्च 2017 विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) (संशोधन) विनियम, 2017 विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42 वाँ) की धारा 47 की उपधारा (2) के खंड (ज) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक इसके द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 (अधिसूचना सं.फेमा 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में निम्नलिखित संशोधन करता है, यथा : - 1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ (i) इन विनियमों को विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा)(संशोधन) विनियम, 2017 कहा जा सकेगा । (ii) ये शासकीय राजपत्र में प्रकाशन की तिथि से प्रवृत्त होंगे । 2. अनुसूची ।। के अंतर्गत संशोधन : विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियम 2000 (अधिसूचना सं. फेमा 25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) में, अनुसूची ।। में, वर्तमान पैरा 6 के बाद निम्नलिखित को जोड़ा जायेगा, यथा : कोई अनिवासी उन शर्तों के अधीन, जो रिज़र्व बैंक द्वारा समय समय़ पर अनुबद्ध किये जायें, भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी बैंक के साथ विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा कर सकता है, ताकि वह अपनी भारतीय सहायक कंपनी के विदेशी मुद्रा जोखिम को हेज कर सके और अपनी भारतीय सहायक कंपनी की ओर से उक्त सहायक कंपनी के लेन देनों के संबंध में संविदा कर सकता है । भवदीय, (टी. रबिशंकर) पाद-टिप्पणी :- मूल विनियम जी.एस.आर सं.411(ई) दिनांक 8 मई 2000 द्वारा शासकीय राजपत्र के भाग ।।, खंड 3, उपखंड (i) में प्रकाशित किये गये और बाद में निम्नलिखित द्वारा संशोधित किये गये – जी.एसआर सं. 756 (ई) दिनांक 28.09.2000 भारत सरकार के शासकीय राजपत्र – असाधारण – भाग-।।, खंड 3, उपखंड (i) में प्रकाशित दिनांक 17 मार्च 2017-जी.एस.आर.सं. 260 (ई) |