जोखिम प्रबंध और अंतर बैंक लेन देन - आरबीआई - Reserve Bank of India
जोखिम प्रबंध और अंतर बैंक लेन देन
भारतीय रिज़र्व बैंक ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्र.63 दिसंबर 21, 2002 सेवा में महोदया/महोदय, जोखिम प्रबंध और अंतर बैंक लेन देन प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान जनवरी 24 , 2000 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्र.19 और निम्नलिखित पैराग्राफों में संदर्भित बाद के संशोधनों की ओर आकृष्ट किया जाता है। इस संबंध में और अधिक छूट देने के लिए निम्नलिखित निर्णय किए गए है 1. विदेशी मुद्रा-रुपया अदला बदली (स्वैप) नवंबर 25, 2001 के परिपत्र ईसीसीआ.एफएमडी.447/02.03.75/2000-2001 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारियों को अनुमति दी गई है कि वे भारत में निवासी व्यक्तियों को अपने दीर्घावधि निवेशों को हेज़ करने के लिए बाज़ार की पहुंच की शर्त पर 25 मिलियन अमरीकी डॉलर तक की विदेशी मुद्रा की रुपये में अदलाबदली कर सकते हैं। उसके बाद विशिष्ट अनुरोध पर कुछ बैंकों को अधिक उच्चतर सीमा की अनुमति दी गई थी। निर्णय किया गया है कि ऐसी विनिर्दिष्ट सीमाएं ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा के निवेशों को हेज़ करने के लिए अदलाबदली करने के लिए लागू नहीं होंगी। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी अपने ग्राहकों को समग्र विवेकपूर्ण मानदंडों और प्रबंध दिशा निदेशों के अधीन ऐसे प्रस्ताव देने के लिए स्वतंत्र हैं। परंतु विनिर्दिष्ट सीमाएं ग्राहकों को अदलाबदली लेनदेन को सुगम बनाने के लिए जारी रहेंगी यदि अदला-बदली से उत्पन्न देयता से बाज़ार में विदेशी मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाती है। अदलाबदली को रद्द करने से जनित स्थिति को कैप के भीतर माना जाना जरुरी नहें है। 2. समुद्रपारीय बाज़ार में निवेश नवंबर 16, 2002 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्र.48 के अनुसार बैंको को अनुमति है कि वे अपनी स्तर 1 सामान्य जोखिम पूंजी का 50 प्रतिशत अथवा 25 मिलियन डॉलर जो भी अधिक हो, को समुद्रपारीय बाज़ार के लिखतों में और अथवा ऋण लिखतों में निवेश कर सकते हैं। उक्त कैप को हटाने का निर्णय किया गया है। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी अब बैंक के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित सीमा के अधीन समुद्रपारीय बाज़ार में निवेश करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस विषय में अन्य मौजूदा अनुदेश पूर्ववत रहेंगे। 3. पूर्व निष्पादनों के आधार पर वायदा संविदा करना प्राधिकृत व्यापारियों को दिसंबर 1, 2001 के परिपत्र ईसीसीओ.एफएमडी/453/02.03.75/2001-2002 के अनुसार अपने निर्यातक / आयातक ग्राहकों को पिछले 3 वर्ष के दौरान किए गए औसत आयात /निर्यातों के आधार पर गणना की गई सीमा तक वायदा संविदाओं का प्रस्ताव देने की अनुमति है। यह इस शर्त पर निर्भर करेगा कि किसी भी समय इस प्रकार की गई वायदा संविदा और बकाया 50 मिलियन अमरीकी डॉलर की सीमा के भीतर पात्र सीमा के 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। यह ध्यान रखा जाए कि आयात और निर्यात लेनदेनों के लिए अलग-अलग पात्र सीमाओं की गणना की जाए। अन्य शर्तें पूर्ववत रहेंगी। 4. वायदा संविदा करना और रद्द करना प्राधिकृत व्यापारियों मार्च 26, 2002 के परिपत्र ईसीसीओ.एफएमडी/ 790/02.03.75/2001-2002 के परिपत्र ईसीसीओ.एफएमडी/ 2/02.03.75/ 2001-2002 के अनुसार निवासी सत्ताओं को कुछ शर्तों के अधीन, रद्द की गई सभी संविदाओ को, सभी लेनदेनों को शामिल करते हुए दुबारा करने की अनुमति दी गई थी। यद्यपी पात्र सीमा की गणना करने के लिए विस्तृत अनुदेश जारी किए गए थे तथापि यह सूचित किया गया था कि पात्रता का ध्यान किए बगैर किसी ग्राहक के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन अमरीकी डॉलर की सीमा रहेगी। इस सीमा को हटाने का निर्णय किया गया है। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी अपने सभी ग्राहकों को एक साल के अंदर आने वाले विदेशी मुद्रा के सभी रद्द किए गए निवेशों के लिए पुन: संविदा करने की सुविधा का प्रस्ताव देने के लिए स्वतंत्र हैं। परंतु यह सुविधा केवल उन्हीं ग्राहकों दी जाए जो अपने निवेश का विवरण संशोधित संलग्न फॉर्मेट में प्राधिकृत व्यापारियों के पास प्रस्तुत करेंगे। एक साल से अधिक अवधि के पश्चात और दीर्घावधि विदेशी मुद्रा-रुपया अदलाबदली की रक्षा के लिए की गई वायदा संविदाएं एक बार रद्द कर दिए जाने पर दुबारा नहीं की जा सकेंगी। प्राधिकृत व्यापारी इस सुविधा को निर्यात लेनदेनों के संबंध में बिना किसी प्रतिबंध के जारी रख सकते हैं। 5. विदेशी बैंकों की पूंजी की हेजिंग प्राधिकृत व्यापारी नवंबर 20, 2002 के परिपत्र ईसीसीओ.एफएमडी/ 6/02.03.75/2002-2003 के अन्य बातों के साथ साथ, अनुसार भारत में कार्यरत विदेशी बैंको को भारतीय बहियों मे अपनी स्तर 1 पूंजी की हेजिंग करने की अनुमति है, बशर्ते कि हेज लेनदेन 6 महीने की अवधि में हो। इस प्रतिबंध को वापस लेने का निर्णय किया गया हे और अब बैंक हेज़ लेनदेन के बारे में समय का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र है। अन्य शर्ते पूर्ववत रहेंगी। 6. प्रत्यक्ष विदेशी निवेशों के लिए वायदा रक्षा मई 3, 2002 की अधिसूचना फेमा.25/आरबी-2000 की अनुसूची 2 के पैराग्राफ के अनुसार रिज़र्व बैंक भारत से बाहर निवासी व्यक्ति को भारत में 1 जनवरी 1993 से किए गए निवेशों की हेजिंग के लिए संविदा करने की अनुमति दे सकता है। प्राधिकृत व्यापारियों को इस संबंध में भारत से बाहर निवासी व्यक्तियों को ऐसी वायदा संविदाएं करने के लिए सामान्य अनुमति देने का निर्णय किया गया है। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी भारत से बाहर निवासी व्यक्तियों को भारत में उनके निवेश के सत्यापन के अधीन, वायदा संविदा करने का प्रस्ताव देने के लिए स्वतंत्र हैं। एक बार रद्द की गई ये वायदा संविदाएं दुबारा करने के लिए पात्र नहीं है। 7. सभी उक्त सुविधाएं 31 मार्च 2003 तक समीक्षा के अधीन उपलब्ध रहेंगी। 8. विदेशी मुद्रा प्रबंध विनियमावली में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं। 9. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय वस्तु की जानकारी अपने सभी ग्राहकों को दे दें। 10. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं। भवदीय, (ग्रेस कोशी) |