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माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) को उनके ‘ जीवन चक्र ‘ के दौरान समय पर और पर्याप्‍त ऋण सुविधा देने के लिए ऋण प्रवाह का सरलीकरण

भारिबैं/2015-2016/160
विसविवि.एमएसएमई एण्‍ड एनएफएस.बीसी.सं. 60/06.02.31/2015-16

27 अगस्‍त 2015

सभी अनुसूचित वाणिज्‍य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय / महोदया,

माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) को उनके ‘ जीवन चक्र ‘ के दौरान
समय पर और पर्याप्‍त ऋण सुविधा देने के लिए ऋण प्रवाह का सरलीकरण

माइक्रो और लघु इकाइयों को अपने जीवन चक्र में कारोबारी स्थितियां प्रतिकूल हो जाने पर बड़े उद्यम/कारपोरेट की तुलना में वित्‍तीय कठिनाइयों का अधिक सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में समय पर सहायता न मिलने के कारण इकाई रुग्‍ण हो सकती है और कई बार उसमें सुधार की गुंजाईश नहीं रहती है। ऐसे में अर्थक्षम एमएसई को अस्थायी वित्‍तीय कठिनाइयों के दौर में निरंतर सहायता उपलब्‍ध कराने में बैंकों की भूमिका महत्‍वपूर्ण हो जाती है।

2. तदनुसार बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे एमएसई क्षेत्र के ऋणकर्ताओं को समय पर और पर्याप्‍त ऋण वितरण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के स्‍थूल विवेकपूर्ण विनियमों के भीतर यथोचित प्रणाली अपनाते हुए एमएसई को उधार देने के संबंध में बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति स्थापित करें। विभिन्‍न स्‍टेकधारियों से प्राप्‍त प्रति-सूचना यह दर्शाती है कि कुछ बैंकों ने पर्याप्‍त तदर्थ और आपाती सीमाओं के माध्‍यम से अर्थक्षम/दबावग्रस्‍त एमएसई उधारकर्ताओं को वित्‍तीय सहायता देने के लिए ऐसी नीतियां स्थापित की हैं जो एमएसई इकाइयों को प्रतिकूल कारोबारी स्थितियों में तथा साथ ही उनकी ऋण आवश्‍यकताएं बढ़ने पर समर्थन देती हैं। तथापि कुछ बैंकों में अब तक ऐसी नीति स्थापित नहीं की गई है।

3. अत: बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए सूचित किया जाता है कि वे एमएसई को उधार देने की अपनी नीतियों को सरल और कारगर बनाएं तथा उसे लचीला रखें जिससे संबंधित अधिकारी एमएसई के ऋण वितरण पर त्‍वरित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें। इस संदर्भ में बैंक निम्‍नलिखित दिशानिर्देशों को ध्‍यान में रखें और तदनुसार एमएसई क्षेत्र को उधार देने की अपनी वर्तमान नीतियां निर्धारित करें :

  1. आपाती ऋण सुविधा – दिनांक 14 अगस्‍त 2014 के परिपत्र डीबीआर.सं.बीपी.बीसी.33/ 21.04.048/2014-15 के द्वारा बैंकों को परियोजना ऋण मंजूर करने के समय, अप्रत्‍याशित बढ़ी हुई परियोजना लागत के निधीयन हेतु यदि आवश्‍यक हो तो, ‘आपाती ऋण सुविधा‘ मंजूर करने की अनुमति दी गई है। ऐसी ‘आपाती ऋण सुविधाएं‘ प्रारंभिक वित्‍तीय समापन (क्लोजर) के समय मंजूर की जाती हैं परंतु उनका वितरण केवल लागत बढ़ने पर ही किया जाता है। उधारकर्ताओं/परियोजना के ऋण मूल्यांकन के समय ऐसी बढ़ी हुई लागत को ध्‍यान में रखते हुए उधारकर्ता की अर्थक्षमता और चुकौती क्षमता निर्धारित की जाती है। बैंक एमएसई को उधार देने की अपनी नीति के एक भाग के रूप में पूंजी के निधीयन के समय पूंजी व्‍यय में अप्रत्‍याशित वृद्धि के निधीयन हेतु ‘आपाती ऋण सुविधा‘ उपलब्‍ध कराने के लिए समान दृष्टिकोण अपना सकते हैं। साथ ही बैंक आवधिक पूंजी व्‍यय के निधीयन के लिए भी अपने विवेकाधिकार पर ऐसी ‘आपाती ऋण सुविधा‘ मंजूर कर सकते हैं। ऐसी ‘आपाती ऋण सुविधा‘ मंजूर करने का उद्देश्‍य, अन्‍यों के साथ, त्‍वरित ऋण देना है ताकि पूंजी आस्ति निर्माण में विलंब न हो और वाणिज्यिक उत्‍पादन का प्रारंभ शीघ्रातिशीघ्र किया जा सके।

  2. कार्यशील पूंजी सीमाएं – वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों को उधारकर्ताओं और उनकी ऋण आवश्‍यकताओं के उनके आकलन के अनुसार कार्यशील पूंजी आवश्‍यकताएं निर्धारित करने की अनुमति है। बैंकों से अपेक्षित है कि वे आर्थिक गतिविधि की प्रत्‍येक स्‍थूल श्रेणी के संबंध में ऋण वितरण के लिए अपने बोर्ड के अनुमोदन से पारदर्शी नीति और दिशानिर्देश स्थापित करें। इस संदर्भ में यह सूचित किया जाता है कि बैंक एमएसई को उधार देने की अपनी नीति में कार्यशील पूंजी सीमाओं की मंजूरी/नवीकरण के समय, विशेषत: उनके द्वारा निर्मित उत्‍पादों के लिए मांग में मुख्‍यत: अप्रत्‍याशित/मौसमी वृद्धि के कारण कार्यशील पूंजी आवश्‍यकताओं में होने वाली अस्‍थायी वृद्धि की पूर्ति करने के लिए अलग अतिरिक्‍त सीमा निश्चित करने की नीति समाविष्ट कर सकते हैं। ऐसी सीमाएं प्रारंभिक रूप में वहां जारी की जा सकती हैं जहां एमएसई द्वारा निर्मित उत्‍पादों के लिए मांग में वृद्धि का पर्याप्‍त प्रमाण हो। बैंक वर्तमान विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन तदर्थ सीमाएं भी मंजूर कर सकते हैं जिन्हें मंजूरी की तारीख से अधिकतम तीन माह में विनियमित किया जाए।

  3. नियमित कार्यशील पूंजी सीमाओं की समीक्षा – वर्तमान में बैंक लेखा परीक्षीत वित्‍तीय विव‍रणों के आधार पर वर्ष में कम से कम एक बार कार्यशील पूंजी सीमाओं की समीक्षा करते हैं। तथापि एमएसई इकाइयों के लेखा परीक्षीत वित्‍तीय विव‍रण समय अंतराल पर, सामान्‍यतया वित्‍तीय वर्ष समाप्‍त होने के बाद उपलब्‍ध होते हैं। ऐसे मामलों में और जहां बैंक आश्‍वस्‍त हो कि एमएसई उधारकर्ताओं की मांग के स्‍वरूप में परिवर्तनों के कारण उधारकर्ताओं की मध्‍यावधि समीक्षा करना आवश्‍यक है वहां बैंक ऐसा कर सकते हैं। ऐसी मध्‍यावधि समीक्षा एमएसई की पिछली समीक्षा के बाद बिक्री निष्‍पादन के आकलन पर आधारित हो सकती है जो लेखा परीक्षीत वित्‍तीय विव‍रणों की प्रतीक्षा किए बिना की जाए। तथापि बाद में नियमित समीक्षा के दौरान लेखा परीक्षीत वित्‍तीय विव‍रणों पर आधारित ऐसी मध्‍यावधि समीक्षाओं का पुनर्वैधीकरण किया जाए।

  4. ऋण निर्णयों के लिए सामयिकता – स्‍वस्‍थ एमएसई क्षेत्र के विकास के लिए समय पर ऋण महत्‍वपूर्ण है। इस संदर्भ में रिज़र्व बैंक ने कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। दिनांक 9 मई 2013 के परिपत्र ग्राआऋवि/एमएसएमई एण्‍ड एनएफएस.बीसी.सं.74/06.02.31/2012-13 के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया था कि वे एमएसई क्षेत्र से संबंधित सभी ऋण संबंधी मामलों की समग्र रूप से निगरानी के लिए एक संरचित निगरानी तंत्र स्थापित करें। बैंकों को आवेदन पत्रों का बारीकी से ट्रैक रखने और तेजी से निपटान सुनिश्चित करने की दृष्टि से ऋण प्रस्ताव ट्रैकिंग प्रणाली (सीपीटीएस) स्‍थापित करने के लिए भी सूचित किया गया था। साथ ही दिनांक 5 मई 2003 के ‘उधारदाताओं के लिए उचित संव्‍यवहार संहिता पर दिशानिर्देश‘ पर परिपत्र बैंपविवि.एलईजी.सं.बीसी.104/09.07.007/2002-03 के अनुसार बैंको को सूचित किया गया था कि ऋण आवेदन पत्र स्‍वीकार करते समय ही 2 लाख रुपए तक के ऋण आवेदन पत्र का निपटान कितने समय में किया जाएगा उसे निर्दिष्ट किया जाए। बैंकों को दिनांक 1 सितंबर 2014 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.35/21.04.048/2014-15 द्वारा सूचित किया गया था कि उन्‍हें उचित सामयिकता सहित ऋण प्रस्‍तावों के निपटान की क्रियाविधि की स्‍पष्‍ट रूपरेखा प्रस्तुत करनी चाहिए और निर्दिष्‍ट अवधि के बाद लंबित आवेदन पत्रों की समीक्षा करने के लिए समुचित सावधानी संबंधी आवश्‍यकताओं से कोई समझौता किए बिना उपयुक्त निगरानी प्रणाली स्‍थापित करनी चाहिए। बैंकों से यह भी अपेक्षित है कि वे ऋण निर्णय सूचित करने की सामयिकता को अपनी वेबसाइट, नोटिस बोर्ड, उत्‍पाद सामग्री, आदि के माध्‍यम से यथोचित प्रकट करें। उपर्युक्‍त को देखते हुए बैंकों को एतद्द्वारा सूचित किया जाता है कि वे एमएसई उधारकर्ताओं के लिए ऋण सुविधाओं (नियमित, अतिरिक्‍त/तदर्थ ऋण सुविधाएं और खातों की पुनर्संरचना, यदि अर्थक्षम पाई जाती है) के संबंध में उपर्युक्‍त प्रणालियां तत्‍काल प्रभाव से स्‍थापित करें।

4. बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपनी उधार नीतियों की समीक्षा करें और उपर्युक्‍त उपाय अपनाएं ताकि अर्थक्षम एमएसई उधारकर्ताओं को विशेषत: अप्रत्‍याशित परिस्थितियों में निधियों की आवश्‍यकता के दौरान समय पर और पर्याप्‍त ऋण उपलब्‍ध हो सकें।

5. कृपया प्राप्ति सूचना दें और कार्रवाई रिपोर्ट 31 अक्‍तूबर 2015 तक प्रस्‍तुत करें।

भवदीया

(माधवी शर्मा)
मुख्‍य महाप्रबंधक

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