18 फरवरी 2013 विकास अनुसंधान समूह अध्ययन सं. 39 - भारत में करेंसी की मांग का प्रतिरूपण: एक अनुभवजन्य अध्ययन भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ''भारत में करेंसी की मांग का प्रतिरूपण: एक अनुभवजन्य अध्ययन'' जारी किया। इस अध्ययन के सह-लेखक हैं डॉ. डी. एम. नाचने, ए.बी.चक्रवर्ती और संजीब बोरडोलोई। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संदर्भ में करेंसी की मांग के उभरते हुए निर्धारकों की जांच तथा सकल स्तर पर करेंसी की मांग के प्रतिरूपण के साथ-साथ मूल्यवर्गीय संरचना के लिए एक उपयुक्त ढांचा विकसित करना था। इस अध्ययन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
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इस अध्ययन ने भारतीय संदर्भ में अध्ययनों की कमी के कारण अंतर्राष्ट्रीय साक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए साहित्यिक समीक्षा के साथ मुद्रा प्रबंध के केंद्रीय बैंक के परिप्रेक्ष्य से करेंसी की मांग के विभिन्न पहलुओं पर साहित्य का एक व्यापक सर्वेक्षण आयोजित करना था।
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इसने भारत में करेंसी की मांग को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की पहचान की तथा मुद्रा परिचालन के व्यवहार और विशिष्टताओं और प्रमुख निर्धारकों जैसेकि उत्पादन वृद्धि, उपभोग, मुद्रास्फीति, ब्याज दरों और गैर-नकदी भुगतान लिखतों के बढ़ते उपयोग का विश्लेषण किया।
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इसने मुद्रा परिचालन और विभिन्न व्याख्यात्मक चर वस्तुओं के बीच संबंध की जांच की तथा सकल करेंसी मांग के साथ-साथ विभिन्न करेंसी समूहों के लिए देशिक चूक सुधार प्रतिदर्श (वीइसीएम) ढांचे में सह-समेकन संबंध का अस्तित्व स्थापित किया।
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वार्षिक और तिमाही दोनों अंतरालों पर सकल मुद्रा के इसके प्रतिरूपण ने दीर्घावधि व्यवहार के साथ-साथ अल्पावधि गतिशीलता की जांच की अनुमति दी। तिमाही आंकड़ों की उपलब्धता से संबंधित अलग-अलग मूल्यवर्गों और सीमाओं के परिचलन में भारी अस्थिरता की दृष्टि से इस अध्ययन ने बैंकनोटों के उन उपयुक्त मूल्यवर्ग समूहों की भी पहचान की है जो वार्षिक आंकड़ों पर आधारित समान प्रतिरूपों के विकास के लिए उत्तरदायी हैं।
इस अध्ययन के कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
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सकल स्तर पर, मुद्रा परिचालन सांकेतिक सकल घरेलू उत्पाद की अपेक्षा तीव्र गति से बढ़ा है।
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मुद्रा लेनदेन के विभिन्न विकल्पों के उभरने के बावजूद करेंसी ने अपना पूर्व-आधिपत्य बनाए रखा है।
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सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में मुद्रा, व्यापक मुद्रा और पारिवारिक वित्तीय बचत में बढ़ोतरी एक न्यूनतर आय वाली अल्प विकसित अर्थव्यवस्था को बढ़ते मौद्रीकरण और वाणिज्यकरण की विशिष्टता वाली अर्थव्यवस्था में अंतरण को दर्शाती है।
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पिछले चार दशकों के दौरान सभी मूल्यवर्गों में मुद्रा परिचलन की संरचना में उल्लेखनीय बदलाव हुआ है। किसी करेंसी नोट (10 रुपए मूल्यवर्ग और उससे अधिक के लिए) का औसत मूल्य लगभग आठ गुना बढ़ा है जबकि मूल्य स्तर में 18 गुनी वृद्धि हुई है। इस प्रकार, किसी नोट का औसत मूल्य मुद्रास्फीति के अनुरूप नहीं बदलता है।
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अलग-अलग मूल्यवर्ग स्तर पर मुद्रा परिचलन में प्रवृत्ति अत्यधिक उतार-चढ़ाव को दर्शाती है जिसके कारण अर्थमितीय प्रतिरूपण जटिल हो जाता है। अन्य कारकों जैसेकि भुगतान के लिए करेंसी प्रतिस्थापानों (क्रेडिट/डेबिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग और चेक भुगतान) पर विचार करने के लिए इसके विश्लेषण में और शुद्धता की ज़रूरत है।
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वार्षिक आंकड़ों ने मुद्रा परिचलन, सकल घरेलू उत्पाद, थोक मूल्य सूचकांक और जमा दरों के बीच सह-समेकित संबंध के अस्तित्व का संकेत दिया है। करेंसी का आय लचीलापन उन्नत देशों के समान अध्ययनों में देखे गए दीर्घावधि लचीलेपन की तुलना में कुछ अधिक पाया गया।
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इसने प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, थोक मूल्य सूचकांक और अन्य व्याख्यात्मक चर वस्तुओं के साथ करेंसी नोटों के भिन्न समूहों के बीच सह-समेकित संबंधों को भी स्थापित किया है, यद्यपि निष्कर्ष उतने मजबूत नहीं हैं।
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इस अध्ययन की कुछ सीमाएं अन्य बातों के बीच करेंसी आधारित लेनदेन के आकार के वितरण ढांचे, छद्म अर्थव्यवस्था और करेंसी की मांग के क्षेत्रीय आयाम से संबंधित संगत आंकड़ों की अनुपलब्धता से प्रकट हुई हैं।
यह अध्ययन भारत में मुद्रा विश्लेषण के लिए ढांचे में भविष्य में सुधार हेतु कुछ सुझाव भी देता है। ये सुझाव हैं:
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पहला, अर्थव्यवस्था में करेंसी की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन के परिमाण को रोकने के लिए एक प्रणाली तैयार करने का प्रयास किया जाए।
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दूसरा, आम जनता के व्यवहार और विभिन्न मूल्यवर्ग की मुद्रा की अधिमानता पर जानकारी उद्धृत करने के लिए नियमित सर्वेक्षणों की एक प्रणाली उपयोगी हो सकती है। करेंसी अपेक्षा के सूक्ष्म स्तर पर निर्धारकों खासकर, छोटे मूल्यवर्ग जैसेकि परिवहन शुल्क संरचना आदि में परिवर्तन पर भी विचार किया जा सकता है।
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तीसरा, ऐसी किसी कार्रवाई के लिए आंकड़ा अपेक्षाओं के माध्यम से करेंसी की क्षेत्रीय मांग के आकलन का प्रयास भयानक होगा।
अजीत प्रसाद सहायक महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1394 |