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वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा

31 जुलाई 2007

वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा आज वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की गई।

मुख्य-मुख्य बातें

  • बैंक दर को अपरिवर्तित रखा गया।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर को अपरिवर्तित रखा गया।
  • सोमवार, 6 अगस्त 2007 से चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत दैनिक प्रत्यावर्तनीय रिपो पर 3,000 करोड़ रुपए की सीमा को हटाया गया। तथापि, रिज़र्व बैंक को एक यथोचित सीमा पुन: लागू करने का विवेकाधिकार है।
  • दैनिक आधार पर अपराहन 3.00 बजे और अपराहन 3.45 बजे के बीच आयोजित की जानेवाली द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सोमवार, 6 अगस्त 2007 से हटा दी गयी है।
  • 4 अगस्त 2007 को प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से आरक्षित नकदी निधि अनुपात में 50 आधार बिन्दुओं तक वृद्धि करते हुए 7.0 प्रतिशत किया गया है।
  • घरेलू और बाह्य आघातों को अलग रखते हुए वर्ष 2007-08 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि का अनुमान लगभग 8.5 प्रतिशत तक रखा गया।
  • नीति को अनुकूलन बनाने और निरंतर आधार पर 4.0 - 5.5 प्रतिशत तक मुद्रास्फीति कम करने की धारणाओं के लिए मध्यावधि उद्देश्य लागू करते समय वर्ष 2007-08 में मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत के भीतर रखा जाना नीति परंपरा में प्राथमिकता बन जाती है।
  • जबकि खाद्येतर ऋण वृद्धि में कमी हुई है, मुद्रा आपूर्ति और प्रारक्षित मुद्रा में बढ़ोतरी के प्रति समुचित कार्रवाई की आवश्यकता है।

  • भारत में हाल की वित्तीय बाजार गतिविधियाँ तथा वैश्विक बाजार में संभावित अनिश्चितता वर्तमान स्थिति में समुचित चलनिधि स्थितियों को व्यवस्थित करने हेतु नीति परम्परा में एक उच्चतर प्राथमिकता की माँग करती हैं।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किन्हीं प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों को अलग रखते हुए और मुद्रास्फीति के लिए संभावनाओं सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन को ध्यान में रखते हुए आगे आनेवाली अवधि में मौद्रिक नीति का रूझान व्यापक रूप से निम्न प्रकार जारी रहेगा:
    • एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करते समय मूल्य-स्थिरता और सुव्यवस्थित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर ज़ोर डाला जाना जो अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश माँग की सहायता करती है ताकि विकास की गति को जारी रखा जा सके।
    • बृहत्तर ऋण प्रभाव और वित्तीय समावेशन का साथ-साथ अनुपालन करते हुए समष्टि आर्थिक और विशेषत: वित्तीय स्थायित्व प्राप्त करने के लिए वित्तीय बाजारों में ऋण-गुणवत्ता और व्यवस्थित स्थितियों पर पुन: जोर डाला जाना।
    • मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थायित्व और विकास की गति के लिए बाधक उभरती हुई वैश्विक एवं घरेलू स्थितियों पर यथोचित सभी संभावित उपायों के साथ तेजी से कार्रवाई करना।

डॉ. वाइ वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्तुत किया। इस समीक्षा में तीन भाग हैं; भाग I. समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का आकलन; II. मौद्रिक नीति के रुझान; और III. मौद्रिक उपाय।

घरेलू गतिविधियाँ

  • जनवरी - मार्च 2007 तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में 9.1 प्रतिशत वृद्धि हुई जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी तिमाही में 10.0 प्रतिशत थी तथा वर्ष 2006-07 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 9.2 प्रतिशत से बढ़ कर 9.4 प्रतिशत हो गया।
  • वर्ष - दर - वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू पी आइ) में उतार-चढ़ाव मापा गया तथा मुद्रास्फीति मार्च 2007 के अन्त में 5.9 प्रतिशत से कम होकर 14 जुलाई 2007 को 4.4 प्रतिशत हो गई।
  • भारतीय कच्चे तेल समूह का औसत अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य जनवरी - मार्च 2007 में 56.2 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल से बढ़ कर अप्रैल - जून 2007 में 66.2 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल हो गया तथा 27 जुलाई 2007 को 73.5 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के लगभग था।
  • 6 जुलाई 2007 को वर्ष - दर - वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 21.6 प्रतिशत की वृद्धि 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य में निर्दिष्ट 17.0 - 17.5 प्रतिशत की अनुमानित सीमा से अधिक, और पिछले वर्ष के 19 प्रतिशत से अधिक थी।
  • दिनांक 6 जुलाई 2007 तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशि में 24.4 प्रतिशत (5,31,881 करोड़ रुपए) की वर्ष - दर - वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष के 20.9 प्रतिशत (3,77,392 करोड़ रुपए) से अधिक थी।
  • दिनांक 6 जुलाई 2007 को अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की वर्ष - दर - वर्ष खाद्य से इतर ऋण में वृद्धि 24.4 प्रतिशत (3,67,258 करोड़ रुपए) थी जो पिछले वर्ष के 32.8 प्रतिशत (3,70,899 करोड़ रुपए) से कम थी।
  • मार्च 2007 में एलएएफ, एमएसएस और नकदी शेष के अन्तर्गत केद्र सरकार की पिछली कुल चलनिधि 97,449 करोड़ रुपए के औसत से कम होकर 27 जुलाई 2007 को 72,823 करोड़ रुपए हो गई। तथापि पिछली कुल चलनिधि के मूल्यांकन में इस अवधि के दौरान रिज़र्व बैंक से केद्र सरकार को शेयर अन्तरित करने के कारण केद्र सरकार द्वारा रिज़र्व बैंक को 35,351 करोड़ रुपए का अन्तरण भी दर्शाया जाना चाहिए।
  • 2007-08 की पिछली तिमाही के दौरान वित्तीय बाज़ार में चलनिधि में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आए तथा मांग, बाज़ार रिपो और संपार्श्विक उधार लेने और देने की देयताओं (सीबीएलओ) के घटक में साथ-साथ उतार-चढ़ाव आए।
  • बैंकों ने मार्च 2007 और जून 2007 के बीच अवधि समाप्त होने वाली विभिन्न मदों पर सामान्यतया जमा दरों पर 25-50 आधार पाइंट से वृद्धि की है लेकिन जुलाई 2007 के दौरान उन्हें, विशेषकर कम अवधि वाली मदों में, कम कर दिया है। सरकारी क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने एक वर्ष से अधिक अवधि वाली, विशेष रूप से लम्बी अवधि वाली, मदों पर अपनी ब्याज दरें 10-25 आधार पाइंट बढ़ा दी हैं।
  • चालू वित्तीय वर्ष के आरंभ में, कई बैंक सांविधिक चलनिधि अनुपात - पात्र प्रतिभूतियों के अनुरक्षण को सांविधिक न्यूनतम सीमा के आस-पास ले आए हैं। तथापि, चालू वर्ष के दौरान अभी तक (6 जुलाई 2007 तक) केवल चलनिधि समायोजन सुविधा परिचालनों में बैंकों के सरकारी और अनुमोदित प्रतिभूतियों में निवेश में 27,331 करोड़ रुपए की वञिद्ध हुई जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 751 करोड़ रुपए थी।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान केद्र सरकार के सकल बाजार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियाँ और 364 दिवसीय खजाना बिल) 27 जुलाई 2007 तक 85628 करोड़ रुपए थे और (पिछले वर्ष 70,813 करोड़ रुपए) बजट प्राक्कलन का 45.4 प्रतिशत थे जबकि 46,047 करोड़ रुपए (34,822 करोड़ रुपए) के निवल बाजार उधार बजट प्राक्कलन का 42.0 प्रतिशत था।

बाह्य गतिविधियां

  • वर्ष 2007-08 के पहले दो माह के दौरान निर्यात वृद्धि दर पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 19.2 प्रतिशत से बढ़कर 20.2 प्रतिशत हो गई। आयातों ने भी पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 16.9 प्रतिशत की तुलना में 33.0 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि दर्ज की।
  • पेट्रोलियम, तेल और चिकनाई से इतर पदार्थों के आयातों में भी 47.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि तेल आयात मोटे तौर पर एक वर्ष पहले दर्ज स्तर पर स्थित रहे। इसके परिणामस्वरुप, पण्य व्यापार घाटा अप्रैल - मई 2006 के 8.2 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर अप्रैल - मई 2007 के दौरान 13.3 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।
  • 20 जुलाई 2007 को भारत के विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2007 के 222.0 बिलियन अमरीकी डालर के स्तर से 22.9 बिलियन अमरीकी डालर और बढ़ गए।
  • अप्रैल - जून 2007 के दौरान रुपए में अमरीकी डालर की तुलना में 6.63 प्रतिशत यूरो की तुलना में 5.19 प्रतिशत, पौण्ड स्टर्लिंग की तुलना में 4.41 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 10.44 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि हुई।

वैश्विक गतिविधियां

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अप्रैल 2007 में जारी वर्ल्ड इकनामिक आउटलूक (डब्ल्यूईओ) के अनुसार विश्व की वास्तविक सकल देशी उत्पाद की वृद्धि में 2006 के 5.4 प्रतिशत से गिरावट आकर 2007 और 2008 में वह 4.9 प्रतिशत होने का अनुमान है। जुलाई 2007 में जारी डब्ल्यूईओ में इस अनुमान में ऊर्ध्वगामी संशोधन करते हुए 2006 में 5.5 प्रतिशत और 2007 एवं 2008 में 5.2 प्रतिशत होने का पूर्वानुमान लगाया गया है।
  • विश्वभर में पण्य मूल्यों में वृद्धि के साथ पण्य विशेष मुद्रास्फीति बढ़ी है और स्थायी मुद्रास्फीति सामान्यत: स्थिर रही है। ऊर्जा और अन्य पण्य मूल्य, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में क्षमता के उपयोग की बढ़ी हुई दर और मुख्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं तथा प्रगत औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते वेतन से मुद्रास्फीति पर पड़नेवाले प्रभाव के कारण मुद्रास्फीति संभावना चिंता का विषय रहा है।
  • आगामी मुद्रास्फीति प्रभावों के अनुमान से मौद्रिक प्राधिकारी सामान्यत: तत्परता से मौद्रिक निभाव को हटाए रखना जारी रखेंगे। यूरोपीय केंद्रीय बैंक सहित ऐसे केंद्रीय बैंक जिन्होंने अपनी नीति दरों को कड़ा किया है वे हैं बैंक ऑफ इंग्लैंड; बैंक ऑफ जापान; बैंक ऑफ कनाडा; रिज़र्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया; रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूज़ीलैण्ड; पीपल्स बैंक ऑफ चायना; बैंक ऑफ कोरिया; बैंक डी मेक्सिको और बैंक सेंट्रल डी चिली। कुछ केंद्रीय बैंक जैसे चीन और कोरिया ने ऐसी कड़ाई के लिए प्रारक्षित आवश्यकताओं में वृद्धि जैसी महत्वपूर्ण नीतिगत दरों में वृद्धि करने के अलावा पूरक उपायों का प्रयोग किया है।
  • वर्ष 2007 की पहली छमाही में उभरते बाज़ारों ने विकसित बाज़ारों की तुलना में अधिक सफलता प्राप्त की है। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के डेडिकेटेड बाण्ड और शेयर बाजारों में आगमों में व्यापक आधार पर हुई वृद्धि से उभरती बाजार आस्तियों के लिए विदेशी निवेशक की मांग परिलक्षित होती है। अंतर्राष्ट्रीय बाण्ड बाजारों में उभरते बाजार कारपोरेट बाण्ड निर्गम ने 2006 में रिकाड्र स्तर प्राप्त किया। परिपक्व बाजारों की जोखिमभरी वित्तीय आस्तियों के प्रति उभरते बाजारों के निवेश-जोखिम में वृद्धि हुई और इसलिए समग्र वैश्विक वित्तीय जोखिम में वृद्धि हुई है।

समग्र मूल्यांकन

  • घरेलू आर्थिक गतिविधियां सुदृढ़ तेजी से बढ़ती रहीं और इस बात के संकेत हैं कि वृद्धि का दायरा व्यापक हो रहा है। हाल ही में मुद्रास्फीति के कम होने तथा मुद्रास्फीतिय प्रत्याशाओं में स्थिरीकरण आने से हुए लाभ से वृद्धि चक्र के इस वर्तमान वर्धनात्मक चरण को समर्थन मिलेगा।
  • तथापि, यह नोट करना आवश्यक है कि निवेश और उपभोक्ता मांग, मौद्रिक और बैंकिंग सम्मुचय, क्षमता रोध तथा बढ़ते व्यापार घाटे में परिलक्षित होने के चलते मांग दबाव तथा चक्रीय प्रभाव बरकरार बने रहेंगे। वित्तीय बाजार इन कारकों की अन्योय क्रिया को दर्शाते हैं यद्यपि समर्थित अनिश्चितताओं के साथ जोखिम के सटीक मूल्यांकन में बढ़ता पूंजी प्रवाह और चलनिधि की स्थिति में आ रहे बढ़े हुए परिवर्तन बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • हाल ही में हालांकि मुद्रास्फीति में कमी आई है मगर उर्ध्वमुखी दबाव बने हुए है। इस संबंध में यह आवश्यक है कि कुल आपूर्ति स्थितियों में हो रहे सुधार संबंधी गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जाए तथा अल्पावधि मांग में आ रही तेजी के प्रति प्रतिसाद भी प्रस्तुत किया जाए। साथ ही, मध्यावधि में उत्पादन क्षमता के प्रयास भी किए जाएं।
  • यह भी आवश्यक है कि कच्चे तेल की अस्थिर और ऊंचे स्तर की कीमतों से उत्पन्न होने वाली मुद्रास्फीतिय संभावनाओं, मुख्य खाद्य पदार्थों में आ रही अनवरत तेजी और भारत सहित संपूर्ण विश्व में मांग तथा आपूर्ति के बढ़ते अंतराल से उत्पन्न होने वाली अनिश्चितताओं से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का अनवरत मूल्यांकन किया जाए।
  • वैश्विक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले जोखिम बने रहे। ये जोखिम मुख्यत: मुद्रास्फीतिय दबावों, वित्तीय बाज़ारों द्वारा जोखिम का पुन: मूल्यांकन तथा सामान्यत: ईएमई की विविक्षा के साथ कुछ श्रेणी की आस्तियों का नीचे आने का खतरा शामिल है। ऐसे संकेत हैं कि खाद्य और उर्जा के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य में जो 2006 में जो जबरदस्त तेजी देखने में आई थी उसमें गिरावट आने की कोई संभावना नहीं है और इनके ऊंचे स्तर पर स्थिर होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, वैश्विक वित्तीय बाज़ारों की गतिविधियों से भी जोखिम उत्पन्न होते है।

2007- 08 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान

  • घरेलू या बाह्य आघातों को यदि छोड़ दें तो जैसा कि अप्रैल 2007 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में उल्लेख किया गया था उसी के मुताबिक वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की संभाव्य विकास दर 2007-08 में 8.5 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है।
  • 2007-08 में मुद्रास्फीति से संबंधित दृष्टिकोण अपरिवर्तित रहेगा। तदनुसार मध्यावधि उद्देश्यों के अनुरूप नीति को ढ़ालते हुए और अनवरत आधार पर मुद्रास्फीति को घटाकर 4.0 - 4.5 प्रतिशत तक लाने की अवधारणा के साथ नीतिगत अनुक्रम में 2007-08 में हेडलाइन मुद्रास्फीति को 5.0 प्रतिशत के दायरे में रखने को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • मौद्रिक नीति बनाने के उद्देश्य से, वृद्धि तथा मुद्रास्फीति की संभावना के अनुरूप अप्रैल 2007 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में 2007-08 में मुद्रा आपूर्ति (एम3) में लगभग 17.0 - 17.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया। मुद्रा आपूर्ति के अनुमान के अनुरूप 2007-08 में कुल जमाराशि में हुई वृद्धि लगभग 4,90,000 करोड़ रुपए के आसपास रही जबकि बांडों / डिबेचरों / सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों तथा निजी कारपोरेट क्षेत्र के वाणिज्य पत्र (सीपी) में निवेश सहित खाद्येतर ऋण 2004-07 के औसतन 29.8 प्रतिशत से घटकर 2007-08 में 24.0 - 25.0 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है। जहां तक ओर खाद्येतर ऋण की वृद्धि में कमी आई है वहीं दूसरी ओर मुद्रा आपूर्ति तथा आरक्षित मुद्रा में आ रही तेजी समुचित प्रतिसाद की दरकार रखती है।
  • सुदृढ़ तथा स्थायित्वपूर्ण वृद्धि के लिए अनवरत संभावनाओं के लिए वैश्विक परिदृश्य सकारात्मक है मगर संपूर्ण विश्व में मुद्रास्फीतिय दबावों के प्रति चिंताए बनी हुई हैं। मौद्रिक प्राधिकारी मौद्रिक निर्वाह के और अधिक आहरण के प्रति चेतावनी के रूप में वास्तविक ब्याज दर के वर्तमान स्तर को मानने के प्रति अपना रुझाव रखते हैं और जिस ढ़ंग से मुद्रास्फीति संबंधी परिस्थितियां उभरेंगी उसी के अनुरूप प्रतिसाद देने के लिए तैयार रहने के संकेत भी देते हैं। वित्तीय बाजार आक्रामक तरीके से जोखिम या पुन: मूल्यांकन कर रहे हैं, तथापि, व्यापक स्तर पर जोखिम का प्रभार तथा चलनिधि की प्रचुरता से काफी अनिश्चितता उत्त्पन्न हो गई है। ये गतिविधियां इस बात की आवश्यकता पर जोर देती हैं कि इन आघातों से घरेलू वास्तविक क्षेत्र को अलग रखने के लिए नीतिगत वरीयता सहित सघन नीति निगरानी रखी जाए।
  • भारत में मौद्रिक नीति ने सतर्क और उन वैश्विक अनिश्चितताओं की प्रबलता के संदर्भ में पूर्व-सक्रिय रूख बनाए रखा जो घरेलू अर्थव्यवस्था की वृद्धि तथा स्थायित्व के लिए खतरा थीं। घरेलू परिदृश्य अनुकूल बना रहा और आगे की अवधि के लिए मौद्रिक नीति के सक्रिय निर्माण में अपना प्रभुत्व बनाए रखेगा।

  • यह आवश्यक है कि ऐसी मौद्रिक नीति बनाई जाए जो स्थिरता को बनाए रखते हुए विकास को अक्क्षुण रखे। तदनुसार, जहाँ मौद्रिक नीति रुझान में मूल्य-स्थिरता तथा सुनियंत्रित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं अर्थात् विकास की गति को बनाए रखने पर ज़ोर दिया जाता रहेगा, वहीं प्रासंगिक रूप से आगामी महीनों में वित्तीय स्थिरता को अत्यधिक महत्त्व दिया जाएगा।
  • भारत में हाल की वित्तीय बाजार गतिविधियाँ तथा वैश्विक बाजार में संभावित अनिश्चितता वर्तमान स्थिति में समुचित चलनिधि स्थितियों को व्यवस्थित करने हेतु नीति परम्परा में एक उच्चतर प्राथमिकता की माँग करती हैं।
  • रिज़र्व बैंक अपने समस्त नीतिगत उपकरणों का लचीले तौर पर इस्तेमाल करते हुए बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) तथा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सहित प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) निर्धारण एवं खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) के यथोचित उपयोग से चलनिधि के सक्रिय मांग-प्रबंधन की नीति जारी रखेगा।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किन्हीं प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों को अलग रखते हुए और मुद्रास्फीति के लिए संभावनाओं सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन को ध्यान में रखते हुए आगे आनेवाली अवधि में मौद्रिक नीति का रूझान व्यापक रूप से निम्न प्रकार जारी रहेगा:
    • एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करते समय मूल्य-स्थिरता और सुव्यवस्थित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर जोर डाला जाना जो अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश माँग की सहायता करती है ताकि विकास की गति को जारी रखा जा सके।
    • बृहत्तर ऋण प्रभाव और वित्तीय समावेशन का साथ-साथ अनुपालन करते हुए समष्टि आर्थिक और विशेषत: वित्तीय स्थायित्व प्राप्त करने के लिए वित्तीय बाजारों में ऋण-गुणवत्ता और व्यवस्थित स्थितियों पर पुन: जोर डाला जाना।
    • मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थायित्व और विकास की गति के लिए बाधक उभरती हुई वैश्विक एवं घरेलू स्थितियों पर यथोचित सभी संभावित उपायों के साथ तेजी से कार्रवाई करना।

मौद्रिक उपाय

  • बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर को क्रमश: 6.00 प्रतिशत और 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।
  • वर्तमान समष्टि आर्थिक और समग्र मौद्रिक तथा चलनिधि स्थितियों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि सोमवार, 6 अगस्त 2007 की प्रभावी तारीख से चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत दैनिक प्रत्यावर्तनीय रिपो पर 3000 करोड़ रुपये की सीमा को हटा दिया जाए। तथापि, रिज़र्व बैंक को यथोचित सीमा पुन: लागू करने का अधिकार होगा और परिस्थितियों के अनुसार स्थायी दर अथवा परिवर्तनीयता वाली दरों पर रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो नीलामियाँ करने की लचीलता होगी।
  • रिज़र्व बैंक के पास बाजार परिस्थितियों तथा संबंधित कारकों को देखते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत ओवर-नाइट अथवा दीर्घावधि रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो प्रस्तावित करने का विकल्प होगा। रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत निविदा (निविदाओं) को, पूरे या आंशिक रूप से, जैसा उपयुक्त समझा जाए, स्वीकार करने या अस्वीकार करने सहित ऐसे लचीलेपन का प्रयोग जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंध में चलनिधि समायोजन सुविधा का सक्षम उपयोग किया जा सके।
  • द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा जो 28 नवंबर 2005 को लागू की गई थी और जो दैनिक आधार पर अपराहन 3.00 बजे और अपराहन 3.45 बजे के बीच आयोजित की जाती है, को सोमवार, 6 अगस्त 2007 की प्रभावी तारीख से हटा दिया गया है।
  • वर्तमान चलनिधि परिस्थिति की समीक्षा करने पर यह वांछनीय है कि 4 अगस्त 2007 को प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से नकदी आरक्षित निधि अनुपात में 50 आधार बिन्दुओं तक वृद्धि करते हुए उसे 7.0 प्रतिशत किया जाए।

वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा 30 अक्तूबर 2007 को आयोजित की जाएगी।

बी.वी.राठोड़
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/156

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