यह एमपीसी की 54वीं बैठक और वित्तीय वर्ष 2025-26 में आयोजित पहली बैठक थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए वर्ष की शुरुआत चिंताजनक रही है। व्यापार के व्यवधानों से संबंधित कतिपय चिंताएँ सच हो रही हैं, जिससे वैश्विक समुदाय बेचैन है। इन वैश्विक घटनाक्रमों के प्रति सतर्क रहते हुए, हमने रिज़र्व बैंक में, 1 अप्रैल 1935 को अपनी स्थापना के बाद से इस प्रतिष्ठित संस्था के 90 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाते हुए वर्ष की शुरुआत की। पिछले नौ दशकों में रिज़र्व बैंक की यात्रा देश के विकास और प्रगति के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी रही है। मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता के संरक्षक के रूप में, रिज़र्व बैंक पिछले कुछ वर्षों में एक पूर्ण-सेवा केंद्रीय बैंक के रूप में विकसित हुआ है, जिसके विभिन्न कार्य बाज़ार अर्थव्यवस्था को सुविधाजनक बनाते हैं। 2. इस चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल1 में नीतिगत रेपो दर पर विचार-विमर्श और निर्णय लेने के लिए मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 7, 8 और 9 अप्रैल को संपन्न हुई। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। हाल ही में व्यापार शुल्क संबंधी उपायों ने अनिश्चितताओं को बढ़ा दिया है जो सभी क्षेत्रों में आर्थिक संभावना पर छा गया जिससे वैश्विक संवृद्धि और मुद्रास्फीति के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं। इस उथल-पुथल के बीच, अमेरिकी डॉलर में काफी गिरावट आई है; बॉण्ड प्रतिफल में काफी कमी आई है; इक्विटी बाजार में गिरावट हो रहा है; और कच्चे तेल की कीमतें तीन वर्ष से भी अधिक समय के अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई हैं। इन परिस्थितियों में, केंद्रीय बैंक सावधानीपूर्वक कार्रवाई कर रहे हैं, क्योंकि विभिन्न अधिकार-क्षेत्रों में नीतिगत भिन्नता के संकेत मिल रहे हैं, जो उनकी अपनी घरेलू प्राथमिकताओं को दर्शाता है। 3. भारतीय अर्थव्यवस्था ने मूल्य स्थिरता और सतत संवृद्धि के लक्ष्यों की दिशा में लगातार प्रगति की है। मुद्रास्फीति के स्तर पर, खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षा से अधिक गिरावट ने हमें राहत और आत्मविश्वास दिया है, लेकिन हम वैश्विक अनिश्चितताओं और मौसम की गड़बड़ी से संभावित जोखिमों के प्रति सतर्क हैं। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में कमजोर प्रदर्शन के बाद संवृद्धि में सुधार हो रहा है, हालांकि यह अभी भी हमारी अपेक्षा से कम है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का निर्णय 4. उभरती हुई समष्टि-आर्थिक और वित्तीय स्थितियों तथा संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंक घटाकर 6.00 प्रतिशत करने के लिए वोट किया; परिणामस्वरूप, चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5.75 प्रतिशत पर तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.25 प्रतिशत पर समायोजित हो जाएंगी। 5. अब मैं लिए गए इन निर्णयों के औचित्य को संक्षेप में बताऊंगा। एमपीसी ने कहा कि मुद्रास्फीति वर्तमान में लक्ष्य से नीचे है, जिसे खाद्य मुद्रास्फीति में तेज गिरावट का समर्थन मिला है। इसके अलावा, मुद्रास्फीति की संभावना में भी निर्णायक सुधार हुआ है। अनुमानों के अनुसार, अब 12 महीने के हराइज़न पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य के साथ हेडलाइन मुद्रास्फीति के टिकाऊ संरेखण का विश्वास अधिक है। दूसरी ओर, चुनौतीपूर्ण वैश्विक वातावरण से बाधित, 2024-25 की पहली छमाही में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद संवृद्धि अभी भी सुधार की राह पर है। ऐसी चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक स्थितियों में, सौम्य मुद्रास्फीति की संभावना और मध्यम संवृद्धि की मांग है कि एमपीसी संवृद्धि का समर्थन करना जारी रखे। तदनुसार, एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंक कम करके 6.0 प्रतिशत करने के लिए वोट किया। इसके अलावा, इसने रुख को तटस्थ से बदलकर निभावकारी करने का भी निर्णय लिया। इसने यह भी कहा कि तेजी से विकसित हो रही स्थिति के लिए आर्थिक संभावना की निरंतर निगरानी और आकलन की आवश्यकता है। 6. मैं मौद्रिक नीति के रुख पर थोड़ा विस्तार से बात करना चाहूंगा। अंतर-देशीय नजरिए से, मौद्रिक नीति के रुख को आम तौर पर निभावकारी, तटस्थ या सख्त रुख के रूप में परिभाषित किया जाता है। जहां निभावकारी रुख में मौद्रिक नीति आसान होती है, जो सौम्य ब्याज दरों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार होती है; सख्त रुख का तात्पर्य संकुचनकारी मौद्रिक नीति से है जिसके तहत व्यय को नियंत्रित करने और आर्थिक गतिविधि को रोकने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की जाती है, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना होता है। तटस्थ रुख आमतौर पर अर्थव्यवस्था की उस स्थिति से जुड़ा होता है जिसमें न तो आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है और न ही मांग में कटौती करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है, बल्कि इसमें उभरती आर्थिक स्थितियों के आधार पर किसी भी दिशा में आगे बढ़ने की सुविधा प्रदान की जाती है। 7. हमारे संदर्भ में, मौद्रिक नीति का रुख भविष्य में नीतिगत दरों की इच्छित दिशा का संकेत देता है। तदनुसार, नीति दर के संबंध में, जो एमपीसी का अधिदेश है, आज ‘तटस्थ’ रुख से ‘निभावकारी’ रुख में परिवर्तन का अर्थ है कि आगे चलकर, कोई भी आघात न होने की स्थिति में, एमपीसी केवल दो विकल्पों पर विचार कर रही है – यथास्थिति या दर में कटौती। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहता हूँ कि रुख को सीधे चलनिधि की स्थिति से न जोड़ा जाए। जबकि मौद्रिक नीति के लिए चलनिधि प्रबंधन महत्वपूर्ण है, जिसमें नीतिगत दर से संबंधित निर्णय शामिल हैं, यह मौद्रिक नीति संचरण सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का परिचालनात्मक साधन है। हालांकि, नीतिगत दरों में बदलाव करने संबंधी मौद्रिक नीति निर्णयों का चलनिधि प्रबंधन पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह नीति परिवर्तनों को पूरा करने के लिए परिचालनात्मक साधन है। संक्षेप में, हमारा रुख चलनिधि प्रबंधन पर बिना किसी भी प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के, नीतिगत दर मार्गदर्शन प्रदान करता है। मैं थोड़ी देर बाद चलनिधि प्रबंधन के लिए हमारे दृष्टिकोण पर चर्चा करूंगा। संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन वैश्विक व्यापार और नीतिगत अनिश्चितताओं का संवृद्धि और मुद्रास्फीति पर प्रभाव 8. इससे पहले कि मैं संवृद्धि और मुद्रास्फीति के बारे में अपना आकलन साझा करूँ, हाल ही में वैश्विक व्यापार और उससे जुड़ी नीतिगत अनिश्चितताओं के प्रभावों पर कुछ शब्द कहना उचित होगा। पहले मैं संवृद्धि के लिए संभावित प्रभावों पर प्रकाश डालूँगा। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अनिश्चितता अपने आप में कारोबारों और परिवारों के निवेश और व्यय संबंधी निर्णयों को प्रभावित करके संवृद्धि को धीमा कर देती है। दूसरा, व्यापार संबंधी बाधाओं के कारण वैश्विक संवृद्धि पर पड़ने वाला असर घरेलू संवृद्धि को बाधित करेगा। तीसरा, उच्च टैरिफ का निवल निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हालाँकि, कई ज्ञात अज्ञात बातें हैं - कुछ ऐसे विषय जैसे सापेक्ष टैरिफ का प्रभाव, हमारे निर्यात और आयात मांग की लोच; और सरकार द्वारा अपनाए गए नीतिगत उपाय जिनमें यूएसए के साथ प्रस्तावित विदेशी व्यापार समझौता शामिल हैं। ये प्रतिकूल प्रभाव की मात्रा का आकलन करना मुश्किल बनाते हैं। 9. दूसरी ओर, मुद्रास्फीति के जोखिम दोतरफा हैं। ऊर्ध्वगामी पक्ष यह है कि अनिश्चितताओं के कारण मुद्रा पर दबाव और आयातित मुद्रास्फीति की संभावना हो सकती है। अधोगामी पक्ष यह है कि वैश्विक संवृद्धि में मंदी के कारण कमोडिटी और कच्चे तेल की कीमतों में और नरमी आ सकती है, जिससे मुद्रास्फीति पर अधोगामी दबाव बढ़ सकता है। कुल मिलाकर, जबकि वैश्विक व्यापार और नीतिगत अनिश्चितताएं संवृद्धि में बाधा उत्पन्न करेंगी, घरेलू मुद्रास्फीति पर इसका प्रभाव बहुत अधिक चिंता का विषय नहीं है, लेकिन हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। संवृद्धि 10. 2024-25 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में पिछले वर्ष में देखी गई 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर से ऊपर 6.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।2 2025-26 में, जलाशय के बेहतर स्तरों और फसल उत्पादन में मजबूती के कारण कृषि क्षेत्र की संभावनाएं उज्ज्वल बनी हुई हैं।3 विनिर्माण गतिविधि में सुधार4 के संकेत दिख रहे हैं, साथ ही व्यावसायिक प्रत्याशा मजबूत बनी हुई हैं5, जबकि सेवा क्षेत्र की गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है।6 11. मांग पक्ष पर, कृषि क्षेत्र की उज्ज्वल संभावनाएं ग्रामीण मांग के लिए शुभ संकेत हैं जो स्वस्थ बनी हुई है, जबकि शहरी खपत धीरे-धीरे विवेकाधीन खर्च में वृद्धि के साथ बढ़ रही है।7 निवेश गतिविधि में तेजी आई है8 और निरंतर उच्च क्षमता उपयोग9, बुनियादी ढांचे संबंधी व्यय पर सरकार के निरंतर जोर,10 बैंकों और कॉरपोरेट्स की स्वस्थ तुलन-पत्र, साथ ही वित्तीय स्थितियों में आसानी के कारण इसमें और सुधार होने की उम्मीद है। वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण वाणिज्यिक वस्तु निर्यात पर असर पड़ेगा, जबकि सेवाओं के निर्यात में लचीलापन रहने की उम्मीद है।11 वैश्विक व्यापार के व्यवधानों से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ अधोगामी जोखिम उत्पन्न करती रहेंगी। 12. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि अब 6.5 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि पहली तिमाही में 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालाँकि जोखिम इन आधारभूत अनुमानों के आसपास समान रूप से संतुलित हैं, लेकिन वैश्विक अस्थिरता में हाल ही में हुई वृद्धि के मद्देनजर अनिश्चितताएँ अभी भी अधिक हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान वर्ष के लिए संवृद्धि के अनुमान को फरवरी नीति में हमारे पहले के 6.7 प्रतिशत के आकलन की तुलना में 20 आधार अंक कम कर दिया गया है। यह अधोगामी संशोधन अनिवार्य रूप से वैश्विक व्यापार और नीतिगत अनिश्चितताओं के प्रभाव को दर्शाता है, जिसे मैंने पहले भी उजागर किया था। मुद्रास्फीति 13. खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र करेक्शन के बाद जनवरी-फरवरी 2025 के दौरान हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी आई।12 खाद्य मुद्रास्फीति संबंधी संभावना निर्णायक रूप से सकारात्मक हो गया है। रबी फसलों से संबंधित अनिश्चितताएँ काफी हद तक कम हो गई हैं और दूसरे अग्रिम अनुमान पिछले वर्ष की तुलना में रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन और प्रमुख दालों के अधिक उत्पादन की ओर इशारा करते हैं।13 खरीफ की अच्छी उत्पादन के कारण, यह अनुमान है कि इससे खाद्य मुद्रास्फीति में स्थायी नरमी आएगी। हमारे नवीनतम सर्वेक्षण में तीन महीने और एक वर्ष के लिए मुद्रास्फीति की उम्मीदों में तीव्र गिरावट से भी आगे चलकर मुद्रास्फीति अनुमानों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।14 इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट मुद्रास्फीति की संभावना के लिए शुभ संकेत है। हालाँकि, वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं और प्रतिकूल मौसम संबंधी आपूर्ति व्यवधानों की पुनरावृत्ति की चिंताएँ, मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। 14. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए और सामान्य मानसून को मानते हुए, वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पहली तिमाही में 3.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3.9 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.4 प्रतिशत रहेगी। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। बाह्य क्षेत्र 15. जनवरी-फरवरी 2025 में भारत का सेवा निर्यात आघात-सह बनी रही, जिसका श्रेय सॉफ्टवेयर, व्यापार और परिवहन सेवाओं को जाता है।15 आगे चलकर, निवल सेवाओं और विप्रेषण प्राप्तियों के बड़े अधिशेष में रहने की उम्मीद है, जो आंशिक रूप से व्यापार घाटे की भरपाई करेगा। 2024-25 और 2025-26 के लिए सीएडी के टिकाऊ स्तर के भीतर रहने की उम्मीद है। 16. वित्तपोषण पक्ष पर, सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 2024-25 में 24 अप्रैल से 25 जनवरी की अवधि के दौरान मजबूत रहा, जो भारत के मजबूत समष्टि आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों को दर्शाता है। हालांकि, इस अवधि के दौरान अधिक प्रत्यावर्तन और बाह्य एफडीआई के कारण शुद्ध एफडीआई में तेजी से कमी आई।16 वर्ष 2024-25 के दौरान भारत में शुद्ध एफपीआई अंतर्वाह 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसे ऋण अंतर्वाह से समर्थन मिला, जबकि इक्विटी खंड में शुद्ध बहिर्वाह दर्ज किया गया। दूसरी ओर, बाह्य वाणिज्यिक उधार और अनिवासी जमा में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक शुद्ध अंतर्वाह देखा गया।17 17. 4 अप्रैल 2025 तक भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 676.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो लगभग 11 महीने का आयात कवर प्रदान करता है।18 कुल मिलाकर, भारत का बाह्य क्षेत्र आघात- सह बना हुआ है क्योंकि प्रमुख संकेतक मजबूत बने हुए हैं।19 चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ 18. जनवरी 2025 में प्रणालीगत चलनिधि घाटे में थी तथा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत शुद्ध निवेश 23 जनवरी 2025 को 3.1 लाख करोड़ रुपये के शिखर पर पहुंच गया। हालाँकि, लगभग 6.9 लाख करोड़ रुपये20 की चलनिधि बढ़ाने वाले कई उपायों के परिणामस्वरूप, फरवरी-मार्च 2025 के दौरान प्रणालीगत चलनिधि घाटा कम हो गया और 29 मार्च 2025 को अधिशेष में बदल गया। मार्च के उत्तरार्ध में सरकारी व्यय में तेजी आने के साथ ही प्रणालीगत चलनिधि में और सुधार हुआ तथा 7 अप्रैल 2025 तक यह 1.5 लाख करोड़ रुपये के अधिशेष पर पहुंच गई। 19. इन घटनाक्रमों को दर्शाते हुए, भारित औसत मांग दर (डबल्यूएसीआर) नरम हो गई और पिछली नीति बैठक के बाद से रेपो दर के आसपास बनी रही।21 91-दिवसीय खजाना बिल दर की तुलना में 3-माह के सीपी और 3-माह के सीडी दरों का प्रसार भी मार्च के दूसरे पखवाड़े से कम हुआ है, जो चलनिधि की स्थिति में सुधार का संकेत देता है।22 20. रिज़र्व बैंक पर्याप्त प्रणाली चलनिधि प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। हम उभरती हुई चलनिधि और वित्तीय बाज़ार स्थितियों पर नज़र रखना जारी रखेंगे और पर्याप्त चलनिधि सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से उचित उपाय करेंगे। वित्तीय स्थिरता 21. बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय सुदृढ़ता मानदंड मजबूत बने हुए हैं।23 बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि बफर विनियामक सीमा से काफी ऊपर है।24 लाभप्रदता संकेतक भी स्वस्थ हैं जो प्रणाली की मजबूत परिचालन दक्षता को दर्शाते हैं।25 इसी तरह, एनबीएफसी के प्रणाली -स्तरीय मानदंड भी मजबूत हैं।26 अतिरिक्त उपाय 22. अब मैं बैंकिंग विनियमन, फिनटेक और भुगतान प्रणालियों से संबंधित छह अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा। 23. सबसे पहले, बाजार आधारित तंत्र के माध्यम से दबावग्रस्त आस्तियों के प्रतिभूतिकरण को सक्षम करने का प्रस्ताव है। यह वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम, 2002 के अंतर्गत मौजूदा एआरसी मार्ग के अतिरिक्त है। 24. दूसरा, सह-उधार पर मौजूदा दिशा-निर्देश वर्तमान में केवल बैंकों और एनबीएफसी के बीच की व्यवस्थाओं पर लागू हैं। इसके अलावा, वे प्राथमिकता क्षेत्र को उधार तक ही सीमित हैं। ऐसी उधार व्यवस्थाओं की विशाल क्षमता का दोहन करने के लिए, इन्हें सभी विनियमित संस्थाओं और सभी ऋणों - प्राथमिकता क्षेत्र या अन्य तक विस्तारित करने का प्रस्ताव है। 25. तीसरा, स्वर्ण आभूषणों और गहनों के संपार्श्विक पर ऋण, जिसे समान्यतः स्वर्ण ऋण के रूप में जाना जाता है, विनियमित संस्थाओं द्वारा उपभोग और आय- अर्जन दोनों उद्देश्यों के लिए दिया जाता है। विभिन्न प्रकार की विनियमित संस्थाओं के लिए दिशानिर्देशों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए, जहां तक संभव हो, उनकी विभिन्न जोखिम- वहन क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए, हम ऐसे ऋणों के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों और आचरण संबंधी पहलुओं पर व्यापक विनियम जारी करेंगे। 26. चौथा, विनियमित संस्थाओं में गैर-निधि आधारित सुविधाओं को नियंत्रित करने वाले विनियमों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए, हम व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने का प्रस्ताव करते हैं। विनियमित संस्थाओं द्वारा आंशिक ऋण वृद्धि (पीसीई) से संबंधित निर्देशों को भी संशोधित करने का प्रस्ताव है। इससे बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए निधीयन स्रोतों के व्यापक होने की आशा है। 27. इन चार दिशा-निर्देशों और विनियमों का मसौदा आज सार्वजनिक परामर्श के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। हम प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर इन दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देंगे। 28. अन्य दो घोषणाएं एनपीसीआई को बैंकों और अन्य हितधारकों के परामर्श से यूपीआई में व्यक्ति से व्यापारी के बीच लेनदेन की सीमा तय करने में सक्षम बनाने; और विनियामक सैंडबॉक्स की थीम- तटस्थ और ‘ऑन-टैप’ बनाने से संबंधित हैं। इन दोनों उपायों के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक निदेश अलग से जारी किए जाएंगे। समापन टिप्पणी 29. वैश्विक अर्थव्यवस्था असाधारण अनिश्चितताओं के दौर से गुज़र रही है। शोरगुल और अनिश्चितता भरे माहौल से संकेत निकालने में कठिनाई, नीति निर्माण के लिए चुनौतियां खड़ी करती है। फिर भी, मौद्रिक नीति यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है कि अर्थव्यवस्था स्थिर बनी रहे। 30. हमारे संदर्भ में, जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, घरेलू संवृद्धि -मुद्रास्फीति प्रक्षेप पथ मांग करता है कि मौद्रिक नीति संवृद्धि सहायक हो, जबकि मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सतर्क रहा जाए। हम एक गैर-मुद्रास्फीतिकारी संवृद्धि का लक्ष्य बना रहे हैं जो बेहतर मांग और आपूर्ति प्रतिक्रिया तथा सतत समष्टि आर्थिक संतुलन की नींव पर निर्मित है। पहले की तरह, हम अपनी प्रतिक्रिया में चुस्त और निर्णायक बने रहेंगे तथा ऐसी नीतियां लागू करेंगे जो स्पष्ट, सुसंगत, विश्वसनीय और अर्थव्यवस्था के सर्वोत्तम हित में हों। धन्यवाद, नमस्कार और जय हिंद (पुनीत पंचोली) मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/62
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