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गवर्नर का वक्तव्य: 1 अक्तूबर 2025

नमस्कार। नवरात्रि के अंतिम दिन की अनेकानेक बधाई, एवं कल दशहरा और गांधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

2. अगस्त में आयोजित नीति की बैठक के बाद से, तेज़ी से बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के बीच घरेलू स्तर पर हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रमों ने भारत में संवृद्धि-मुद्रास्फीति की गतिशीलता की कहानी बदल दी है। अच्छे मानसून से उत्साहित, भारतीय अर्थव्यवस्था 2025-26 की पहली तिमाही में उच्च वृद्धि दर्ज करके मज़बूती का प्रदर्शन जारी रखे हुए है। साथ ही, हेडलाइन मुद्रास्फीति में भी उल्लेखनीय कमी आई है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों को युक्तिसंगत बनाने से मुद्रास्फीति पर नरमी का प्रभाव पड़ने की संभावना है, साथ ही उपभोग और संवृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर, टैरिफ़ से निर्यात में कमी आएगी।

3. वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, अमेरिका और चीन में मज़बूत संवृद्धि के कारण यह अनुमान से कहीं ज़्यादा आघात-सह रही है। हालाँकि, नीतिगत अनिश्चितताओं के बीच, संभावना अभी भी अस्पष्ट बना हुआ है। कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति अपने-अपने लक्ष्यों से ऊपर बनी हुई है, जिससे केंद्रीय बैंकों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी हो रही हैं क्योंकि उन्हें संवृद्धि-मुद्रास्फीति की बदलती गतिशीलता से निपटना है। वित्तीय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव रहा है। दूसरी तिमाही के अमेरिकी संवृद्धि दर के आंकड़ों में बढ़ोतरी के बाद अमेरिकी डॉलर मज़बूत हुआ है, और फ़ेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद कम होने के कारण हाल ही में ट्रेजरी प्रतिफल में भी तेज़ी आई है। कई उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाज़ार में तेज़ी बनी हुई है।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय

4. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 29, 30 सितंबर और 1 अक्तूबर को सम्पन्न हुई, जिसमें नीतिगत रेपो दर पर विचार-विमर्श और निर्णय लिया गया। उभरती हुई समष्टि-आर्थिक स्थितियों और संभावना के विस्तृत आकलन के बाद, एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया; परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5.25 प्रतिशत पर बनी रहेगी, जबकि सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 5.75 प्रतिशत पर बनी रहेंगी। एमपीसी ने तटस्थ रुख बनाए रखने का भी निर्णय लिया।

5. अब मैं संक्षेप में इन निर्णयों के औचित्य पर प्रकाश डालूँगा। एमपीसी ने पाया कि खाद्य कीमतों में तीव्र गिरावट और जीएसटी दरों के युक्तिकरण के कारण, पिछले कुछ महीनों में समग्र मुद्रास्फीति की संभावना और भी अधिक अनुकूल हो गई है। 2025-26 के लिए औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति को जून में अनुमानित 3.7 प्रतिशत और अगस्त में 3.1 प्रतिशत से कम करके 2.6 प्रतिशत कर दिया गया है। 2025-26 की चौथी तिमाही और 2026-27 की पहली तिमाही के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति को भी अधोगामी संशोधित किया गया है और प्रतिकूल आधार प्रभावों के बावजूद, मोटे तौर पर लक्ष्य के अनुरूप है। इस वर्ष और 2026-27 की पहली तिमाही के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति के भी नियंत्रित रहने की उम्मीद है।

6. एमपीसी ने यह भी कहा कि कमजोर बाह्य मांग के बावजूद, घरेलू कारकों के समर्थन से संवृद्धि की संभावनाएँ मज़बूत बनी हुई हैं। अनुकूल मानसून, कम मुद्रास्फीति, मौद्रिक सहजता और हाल के जीएसटी सुधारों के सकारात्मक प्रभाव से इसे और समर्थन मिलने की संभावना है। हालाँकि, संवृद्धि दर हमारी अपेक्षाओं से कम बनी हुई है। तथापि, चालू वित्त वर्ष के लिए संवृद्धि के अनुमान को ऊर्ध्वगामी संशोधित किया जा रहा है, तथा जीएसटी दरों के युक्तिकरण से मिली गति से यह आंशिक रूप से ऑफसेट होने के बावजूद तीसरी तिमाही और उसके बाद के लिए पूर्वानुमान पहले के अनुमानों से थोड़े कम रहने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण व्यापार संबंधी बाधाएँ हैं।

7. संक्षेप में, एमपीसी ने निष्कर्ष निकाला कि मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी आई है। इसके अलावा, मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं और टैरिफ संबंधी घटनाक्रमों के कारण 2025-26 की दूसरी छमाही और उसके बाद संवृद्धि दर में गिरावट आने की संभावना है। वर्तमान समष्टि-आर्थिक परिस्थितियों और संभावना ने संवृद्धि को और अधिक समर्थन देने के लिए नीतिगत गुंजाइश प्रदान किया है। हालाँकि, एमपीसी ने कहा कि मौद्रिक नीति की अग्रिम उपायों और हालिया राजकोषीय उपायों का प्रभाव अभी भी जारी है। व्यापार संबंधी अनिश्चितताएँ भी सामने आ रही हैं। इसलिए, एमपीसी ने अगली कार्रवाई तय करने से पहले नीतिगत कार्रवाइयों के प्रभाव और अधिक स्पष्टता आने तक इंतज़ार करना ही समझदारी भरा कदम समझा। तदनुसार, एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर यथावत् रखने के लिए मतदान किया और रुख को तटस्थ बनाए रखने का निर्णय लिया।

संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन

संवृद्धि

8. आर्थिक गतिविधियाँ आघात-सहनीय बनी हुई हैं और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर आश्चर्यजनक रूप से 7.8 प्रतिशत और योजित सकल मूल्य (जीवीए) 2025-26 की पहली तिमाही में 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।1 अब तक उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतकों के अनुसार, घरेलू आर्थिक गतिविधियाँ 2025-26 की दूसरी तिमाही में भी गति बनाए रखेंगी।2

9. आगे चलकर, सामान्य से बेहतर मानसून, खरीफ की बुवाई की अच्छी प्रगति और पर्याप्त जलाशय स्तर ने कृषि और ग्रामीण मांग की संभावनाओं को और उज्ज्वल बना दिया है। सेवा क्षेत्र में तेजी और स्थिर रोजगार की स्थिति, मांग को बढ़ावा दे रही है, जिसे जीएसटी के युक्तिकरण से और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। क्षमता उपयोग में वृद्धि, अनुकूल वित्तीय स्थिति और घरेलू मांग में सुधार से स्थायी निवेश को बढ़ावा मिलता रहेगा। हालाँकि, मौजूदा टैरिफ और व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताएँ बाह्य माँग को प्रभावित करेंगी। निवेशकों की रिस्क-ऑफ भावनाओं के कारण लंबे समय से जारी भू-राजनीतिक तनाव और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अस्थिरता, संवृद्धि की संभावनाओं के लिए अधोगामी जोखिम पैदा करती है। जीएसटी को सुव्यवस्थित करने सहित कई संवृद्धि-प्रेरक संरचनात्मक सुधारों के कार्यान्वयन से बाह्य प्रतिकूलताओं के कुछ प्रतिकूल प्रभावों की भरपाई होने की उम्मीद है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर अब 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जोकि दूसरी तिमाही में 7.0 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.2 प्रतिशत अनुमानित है। 2026-27 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

मुद्रास्फीति

10. 2025-26 के दौरान अब तक मुद्रास्फीति की स्थिति मंद बनी हुई है, और वास्तविक परिणाम अनुमानों से काफी कम रहे हैं।3 कम मुद्रास्फीति का मुख्य कारण खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र गिरावट है4, जिसे बेहतर आपूर्ति संभावनाओं और आपूर्ति शृंखलाओं के प्रभावी प्रबंधन5 के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों से सहायता मिली है। कीमती धातुओं पर निरंतर मूल्य दबाव6 के बावजूद, अगस्त में मूल मुद्रास्फीति7 4.2 प्रतिशत पर काफी हद तक नियंत्रित रही।

11. मुद्रास्फीति की संभावना की बात करें तो, दक्षिण-पश्चिम मानसून की प्रगति संतोषजनक रही है। खरीफ की बेहतर बुवाई8, जलाशयों का पर्याप्त स्तर9 और खाद्यान्नों का पर्याप्त बफर स्टॉक10 खाद्यान्न कीमतों को स्थिर बनाए रखने में सहायक रहेगा। हाल ही में लागू किए गए जीएसटी दरों के युक्तिकरण से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) समूह की कई वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी। कुल मिलाकर, मुद्रास्फीति के परिणाम अगस्त में लगाए गए अनुमानों से कम रहने की संभावना है, जिसका मुख्य कारण जीएसटी दरों में कटौती और खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति अब 2.6 प्रतिशत अनुमानित है, जो दूसरी तिमाही में 1.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 1.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.0 प्रतिशत होगी। 2026-27 की पहली तिमाही के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत अनुमानित है। जोखिम समान रूप से संतुलित है।

बाह्य क्षेत्र

12. भारत का चालू खाता घाटा 2025-26 की पहली तिमाही में 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 0.2 प्रतिशत) रह गया, जबकि 2024-25 की पहली तिमाही में यह 8.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 0.9 प्रतिशत) था, जिसका मुख्य कारण उच्च वस्तु व्यापार घाटे के बावजूद निवल सेवा अधिशेष में वृद्धि और मजबूत प्रेषण प्राप्तियाँ रहीं।11 जुलाई-अगस्त 2025 के दौरान, वस्तु व्यापार घाटा उच्च बना रहा। वैश्विक व्यापार में बढ़ती अनिश्चितताओं के बावजूद, सॉफ्टवेयर और व्यावसायिक सेवाओं द्वारा संचालित भारत के सेवा निर्यात में जुलाई-अगस्त 2025 में मजबूत वृद्धि देखी गई।12 इसके अलावा, मजबूत सेवा निर्यात के साथ-साथ मजबूत प्रेषण प्राप्तियों से 2025-26 के दौरान चालू खाता घाटा (सीएडी) को टिकाऊ बनाए रखने की उम्मीद है।

13. बाह्य वित्तपोषण के संदर्भ में, निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुलाई 2025 में 38 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया, जो सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि और प्रत्यावर्तन एवं बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी के कारण संभव हुआ।13 हालाँकि, इक्विटी और ऋण दोनों क्षेत्रों में बहिर्वाह के कारण, निवल एफपीआई ने 2025-26 में अब तक (1 अप्रैल - 29 सितंबर) 3.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बहिर्वाह दर्ज किया है।14 26 सितंबर 2025 तक, भारत का विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 700.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 11 महीने से ज़्यादा के पण्य आयात को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।15 कुल मिलाकर, भारत का बाह्य क्षेत्र निरंतर आघात-सह बना हुआ है, और हमें अपने बाह्य दायित्वों को आसानी से पूरा करने का पूरा भरोसा है।16

14. मज़बूत घरेलू समष्टि आर्थिक बुनियादी ढाँचों के बावजूद, रुपये में कुछ गिरावट और अस्थिरता के दौर देखे गए हैं। आरबीआई रुपये की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रख रहा है और ज़रूरत पड़ने पर उचित कदम उठाएगा।

चलनिधि और वित्तीय बाजार की स्थितियाँ

15. अगस्त 2025 में आयोजित पिछली एमपीसी बैठक के बाद से, चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत निवल स्थिति द्वारा मापी गई प्रणालीगत चलनिधि, 2.1 लाख करोड़ के औसत दैनिक अधिशेष पर रही है।17 आगे चलकर, सरकारी नकदी शेष में कमी और अक्टूबर-नवंबर के दौरान आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में शेष 75 आधार अंकों की कटौती से निकट भविष्य में बैंकिंग प्रणाली की चलनिधि में मदद मिलेगी। अपने दो-तरफ़ा परिचालन के माध्यम से, हम अल्पकालिक दरों को नियंत्रित रखने के लिए सक्रिय रूप से चलनिधि का प्रबंधन करेंगे।

16. चलनिधि की पर्याप्त स्थितियों के बीच मुद्रा बाजार दरें अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई हैं।18 फरवरी-अगस्त 2025 के दौरान, नीतिगत रेपो दर में 100 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती के प्रतिउत्तर में, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) में नए रुपया ऋणों के लिए 58 आधार अंकों की कमी आई; 71 आधार अंकों की कमी ब्याज दर प्रभाव के कारण हुई। जमा राशि के संदर्भ में, नई जमाराशियों पर भारित औसत घरेलू मियादी जमा दर (डब्ल्यूएडीटीडीआर) में 106 आधार अंकों की गिरावट आई, जबकि बकाया जमाराशियों पर इसी अवधि में 22 आधार अंकों की कमी आई। सभी क्षेत्रों में संचरण व्यापक रहा है। आगे चलकर, प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि और शेष सीआरआर कटौती से मौद्रिक संचरण और सुगम होगा।

वित्तीय स्थिरता

17. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की पूंजी पर्याप्तता, चलनिधि , आस्ति गुणवत्ता और लाभप्रदता से संबंधित प्रणाली-स्तरीय वित्तीय मानदंड अभी भी स्वस्थ बने हुए हैं।19 इसी तरह, एनबीएफ़सी के प्रणाली-स्तरीय मानदंड भी मजबूत हैं, उनके पास पर्याप्त पूंजी है और जीएनपीए अनुपात में सुधार हुआ है।20

18. बैंक ऋण संवृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में कम होने के बावजूद, अभी भी स्वस्थ है और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों को समर्थन दे रही है।21 मैं यहाँ यह ज़ोर देकर कहना चाहूँगा कि, जैसे-जैसे निधियन के अन्य स्रोत धीरे-धीरे अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह, उत्पादक क्षेत्रों में धन के प्रवाह का आकलन करने के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। गैर-बैंकिंग स्रोतों से वाणिज्यिक क्षेत्र में संसाधनों का कुल प्रवाह 2025-26 में अब तक 2.66 लाख करोड़ बढ़ गया है, जो गैर-खाद्य बैंक ऋण में 0.48 लाख करोड़ रुपये की गिरावट से कहीं अधिक है।22

अतिरिक्त उपाय

19. अब मैं 22 अतिरिक्त उपायों के पैकेज की घोषणा करूंगा जिनका उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र की आघात सहनीयता और प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करना, ऋण प्रवाह में सुधार करना, व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना, विदेशी मुद्रा प्रबंधन को सरल बनाना, उपभोक्ता संतुष्टि को बढ़ाना और भारतीय रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है।

बैंकिंग क्षेत्र की आघात सहनीयता और प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करना

20. भारतीय बैंकों की आघात सहनीयता और प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करने के लिए चार उपाय हैं।

21. विवेकपूर्ण मंचों के साथ प्रावधानीकरण की अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल) रूपरेखा को 1 अप्रैल 2027 से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों (एसएफबी), भुगतान बैंकों (पीबी), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को छोड़कर) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों (एआईएफआई) पर लागू करने का प्रस्ताव है।

22. उन्हें अपने मौजूदा खातों पर उच्च प्रावधानीकरण, यदि कोई हो, के एकमुश्त प्रभाव को सुचारू बनाने के लिए एक ग्लाइड पथ (31 मार्च 2031 तक) दिया जाएगा।

23. इसके अलावा, वाणिज्यिक बैंकों (एसएफबी, पीबीएस और आरआरबी को छोड़कर) के लिए संशोधित बासेल III पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को 1 अप्रैल 2027 से प्रभावी बनाने का प्रस्ताव है।

24. इसके अतिरिक्त, ऋण जोखिम के लिए मानकीकृत दृष्टिकोण का एक मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा। संशोधित दृष्टिकोण के तहत, कुछ क्षेत्रों पर प्रस्तावित कम जोखिम भार से समग्र पूंजी आवश्यकताओं में कमी आने की उम्मीद है, विशेष रूप से एमएसएमई और आवासीय अचल संपत्ति (गृह ऋण सहित) के लिए।

25. यह ध्यान रखना चाहिए कि परिचालन जोखिम के लिए पूंजी की आवश्यकताएं पहले ही तय कर ली गई हैं (2023 में), जबकि बाजार जोखिम के लिए पूंजी की आवश्यकताएं जनता से सुझाव मिलने के बाद अंतिम रूप देने के चरण में हैं।

26.  इन उपायों से हमारे दिशानिर्देश अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो सकेंगे, जो हमारी राष्ट्रीय परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के अनुसार होंगे, और बैंकों तथा एआईएफ़आई के लिए पूंजी पर्याप्तता ढांचा को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।

27. व्यवसाय के प्रकार और निवेश के लिए विवेकपूर्ण विनियमन पर एक मसौदा परिपत्र अक्तूबर 2024 में जारी किया गया था। जनता से सुझाव लेने के बाद इसे अंतिम रूप दे दिया गया है और इसे जल्द ही जारी कर दिया जाएगा। बैंक और उसके समूह की संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय में ओवरलैप पर प्रस्तावित विनियामक प्रतिबंध को अंतिम दिशानिर्देशों से हटा दिया गया है। समूह संस्थाओं के बीच व्यवसाय गतिविधियों के कार्यनीतिक आवंटन का निर्णय बैंक बोर्ड के विवेक पर किया जाएगा।

28. इसके अलावा, यह भी प्रस्ताव है कि वर्तमान में लागू एक समान प्रीमियम दर को अधिकतम सीमा मानकर जोखिम -आधारित जमा बीमा प्रीमियम लागू किया जाए। इससे बैंकों द्वारा बेहतर जोखिम प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा और बेहतर रेटिंग वाले बैंकों द्वारा किया जा रहा प्रीमियम भुगतान भी कम हो जाएगा।

ऋण प्रवाह में सुधार

29. मैं ऋण प्रवाह में सुधार के लिए पांच उपायों की घोषणा करूंगा।

30. एक, बैंकों द्वारा पूंजी बाज़ार में ऋण देने के दायरे को बढ़ाने के लिए, यह प्रस्ताव है कि भारतीय बैंकों को भारतीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान करने के लिए एक उपयुक्त ढांचा उपलब्ध कराया जाए।

31. दो, यह प्रस्तावित हैं: (क) सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूति पर ऋण पर विनियामक सीमा हटाना और (ख) बैंकों द्वारा शेयरों पर ऋण की सीमा 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये और आईपीओ वित्तपोषण के लिए प्रति व्यक्ति 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये करना।

32. तीन, 2016 में शुरू की गई रूपरेखा को वापस लेने का प्रस्ताव है, जो बैंकों द्वारा निर्दिष्ट उधारकर्ताओं को ऋण देने को हतोत्साहित करती है (बैंकिंग प्रणाली से 10,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक की ऋण सीमा के साथ)।

33. जबकि बैंकों के लिए लागू किया गया बड़ा एक्सपोजर ढांचा, व्यक्तिगत बैंक-स्तर पर किसी विशेष इकाई या समूह के लिए ऋण संकेन्द्रण जोखिम को संबोधित करता है, बैंकिंग प्रणाली स्तर पर संकेन्द्रण जोखिम को, जब भी आवश्यक समझा जाएगा, विशिष्ट समष्टि विवेकपूर्ण उपकरणों के माध्यम से प्रबंधित किया जाएगा।

34. चार, एनबीएफसी द्वारा बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की लागत को कम करने के लिए, परिचालन, उच्च गुणवत्ता वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को एनबीएफसी द्वारा ऋण देने पर लागू जोखिम भार को कम करने का प्रस्ताव है।

35. पांच, 2004 से शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए लाइसेंसिंग रोक दी गई थी। पिछले दो दशकों के दौरान इस क्षेत्र में हुए सकारात्मक विकास को ध्यान में रखते हुए तथा हितधारकों की बढ़ती मांग के जवाब में, हम नए शहरी सहकारी बैंकों के लाइसेंस पर एक चर्चा पत्र प्रकाशित करने का प्रस्ताव रखते हैं।

व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना

36. अब मैं ईओडीबी से संबंधित उपायों पर आता हूँ। हमने फेमा से संबंधित घोषणाओं सहित सात घोषणाएँ की हैं।

37. सबसे पहले, 11 प्रकार की विनियमित संस्थाओं के लगभग 9000 परिपत्रों और निदेशों को विषयवार समेकित किया गया है। इसका मसौदा शीघ्र ही सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया जाएगा।

38. दूसरा, उधारकर्ताओं के लेनदेन खाते खोलने और बनाए रखने के लिए बैंकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने का प्रस्ताव है (अर्थात चालू खाते और सीसी/ओडी खाते)। इससे विशेष रूप से उन उधारकर्ताओं को मदद मिलेगी जो वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा विनियमित होते हैं। संग्रह खातों से संबंधित प्रतिबंधों को भी हटाने का प्रस्ताव है।

39. निर्यात क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस क्षेत्र को और अधिक मजबूत बनाने तथा व्यापार को और अधिक सुगम बनाने के लिए हम निम्नलिखित कार्य करेंगे:

  • ए, आईएफएससी में भारतीय निर्यातकों के विदेशी मुद्रा खातों से प्रत्यावर्तन की समयावधि एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने करना।

  • बी, व्यापारिक व्यापार लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा परिव्यय की अवधि को चार महीने से बढ़ाकर छह महीने करना; और

  • सी, संबंधित रिपोर्टिंग पोर्टलों में निर्यात और आयात से संबंधित बकाया प्रविष्टियों के समाधान की प्रक्रिया को सरल बनाना (ईडीपीएमएस/आईडीपीएमएस)।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन को सरल बनाना

40. छठा, फेमा के तहत जारी ईसीबी विनियमों में पात्र उधारकर्ताओं, मान्यता प्राप्त उधारदाताओं, उधार लेने की सीमा, उधार लेने की लागत, अंतिम उपयोग और रिपोर्टिंग आदि से संबंधित प्रमुख प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव है।

41. सातवां, भारत में अपनी व्यावसायिक उपस्थिति स्थापित करने वाले अनिवासियों के संबंध में फेमा विनियमों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव है।

उपभोक्ता संतुष्टि में वृद्धि

42. अब मैं तीन उपभोक्ता-केंद्रित प्रस्ताव बताऊंगा:

43. एक, न्यूनतम शेष राशि पर शुल्क लगाए बिना सामान्य बचत बैंक जमा खाताधारकों को दी जाने वाली सेवाओं का विस्तार किया जाना प्रस्तावित है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ डिजिटल बैंकिंग (मोबाइल/इंटरनेट बैंकिंग) सेवाएं भी शामिल की जाएंगी।

44. दो, विनियमित संस्थाओं द्वारा शिकायत निवारण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आंतरिक ओम्बुड्समैन तंत्र को मजबूत करने का प्रस्ताव है।

45. तीन, शिकायत निवारण में सुधार के लिए आरबीआई ओम्बुड्समैन योजना को भी संशोधित किया जा रहा है और ग्रामीण सहकारी बैंकों को इस योजना के दायरे में शामिल किया जा रहा है।

भारतीय रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण

46. हम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रुपये के उपयोग में निरंतर प्रगति कर रहे हैं। इस संबंध में तीन उपाय प्रस्तावित हैं:

  • सबसे पहले, एडी बैंकों को सीमा पार व्यापार लेनदेन के लिए भूटान, नेपाल और श्रीलंका के अनिवासियों को भारतीय रुपये में उधार देने की अनुमति दी जाए।

  • दूसरा, भारतीय रुपये आधारित लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्राओं के लिए पारदर्शी संदर्भ दरें स्थापित करना।

  • तीसरा, एसआरवीए शेष को कॉर्पोरेट बांड और वाणिज्यिक पत्रों में निवेश के लिए पात्र बनाकर इसके व्यापक उपयोग की अनुमति दी जाए।

समापन टिप्पणी

47. अब मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ। अगस्त की नीति के बाद से बिगड़े बाहरी माहौल के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था उच्च संवृद्धि दर्ज करने की ओर अग्रसर है। मुद्रास्फीति में कमी आने से मौद्रिक नीति को मूल्य स्थिरता के प्राथमिक अधिदेश से समझौता किए बिना संवृद्धि को समर्थन देने के लिए अधिक गुंजाइश मिल गई है। हालांकि, एमपीसी ने अगली कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने से पहले हाल की नीतिगत कार्रवाइयों के संचयी प्रभाव का इंतजार करने का निर्णय लिया।

48. चूंकि भारत अपनी स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है, इसलिए उसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राजकोषीय, मौद्रिक, विनियामक और अन्य सार्वजनिक नीतियों के समन्वित समर्थन की आवश्यकता होगी। सरकार द्वारा हाल ही में जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाना इस दिशा में एक बड़ा कदम है। आज की हमारी विभिन्न नीतिगत घोषणाएँ भी इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होंगी। मौद्रिक नीतिगत कार्रवाइयों के संदर्भ में, हम आने वाले आँकड़ों पर सतर्क रहेंगे और संवृद्धि को बढ़ावा देते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के अपने उद्देश्य पर केंद्रित रहेंगे। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हम अपने संचार में सक्रिय, वस्तुनिष्ठ और सुसंगत रहेंगे तथा इसे विश्वसनीय कार्यों के साथ समर्थित करेंगे।

धन्यवाद। नमस्कार और जय हिन्द।

(पुनीत पंचोली) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/1216


1 2025-26 की पहली तिमाही के दौरान, निजी अंतिम उपभोग, सरकारी उपभोग और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में क्रमशः 7.0 प्रतिशत, 7.4 प्रतिशत और 7.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कृषि, विनिर्माण और सेवाओं के वास्तविक जीवीए में पहली तिमाही में क्रमशः 3.7 प्रतिशत, 7.7 प्रतिशत और 9.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

2 जुलाई-अगस्त 2025 के दौरान ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री में क्रमशः 17.3 प्रतिशत और 7.9 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि हुई। नीलसनआईक्यू के अनुसार, जुलाई-अगस्त 2025 के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एफएमसीजी की बिक्री में क्रमशः 8.3 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस दौरान घरेलू हवाई यातायात में 1.7 प्रतिशत की कमी आई। जुलाई-अगस्त 2025 में तैयार स्टील की खपत और सीमेंट का उत्पादन क्रमशः 8.7 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत बढ़ा। 2025-26 की पहली तिमाही के दौरान 9.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बाद जुलाई-अगस्त 2025 में पूंजीगत वस्तुओं का घरेलू उत्पादन 5.6 प्रतिशत बढ़ा, जबकि पूंजीगत वस्तुओं के आयात में जुलाई-अगस्त के दौरान 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मजबूत व्यावसायिक आशावाद के साथ, विनिर्माण पीएमआई अगस्त में 17.5 वर्ष के उच्चतम स्तर 59.3 पर पहुंच गया। नए ऑर्डरों में बढ़ोत्तरी के कारण सेवा पीएमआई अगस्त 2025 में 15 वर्षों के उच्चतम स्तर 62.9 पर पहुंच गया।

3 2025-26 की पहली तिमाही के वास्तविक परिणाम और दूसरी तिमाही के अनुमान, अप्रैल की नीति में निर्धारित अनुमान से क्रमशः 90 आधार अंक और 210 आधार अंक कम रहे, जिसका मुख्य कारण खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षा से अधिक तेज़ी से आई गिरावट थी। मूल मुद्रास्फीति मोटे तौर पर अनुमान के अनुसार ही रही।

4 खाद्य समूह ने अगस्त 2025 में शून्य मुद्रास्फीति के साथ बंद होने से पहले, जुलाई में -0.8 प्रतिशत की अपस्फीति दर्ज की (जनवरी 2019 के बाद से सबसे कम)।

5 खाद्य समूह में, अगस्त में सब्जियों (-15.9 प्रतिशत), दालों (-14.5 प्रतिशत) और मसालों (-3.2 प्रतिशत) की कीमतों में अवस्फीति देखी गई। अनाज उप-समूह में मुद्रास्फीति में अगस्त 2025 में 2.7 प्रतिशत की गिरावट आई, जो एक वर्ष पहले 7.3 प्रतिशत थी, जिससे भी खाद्य मुद्रास्फीति में समग्र नरमी आई।

6 स्वर्ण और रजत को छोड़कर मूल में अगस्त 2025 में 3.0 प्रतिशत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर्ज की गई।

7 खाद्य एवं ईंधन को छोड़कर सीपीआई हेडलाइन।

8 19 सितंबर 2025 तक खरीफ फसलों के अंतर्गत बोया गया क्षेत्र 11.2 करोड़ हेक्टेयर था, जो इस सीजन के लिए सामान्य बुवाई क्षेत्र से 2.2 प्रतिशत अधिक है।

9 25 सितंबर 2025 तक जलाशय का स्तर कुल क्षमता का 90 प्रतिशत था, जो एक वर्ष पहले दर्ज किए गए स्तर और दशकीय औसत से अधिक था।

10 16 सितंबर 2025 तक, भारतीय खाद्य निगम का गेहूं स्टॉक बफर मानदंडों का 1.2 गुना (पिछले 4 वर्षों में उच्चतम) था, जबकि चावल का स्टॉक बफर मानदंडों का 3.5 गुना था।

11 इस संदर्भ में, यह सूचित करना उचित होगा कि हमने तिमाही भुगतान संतुलन डेटा और प्रेस प्रकाशनी जारी करने की समयावधि को 90 दिनों से घटाकर 60 दिन कर दिया है।

12 अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, जुलाई-अगस्त 2025 के दौरान भारत का सेवा निर्यात 6.5 प्रतिशत बढ़ा, जबकि इस दौरान सेवा आयात में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जुलाई-अगस्त 2025 के दौरान निवल सेवा निर्यात में 12.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

13 अप्रैल-जुलाई 2025-26 में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह 33.2 प्रतिशत बढ़कर 37.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो एक वर्ष पहले इसी अवधि में 28.3 अरब अमेरिकी डॉलर था। अप्रैल-जुलाई 2025-26 में निवल एफडीआई प्रवाह 200 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 10.8 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो एक वर्ष पहले 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर था।

14 अप्रैल-सितंबर 2025 (29 सितंबर तक) के दौरान इक्विटी और ऋण खंडों में क्रमशः 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 0.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवल बहिर्वाह हुआ।

15 चार तिमाहियों की अवधि (2024-25 की दूसरी तिमाही से 2025-26 की पहली तिमाही) के दौरान वास्तविक पण्य आयात (बीओपी आधार पर) के आधार पर, यह राशि संयुक्त रूप से वस्तुओं और सेवाओं के लगभग नौ महीने के आयात और जून 2025 के अंत तक कुल बाह्य ऋण का लगभग 94 प्रतिशत को कवर करने के लिए पर्याप्त है।

16 भारत का चालू खाता घाटा/जीडीपी अनुपात 2023-24 के 0.7 प्रतिशत से घटकर 2024-25 में 0.6 प्रतिशत हो गया। भारत का जीडीपी की तुलना में बाह्य ऋण अनुपात मार्च 2025 के अंत में 19.1 प्रतिशत से घटकर जून 2025 के अंत में 18.9 प्रतिशत हो गया। इसी अवधि के दौरान जीडीपी की तुलना में निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति अनुपात (-) 8.6 प्रतिशत से बढ़कर (-) 8.0 प्रतिशत हो गया।

17 जून और जुलाई के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के अंतर्गत औसत दैनिक शुद्ध अवशोषण क्रमशः 2.8 लाख करोड़ और 3.1 लाख करोड़ रहा। एलएएफ़ के अंतर्गत औसत दैनिक निवल अवशोषण अगस्त 2025 में घटकर 2.9 लाख करोड़ और सितंबर 2025 (29 तारीख तक) में 1.6 लाख करोड़ रह गया।

18 वर्तमान सहजता चक्र (29 सितंबर तक) में 100 आधार अंकों (बीपीएस) की संचयी नीति रेपो दर में कटौती के प्रतिउत्तर में, डब्ल्यूएसीआर, 3 महीने का ख़जाना बिल दर, एनबीएफसी द्वारा जारी 3 महीने की सीपी और 3 महीने की सीडी दर में क्रमशः 92 बीपीएस, 105 बीपीएस, 118 बीपीएस और 147 बीपीएस की गिरावट आई।

19 एससीबी मानदंड: जून 24 और जून 25 के बीच बकाया ऋण और जमा राशि में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर क्रमशः 10.4 प्रतिशत और 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2025 में प्रणाली-स्तरीय जोखिम-भारित आस्तियों की तुलना में पूंजीअनुपात (सीआरएआर) 17.54 प्रतिशत था, जो विनियामक न्यूनतम स्तर से काफी ऊपर था। अनर्जक ऋणों के अनुपात में और सुधार हुआ (जून 2025 में सकल एनपीए अनुपात 2.22 प्रतिशत, जबकि जून 2024 में 2.67 प्रतिशत, जून 2025 में एनएनपीए अनुपात 0.51 प्रतिशत, जबकि जून 2024 में 0.60 प्रतिशत)। जून 2025 के अंत तक 132.69 प्रतिशत की एलसीआर के साथ चलनिधि बफर मजबूत थे। जून 2025 में आस्तियों पर वार्षिक रिटर्न (आरओए) और इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) क्रमशः 1.30 प्रतिशत और 13.02 प्रतिशत रहा। जून 2025 के लिए निवल ब्याज मार्जिन 3.25 प्रतिशत (जून 2024 में 3.54 प्रतिशत) था।

20 एनबीएफसी मानदंड : जून 2025 में एनबीएफसी का कुल सीआरएआर 25.69 प्रतिशत और टियर I सीआरएआर 23.78 प्रतिशत था, जो न्यूनतम विनियामक आवश्यकताओं से काफी ऊपर है। जीएनपीए अनुपात जून 2024 में 2.54 प्रतिशत से बढ़कर जून 2025 में 2.23 प्रतिशत हो गया है, जबकि एनएनपीए अनुपात भी जून 2024 में 1.07 प्रतिशत से बढ़कर जून 2025 में 0.98 प्रतिशत हो गया है। इस क्षेत्र के लिए आरओए जून 2024 में 2.66 प्रतिशत से थोड़ा कम होकर जून 2025 में 2.64 प्रतिशत हो गया है। एनआईएम जून 2024 में 4.85% से थोड़ा कम होकर जून 2025 में 4.50% हो गया है।

21 5 सितंबर 2025 तक गैर-खाद्य बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि एक वर्ष पहले यह 13.3 प्रतिशत थी।

22 गैर-बैंक स्रोतों में, गैर-वित्तीय संस्थाओं द्वारा कॉर्पोरेट बांड जारी करने में 1.66 लाख करोड़ की वृद्धि हुई, जबकि निवल आवक एफडीआई में 0.93 लाख करोड़ की वृद्धि हुई।

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