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वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा

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28 जुलाई 2008

वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में समष्टि आर्थिक
और मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 जुलाई 2008 को घोषित की जानेवाली वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने के लिए आज "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ - पहली तिमाही समीक्षा 2008-09" दस्तावेज जारी किया।

मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी किए गए संशोधित आकलन के अनुसार वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर वर्ष 2006-07 में 9.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2007-08 में 9.0 प्रतिशत रही। कृषि में सुधार के द्वारा अंशत: संतुलित होकर वृद्धि में कमी उद्योग और सेवाओं के कारण हुई।


  • वर्ष 2007-08 के लिए चतुर्थ अग्रिम आकलन के अनुसार कुल खाद्यान्न उत्पादन मुख्यत: खरीफ खाद्यान्न उत्पादन के कारण पिछले वर्ष (217.3 मिलियन टन) से 6.2 प्रतिशत की वृद्धि प्रदर्शित करते हुए अब तक के सर्वोच्च 230.7 मिलियन टन पर पहुँचने की संभावना है। गन्ने को छोड़कर सभी खाद्यान्नों और गैर-खाद्यान्नों का उत्पादन वर्ष 2007-08 के दौरान सभी वर्षों के रेकार्ड स्थान तक पहुंचने का अनुमान है।

  • अप्रैल-मई 2008 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में अप्रैल-मई 2007 की 10.9 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष 5.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। विनिर्माण क्षेत्र ने अप्रैल-मई 2008 के दौरान 5.3 प्रतिशत (अप्रैल-मई 2007 के दौरान 11.8 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की, जबकि विद्युत क्षेत्र ने 1.7 प्रतिशत(अप्रैल-मई 2007 में 9.0 प्रतिशत) की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की।

  • अप्रैल-मई 2008 (अप्रैल-मई 2007 में 6.9 प्रतिशत) के दौरान मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने कोयला और कच्चे पेट्रोलियम को छोड़कर सभी क्षेत्रों में गिरावट को दर्शाते हुए 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।

  • वर्ष 2008-09 के दौरान सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतकों पर उपलब्ध सूचना रेलवे के मालभाड़ा ट्रैफिक राजस्व अर्जन, पर्यटकों के आगमन तथा नागरिक उड्डयन द्वारा व्यवस्थित निर्यात के संबंध में वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि की तुलना में अब तक वृद्धि में तेजी का सुझाव देती है। दूसरी ओर, निर्यात माल और वाणिज्यिक वाहन उत्पादन को छोड़कर प्रमुख बंदरगाहों पर व्यवस्थित माल, नागरिक उड्डयन के विभिन्न संकेतकों के संबंध में वृद्धि में कमी आई।

राजकोषीय स्थिति

  • अप्रैल-मई 2008 के दौरान केंद्र सरकार वित्त पर उपलब्ध सूचना यह संकेत देती है कि निरपेक्षत: और बज़ट आकलन के अनुपात में राजस्व घाटा ओर सकल राकोषीय घाटा एक वर्ष पूर्व की तुलना में अधिक रहे। अप्रैल-मई 2008 में सकल प्राथमिक घाटा भी एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा अधिक रहा। अप्रैल-मई 2008 के दौरान केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी मुख्यत: अप्रैल-मई 2007 के दौरान योजना-व्यय में तीव्र बढ़ोतरी के कारण हुई। दूसरी ओर, गैर-योजना व्यय ब्याज भुगतान तथा प्रमुख आर्थिक सहायता में वृध्दि में नरमी तथा प्रतिरक्षा व्यय में कमी के कारण सीमित रही।


  • वर्ष 2008-09 (18 जुलाई 2008 तक) के दौरान सकल और निवल बाजार उधार (364-दिवसीय ट्रेजरी बिलों सहित) वर्ष के अनुमानित उधारों के 44.3 प्रतिशत और 43.3 प्रतिशत रहते हुए क्रमश: 77,809 करोड़ रुपए और 42,819 करोड़ रुपए थे। गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में सकल और निवल उधार क्रमश: 40.5 प्रतिशत और 33.5 प्रतिशत रहे।

  • केन्द्र सरकार के नकदी शेष वर्ष 2008-09 (18 जुलाई 2008 तक) के दौरान अधिशेष बने रहे। केन्द्र सरकार के अतिरिक्त नकदी शेष 18 जुलाई 2008 कि 19,767 करोड़ रूपये थे।

  • अब तक वर्तमान वर्ष के दौरान (18 जुलाई 2008 तक) 8.39 - 9.81 की सीमा में कट-ऑफ प्रतिफल के साथ नीलामियों के माध्यम से आठ राज्य सरकारों ने 8,712 करोड़ रूपये (वर्ष के लिए सकल आबंटन का 14.8 प्रतिशत) की राशि प्राप्त की जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 13 राज्य सरकारों द्वारा (8.30 - 8.57 प्रतिशत की सीमा के भीतर कट-ऑफ प्रतिफल) प्राप्त की गई राशि 7,153 करोड़ रूपये थी।

  • राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का औसत दैनिक उपयोग 2007-08 के दौरान (18 जुलाई 2008 तक) 736 करोड़ रुपए की तुलना में 2008-09 के दौरान 351 करोड़ रुपए था।

  • खजाना बिलों में राज्यों का औसत निवेश पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 70,608 करोड़ रुपए की तुलना मे 2008-09 (18 जुलाई 2008 तक) के दौरान 81,750 करोड़ रुपए था।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

  • वर्ष-दर-वर्ष व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि मार्च 2008 के अंत तक एक वर्ष पूर्व के 21.8 प्रतिशत (6,17,118 करोड़ रुपये) की तुलना में 20.5 प्रतिशत (7,04,046 करोड़ रुपये) थी।


  • बैंकों की सकल जमाराशियाँ, वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर एक वर्ष पूर्व के 23.1 प्रतिशत (5,56,653 करोड़ रुपए) की तुलना में 4 जुलाई 2008 के अंत में 20.7 प्रतिशत (6,07,668 करोड़ रुपए) हो गईं।

  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको (एससीबी) द्वारा खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष एक वर्ष पूर्व के 24.6 प्रतिशत (3,69,109 करोड़ रुपए) से सुधरकर 4 जुलाई 2008 तक 25.9 प्रतिशत (4,85,709 करोड़ रुपए) हो गया।

  • प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 18 जुलाई 2008 तक 26.5 प्रतिशत हुई जो एक वर्ष पूर्व 29.0 प्रतिशत थी। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में प्रथम दौर की वृद्धि को समायोजित किया गया जिससे प्रारक्षित मुद्रा में वृद्धि पिछले वर्ष की 21.6 प्रतिशत की तुलना में 18.4 प्रतिशत हो गई।

  • केन्द्र सरकार के नकदी शेषों में उतार-चढ़ाव और पूँजी प्रवाहों से वर्ष 2007-08 के दौरान चलनिधि स्थितियाँ प्रभावित होती रहीं। रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) और बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सहित खुले बाजार परिचालनों(ओएमओ) तथा लचीले ढंग से अपने नियंत्रण वाली अन्य नीति लिखतों के समुचित उपयोग के माध्यम से चलनिधि के सक्रिय प्रबंधन की नीति को जारी रखा।

मूल्य स्थिति

  • पिछले महीनों में मुद्रास्फीति एक वैश्क परिदृश्य के रूप में उभरी है।


  • हेडलाईन मुद्रास्फीति प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान उच्चतर खाद्य और ईंधन मूल्यों के साथ-साथ विशेषत: उभरते हुए बाज़ारों में मजबूत मांग स्थितियों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाते हुए बढ़ गई। मुद्रास्फीति के क्ष्यों/सुखद क्षेत्रों के ऊपर बने रहने के बावजूद तिमाही के दौरान मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएँ अमरीकी सब-प्राइम संकट के बाद वित्तीय बाजारों में हलचल जारी रहने से वृद्धि प्रभावों की दृष्टि से मिली-जुली रही।

  • कच्चे तेल, खाद्य तथा कृषिगत कच्चे माल की कीमतों में और आगे तीव्र वृद्धि के कारण वर्ष 2008-09 की प्रथम तिमाही के दौरान वैश् वस्तुओं की कीमतें मज़बूत बनी रहीं। धातुओं की कीमतें जो 2007-08 के दौरान बढ़ी थी वो 2008-09 की प्रथम तिमाही के दौरान कुछ सामान्य रही। वेस्ट टेक्सास इंटरमिडीएट (डब्लूटीआइ) द्वारा दर्शाई गई अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें 3 जुलाई 2008 को 145.3 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर की ऊँचाई पर पहुँच गई। चावल, मक्का और तिलहन/खाद्य तेलों के कारण वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान खाद्य कीमतों में बढ़ती हुई माँग (उपभोग माँग और जैविक उत्पादन जैसे खाद्येतर उपयोगों के लिए माँग दोनों में) और प्रमुख फसलों के कम स्टॉक को दर्शाते हुए मज़बूती आई।

  • कई विकसित तथा उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करते हुए इस कैलेंण्डर वर्ष की शुरूआत से ही भारत में मुद्रास्फीति के विभिन्न उपायों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) पर आधारित मुद्रास्फीति मार्च 2008 के अंत के 7.7. प्रतिशत से 12 जुलाई 2008 तक 11.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे उच्च अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों का कुछ प्रभाव घरेलू मूल्यों पर पड़ा तथा लोहा और स्टील, मूल भारी अकार्बनिक रसायन, मशीन और मशीनरी के कल-पूर्ज़े, तिलहन/खाद्य तेल/खली और कच्चा कपास की मज़बूत माँग के कारण, अंतर्राष्ट्रीय पण्य मूल्य दबावों और तिलहन को घरेलू 2007-08 रबि का कम उत्पादन रहा। वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक सब्जियों की कीमतों में मौसमी वृद्धि तथा वॉा की कीमतों में वृद्धि ने भी मुद्रास्फीति को बढ़ाया।

  • प्राथमिक वस्तुओं की कीमतें, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर पिछले वर्ष के 11.1 प्रतिशत से सर्वाधिक (मार्च 2008 के अंत में 9.7 प्रतिशत थी) 12 जुलाई 2008 को 10.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो खाद्य वस्तुं खासकर चावल, गेहूँ, फल और दूध, तथा खाद्येतर वस्तुं जैसे तिहलन और कच्चे कपास की कीमतों में वृद्धि को दर्शाती है।

  • ईंधन समूह मुद्रास्फीति में मार्च 2008 के अंत को 6.8 प्रतिशत से (और पिछले वर्ष से 1.4 प्रतिशत की कमी) 12 जुलाई 2008 को 16.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो जून 2008 में पेट्रोल, डिज़ल और एलपीजी गैस की कीमतों में हुई कुछ वृद्धि को दर्शाती है तथा पेट्रोलियम उत्पाद जैसे नाप्था, भट्टी तेल, एवियेयन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) और बिटुमेन जैसे कुछ पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि दर्शाते हैं।

  • विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मार्च 2008 के अंत में ( और एक वर्ष पहले के 4.8 प्रतिशत) 7.3 प्रतिशत से बढ़कर 12 जुलाई 2008 को 10.7 प्रतिशत तक और आगे बढ़ी जिससे खाद्य तेल, खली, कपड़ा, रसायन, आधारभूत धातु, मिश्र-धातुओं और उनके उत्पाद, और मशीनरी और मशीन के कलपूर्जों की कीमतों में वृद्धि को दर्शाते हैं। तथापि, मार्च 2008 के अंत में शक्कर और अनाज के मिल उत्पादों की कीमतें कुछ सामान्य हुईं।

  • उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान और अधिक वृद्धि हुई। ऐसा मुख्यत: खाद्य और सेवा मूल्य (विविध समूह के प्रतिनिधित्व द्वारा) में हुई वृद्धि के कारण हुआ। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के विभिन्न उपायों को मार्च 2008 में 6.0 से 7.9 प्रतिशत और जून 2007 में 5.7 से 7.8 प्रतिशत की तुलना में मई/जून 2008 के दौरान 6.8 से 8.8 प्रतिशत के क्षेत्र विस्तार में रखा गया।

वित्तीय बाज़ार

  • अप्रैल-जुलाई 2008 के दौरान वैश् वित्तीय बाज़ार में सामान्य रूप से अनिश्चत स्थिति बनी रही। वित्तीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव जो 2007 के मध्य में अमरीकी सब-प्राइम बंधक बाज़ार उभरे थे वो 2008 के शुरूआत से धीरे-धीरे गहराते गए। मार्च 2008 के मध्य में और मई 2008 के अंत के बीच में ऋण बाज़ारों में निवेशक जोखिम सहिष्णुता की सावधानीपूर्वक वापसी हुई। केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय बाज़ारों में चलनिधि स्थितियों को सुधारने के लिए साथ-साथ और अलग-अलग कार्य करना जारी रखा। तथापि, वित्तीय बाज़ार जून 2008 और उसके बाद फिर तनावपूर्ण हो गए।


  • भारतीय वित्तीय बाज़ार 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान काफी हद तक सुदृढ़ रहे।

  • मुद्रा बाज़ार में ब्याज दरें मुख्यत: तिमाही के दौरान प्रत्यावर्तनीय रिपो और रिपो दरों द्वारा तय किए गए अनौपचारिक कॉरीडोर के भीतर रहे। बाज़ार मुद्रा के संपार्श्विक अंश में ब्याज दरें तिमाही के दौरान माँग दर के नीचे बनी रहीं।

  • विदेशी मुद्रा बाज़ार में 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान प्रमुख मुद्राओं के सामने सामान्य रूप से भारतीय रुपए के मूल्य में कमी आई। वर्ष 2007-08 के दौरान रुपए के मूल्य वृद्धि में हुई थी।

  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिलाभ तिमाही के दौरान सख्त हुए।

  • भारतीय ईक्विटी बाज़ार अप्रैल-मई 2008 के दौरान कुछ हद तक पूर्वस्थिति में आये किंतु उसके बाद प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय ईक्विटी बाज़ारों की प्रवृत्तियों और घरेलू मुद्रास्थिति में बढ़ोतरी के कारण कमी आई।

बाह्वा अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2007-08 के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुविधाजनक बनी रही। भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा 2006-07 में 63.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2007-08 में 90.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। अदृश्य खाते पर निवल अधिशेष (सेवाएँ, अंतरण तथा आय को मिलाकर) 2006-07 को 53.4 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में 2007-08 को 72.7 बिलियन अमरीकी डॉलर पर उच्चतर रहा। वर्ष 2006-07 के दौरान 84.5 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2007-08 के दौरान व्यापार घाटे का निवल अदृश्य अधिशेष संतुलन 80.7 प्रतिशत रहा।

  • वर्ष 2007-08 के दौरान मुख्यत: आयात के कारण व्यापार घाटे में विस्तार से चालू खाता घाटा वर्ष 2006-07 में 9.8 बिलियन अमरीकी डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 1.1 प्रतिशत) से बढ़कर 17.4 बिलियन अमरीकी डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत) हो गया।

  • वर्ष 2007-08 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह में पाई गई तेज वृद्धि अप्रैल-मई 2008 के दौरान 7.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की राशि के अंतर्वाह के साथ वर्ष 2008-09 के दौरान जारी रही। तथापि, विदेशी सांस्थिक निवेशकों के संबंध में 11 जुलाई 2008 तक 5.6 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवल बहिर्वाह था। अनिवासी भारतीय जमाराशियों ने अप्रैल-मई 2007 के दौरान 559 मिलियन अमरीकी डॉलर के निवल बहिर्वाह के बदले अप्रैल-मई 2008 के दौरान 292 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवल अंतर्वाह दर्ज किया।

  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइएण्डएस) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार अप्रैल-मई 2008 के दौरान पण्य निर्यातों ने 21.7 प्रतिशत (अप्रैल-मई 2007 के दौरान 24.2 प्रतिशत) की वृद्धि दर दर्ज की। आयातों में पिछले वर्ष की 37.9 प्रतिशत की तुलना में 31.8 प्रतिशत से वृद्धि दर्ज की। तेल से इतर आयात में 24.6 प्रतिशत (एक वर्ष पूर्व 43.8 प्रतिशत) की महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई। तेल के आयात में वृद्धि अप्रैल-मई 2007 के 25.7 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-मई 2008 के दौरान 48.6 प्रतिशत हुई। पण्य व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-मई 2008 में बढ़कर 20.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।

  • भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा 18 जुलाई 2008 को 2007-08 की अवधि में 110.5 बिलियन अमरीकी डॉलर बढ़कर 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। 18 जुलाई 2008 को भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा 307.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई है।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/119

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