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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां वर्ष 2005-06

17 अप्रैल 2006

 

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां वर्ष 2005-06

 

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य को परिप्रेक्ष्य प्रदान करने वाला "वर्ष 2005-06 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां" दस्तावेज़ जारी किया।

वर्ष 2005-06 के दौरान समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार है :-

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2005-06 के दौरान उद्योग और सेवा क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि के साथ जोरदार कार्य निष्पादन दर्ज किया। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के अग्रिम अनुमानों के अनुसार वास्तविक सकल देशी उत्पाद में वृद्धि 2004-05 में 7.5 प्रतिशत की तुलना में 2005-06 में 8.1 प्रतिशत रही।
  • औद्योगिक उत्पादन में व्यापक विनिर्माण गतिविधि से अप्रैल-फरवरी 2005-06 के दौरान जोरदार वृद्धि दर्ज की गयी। विनिर्माण क्षेत्र में पिछले वर्ष की 8.9 प्रतिशत वृद्धि से अधिक वर्ष 2005-06 (अप्रैल-फरवरी) में 9.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। कुल मिलाकर औद्योगिक उत्पादन में बीते वर्ष की तदनुरूपी अवधि में हुई 8.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 8.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
  • सेवा क्षेत्र में वृद्धि अप्रैल-दिसंबर 2004 के दौरान 9.7 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2005 के दौरान बढ़कर 9.9 प्रतिशत दर्ज हुई। ऐसा प्रमुख उप सेवा क्षेत्रों जैसे ’व्यापार, होटलों, परिवहन और संचार’, ’वित्तपोषण, बीमा, स्थावर संपदा और कारोबार सेवाएं’ तथा ’निर्माण’ में जोरदार वृद्धि के फलस्वरूप हुआ।
  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्र गतिविधियों में उछाल और सकारात्मक कारोबार आत्मविश्वास और अपेक्षाएं यह संकेत देते है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल की वृद्धि में तेजी संभवत: वर्ष 2006-07 में बनी रहेगी जैसा कि विभिन्न ऐजेंसियों ने भी दर्शाया है।

 

राजकोषीय स्थिति

  • वर्ष 2005-06 के लिए संशोधित अनुमानों ने केंद्र सरकार के प्रमुख घाटा संकेतकों को बजट विहित स्तरों से नीचे रखा है। ऐसा खासकर, ब्याज भुगतानों, आर्थिक सहायताएं, राज्यों को अनुदान और रक्षा व्यय के संबंध में गैर-योजना व्ययों में किये गये दबाव के कारण संभव हुआ।
  • रिज़र्व बैंक के रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2005-06 के दौरान केंद्र सरकार के सकल और निवल बाज़ार उधार (बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत निर्गमों को छोड़कर) एक वर्ष पहले के 70.6 प्रतिशत और 51.0 प्रतिशत की तुलना में क्रमश: बजट अनुमानों के 97.3 प्रतिशत और 94.3 प्रतिशत रहे।
  • राज्यों ने वर्ष 2005-06 के दौरान 21,729 करोड़ रुपये (अर्थात् उनके सकल आबंटन का 84 प्रतिशत) की राशि जुटायी थी।
  • वर्ष 2005-06 के दौरान राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्रापट का साप्ताहिक औसत उपभोग एक वर्ष पहले की तुलना में काफी कम था।
  • यूनियन बजट 2006-07, राजस्व घाटे को 2008-09 तक मिटाने के लिए एफ आर बी एम के अंतर्गत राजकोषीय समेकन को अपनाने के लिए कटिबद्ध है। सकल देशी उत्पाद के प्रतिशत के प्रमुख घाटा संकेतकों जैसे, सकल राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा और प्राथमिक घाटा वर्ष 2006-07 में पिछले वर्ष की तुलना में कम होगा।

 

मौद्रिक और नकदी स्थितियां

  • इंडिया मिलेनियम डिपाज़िट के मोचन के आंशिक प्रभाव के कारण 2005-2006 के अंतिम चार महीनों के चलनिधि स्थितियों में कुछ जकड़ाव के बावजूद 2005-06 के दौरान मौद्रिक और नकदी स्थितियां सामान्यत: सुगम रहीं। रिज़र्व बैंक ने केंद्र सरकार प्रतिभूतियों के कुछ निजी स्थान नियोजन के साथ चलनिधि समायोजन सुविधा (एल ए फ) के अंतर्गत बाज़ार स्थिरीकरण योजना फिर से खोलकर और रिपो परिचालनों के ज़रिये प्रणाली में नकदी डाली। इसके फलस्वरूप वाणिज्य क्षेत्र में ऋण मांग में आयी कमी को पूरा करने में बैंकिंग प्रणाली सफल रही।
  • वाणिज्यिक ऋण की बढ़ती मांग को देखते हुए बैंकों ने सरकारी प्रतिभूतियों ंमें अपने वृद्धिशील निवेश सीमित कर दिए। जमा राशियों में सुदृढ़ वृद्धि के साथ-साथ गैर-जमा स्रोतों तक पहुंच ने भी बैंकिंग प्रणाली को वाणिज्यिक ऋण की बढ़ी हुई मांग पूरी करने में सक्षम बनाया। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के खाद्येतर ऋण में वर्ष दर वर्ष आधार पर एक वर्ष पहले की 28.8 प्रतिशत वृद्धि से ज्यादा 31 मार्च 2006 को 30.8 की वृद्धि दर्ज की गयी।
  • मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष दर वर्ष आधार पर 31 मार्च 2006 की स्थिति के अनुसार 16.2 प्रतिशत का विस्तार हुआ जब कि एक वर्ष पहले यह 13.9 प्रतिशत था। राजकोषीय वर्ष के आधार पर एम3 में वर्ष 2005-06 के दौरान 20.4 प्रतिशत का विस्तार हुआ जब कि एक वर्ष पहले यह 12.1 प्रतिशत था। इस संदर्भ में यह नोट किया जा सकता है कि वर्ष 2005-06 के लिए घट-बढ़ॅ से संबंधित राजकोषीय वर्ष के आंकड़े पिछले वर्ष के आंकड़े से तुलनीय नहीं हैं क्यों कि 2005-06 के आंकड़ों में 27 पखवाड़े शामिल हैं जबकि एक वर्ष के आंकड़ों में सामान्यत: 26 पखवाड़े रहते हैं। तिस पर भी, वर्ष 2005-06 की सूचना देनेवाला अंतिम शुक्रवार 31 मार्च को पड़ गया जो कि बैंक लेखों की लेखाबंदी का दिवस है, इस प्रकार सकल जमा राशियों और ऋण में वर्षांत में होने वाली विस्तारक घटना में वृद्धि को बढ़ावा मिला।
  • प्रारक्षित मुद्रा में एक वर्ष पहले के 15.1 प्रतिशत की तुलना में 7 अप्रैल 2006 को वर्ष दर वर्ष आधार पर 16.9 प्रतिशत का विस्तार हुआ।

 

मूल्य स्थिति

  • कच्चे तेल के अंतराष्ट्रीय मूल्य रिकार्ड उंचाइयों पर पहुंचने और बढ़े हुए स्तरों पर टिके रहने के कारण 2005-06 के दौरान बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं में सुर्खियों में रहनेवाली मुद्रास्फीति में दृढ़ता बनी रही। तदनुसार, बहुत से केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति और स्फीतिकारक प्रत्याशाओं, विशेषकर इस तथ्य के परिप्रेक्ष्य में 2005-06 के दौरान मौद्रिक नीति कठोर कर दी कि इस वृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में बढ़ते हुए एक स्थायी स्वरूप के रूप में देखा जा रहा है।
  • भारत में, सुर्खियों में रहनेवाली मुद्रास्फीति और स्फीतिकारक प्रत्याशाएं आपूर्ति पक्ष के कारकों के सतत प्रभुत्व के बावजूद 2005-06 के दौरान पूरी तरह से सीमाओं के भीतर रहीं। देशी मुद्रास्फीति पर आयातित वस्तुओं के मूल्यों के दबाक का असर कम करने और स्फीतिकारक प्रत्याशाओं में स्थिरता लाने के लिए 2004 के मध्य से प्रारंभ किया गए राजकोषीय और मौद्रिक उपाय 2005-06 के दौरान वांछित पथ पर मुद्रास्फीति को बनाये रखने में सफल रहे।
  • भारत में, वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य मुद्रास्फीति एक वर्ष पहले के 5.7 प्रतिशत की तुलना में एक अप्रैल 2006 को 3.5 प्रतिशत थी।

 

वित्तीय बाज़ार

  • पूरे परिदृश्य में ब्याज दरों में मामूली वृद्धि के बावज़ूद 2005-06 दौरान भारतीय वित्तीय बाज़ार व्यवस्थित रहे।
  • मुद्रा बाजार स्थितियां जो अक्तूबर 2005 तक सुगम बनी हुई थीं, उसके बाद थोड़ी कठोर हो गईं। मांग मुद्रा दरें, वर्ष 2005-06 की अंतिम तिमाही को छोड़कर सामान्यतया रिपो-रिवर्स रिपो सीमा (कारिडोर) के भीतर रहीं। मुद्रा बाजार के संपार्श्विक खण्डों में दरें - बाजार रिपो (चलनिधि समायोजन सुविधा के बाहर) और संपार्श्विकीकृत ऋण और उधार देयताएं (सीबीएलओ) खंड - संपार्श्विकीकृत खण्ड कुल मुद्रा बाजार टर्नओवर के बढ़ते और पहले से हावी हिस्से (70 प्रतिशत) के लिए जिम्मेदार रहा। मांग मुद्रा दरें अब तक अप्रैल 2006 के दौरान 6.00 प्रतिशत से कम रहकर सुगम रहीं जो चलनिधि स्थितियों में सुधार दर्शाती हैं।
  • विदेशी मुद्रा बाजार कमोबेश व्यवस्थित रहा और इसने द्वि-मार्गीय चाल दर्शायी।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिलाभ अल्पावधि की तुलना में दीर्घावधि में कम वृद्धि के साथ 2005-06 के दौरान कम हो गये।
  • ऋण मांग में बढ़ोत्तरी के चलते वर्ष के दौरान ऋण बाज़ार में जमा और उधार दरें बढ़ी।

 

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2005-06 के दौरान भारत के निर्यात में लगातार चौथे वर्ष भी उच्च वृद्धि में तेजी बनी रही। पिछले वर्ष की 26.4 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक 24.7 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि दर्ज हुई।
  • अंतराष्ट्रीय तेल मूल्यों में तेज वृद्धि के चलते 2005-06 के दौरान पेट्रोलियम, ऑयल और लुब्रिवेंट के आयात 46.8 प्रतिशत बढ़े। वर्ष 2005-06 के दौरान तेल आयातों से इतर आयातों में पिछले वर्ष के 33.3 प्रतिशत की तुलना में 25.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।
  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइ एण्ड एस) के आंकड़ों के आधार पर पिछले वर्ष की तुलना में 2005-06 के दौरान व्यापार घाटे में 52.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 39.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • अप्रैल-दिसंबर 2005 के लिए उपलब्ध भुगतान संतुलन आंकड़े यह दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था में निवेश मांग में वृद्धि के चलते चालू खाता घाटा में भी वृद्धि हुई। भुगतान संतुलन की स्थिति वर्ष 2005-06 के दौरान सुगम बनी रही क्योंकि पूंजी प्रवाह लगातार जोरदार बना रहा।
  • भारत के कुल बाह्य ऋण प्रमुखत: इंडिया मिलेनियम डिपॉज़िट के मोचन से अप्रैल-दिसंबर 2005 के दौरान 4.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर (3.3 प्रतिशत) से दिसंबर 2005 के अंत तक 119.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति 7 अप्रैल 2006 के अनुसार 154.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। इस स्तर पर, दिसंबर 2005 में इंडिया मिलेनियम डिपॉज़िट के मोचन के कारण 7.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर बाहर हो जाने के बावजूद पिछले वर्ष के स्तर की तुलना में 12.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गयी।

 

अल्पना किल्लावाला

मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस पकाशनी: 2005-2006/1325

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