समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां तीसरी तिमाही समीक्षा - 2005-06 - आरबीआई - Reserve Bank of India
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23 जनवरी 2006 को प्रकाशित
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां तीसरी तिमाही समीक्षा - 2005-06
23 जनवरी 2006
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां तीसरी तिमाही समीक्षा - 2005-06
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज मौद्रिक नीति संबंधी वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा का परिप्रेक्ष्य प्रदान करने वाला "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा-2005-06" दस्तावेज़ जारी किया।
वर्ष 2005-06 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार हैं:
वास्तविक अर्थव्यवस्था
- भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2005-06 की दूसरी तिमाही के दौरान जोरदार निष्पादन दर्ज किया। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार 2005-06 की पहली छमाही में वास्तविक सकल देशी उत्पाद (सदेउ) में वास्तविक वृद्धि 8.1 प्रतिशत दर्ज की गयी जोकि एक वर्ष पहले की तुलना में एक प्रतिशत अधिक है।
- विनिर्माण गतिविधि में अप्रैल-नवम्बर 2005 के दौरान जोरदार कार्य निष्पादन दिखाई दिया। पहले आठ महीनों के दौरान संचित वृद्धि 9.4 प्रतिशत रही जोकि पिछले वर्ष (9.1 प्रतिशत) से अधिक थी। कुल मिलाकर औद्योगिक उत्पादन में बीते वर्ष की तदनुरूप अवधि में हुई 8.6 प्रतिशत की सर्वोच्च वृद्धि की तुलना में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- सेवा क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख संकेतकों के संबंध में प्राप्त नवीनतम सूचना 2005-06 में सतत उछाल दर्शाती है।
- सामान्य दक्षिणी-पश्चिमी मानसून, विनिर्माण क्षेत्र में बरकरार वृद्धि सेवाओं में उछाल और सकारात्मक कारोबारी विश्वास और प्रत्याशाओं ने 2005-06 के लिए वृद्धि की संभावनाएं और बढ़ा दी हैं।
राजकोषीय स्थिति
- वर्ष 2005-06 (अप्रैल-नवम्बर) के पहले आठ महीनों के लिए केंद्रीय सरकार की वित्तीय स्थिति के संबंध में उपलब्ध सूचना दर्शाती है कि भारी कर वसूली में सतत उछाल और योजनेतर व्यय पर नियंत्रण के कारण महत्त्वपूर्ण राजकोषीय चरों में सुधार हुआ है।
- केंद्र सरकार के (18 जनवरी 2006 तक) सकल और निवल बाजार उधार (बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत निर्गमों को छोड़कर) एक वर्ष पहले के 63.7 प्रतिशत और 45.0 प्रतिशत की तुलना में क्रमश: बजट अनुमानों के 82.6 प्रतिशत और 80.0 प्रतिशत रहे हैं। एक वर्ष पहले की तुलना में 2005-06 के दौरान अब तक केंद्र के ज्यादा बाजार उधार रुख ऋण बदल योजना (डीएसएस) की समाप्ति दर्शाते हैं जिससे प्राप्त राशि 2004-05 के दौरान उसके सकल राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण हेतु उपलब्ध थी।
- राज्यों ने 2005-06 के दौरान अब तक (18 जनवरी 2006 तक) 15702 करोड़ रुपये की राशि जुटायी है जो 2005-06 के लिए उनके सकल आबंटन का 65.1 प्रतिशत है।
- राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपभोग एक वर्ष पहले की तुलना में काफी कम था।
मौद्रिक और नकदी स्थितियां
- उछालभरी वास्तविक आर्थिक गतिविधि को समर्थन देने के लिए वाणिज्यिक क्षेत्र से ऋण की मांग में उठाव बरकरार रहने के बावज़ूद 2005-06 के दौरान मौद्रिक और नकदी स्थितियां सामान्यत: सुगम रहीं। दिसम्बर 2005 के दौरान बैंकिंग प्रणाली ने इंडिया मिलेनियम डिपाज़िट के मोचन के संदर्भ में कुछ नकदी का दबाव महसूस किया। तदनुसार, रिज़र्व बैंक ने रिपो परिचालनों के ज़रिये और बाजार स्थिरीकरण योजना फिर से खोलकर प्रणाली में नकदी डाली।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मुद्रा आपूर्ति 6 जनवरी 2006 की स्थिति के अनुसार 15.9 प्रतिशत तक बढ़ी जबकि पिछले वर्ष यह 13.5 प्रतिशत थी।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के खाद्येतर ऋण ने वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 6 जनवरी 2006 की स्थिति के अनुसार 32.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जबकि एक वर्ष पहले इसका आधार 26.6 प्रतिशत जितना उँचा था।
- प्रारक्षित मुद्रा वृद्धि 13 जनवरी 2006 की स्थिति के अनुसार एक वर्ष पहले (17.3 प्रतिशत) की तुलना में 19.8 प्रतिशत से अधिक थी।
मूल्य स्थिति
- सुर्खियों में रहने वाली मुद्रा स्फीति, जो अगस्त 2005 में अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्य की कीमत नयी उँचाईयों पर पहुंच जाने के कारण अनेक अर्थव्यवस्थाओं में तीव्र बनी रही, 2005 की चौथी तिमाही में कच्चे तेल मूल्यों के साथ कुछ मामूली अनुरूपता रखते हुए मामूली रूप से कम हो गयी। हालांकि हाल ही में तेल की कीमतों में हुई वृद्धि के द्वितीय चरण के प्रभाव ने कुछ असर नहीं दिखाया है और मुख्य मुद्रास्फीति निम्न रही है, उच्चतर द्वितीय चरण पास-थ्रू की प्रत्याशा ने मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को नियंत्रित रखने के लिए अनेक केंद्रीय बैंकों को हाल के महीनों में मौद्रिक नीति कड़ी बनाने के लिए प्रेरित किया है।
- भारत में, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रा स्फीति 7 जनवरी 2006 को 4.2 प्रतिशत थी - जो मार्च 2005 के अंत में 5.1 प्रतिशत की तुलना में (एक वर्ष पहले 5.8 प्रतिशत) 27 अगस्त 2005 को वर्ष में कम अर्थात् 3.3 प्रतिशत हो गयी।
- देशी मुद्रा स्फीति पर आयातित मूल्यों के दबावों का असर घटाने और मुद्रा स्फीति की प्रत्याशाओं में स्थिरता लाने के लिए 2004 के मध्य में उठाये गये राजकोषीय और मौद्रिक उपाय अब तक के वित्तीय वर्ष के दौरान अपेक्षित ट्रैजेक्टरी के लिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में सफल रहे।
वित्तीय बाजार
- भारत के वित्तीय बाजार 2005-06 के दौरान अब तक मोटे तौर पर स्थिर रहे। तिमाही के दौरान इंडिया मिलेनियम डिपॉज़िट्स का मोचन आसानी से हुआ।
- सुगम नकदी स्थिति ने मुद्रा बाजार खण्डों को अप्रैल-अक्तूबर 2005 के दौरान सामान्यत: रिवर्स रिपो रेट के आस-पास रखा। तथापि, नवम्बर-दिसम्बर 2005 के अधिकांश भाग में मांग मुद्रा रिवर्स रिपो से ऊपर रही जो इंडिया मिलेनियम डिपॉज़िट के मोचन से उत्पन्न कुछ नकदी दबावों को दर्शाती है।
- विदेशी मुद्रा बाजार कमोबेश व्यवस्थित रहे।
- सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रतिलाभ जो अप्रैल 2005 में कम हो गए थे, उच्च तेल मूल्यों को दर्शाते हैं और रिवर्स रिपो में वृद्धि काफी हद तक तब से सीमा के अंदर रही।
- दिसम्बर 2005 को समाप्त तिमाही के दौरान ऋण बाजार में जमा और उधार दरें थोड़ी बढ़ीं।
बाह्य अर्थव्यवस्था
- अप्रैल-दिसम्बर 2005 के दौरान भारत के पण्य व्यापार में 18.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि एक वर्ष पहले यही वृद्धि 26.7 प्रतिशत थी।
- अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्यों में तेज वृद्धि के चलते अप्रैल से दिसम्बर 2005 के दौरान पेट्रोलियम, ऑयल और लुब्रिकेंट के आयात 45.4 प्रतिशत बढ़े।
- अप्रैल से दिसम्बर 2005 के दौरान तेल आयातों से इतर आयातों में पिछले वर्ष के 33.0 प्रतिशत की तुलना में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।
- वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइ एण्ड एस) के आंकड़ों के आधार अप्रैल-दिसम्बर 2005 के दौरान व्यापार घाटे में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 29.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- भुगतान संतुलन की गतिविधियां दर्शाती हैं कि चालू खाता घाटा 2005-06 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर) के दौरान पहली तिमाही के अपने स्तर से उंचा रहा जिसमें पण्य व्यापार घाटा सबसे अधिक था।
- भुगतान संतुलन की स्थिति सुगम बनी रही क्योंकि पूंजी प्रवाह लगातार जोरदार बना रहा।
- भारत के कुल बाह्य ऋण में सितम्बर 2005 को समाप्त तिमाही के दौरान 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (1.8 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की गयी और यह 124.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति 13 जनवरी 2006 के अनुसार 139.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी जिसमें मार्च 2005 को समाप्त अवधि के स्तर के तुलना में 2.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट दर्ज की गयी। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट मुख्यत: इंडिया मिलेनियम डिपॉज़िट के मोचन के कारण थी।
पी. वी. सदानंदन
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/ 922
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