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भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन – सितंबर 2025

आज, रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का सितंबर 2025 अंक जारी किया। बुलेटिन में एक भाषण, सात आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

सात आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. 2024-25 के दौरान भारत में वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों का प्रवाह; III. फिनटेक ग्राहकों के अनुभव की अनकही कहानी; IV. एनबीएफसी क्षेत्र के कार्य-निष्पादन की समीक्षा; V. नकदी मांग पर यूपीआई का प्रभाव - राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर से साक्ष्य; VI. क्या उपभोग असमानता घट रही है? - 2022-23 एनएसएसओ सर्वेक्षण हमें क्या बताता है; और VII. बुनियादी ढाँचा - भारत की संवृद्धि एक्सप्रेस का एक इंजन

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर अमेरिकी व्यापार प्रशुल्क लगाने और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की राजकोषीय स्थिति को लेकर नई चिंताओं के मद्देनजर वैश्विक अनिश्चितता बनी रही। घरेलू कारकों से प्रेरित, 2025-26 की पहली तिमाही के दौरान पाँच तिमाहियों की उच्च संवृद्धि दर से स्पष्ट रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय आघात-सहनीयता प्रदर्शित की है। ऐतिहासिक जीएसटी सुधारों से कारोबार में आसानी, खुदरा कीमतों में कमी और उपभोग संवृद्धि कारकों में मजबूती के माध्यम से उत्तरोत्तर निरंतर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति बढ़ी, लेकिन लगातार सातवें महीने लक्ष्य दर से काफी नीचे रही। प्रणालीगत चलनिधि अधिशेष में बनी रही, जो नीतिगत दरों में कटौती के प्रभाव- विस्तार को दर्शाती है। अगस्त-सितंबर के दौरान भारतीय इक्विटि बाजारों में द्विदिशात्मक गति देखी गई। मजबूत सेवा निर्यात और मजबूत विप्रेषण प्राप्तियों के समर्थन से, भारत का चालू खाता घाटा पहली तिमाही में पिछले वर्ष की तुलना में कम हुआ।

II. 2024-25 के दौरान भारत में वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों का प्रवाह

अमित पवार, अभिनंदन बोराद, पवन कुमार, जॉन वी. गुरिया और विशाल रैना द्वारा

यह आलेख 2023-24 की तुलना में 2024-25 के दौरान भारत में वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों के कुल प्रवाह का विश्लेषण करता है, जिसमें बैंकों और गैर-बैंक (घरेलू और विदेशी सहित) वित्तपोषण के स्रोतों को शामिल किया गया है।

मुख्य बातें:

  • 2024-25 के दौरान, गैर-खाद्य बैंक ऋण का प्रवाह कम हो गया, तथापि, गैर-बैंक स्रोतों से वित्त पोषण में वृद्धि ने बैंक ऋण के प्रवाह में कमी की भरपाई कर दी, जिसके परिणामस्वरूप भारत में वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों के कुल प्रवाह में वृद्धि हुई।

  • 2024-25 के दौरान गैर-खाद्य बैंक ऋण के प्रवाह में कमी, मुख्य रूप से उन खंडों में ऋण में मंदी के कारण हुई, जिनके जोखिम भार को रिज़र्व बैंक ने नवंबर 2023 में वित्तीय स्थिरता को मजबूत करने के उद्देश्य से असुरक्षित उधार को प्रतिबंधित करने के लिए बढ़ा दिया था।

  • 2024-25 के दौरान गैर-बैंकिंग स्रोतों से वित्तपोषण में वृद्धि मुख्यतः इक्विटी निर्गमों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा ऋण और अल्पकालिक बाह्य ऋण से प्रेरित थी। घरेलू द्वितीयक बाजार में तेजी के बीच इक्विटी निर्गमों में वृद्धि हुई, जबकि अल्पकालिक बाह्य ऋण में वृद्धि हुई, जो पण्य आयात में तेजी को दर्शाता है।

  • कुल मिलाकर, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बैंकों और गैर-बैंक स्रोतों से बकाया ऋण मार्च 2025 के अंत में एक वर्ष पहले के स्तर से बढ़ गया।

III. फिनटेक ग्राहकों के अनुभव की अनकही कहानी

आशीष खोबरागड़े, साक्षी अवस्थी, मंतिशा और राखे बालचंद्रन द्वारा

लगभग 5.69 मिलियन फिनटेक ऐप समीक्षाओं के विश्लेषण के आधार पर, यह अध्ययन ग्राहकों की प्रमुख चिंताओं और समीक्षा मनोभावों के साथ-साथ भारत के फिनटेक पारितंत्र में उनके निर्धारकों को भी उजागर करता है।

मुख्य बातें:

  • उपयोगकर्ता अनुभव आम तौर पर सकारात्मक है, जिसमें फिनटेक कारोबार क्षेत्रों में विश्वास और खुशी जैसी भावनाएं हावी हैं।

  • विभिन्न क्षेत्रों में ग्राहकों की प्रमुख चिंताएं ग्राहक सहायता और सेवा, ऐप की कार्यक्षमता और तकनीकी मुद्दों, तथा आवेदन और अनुमोदन में ऋण संबंधी मुद्दों, ऋण सीमा और साख-अंक (क्रेडिट स्कोर) से संबंधित हैं।

  • बाजार हिस्सेदारी, प्रमुख ऐप अपडेट और ऐप्स की डेटा गोपनीयता नीतियां, भारत के फिनटेक पारितंत्र में सकारात्मक उपयोगकर्ता अनुभव को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देती हैं।

IV. एनबीएफसी क्षेत्र के कार्यनिष्पादन की समीक्षा

अभ्युदय हर्ष, पल्लवी पंत, नंदिनी जयकुमार, रजनीश कुमार चंद्र और बृजेश पी द्वारा

यह आलेख वैश्विक संदर्भ में भारत के गैर-बैंकिंग क्षेत्र का विश्लेषण करता है और पर्यवेक्षी विवरणियों का उपयोग करते हुए 2024-25 की तीसरी तिमाही तक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण मध्यस्थता के लिए एनबीएफसी की बढ़ती प्रमुखता को देखते हुए, यह आलेख एनबीएफसी की उधारी और ऋण दरों पर मौद्रिक नीति संचरण का एक अनुभवजन्य मूल्यांकन भी करता है।

मुख्य बातें:

  • ऋण प्रावधान में एनबीएफसी की बढ़ती भूमिका, विशेष रूप से औद्योगिक और खुदरा क्षेत्रों में, उनके बढ़ते जीडीपी की तुलना में ऋण अनुपात में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

  • दिसंबर 2024 के अंत में, इस क्षेत्र की वित्तीय स्थिति मजबूत बनी रही, जैसा कि आस्ति प्रतिलाभ, जोखिम-भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी और अनर्जक आस्तियों जैसे प्रमुख संकेतकों में परिलक्षित होता है।

  • अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि मौद्रिक नीति संचरण का एनबीएफसी की उधार लेने और उधार देने संबंधी दरों पर प्रभाव होता है, यद्यपि यह अपूर्ण है।

V. नकदी मांग पर यूपीआई का प्रभाव - राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर से साक्ष्य

साक्षी अवस्थी और सुब्रत कुमार सीत द्वारा

हालाँकि डिजिटल भुगतान की ओर व्यापक बदलाव सुस्थापित है, लेकिन एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) को क्षेत्रीय स्तर पर अपनाने और नकदी की माँग पर इसके प्रभाव का अभी तक पूरी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। यह आलेख राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर नकदी की माँग पर यूपीआई के प्रभाव का परीक्षण करता है।

मुख्य बातें:

  • भारत का भुगतान परिदृश्य एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, जो महामारी के स्तर से धीमी होती मुद्रा संवृद्धि और छोटे टिकट आकार के साथ (छोटे-छोटे आकार वाले लेनदेन के कारण) यूपीआई में हो रहे निरंतर विस्तार से स्पष्ट है। हालाँकि, राज्य स्तर पर, नकदी और यूपीआई के बीच वरीयता अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न होती है।

  • अनुभवजन्य परिणाम दर्शाते हैं कि यूपीआई को अधिक अपनाने से राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर नकदी की मांग कम होती है, तथा राज्य-स्तरीय पैटर्न गैर-रैखिकता का संकेत देते हैं।

  • अन्य राज्यवार कारकों में, आय और एटीएम घनत्व नकदी की मांग के साथ सकारात्मक रूप से जुड़े हुए हैं, जबकि कार्यबल का औपचारिकीकरण और शैक्षिक उपलब्धि नकदी पर कम निर्भरता से जुड़ी हुई हैं।

VI. क्या उपभोग असमानता घट रही है? – 2022-23 के एनएसएसओ सर्वेक्षण से हमें क्या पता चलता है

कौस्तुभ, सताद्रु दास, पवन गोपालकृष्णन, और देबोज्योति मजूमदार द्वारा

यह आलेख 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) और एचसीईएस 2011-12 के साथ इसकी तुलना के आधार पर विभिन्न आयामों में घरेलू उपभोग असमानता के रुझानों का आकलन करता है।

मुख्य बातें:

  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच व्यय वर्गों में घरेलू उपभोग असमानता में कमी आई है।

  • राज्यों में वास्तविक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय में अभिसरण के मजबूत प्रमाण हैं, तथा गरीब राज्य, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अपने समृद्ध समकक्षों की तुलना में औसतन अधिक तीव्र वृद्धि दर्शा रहे हैं।

  • 2022-23 के मूल्य स्तरों पर आधारित एक अद्यतन रंगराजन गरीबी रेखा से राज्यों में गरीबी की मात्रा में उल्लेखनीय कमी का पता चलता है।

VII. बुनियादी ढांचा - भारत की संवृद्धि एक्सप्रेस का एक इंजन

आशुतोष रारविकर और अभिषेक रंजन द्वारा

बुनियादी ढांचे के विकास पर भारत के नीतिगत जोर के संदर्भ में, यह अध्ययन अवसंरचना और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंधों का विश्लेषण करता है और बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के विकल्पों और कार्यनीतियों पर चर्चा करता है।

मुख्य बातें:

  • पिछले दशक में भारत ने एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण के साथ भौतिक, सामाजिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।

  • विभिन्न तरीकों का उपयोग करके बुनियादी ढांचा सूचकांक तैयार करने संबंधी अध्ययन में पाया गया है कि बुनियादी ढांचे ने भारत में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पर सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।

  • आगे चलकर, बुनियादी ढांचे में अंतराल के समष्टि-आर्थिक मूल्यांकन के आधार पर बुनियादी ढांचे में वैविध्यपूर्ण विस्तार और उपयुक्त वित्तपोषण के अवसर और कार्यनीति विकसित करने से विकास की कहानी और आगे बढ़ेगी।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(पुनीत पंचोली) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/1161

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