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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा घोषित की

24 अक्टूबर 2008
24 अक्टूबर 2008

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए
वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा घोषित की

डॉ डी. सुब्बाराव, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा प्रस्तुत की। मध्यावधि समीक्षा के दो भाग हैं : भाग क - वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा; और भाग ख - वर्ष 2008-09 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा।

मुख्य-मुख्य बातें

  • बैंक दर, रिपो दर और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर अपरिवर्तित रखे गए हैं।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत पूर्णत: या अंशत: रूप से निविदा (निविदाओं) को स्वीकार करने और अस्वीकार करने के अधिकार सहित ओवर नाइट रिपो अथवा दीर्घावधि रिपो संचालित करने के लचीलेपन को बनाये रखा गया है।
  • आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • वर्ष 2008-09 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के अनुमान को 7.5 से 8.0 प्रतिशत की सीमा में संशोधित किया गया।
  • सरकार द्वारा किए गए आपूर्ति प्रबंधन के उपाय तथा रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए मौद्रिक नीति के उपायों की माँग में कमी की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया कि नीति प्रयोजनों के लिए मार्च 2009 के अंत के लिए किए गए 7.00 प्रतिशत की मुद्रास्पीति के पहले के अनुमान को यथावत रखा जाए।
  • मध्यावधि में लगभग 3.0 प्रतिशत का वैश्विक औसत मुद्रास्फीति के अनुरूप लक्ष्य रखते हुए रिज़र्व बैंक का यह प्रयास होगा कि मुद्रास्फीति को शीघ्र ही 5 प्रतिशत के नीचे के सहनीय स्तर तक कम किया जाए।
  • यह आवश्यक होगा कि वर्ष 2008-09 में मुद्रा आपूर्ति की दर को 17 प्रतिशत पर सामान्य रखा जाए।
  • समष्टि परिस्थिति की उपर्युक्त समग्र मूल्यांकन के आधार पर 2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रूझान निम्नानुसार होगा :
  • मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करना जो वित्तीय स्थिरता, मूल्य स्थिरता और सुनियंत्रित मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं और विकास के उद्देश्य को संपूर्णत: संतुलित रख सके।

  • वित्तीय बाज़ार की परिस्थितियों को सुव्यवस्थित बनाए रखने के लिए आरक्षित नकदी निधि अनुपात, खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ), बाज़ार स्थिरीकरण योजना और चलनिधि समायोजना सुविधा सहित सभी लिखतों का उपयुक्त प्रयोग के माध्यम से चलनिधि की सक्रिय माँग प्रबंधन की नीति को जारी रखना।
  • अनिश्चितता और अव्यवस्थित वैश्विक स्थिति तथा सामान्य रूप से घरेलू अर्थव्यवस्था और खासकर वित्तीय बाज़ारों पर उसका अप्रत्यक्ष प्रभाव के संदर्भ में स्थिति को नज़दीकी से और निरंतर निगरानी रखना तथा पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों उपायों का प्रयोग करते हुए हो रही गतिविधियों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करना।
  • वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाते समय खासकर रोज़गार आधारित क्षेत्रों के लिए ऋण-गुणवत्ता और त्र्ऋण सुपुर्दगी पर अधिक ज़ोर देना चाहिए।

सरकारी प्रतिभूति बाज़ार

  • अस्थायी दर बाँड (एफआरबी) प्रचलित बाज़ार शर्तों को ध्यान में रखते हुए यथोचित समय पर जारी किए जाने हैं।
  • भारत सरकार के 7 प्रतिशत बचत बाँड, 2002, 6.5 प्रतिशत बचत बाँड, 2003 (कर रहित) और 8 प्रतिशत बचत बाँड, 2003 (कर योग्य) योजनाओं को अनुसूचित बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए संपार्श्विक के रूप में इन बाँडों के गिरवी अथवा दृष्टिबंधक अथवा लियन (ग्रहणाधिकार) के लिए अनुमति दी गई है।
  • राज्य विकास ऋणों की गैर प्रतिस्पर्धावाली सुविधा के लिए योजना दिसंबर 2008 के अंत तक परिचालित की जानी है।

बाज़ार संरचना का विकास

  • ब्याज दर फ्यूचर्स पर गठित कार्यकारी दल द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार ब्याज दर फ्युचर्स (आइआरएफएस) संविदाएं 2009 की शुरआत में नियामक व्यवस्था में समर्थित परिवर्तनों सहित आरंभ की जानी है।
  • निवेशकों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, कंपनियों और विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरह अन्य गैर-जमा जैसे ग्राहकों की सहायक सामान्य खाता बही मार्ग के जरिए निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम - ऑर्डर मैचिंग में पहुँच में और वृद्धि की।
  • बहु-नमूना निपटान व्यवस्था के अंतर्गत प्राथमिक नीलामी बोलियों के निपटान के लिए व्यवस्था की जाएगी।
  • भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड को एक महीने के भीतर गैर गारंटीकृत आधार पर और तीन महीनों के भीतर गारंटीकृत आधार पर ओवर द काउंटर रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव्ज के लिए समाशोधन और निपटान व्यवस्था लागू करनी होगी।

विदेशी मुद्रा बाज़ार

  • बाह्य वाणिज्य उधार (ईसीबीएस) नीति संशोधित की गई - रुपया व्यय और/अथवा अनुमोदित मार्ग के तहत अनुमत अंतिम उपयोग के लिए विदेशी मद्रा व्यय के लिए प्रति उधारकर्ता प्रति वित्तीय वर्ष 500 मिलियन अमरीकी डॉलर तक बाह्य वाणिज्य उधार के लिए अनुमति दी गई; लाइसेंस प्राप्त करने/3जी स्पेक्ट्रम के लिए परमिट के लिए भुगतान, बाह्य वाणिज्य उधारों के प्रयोजन के लिए यथोचित अंतिम उपयोग हेतु विचार किए जाने के लिए अनुमत किया गया; बाह्य वाणिज्य उधार उधारकर्ताओं को आय अनुमत अंतिम उपयोग के लिए प्रयोग करने तक अप-तटीय रखने अथवा भारत में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों में अपने रुपया खाते में जमा करने के लिए भारत में प्रेषित करने के लिए अनुमति दी गई।
  • बाह्य वाणिज्य उधारकर्ताओं के लिए समग्र लागत सीमा तीन वर्ष और पाँच वर्षों तक औसत परिपक्वता अवधि 300 आधार बिंदुओं तक और पाँच वर्षों से अधिक के लिए 500 आधार बिंदुओं तक बढ़ाई गई।
  • एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी फ्युचर्स ने राष्ट्रीय शेयर बाज़ार (29 अगस्त 2008), मुंबई शेयर बाज़ार (1 अक्तूबर 2008) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज -शेयर बाज़ार (8 अक्तूबर 2008) में ट्रेडिंग शुरू किया।
  • भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड को विदेशी मुद्रा फॉर्वर्ड खण्ड के लिए एक महीने के भीतर निपटान प्रणाली लागू करनी होगी।
  • घरेलू तेल और पोतलदान कंपनियों को समुद्रपारीय विनिमय गृहों/ओवर द काउंटर बाज़ारों के साथ अपने भाड़ा जोखिम बचाव के लिए अनुमति दी गई।

ऋण वितरण व्यवस्था और अन्य बैंकिंग सेवाएं

  • 2007-08 और 2008-09 वर्षों के लिए केंद्रीय बज़ट में की गई घोषणाओं के परिणामस्वरूप, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय गामीण बैंकों और ग्रामीण सहकारी बैंको को, तीन लाख रुपयों तक अल्प-कालिक उत्पादन ऋण के संबंध में कृषकों को प्रति वर्ष 2 प्रतिशत ब्याज दर सहायता देने के लिए सूचित किया था।
  • रिज़र्व बैंक को 3 नवंबर 2008 तक अनुसूचित बैंकों और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के खण्ड 17 (3 बी) और खण्ड 17(4 इ) के तहत अस्थायी चलनिधि सहायता के रूप में क्रमश: कृषि ऋण छूट और ऋण राहत योजना 2008 के अंतर्गत पहली किश्त के रूप में 25,000 करोड़ रुपए की राशि प्रदान करनी है।

  • 3 वर्षों से कम व्यापार ऋण के लिए समग्र लागत सीमा 6 माह लिबोर और 200 आधार बिंदुओं तक बढ़ायी गयी।
  • संभाव्य अर्थक्षम बीमार लघु और मज़ौले उपक्रम इकाइयों के पुनर्वास पर बैंकों को विस्तृत दिशा-निर्देश नवंबर 2008 के अंत तक जारी केए जाने हैं।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को जब तक वे परिचालनगत लाभ कमाते हैं और उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार दर्शाते हैं तब नयी शाखाएं खोलने में अत्याधिक लचीलापन अनुमत किया जाना है।
  • वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया अधिक प्रभावी करने के लिए बैंकों को प्रतिसूचना दी जानी है।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अतिरिक्त केंद्रों पर बैंकिंग सुविधाएं देने के लिए नए रूप से प्रोत्साहन देने हेतु विशेष कार्य दल की सिफारिशों पर कार्यान्वयन किया जा रहा है।
  • वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केंद्रों के लिए एक नमूना योजना अधिसूचित की जानी है।
  • अग्रणी बैंक योजना की पुनरीक्षा करने और उसकी प्रभावोत्पादकता में सुधार लाने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट दिसंबर 2008 तक प्रस्तुत की जानी है।
  • बैंकों द्वारा बाहर के चेक जमा करने और विवरण/चेक बुक भेजने के लिए लगाए गए कुरियर/डाक प्रभारों पर अध्ययन रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखे जाने है।

संस्थागत गतिविधियाँ

  • भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 और भुगतान और निपटान प्रणाली विनियम, 2008 अधिसूचित किए गए और 12 अगस्त 2008 से लागू किए गए।
  • भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के खण्ड 18 के तहत बैंकों द्वारा अपनाने हेतु मोबाइल भुगतानों के लिए परिचालनगत दिशानिर्देश 8 अक्तूबर 2008 से जारी किए गए।
  • सांविधिक चलनिधि अनुपात बनाए रखने संबंधी टियर I में गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को दी गई मौजूदा छूट 1 अक्तूबर 2009 से निवल माँग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए और यह छूट 1 अप्रैल 2010 से हटा दी जानी है।
  • टियर I में गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में अपना सांविधिक चलनिधि अनुपात 30 सितंबर 2009 तक उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत से अनधिक और 31 मार्च 2010 तक अपनी उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 15 प्रतिशत तक बनाए रखना है।
  • टियर-II में गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में सांविधक चलनिधि अनुपात 15 प्रतिशत से अनधिक रखने का वर्तमान आदेश 31 मार्च 2010 तक बनाया रखा है।
  • 31 मार्च 2011 के आगे से सभी शहरी सहकारी बैंकों को (गैर अनुसूचित और अनुसूचित) सांविधिक चलनिधि अनुपात उनकी निवल माँग ओर मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत तक सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाए रखना है।
  • परामर्शदात्री पैनल रिपोर्ट और वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन पर समिति (सीएफएसए) की पर्यावलोकन रिपोर्ट दिसंबर 2008 तक जारी करनी है।

ब्यौरे

घरेलू गतिविधियाँ

  • 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान वास्तवितक सकल देशी उत्पाद वृद्धि एक वर्ष पूर्व की 9.2 प्रतिशत की तुलना में 7.9 प्रतिशत रही।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकोंक (डब्ल्यूपीआइ) में परिवर्तन द्वारा परिमित मुद्रास्फीति, मार्च 2008 के अंत तक 7.8 प्रतिशत और एक वर्ष पूर्व के 3.2 प्रतिशत से 4 अक्तूबर 2008 को 11.4 प्रतिशत तक वृद्धि हुई।
  • कच्चे तेल की भारतीय खरीद का दैनिक औसत मूल्य मार्च 2008 के 99.4 अमरीकी डालर प्रति बैरल से बढ़कर जून 2008 में 129.8 अमरीकी डालर हो गया। 3 जुलाई 2008 को इसने नई ऊचाइयाँ छूते हुए 141.5 अमरीकी डालर के स्तर को छू लिया फिर इसमें गिरावट आई और सितंबर 2008 में यह 96.8 अमरीकी डालर तथा अक्तूबर में यह 74.4 अमरीकी डालर रहा और 22 अक्तूबर 2008 तक यह इसके आसपास ही रहा।
  • औद्योगिक कामगारों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति में जबरदस्त तेजी आई। पिछले वर्ष के 7.3 प्रतिशत की तुलना में यह अगस्त 2008 में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 9.0 प्रतिशत हो गई।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10 अक्तूबर 2008 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वृद्धि 2003 प्रतिशत रही। यह पिछले वर्ष के 21.9 प्रतिशत से कम थी मगर अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में बताए गए निदर्शी अनुमानों के 17.0 प्रतिशत के अनुमान से अधिक रही।
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एलसीबी) की सकल जमाराशियाँ पिछले वर्ष के 24.7 प्रतिशत (5,65,124 करोड़ रुपए) की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 तक वर्ष-दर-वर्ष आधार पर इसकी वृद्धि 21.6 प्रतिशत (6,15,263 करोड़ रुपए) रही।
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) द्वारा प्रदान किए गए ऋण में निछले वर्ष के 23.1 प्रतिशत (3,77,628 करोड़ रुपए) की वृद्धि की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 तक वर्ष-दर-वर्ष आधार पर इसमें 29.4 प्रतिशत (5,91,935 करोड़ रुपए) की वृद्धि हुई।
  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से वाणिज्य क्षेत्र को कुल संसाधन प्रवाह में पिछले वर्ष के 21.9 प्रतिशत के ऊपर 10 अक्तूबर 2008 तक वर्ष-दर-वर्ष आधारित वृद्धि 28.9 प्रतिशत रही।
  • बकाया आधार पर चलनिधि समायोजन सुविधा संपार्श्विक प्रतिभूतियों समेत 10 अक्तूबर 2008 तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों की धारित्0 10,72,416 करोड़ रुपए या निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनउाटीएल) के 28.2 प्रतिशत तक रही। इसका आशय यह हुआ कि निवल माँग और मीयादी देयताओं के प्रति 25 प्रतिशत के निर्धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात की तुलना में यह 1,20,870 करोड़ रुपए या 3.2 प्रतिशत अधिक रहा।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा, बाज़ार स्थिरीकरण योजना तथा केंद्र सरकार के नकदी शेष के तहत आनेवाले सभी शेषों को अगर एक साथ मिलाकर देखा जाए तो अवरूद्ध चलनिधि का दैनिक औसत जून 2008 के 1,93,726 करोड़ रुपए से गिरकर सितंबर 2008 में 1,53,863 करोड़ रुपए रह गया तथा बाद में यह 5 अक्तूबर 2008 को 1,22,182 करोड़ रुपए रह गया। 20 अक्तूबर 2008 को कुल अवरूद्ध चलनिधि बढ़कर 2,17,415 करोड़ रुपए हो गई।
  • 2008-08 में अब तक (22 अक्तूबर 2008 तक) दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से ली जाने वाली केंद्र सरकार की सकल बाज़ार उधारी 1,06,000 करोड़ रुपए (पिछले वर्ष 1,07,000 करोड़ रुपए) रही, यह बीई का 60.3 प्रतिशत हिस्सा थी। निवल बाज़ार उधारी 61,972 करोड़ रुपए (पिछले वर्ष 74,875 करोड़ रुपए) रही, यह बीई का 67.6 प्रतिशत हिस्सा थी।
  • किसान ऋण माफी योजना पर हुए व्यय के वित्तपोषण हेतु वर्तमान वर्ष में 17 अक्तूबर 2008 तक केंद्र सरकार ने अतिरिक्त खज़ाना बिल जारी कर 38,500 करोड़ रुपए की राशि जुटाई।
  • 2008-09 की दूसरी तिमाही में वित्तीय बाज़ारों में चलनिधि स्थितियों में परिवर्तन दिखे। इस पूरी अवधि में अंतर-बैंक मुद्रा बाज़ार अच्छी तरह संचालित हुए।
  • अप्रैल-22 अक्तूबर 2008 की अवधि में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों ने विभिन्न परिपक्वता अवधियों वाली जमा दरों में 50-175 आधार अंकों की वृद्धि की।
  • अगर उधारी की तरफ देखा जाए तो अप्रैल-अक्तूबर की अवधि में सार्वजनकि क्षेत्र के बैंकों ने बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) में 125-150 आधार बिंदु की बढ़ोत्तरी की और 22 अक्तूबर 2008 तक यह 13.75 - 14.75 के दायरे में रही।
  • इसी अवधि में निजी क्षेत्र के बैंकों तथा विदेशी बैंकों ने भी अपनी बेंचमार्क मूल उधार दर में 13.00 - 16.00 प्रतिशत तथा 10.00 - 15.50 प्रतिशत के दायरे में वृद्धि की तथा इसे क्रमशत: 13.75 - 17.75 प्रतिशत तथा 10.00 - 17.00 प्रतिशत तक ले गए।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों ही खण्डों में ईक्विटी बाज़ार में गिरावट देखी गई। द्वितीयक बाज़ार में मुखत: वैश्विक ईक्विटी बाज़ार में हो रही गिरावट के कारण बीएसई संवेदी सूचकांक (1978-79 = 100) में भी बड़े पैमाने पर उभय पक्षीय उतार-चढ़ाव देखे गए।

बाह्य क्षेत्र

  • निर्यात में पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि के दौरान 19.3 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान 35.3 प्रतिशत अमरिकी डालर की वृद्धि हुई। आयात पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि में रहे 34.2 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 38.0 प्रतिशत हो गया।
  • गैर पीओएल आयात जो कि एक वर्ष पूर्व 42.7 प्रतिशत था गिर कर 28.3 प्रतिशत पर पहुंच गया। कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में आयी उछाल ने पीओएल आयात को 60.0 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जबकि पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि के दौरान यह 17.9 प्रतिशत पर था।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि में अब तक 35.8 बिलियन अमेरीकी डालर की गिरावट देखी गयी जो कि 17 अक्तूबर 2008 की स्थिति में 273.9 बिलियन अमेरीकी डालर पर आकर स्थिर हो गया।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक रुपये की गिरावट अमेरीकी डालर की तुलना में 18.9 प्रतिशत, यूरो की तुलना में 0.4 प्रतिशत, स्टर्लिंग की तुलना में 1.1 प्रतिशत तथा जपानी येन की तुलना में 19.1 प्रतिशत रही।

वैश्विक गतिविधियां

  • वर्ष 2008 के प्रथम नौ महीनों के दौरान वैश्विक वृद्धि की मंदी गहरे अनिश्चितता के माहौल में विकसित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सभी तरफ फैली।
  • अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कमजोर होने, वित्तीय बाज़ार में लगातार संकट होने तथा उर्जा, खाद्य एवं वस्तु की कीमतों में अस्थिरता रहने की वजह से भावी वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी छायी रही।
  • अक्तूबर 2008 में जारी वर्ल्ड इकानामिक आउटलुक के अनुसार क्रयशक्ति के आधार पर वैश्विक वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि वर्ष 2007 में रही 5.00 प्रतिशत से गिर कर वर्ष 2008 में 3.9 प्रतिशत (वर्ल्ड इकानामिक आउटलुक अपडेट जुलाई 2008 में 4.1 प्रतिशत) तथा आगे वर्ष 2009 में 3.0 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है (वर्ल्ड इकानामिक आउटलुक अपडेट जुलाई 2008 में 3.9 प्रतिशत)
  • अमेरिका में वर्ष 2008 की दूसरी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर गिर कर 2.8 प्रतिशत पर पहुंच गयी जो कि एक वर्ष पूर्व 3.8 प्रतिशत पर थी। अक्तूबर 2008 में जारी अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक निधि के वर्ल्ड इकानामिक आउटलुक में यह अनुमान दर्शाया गया कि अमेरिकी अर्थ व्यवस्था वर्ष 2007 में 2.0 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2008 में 1.6 प्रतिशत तथा और आगे गिरकर वर्ष 2009 में 0.1 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी।
  • पूरे विश्व में हाल के महीनों के दौरान कई देशो में मुद्रास्फीति में नरमी देखी गयी। खाद्य, कच्चा तेल तथा धातुओं की कीमत में जुलाई 2008 से कमी आती गयी। इसकी वजह से पूरे विश्व में उपभोक्ता मूल्य
    मुद्रास्फीति में नरमी का रुख देखा गया।
  • वर्ष 2008 की तिसरी तिमही के दौरान वैश्विक वित्तीय बाज़ार पर दबाव उल्लेखनीय रूप से बढ़ा। मूल्यांकनों द्वारा वित्तीय एवं अन्य साइक्लीकल क्षेत्रों में निराशाजनक प्रदर्शन की वजह से इक्विटी बाज़ार उल्लेखनीय रूप से कमजोर हुआ। अंतर बैंक मुद्रा बाज़ार पर मई 2008 से दबाव बना रहा जो कि वर्ष 2008 की तिसरी तिमाही में और ज्यादा गहरा गया।
  • वित्तीय हलचल की वजह से उभरे कई मुद्दो को सुलझाने के लिए अमेरिकी खजाना एवं फेडरल रिज़र्व ने चलनिधि सुविधाओं की शुरुआत करने एवं प्रभावी बनाने के लिए बहु-पक्षीय दृष्टिकोण अपनाया जिसमें वित्तीय सहायता निपटान, परिवर्तन, दिवालिएपन की खरीद, शामिल रहा। इसकी वजह से बड़े निवेश एवं बचत बैंक तथा प्रमुख बीमा फर्मे प्रभावित हुई।
  • इन गतिविधियों की वजह से मुद्रा बाज़ार पर पड़ रहे दबाव को दूर करने के लिए आवधिक निलामी सुविधा, प्राथमिक व्यापारी ऋण सुनिधा तथा आवधिक प्रतिभूति ऋण सुविधा के अलावा कठोर उपायों की शुरुआत की तथा फेडरल रिज़र्व ने वित्तीय बाज़ार को अतिरिक्त सहायता प्रदान किया।
  • अमेरिकी बाज़ार को गिरने से बचाने के लिए 18 सितंबर 2008 को प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने आकस्मिक चलनिधि कार्रवाई की पहल की तथा बैंक द्वारा कनाडा, दी बैंक ऑफ इंग्लैंण्ड, दी यूरोपीयन सेंट्रल बैंक, दी फेडरल रिज़र्व, ही बैंक ऑफ जापान तथा स्विस नेशनल बैंक ने सहयोजित उपयों की घोषणा की तथा अमेरिकी डालर अल्पावधि निधि बाज़ार पर लगातार बढ़ रहे दबाव को कम करने में सहयोग दिया।
  • 25 सितंबर 2008 को मुद्रा बाज़ार गिर कर जमीन पर आ गया तथा इंटरबैंक एवं रीपो दर लगभग उल्लेखनीय ऊंचाई तक पहुंच गया। इसकी वजह से अमेरिकी खजाने को 700 बिलियन अमेरिकी डालर के फेडरल निधि योजना की घोषणा करनी पड़ी ताकि (I) बाज़ार में चलनिधि पुर्नस्थापित करने के लिए आलाभकारी पेपरों की खरीद (II) संकटकालीन बिक्री के बिना तरीके से ढांचागत ओवर टाइम की अनुमति देने (III) प्रतिबंधो में कमी तथा (IV) संकटग्रस्त संस्थाएं जो इमरजेंसी इकानामिक स्टेबलाइसेचन एक्ट के अंतर्गत अक्तूबर के प्रारंभ में कांग्रेस द्वारा प्राधिकृत की गयी थी, की सहायता हेतु फेडरल इंन्स्पूरेस कार्पोरेशन की मदद की वजह से लिए गए अशोध्य ऋण की भरपाई की जा सके।
  • 14 अक्तूबर 2008 को फेडरल रिज़र्व सिस्टम के गवर्नर, ट्रिज़री के अमेरिकी विभाग तथा एफडीआइसी ने संयुक्त बयान जारी किया ताकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था बनी रहे, वित्तीय संस्थाओं पर आम लोगो का विश्वास मज़बूत बना रहे तथा स्वेच्छा पूंजी खरीद कार्यक्रम के माध्यम से ऋण बाज़ार की गतिविधि को प्रोत्साहित किया जाए तथा वित्तीय संस्थाओं के लिए एक अस्थायी एफडी आई सी गारंटी कार्यक्रम चलाया जाए।
  • बैंकिंग संकट की लहर सितंबर के अंत में बेनेलक्स, जर्मनी, यूके, स्पेन, आय्यरलैंड तथा आइसलैंड में देखी गयी जब सरकारी हस्तक्षेप जरुरी हो गया। कुछ बैंको को अस्थायी रूप से राज्य की ओनरशिप प्राप्त हुई।
  • केंद्रीय बैंक लगातार निकट परामर्श देते रहे तथा सामुहिक कार्यों में सहयोग प्रदान करते रहे। अमेरिकी डालर स्वैप लाइन के अलावा बैंक ऑफ कनाडा, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, दी फेडरल रिज़र्व, दी स्वेरिज रिक्स बैंक तथा स्विस नेशनल बैंक ने अपनी पॉलिसी दरों में 08 अक्तूबर 2008 को 50 आधार अंक की कमी की। साथ ही, जापान बैंक ने इन नीतिगत कार्यो के लिए अपनी मजबूत सहमति व्यक्त की।
  • चलनिधि तक पहुंच बनाने तथा वित्तीय संस्थाओं को निधि उपलब्ध कराने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपीयन केंद्रीय बैंक, फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ जापान तथा स्विस नेशनल बैंक ने अल्पावधि अमेरिकी डालर फंडिंग बाज़ार में चलनिधि बेहत्तर बनाने के लिए 13 अक्तूबर 2008 को संयुक्त रूप से उपायों की घोषणा की।
  • कुछ केंद्रीय बैंकों ने हाल से महीनों में अपनी पॉलिसी दरों में कड़ाई लायी। इसमें बैंक ऑफ इंडोनेशिया, बैंक ऑफ थाइलैंड, बैंकों सेंट्रल डी चीफ, बैंक ऑफ सेंट्रल दो ब्राजील, तथा बैंक ऑफ डी मेक्सिको शामिल रहे।

समग्र मूल्यांकन

  • बदतर होते जा रहे वैश्विक समग्र आर्थिक एवं वित्तीय माहौल के होते हुए भी भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र आपूर्ति व्यवस्था ने वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही में लचीला रूख दर्शाया। तथापि, वैश्विक गतिविधियों के साथ-साथ आर्थिक चक्र के अनुसार चलने का संकेत दिया तथा एक मोड पर पहुंचकर घरेलू आर्थिक गतिविधियों का फैलना नज़र आया।
  • समग्र मांग मुख्य रूप से निवेश अभिमुख रहा है। यद्यपि, कुछ ढीलापन वर्ष 2008-09 की प्रथम तिमाही के दौरान नजर आया जिसने कि अपना आधार मजबूत बनाया।
  • समग्र मांग दबाव, प्रमुख मौद्रिक एवं बैंकिं समग्र मुद्रा आपूर्ति, जमा एवं और खाद्य ऋण वृद्धि को दर्शाते हुए दरों के लिहाज से वर्ष के दौरान बढ़ोत्तरी ही। यह अप्रैल 2008 की वार्षिक निति विवरण के दिए गे निर्देशात्मक ब्यौरों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।

  • मौद्रिक स्थितियों की गतिविधयों के कारण 2008-09 की दूसरी तिमाही में घरेलू वित्तीय बाज़ार में चलनिधि परिस्थितियों में समस्या आई।
  • राजकोषीय स्थिति में गिरावट के संकेतों से अर्थव्यवस्था में सकल माँग पर दबाव बढ़ा।
  • घरेलू स्तर पर, आयात के चलते उत्पन्न हुए दबावों से हेडलाइन मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी रही। साथ ही, इस बात की भी पर्याप्त अनिश्चितता थी यह कब तथा कितनी ऊँचाई और छुएगी।
  • 21 जुलाई 2008 की पहली तिमाही समीक्षा से वैश्विक अधिक परिदृश्य और भी कमज़ोर हुआ है। वैश्विक अर्थव्यवस्था वित्तीय संकट के अवमूल्यन प्रभावों का सामना कर रही है। इस तथ्य के प्रमाण बढ़ते ही जा रहे हैं कि व्यापार तथा वित्तीय माध्यमों से अमरीकी मंदी फैल रही है।
  • उभरती अर्थव्यस्थाओं की संभावनाएं सकारात्मक बनी हुई है मगर वैश्विक आघातों को झेलने संबंधी उनकी क्षमता के बारे में अनिश्चितताएं बढ़ती जा रही हैं।
  • विश्व के बड़े-बड़े वित्तीय संस्थानों, इनमें से कई एक की तो ऐतिहासिक तथा परंपरागत साख थी, के जबरदस्त तरीके से असफल होने से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली अत्यधिक जोखिम निवारण की पकड़ में आ गई।
  • अमरीका तथा यूरोप में अंतर-बैंक बाज़रों के जाम होने से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में स्थितियाँ और बिगड़ गईं। परिणामस्वरूप, इन अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों से बड़े पैमाने पर चलनिधि डालने की सुविधा की आवश्यकता पड़ी, नीति दरों में कमी करनी पड़ी, सरकार द्वारा संकटग्रस्त निजी बैंकों का पुन:पूँजीकरण करना पड़ा, कमज़ोर बैंकों को संकट से निकालने के लिए यूरोपीय सरकारों ने समन्वित कार्रवाई की तथा कई देशों में बैंकिंग प्रणाली में रखी जमाराशियों की गारंटी देनी पड़ी।
  • समग्र मूल्यांकन में कहा जा सकता है कि वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ बिगड़ी तथा सुधार हेतु की जानेवाली भविष्य कार्रवाई बहुत अनिश्चिततापूर्ण रही, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियों में आई मंदी के बढ़ने से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समष्टि आर्थिक परिदृश्य पर प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। जो अर्थव्यवस्थाएं निर्यात तथा बाह्य वित्तीय आवश्यकताओं हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों पर निर्भर थी। वे सर्वाधिक संवेदनशील हैं। मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी रही तथा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के लिए यह सबसे बड़ा जोखिम है।

मौद्रिक नीति का रूझान

  • अर्ध-वार्षिक समीक्षा कई जटिल तथा बाध्यकारी चुनौतियों के समक्ष बनाई गई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में कई बाधाएं आईं हैं, पूरे संसार के शेयर बाज़ार में तेज गिरावट आई है तथा वित्तीय क्षेत्र के सहभागियों में अत्यधिक जोखिम निवारण के प्रमाण मिले हैं। सरकारें, केंद्रीय बैंक तथा वित्तीय विनियामक बाज़ार में शांति तथा विश्वास लाने एवं सामान्य स्थिति तथा स्थायित्व लाने हेतु इस चुनौती से निपटने के लिए आक्रामक, आमूल तथा अपारंपरिक उपायों का सहरा ले रहे हैं।
  • भारतीय वित्तीय क्षेत्र स्थायित्वपूर्ण तथा ठीक है। हमारी बैंकिंग परिसंपत्तियों का 88 प्रतिशत हिस्सा वाणिज्य बैंकों के पास है और इनसे संबंधित वित्तीय शक्ति के सभी सूचक, जैसे पूँजी पर्याप्तता, गैर-निष्पादक आस्तियों (एनपीए) के अनुपात तथा परिसंपत्ति पर आय (आरओए), सुदृढ़ हैं।
  • कहना आवश्यक नहीं है कि वैश्विक गतिविधियों का कुछ अप्रत्यक्ष तथा नकारात्मक प्रभाव घरेलू वित्तीय बाज़ार पर भी पड़ा है।
  • वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप हमारी वित्तीय प्रणाली पर पड़ने वाले दबाव को देखते हुए रिज़र्व बैंक के सम्मुख आसन्न चुनौती यह थी कि घरेलू तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार में विश्वास उत्पन्न किया जाए। तदनुसार, सितंबर-2008 के मध्य से ही रिज़र्व बैंक ने कई उपाय किए हैं।
  • सितंबर 2008 के मध्य से किए गए इन उपायों का प्रतिमूल बाहरी गतिविधियों के प्रसार से घरेलू मुद्रा बाज़ार पर पड़नेवाले चलनिधि दबाव को कम किया है।
  • मौद्रिक प्रबंधन का कार्य हमेशा मूल्य स्थिरता, विकास के संवेग को बनाए रखने और वित्तीय स्थिरता के बीच विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखने पर केंद्रित रहा है। तथापि, वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल ने वित्तीय स्थिरता के महत्त्व और इसे बनाए रखने पर विशेष जोर दिया है। तदनुसार, वर्तमान चुनौती वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, मूल्य स्थिरता बनाए रखने, मुद्रास्फीति, संभावनाओं पर अंकुश लगाने और विकास के संवेग को बनाए रखने में इष्टतम संतुलन बनाए रखना है। इस चुनौती के प्रबंधन के लिए रिज़र्व बैंक ने पारम्परिक और गैर-पारम्परिक तरीके अपनाए हैं और अपनाता रहेगा।
  • जुलाई 2008 की पहली तिमाही समीक्षा से ऐसी वैश्विक और देशी गतिविधियाँ हुई हैं जिससे परिदृश्य अनिश्चित हो गया है तथा पूर्वानुमानों से जुड़े अधोगामी जोखिम बढ़ गए हैं। इन्हीं गतिविधियों के मद्देनज़र रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2008-09 के लिए समग्र वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के पूर्वानुमान को संशोधित करके 7.5 - 8.0 प्रतिशत के बीच रखा है।
  • सरकार द्वारा आपूर्ति प्रबंधन उपायों और पिछले एक वर्ष में रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति उपायों के कारण विलंबित माँग के मद्देनज़र मार्च 2009 अंत तक 7.0 प्रतिशत मुद्रास्फीति का पहले किया गया पूर्वानुमान उचित प्रतीत होता है। अत: यह निर्णय लिया गया है कि इस अनुमान को नीति प्रयोजनों के लिए इसी प्रकार रखा जाए।
  • यह रिज़र्व बैंक का प्रयास होगा कि मुद्रास्फीति की दर को अतिशीघ्र 5 प्रतिशत से नीचे संतोषजनक स्तर तक लाया जाए जबकि मध्यावधि में इसे 3.0 प्रतिशत की वैश्विक औसत मुद्रास्फीति की ओर करने का उद्देश्य है।
  • आगे बढ़ते हुए, रिज़र्व बैंक की नीति का प्रयास 2005-06 से मुद्रा आपूर्ति के निरंतर विस्तार द्वारा सृजित मौद्रिक आधिक्य को विनियमित करना होगा।
  • रिज़र्व बैंक ऋण वृद्धि की दर और ऋण गुणवत्ता पर कड़ी निगरानी रखेगा तथा आवश्यक होने पर उन बैंकों पर कार्रवाई करेगा जो मानदण्डों का उल्लंघन कर रहे हैं।
  • रिज़र्व बैंक पूरी वित्तीय प्रणाली पर कड़ी नज़र रखेगा ताकि वित्तीय बाज़ार में बढ़ते हुए दबाव को रोका जा सके। यदि दबाव बना रहता है तो इसमें चलनिधि बढ़ाया जाना भी शामिल होगा। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि हाल ही में चलनिधि बढ़ाने वाले उपायों से चलनिधि का आधिक्य होने पर चलनिधि को कम भी किया जा सकता है ताकि मुद्रास्फीतिकारण दबावों को रोका जा सके।
  • वैशविक वित्तीय संकट के प्रबंधन से दो महत्त्वपूर्ण पहलू सामने आए हैं। पहला, इस स्तर और जटिल संकट के समाधन की माँग नियम पुस्तिका से आगे बढ़ कर गैर पारम्परिक, गैर-रुढ़िवादी और लचीली नीति कार्रवाई है। दूसरे सरकार और विनियामक एजेंसियों के बीच, संस्थागत निष्ठा और स्वतंत्रता को बाधित किए बिना, घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता है। ये पहलू भारत के लिए भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं।

  • रिज़र्व बैंक का सक्रिय रहने का प्रयास रहा है तथा तेजी से हो रही गतिविधियों में प्रबंधन और वैश्विक संकट से उत्पन्न होने वाले दबावों को रोकने के लिए कदम उठाए हैं। निष्कर्ष यह है कि रिज़र्व बैंक इस बात को दोहराता है कि वह स्थिति को संभालने और भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक संकट के दुष्प्रभाव को न्यूनतम करने में सक्षम है। हमारी वित्तीय प्रणाली मज़बूत और स्वस्थ है तथा हमारे आर्थिक मूलभूत सिद्दान्त मज़बूत है। एक बार वैश्विक स्थिति संभल कर शान्त होती है और विश्वास वापस आता है तो हम अपने उच्चतर विकास की ओर लौट जाएंगे।
  • समष्टि आर्थिक स्थिति के उक्त समग्र मूल्यांकन के आधार पर शेष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति का रूझान निम्नानुसार है।
  • मौद्रिक और ब्याज दर माहौल सुनिश्चित करना ताकि वित्तीय स्थिरता, मूल्य स्थिरता और सुनियोजित मुद्रास्फीति संभावनाओं और विकास का इष्टतम संतुलन बनाया जा सके। चलनिधि के सक्रिय मांग प्रबंधन की नीति को नकदी प्राक्षित अनुपात, खुले बाज़ार परिचालन, बाजार स्थिरीकरण योजना और चलनिधि समायोजन सुविधा सहित सभी लिखतों के समुचित उपयोग से जारी रखना ताकि वित्तीय बाज़ारों में सही स्थितियाँ बनाई रखी जा सकें।
  • अनिश्चित और अनियोजित वैश्विक स्थिति और उसका सामान्य रूप से देशी अर्थव्यवस्था पर तथा विशेष रूप से वित्तीय बाजारों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव के संदर्भ में स्थिति पर लगातार कड़ी निगरानी रखना तथा पारम्पारिक और गैर पारम्पारिक उपायों से गतिविधियों पर तेजी से और प्रभावी रूप से कार्रवाई करना;
  • वित्तीय समावेशन को लागू करते हुए, रोज़गार उन्मुख क्षेत्रों के लिए, विशेष रूप से ऋण गुणवत्ता और ऋण सुपुर्दगी पर जोर देना।

मौद्रिक उपाय

  • बैंक दर 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गई है।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर 8.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गई है।
  • चलनिधि समायोजन के अंतर्गत रिवर्स रिपो दर 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी हुई है।
  • रिज़र्व बैंक, के पास यह लचीलापन रहेगा कि वह परिस्थितियों के अनुसार रिज़र्व रिपो नीलामियाँ स्थिर दर पर अथवा निम्न निम्न दरों पर कर सकता है।

  • रिज़र्व बैंक के पास यह विकल्प रहेगा कि वह बाज़ार स्थितियों तथा अन्य संबंधित घटकों के आधार पर चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत एक दिवसीय अथवा उससे अधिक अवधि के लिए रिपो/रिवर्स रिपो कर सकता है। रिज़र्व बैंक के पास यह लचीलापन रहेगा कि वह जैसा उचित समझे चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत संविदा/संविदाओं को स्वीकार/अस्वीकार कर सकता है ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन से चलनिधि समायोजन सुविधा का पूरा लाभ उठाया जा सके।
  • नकदी प्रारक्षित अनुपात 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।

विकासात्मक और विनियामक नीतियाँ

ब्याज दर नीति

  • एफसीएनआर(बी) और एनआर(ई) आरए जमाराशियों पर ब्याज दर सीमा 50 आधार बिंदु से बढ़ा दी गई है अर्थात् प्रत्येक के लिए क्रमश: लिबॉर/स्वैप दर के लिए - 25 आधार बिंदु तथा लिबॉर स्वैप दर के लिए + 50 आधार बिंदु; यह 16 सितंबर 2008 को कार्य समय की समाप्ति से प्रभावी होगा।
  • इन सीमाओं को 50 आधार बिंदु प्रत्येक के लिए बढ़ा दिया गया था अर्थात् लिबॉर/स्वैप दर के लिए +25 आधार बिंदु और लिबॉर/स्वैप दर के लिए +100 आधार बिंदु यह 15 अक्तूबर 2008 को कार्य समय की समाप्ति से प्रभावी होगा।

वित्तीय बाज़ार

  • रिज़र्व बैंक ने 30 मई 2008 को तदर्थ आधार पर विशेष बाज़ार परिचालन (एसएमओ) घोषित किए थे जो सरकारी क्षेत्र की तेल विनणन कुपनियों द्वारा धारित तेल बाँडों में नामित बैंकों के माध्यम से आयोजित किए गए थे। ये एसएमओ 8 अगस्त 2008 से समाप्त कर दिए गए थे लेकिन लगातार अनिश्चित वैश्विक स्थिति के चलते तथा घरेलू वित्तीय बाज़ारों पर संभावित प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनज़र रिज़र्व बेंक के 15 अक्तूबर 2008 को यह घोषणा की है कि तेल बाँड उपलब्ध होने पर इसी प्रकार की सुविधा दुबारा लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है।
  • अनुरक्षण अवधि के अंतिम दिन सही बैंक प्रबंधन के लिए द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा (एसएलएएफ) 17 सितंबर 2008 से दैनिक आधार पर आरंभ की गई है।
  • 14 अक्तूबर 2008 को 20,000 करोड़ रुपए की अधिसूचित राशि के लिए विशेष 14 दिवसीय रिपो की घोषणा की गई है जो 20,000 करोड़ रुपए की संचयी राशि के लिए दैनिक आधार पर आयोजित की जाएगी ताकि बैंक म्युच्युअल फण्डों की चलनिधि अपेक्षाएं पूरी कर सकें।
  • बैंकों को अपनी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 0.5 प्रतिशत की सीमा तक अतिरिक्त चलनिधि समर्थ उपयोग करने की अनुमति दे दी गई है, जिसका उपयोग केवल म्युच्युअल फण्डों की चलनिधि अपेक्षाओं को पूरा करने के 3जी स्पैक्ट्रम के लिए लाइसेंस/परमिट प्राप्त करने के लिए अनुम ईसीबी के प्रयाजन हेतु अंतिम उपयोग के लिए पात्र भुगतान लिए ही किया जाएगा।
  • म्युच्युअल फंडो द्वारा धारित जमा प्रमाणपत्रों के संबंध में उधार देने और बाय बैक पर लगे प्रतिबंधो में 14 अक्तूबर 2008 से छूट दी गई है।
  • अस्थिर दर बॉण्ड (एफ आर बी) उचित समय पर, चल रही बाज़ार स्थितियों को देखते हे, जारी किए जाए।
  • भारत सरकार 7 प्रतिशत बचत बॉण्ड , 2002, 6.5 प्रतिशत बचत बॉण्ड, 2003 (कर योग्य नहीं) तथा 8 प्रतिशत बचत बॉण्ड, 2003 (का योग्य) योजनाओं को इन बॉण्डों के गिरवी, बंधक अथवा लियन के लिए अनुसूचित बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए संपार्श्विक के रूप में रखने की अनुमति दे दी गई है।
  • राज्य विकास ऋणों (एसडीएल) की गैर स्पर्धा बोली सुविधा दिसंबर 2008 के अंत तक परिचालित कर दिया जाएगा।
  • ब्याज दर फ्यूचर्स पर कार्यकारी दल द्वारा सिफारिश की गई ब्याज दर फ्यूचर्स (आइ आर एफ) संविदाएँ 2009 के शुर में विनियात्मक ढाँचे में परिवर्तनों सहित आरंभ की जोगी।
  • घटक एम जी एल (सी एस जी एल) के माध्यम से एन डी एस एम तक पहुंच को अन्य जमाराशियाँ स्वीकार न करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, कार्पोरेटस और वित्तीय संस्थानों के समान निवेशकों को उपलब्ध कराया गया है।

  • मल्टी मॉडल समायोजन प्रबंध तंत्र के अंतर्गत प्राथमिक नीलामी बोली के समायोजन की व्यवस्था है।
  • सी सी आइ एल समाशोधन और समायोजन व्यवस्था ओ टी सी रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव आधार पर 3 माह के भीतर परिचालित करेगी।
  • निर्माण /शिक्षा/अस्पतालों में कार्यरत पंजीकृत न्यायों और समितियों को भारत से बाहर उसी क्षेत्र में संयुक्त उद्यम (जेवी) अथवा आंशिक रूप से अधिकृत अनुशंगी (डब्ल्यू ओ एस) में रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन पर निवेश करने की अनुमति दी जाती है।
  • भारतीय संस्थानों को अनुमति दी जाती है कि वे तेल क्षेत्र में समुद्रपारीय अनिगमित संस्थाओं में अपने अंतिम लेखा परीक्षित तुलन पत्रों की तारीख से अपनी निवल संपत्ति के 400 प्रतिशत तक निवेश करने की अनुमति है।
  • बाह्य विणिज्य उधार (ई सी बी) नीति संशोधित - 22 अक्तूबर 2008 से प्रभावी, प्रति उधारकर्ता को ईसीबी प्रत्येक वर्ष 500 मिलियन अमरिकी डालर तक रुपया व्यय के लिए तथा/अथवा विदेशी मुद्रा व्यय स्वचालित रुट के अंतर्गत अंतिम उपयोग के लिए अनुमत।

  • ईसीबी उधारकर्ताओं को अनुमति है कि वे अपनी आय को विदेश में रखें आविा भारत में एडी श्रेणी-I बैंक में अपने रुपया खाते में अपने उपयोग के लिए जमा करें।

  • लाइसेंस प्राप्त करने/3जी स्पेक्ट्रम के लिए परमिट के लिए भुगतान, बाह्य वाणिज्य उधारों के प्रयोजन के लिए यथोचित अंतिम उपयोग हेतु विचार किए जाने के लिए अनुमत किया गया।
  • बाह्य वाणिज्य उधार उधारकर्ताओं को आय अनुमत अंतिम उपयोग के लिए प्रयोग करने तक अप-तटीय रखने अथवा भारत में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों में अपने रुपया खाते में जमा करने के लिए भारत में प्रेषित करने के लिए अनुमति दी गई।

  • बाह्य वाणिज्य उधारकर्ताओं के लिए समग्र लागत सीमा तीन वर्ष और पाँच वर्षों तक औसत परिपक्वता अवधि 300 आधार बिंदुओं तक और पाँच वर्षों से अधिक के लिए 500 आधार बिंदुओं तक बढ़ाई गई।बैंकों द्वारा लघु और मध्यम उद्यमों के अप्रारक्षित जोखिमों पर बैंकों द्वारा नियमित रूप से नियमित निगरानी की प्रणाली लागू की गई।
  • ईसीबी का उपयोग करने के प्रयोजन के लिए आधारभूत संरचना की परिभाषा में माइनिंग, एक्सप्लोट करने और रिफाइनिंग को सम्मिलित करना।
  • सेवा क्षेत्र में संस्थानों तथा हॉटेलों, अस्पतालों और सॉफ्टवेयर कुपिनियों को पूँजी वस्तुओं के आयात के प्रयोजन के लिए अनुमोदन रूट के अंतर्गत वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन अमरीकी डालर तक ईसीबी प्राप्त करने की अनुमति।

  • 15 फरवरी 2008 को अधिसूचित विदेशी मुद्रा विपणनीय बांड (एफसीईबी) योजना, 2008 रिज़र्व बैंक द्वारा चालू कर दी गई है।
  • प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को अनुमति दी गई थी कि उधारकर्ता द्वारा स्वचालित/ अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत बाह्य वाणिज्यिक उधार हासिल करने के लिए वे अचल आस्तियों और वित्तीय प्रतिभूतियों के ऊपर प्रभार निर्मित करके और उधारकर्ता की ओर से विदेशी उधारदाता के पक्ष में कार्पोरेट या निजी गारंटियां जारी करने के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के अधीन ‘अनापत्ति’ प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं।
  • बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे पिछली तिमाही की समाप्ति पर अपनी अक्षत टियर-I पूंजी के 50 प्रतिशत की सीमा तक अथवा 10 मिलियन अमरीकी डालर, जो भी अधिक हो, अपनी विदेशी शाखाओं और प्रतिनिधि बैंक से उधार ले सकते हैं, जैसाकि मौजूदा सीमा 25 प्रतिशत है।
  • जहां आयातक द्वारा अपने विदेशी आपूर्तिकर्ता से सीधे ही आयात बिल/दस्तावेज प्राप्त होते है वहां आयातों के लिए विप्रेषण करने के लिए 1,00,000 अमरीकी डालर की सीमा को बढ़ाकर 3,00,000 अमरीकी डालर कर दिया गया।
  • बिना बैंक गारंटी/आपाती साख-पत्र के माल आयात करने हेतु अग्रिम विप्रेषण की सीमा 1 मिलियन अमरीकी डालर अथवा इसके बराबर से बढ़ाकर 5 मिलियन अमरीकी डालर अथवा इसके बराबर कर दी गई।
  • प्लैटिनम, पैलेडियम, रोडियम और चांदी के आयात के लिए खोले गए साख पत्र की मीयाद लदान की तारीख से 90 दिन तक सीमित कर दी गई।
  • एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी फ्यूचर्स की ट्रेडिंग राष्ट्रीय शेअर बाज़ार (29 अगस्त 2008), मुंबई शेअर बाज़ार (1 अक्तूबर 2008) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज-स्टॉक एक्सचेंज (7 अक्तूबर 2008 से) में प्रारंभ हो गई।
  • भारत में विदेशी संस्थाओं की शाखाओं/संपर्क कार्यलयों के बारे में प्रक्रिया को उदार बनाने और अधिक पारदर्शिता हासिल करने संबंधी अंतिम मार्गदर्शी सिद्धांत दिसंबर 2008 के अंत तक जारी किए जाएंगे।
  • सीसीआइएल द्वारा विदेशी मुद्रा वायदा की निपटान प्रणाली को चालू करने का कार्य एक महीने के भीतर जारी किया जोगा।
  • देशी तेल कंपनियों को विदेशी शेयर बाज़ारों/ओटीसी बाज़ारों में अपने माल-भाड़ा जोखिम को हेज करने की अनुमति दी जाएगी।
  • 3 वर्ष से कम व्यापार ऋण हेतु समग्र लागत उच्चतम सीमा बढ़ाकर 6 माह लिबोर और 200 आधार अंक कर दी गई।

ऋण वितरण

  • अप्रैल 2009 से नाबार्ड द्वारा रखे जा रहे आरआइडीएफ अथवा अन्य वित्तीय संस्थाओं में रखी गई निधियों,जैसा कि रिज़र्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट किया गया है, में अंशदान हेतु राशियां आबंटन करने के प्रयोजन से कमजोर वर्गों को उधार देने के अनुसूचित वाणिज्य बैंक के उप-लक्ष्य में कमी को हिसाब में लिया जाना अप्रैल 2009 से प्रारंभ होगा।
  • बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सामान्य क्रेडिट कार्डों (जीसीसी) के अंतर्गत बकाया क्रेडिट और ‘नो फ्रिल’ खातों के सामने 25,000 रुपये (प्रति खाता) तक के बकाया ओवरड्राफ्ट के 100 प्रतिशत को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि को प्रत्यक्ष ऋण के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र का उधार के लिए निर्दिष्ट 60 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र श्रेणी के अंतर्गत उनके द्वारा धारित ऋण आस्तियां बेच सकते हैं।
  • वर्ष 2007-08 और 2008-09 के लिए केंद्रीय बजट में की गई घोषणाओं के परिणामस्वरूप सरकारी क्षेत्र के बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और ग्रामीण सरकारी बैंकों को सूचित किया गया था कि वे तीन लाख रुपये तक के अल्पावधि उत्पादन ऋण के संबंध में किसानों को 2 प्रतिशत वार्षिक की ब्याज दर माफी दे सकते हैं।
  • बैंकों को सूचित किया गया कि वे फसल उत्पादन के वित्तपोषण हेतु एक चक्रीय ऋण उत्पाद प्रारंभ करने के लिए वर्षा सिंचित एक जिले का चयन करें जिसमें इस सीमा तक का 20 प्रतिशत एक मुख्य घटक के रूप में सतत उपलब्ध रहेगा।
  • रिज़र्व बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 17(3-बी) और 17 (4-ई) के अंतर्गत अस्थायी चलनिधि सहायता के रूप में क्रमश: अनुसूचित वाणिज्य बैंकों और नाबार्ड को कृषि ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना, 2008 के अंतर्गत पहली किस्त के रूप में 25,000 करोड़ रुपये की राशि 3 नवंबर 2008 तक उपलब्ध कराएगा।
  • संभावित व्यवहार्य रुग्ण लघु एवं मध्यम इकाइयों के पुनर्वास के संबंध में नवंबर 2008 के अंत तक बैंकों को विस्तृत मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए जाएंगे।
  • जब तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक परिचालनीय लक्ष्य कमा रहे हैं और उनकी वित्तीय स्थिति सुधार रही है तब तक उन्हें नई शाखाएं खोलने में अधिक लचीलापन दिया जाएगा।
  • उचित प्रौद्योगिकी अपनाने और कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) में पदार्पण करने के लिए एक रोड मैप बनाने के लिए गठित कार्य दल ने अपनी रिपोर्ट आवश्यक कार्रवाई के लिए सभी प्रयोजक बैंकों को भेज दी है।
  • वित्तीय समावेशन के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) आधारित सोल्यूशन के कार्यान्वयन में उनकी प्रारंभिक लागत का एक भाग अदा करने हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्तीय सहायता के प्रावधान की जांच करने के लिए गठित कार्यदल की सिफारिशों की जांच की जा रही है।
  • वित्तीय समेकन की प्रक्रिया को और अधिक कारगर बनाने के लिए बैंकों को फीडबैक देना होगा।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में अतिरिक्त केंद्रों में बैंकिंग सुविधाओं की स्थापना करने हेतु नव प्राण पूंकने के लिए विशेष कार्य दल की सिफारिशें कार्यान्वयनाधीन हैं।
  • वित्तीय साक्षरता और ऋण परामर्श केंद्रों के लिए एक आदर्श योजना अधिसूचित की जाएगी।
  • अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा करने और उसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट दिसंबर 2008 तक प्रस्तुत की जाएगी।
  • बाहरी चेकों की वसूली और ग्राहकों को विवरण/चेक बुक भेजने के लिए बैंकों द्वारा लगाए जानेवाले कूरियर/डल प्रभारों के संबंध में किया गया अध्ययन रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला गया है।

विवेकसम्मत उपाय

  • विदेशी विनियामकों के साथ सीमापारीय पर्यवेक्षा और पर्यवेक्षी सहयोग के अंगीकरण हेतु एक रोड मैप तय करने के लिए गठित आंतरिक कार्यदल मध्य नवंबर 2008 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनेवाली है।
  • वित्तीय समूहों (कांग्लोमरेट) के पर्यवेक्षण से संबंधित दृष्टिकोण पत्र को नवंबर 2008 के अंत तक अंतिम रू दे दिया जाएगा।
  • बैंकों द्वारा गठित विशेष प्रयोजन के साधनों (एसपीबी)/न्यासों की गतिविधयों का अध्ययन करने और एक उचित पर्यवेक्षी ढाँचे का सुझाव देने हेतु एक कार्यदल गठित किया गया है जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
  • जोखिम आधारित पर्यवेक्षण का एक उचित मॉडल विषयक दृष्टिकोण पत्र को दिसंबर 2008 के मध्य तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
  • भारतीय बैंकों के विदेशी परिचालनों हेतु एक संशोधित आफ-साइट चौकसी प्रणाली सहित एक उचित पर्यवेक्षी ढाँचे को नवंबर 2008 के अंत तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
  • बैंकों को उनकी शाखेतर विवरणियों के आधार पर पहचाना गया और ॉााटतों पर विस्तृत जानकारी और उनके निधियों का नियोजन किया गया और संबंधितों को यथोचित कार्रवाई करने के लिए सूचित किया गया।
  • कृषि कमॉडिटी पर बैंकों के एक्सपोज़र की पर्यवेक्षी समीक्षा 31 मार्च 2008 और 30 जून 2008 को की गई।
  • समुद्रपारीय परिवेश में भारतीय बैंक और भारत में कार्यरत विदेशी बैंकों की शाखाओं को 31 मार्च 2008 से बासेल II ढाँचे में लाया गया और शेष बैंकों को 31 मार्च 20099 से बासेल II ढाँचे में लाया गया और शेष बैंकों को 31 मार्च 2009 से बासेल II ढाँचे में लाना अपेक्षित है।
  • चलनिधि जोखिम प्रबंधन से संबंधित दिशानिर्देशों की महत्त्वपूर्ण पुनरीक्षा की जानी है।
  • तनाव जाँच पर दिशानिर्देशों को उन्नत बनाना है।

संस्थागत गतिविधियाँ

  • भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 और भुगतान और निपटान प्रणाली विनियम, 2008 अधिसूचित किए गए और 12 अगस्त 2008 से लागू किए गए।
  • भुगतान और निपटान प्रणालइा अधिनियम, 2007 के खण्उ 18 के तहत बैंकों द्वारा अपनाने हेतु मोबाइल भुगतानों के लिए परिचालनगत दिशानिर्देश 8 अक्तूबर 2008 से जारी किए गए।
  • शहरी सहकारी बैंक क्षेत्रों के लिए अंब्रेला संगठन (संगठनों) को निर्गमन सुविधा देने के लिए यथोचित नियामक और पर्यवेक्षी ढाँचे सहित उपायों का सुझाव देने के लिए गठित कार्यकारी दल को अपनी रिपोर्ट दिसंबर 2008 के अंत तक प्रस्तुत करनी है।
  • सांविधिक चलनिधि अनुपात बनाए रखने संबंधी टियर I में गेर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को दी गई मौजूदा छूट 1 अक्तूबर 2009 से निवल माँग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए और यह छूट 1 अप्रैल 2010 से हटा दी जानी है।
  • टियर I में गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में अपना सांविधिक चलनिधि अनुपात 30 सितंबर 2009 तक उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 7.5 प्रतिशत से अनधिक और 31 मार्च 2010 तक अपनी उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 15 प्रतिशत तक बनाए रखना है।
  • टियर-II में गेर अनुसुचित शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में सांविधक चलनिधि अनुपात 15 प्रतिशत से अनधिक रखने का वर्तमान आदेश 31 मार्च 2010 तक बनाया रखा है।
  • 31 मार्च 2011 के आगे से सभी शहरी सहकारी बैंकों को (गैर अनुसूचित और अनुसूचित) सांविधिक चलनिधि अनुपात उनकी निवल माँग ओर मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत तक सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाए रखना है।
  • जमाराशियाँ स्वीकर न करनेवाली प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआइ) के लिए विवेकपूर्ण मापदण्डों से संबंधित अंतिम दिशानिर्देश 1 अगस्त 2008 को जारी किए गए।
  • परामर्शदात्री पैनल रिपोर्ट और वित्तीय क्षेत्र मुल्यांकन पर समिति (सीएफएसए) की पर्यावलोकन रिपोर्ट दिसंबर 2008 तक जारी करनी है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/555

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