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भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, दिसंबर 2017 जारी की

21 दिसंबर 2017

भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, दिसंबर 2017 जारी की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने छमाही और इस श्रृंखला का 16वां प्रकाशन वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) दिसंबर 2017 जारी की।

एफएसआर भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और वैश्विक और घरेलू कारकों से उत्पन्न जोखिमों के प्रति इसके लचीलेपन पर समग्र आकलन प्रदर्शित करती है। यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा करती है।

प्रणालीगत जोखिमों का समग्र आकलन

  • भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर है। फेडरल रिज़र्व और बैंक ऑफ इंडिया द्वारा मौद्रिक नीति को सामान्य करने के प्रयासों के बावजूद, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय स्थिति उदार है। पण्य-वस्तुओं की गुंजाइश बढ़ रही है। बढ़े हुए भौगोलिक-राजनीतिक जोखिम पण्य-वस्तुओं की कीमतों में संभावित अस्थिरता की ओर संकेत करते हैं।

वैश्विक और घरेलू समष्टि-वित्तीय जोखिम

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था ने गति हासिल की है और वृद्धि की गति संधारणीय प्रतीत हो रही है। उभरते बाजारों के संदर्भ में, वैश्विक वृद्धि के सहारे निर्यात छह वर्षों में अपनी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं।

  • संरचनागत बदलाव के मामले में, सूचना प्रौद्योगिकी प्रेरित वृद्धि संभवतः विश्व को थोड़ा ज्यादा असमान बना रही है।

  • विमुद्रीकरण से राष्ट्रव्यापी वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) के रोल-आउट से जुड़े प्रारंभिक अवरोधों के बाद वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में घरेलू वृद्धि में सुधार हुआ।

  • समग्र निवेश परिवेश चुनौतीपूर्ण है, हालांकि स्थिति ने वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में सुधार दर्शाया है। सुधार के सकारात्मक संकेत – ‘वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में रुकी हुई परियोजनाओं की संख्या और लागत में कमी’, सरकारी व्यय की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रयास, कारोबारी करने की सहजता रैंकिंग, मुडीज द्वारा भारत की सॉवरेन रेटिंग को बढ़ाना तथा बैंकों के पुनर्पूंजीकरण घोषणा से आने वाली तिमाहियों में निवेश भावनाओं को काफी प्रोत्साहन मिलना संभावित है।

  • विमुद्रीकरण की शुरुआत में चलनिधि स्थिति में विस्तार होने से इक्विटी और ऋण म्यूच्युअल फंडों में असाधारण निधि प्रवाह हुआ। पूंजी बाजार में विदेशी संविभाग निवेश (एफपीआई) प्रवाह में उछाल रहा जिसमें ऋण के लिए अधिक प्राथमिकता रही।

वित्तीय संस्थाएं: कार्यनिष्पादन और जोखिम

  • बैंकिंग क्षेत्र के लिए समग्र जोखिम परिसंपत्ति गुणवत्ता संबंधी चिंताओं के कारण बना हुआ है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की क्रेडिट वृद्धि ने मार्च और सितंबर 2017 के बीच सुधार दिखाया है,जबकि सरकारी क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) अपने निजी क्षेत्र के सहयोगियों के पीछे रह गए हैं।

  • बैंकिंग क्षेत्र के सकल अनर्जक अग्रिम (जीएनपीए) अनुपात और दबावग्रस्त अग्रिम अनुपात में मार्च 2017 और सितंबर 2017 के बीच वृद्धि हुई।

  • दबाव परीक्षण से पता चलता है कि आधारभूत परिदृश्य में, बैंकिंग क्षेत्र का जीएनपीएस सितंबर 2017 में सकल अग्रिम के 10.2 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2018 में 10.8 प्रतिशत और आगे सितंबर 2018 तक 11.1 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

  • परिसंपत्ति (आरओए) पर एससीबी रिटर्न मार्च और सितंबर 2017 के बीच 0.4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहे जबकि पीएसबी ने नकारात्मक मुनाफा अनुपात रिकॉर्ड करना जारी रखा है।

  • समग्र रूप से, जोखिम-भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) को पूंजी मार्च 2017 और सितंबर 2017 के बीच 13.6 प्रतिशत से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई।

  • कुल एससीबी ऋण साथ ही जीएनपीए दोनों में बड़े ऋण लेने वालों की हिस्सेदारी में मार्च और सितंबर 2017 के बीच गिरावट आई है।

  • एनबीएफसी क्षेत्र के जीएनपीए कुल अग्रिमों के प्रतिशत के रूप में मार्च 2017 और सितंबर 2017 के बीच बढ़े।

  • नेटवर्क विश्लेषण से पता चलता है कि बैंकिंग प्रणाली में अंतर-संबंधिता की डिग्री 2012 से धीरे-धीरे घट गई है। संयुक्त शोधन क्षमता-चलनिधि संसर्ग विश्लेषण से पता चलता है कि बैंक की चूक के कारण होनेवाले नुकसान में गिरावट आई है।

  • बड़े वित्तीय प्रणाली के परिप्रेक्ष्य से, एससीबी प्रबल घटक रहे जिनकी हिस्सेदारी द्विपक्षीय एक्सपोजर में 47 प्रतिशत रही, इनके बाद म्यूचुअल फंड (एएमसी-एमएफ), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), बीमा कंपनियों, आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (एआईएफआई) का प्रबंधन करनेवाली परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां है।

जोस जे.कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/1713

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