भारतीय रिज़र्व बैंक ने "मुद्रास्फीति के अग्रणी संकेतकों के रूप में डीविज़िया मौद्रिक सूचकांक" विषय पर डीआरजी अध्ययन जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने "मुद्रास्फीति के अग्रणी संकेतकों के रूप में डीविज़िया मौद्रिक सूचकांक" विषय पर डीआरजी अध्ययन जारी किया
2 जून 2010 भारतीय रिज़र्व बैंक ने "मुद्रास्फीति के अग्रणी संकेतकों के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज "मुद्रास्फीति के अग्रणी संकेतकों के रूप में डीविज़िया मौद्रिक सूचकांक" विषय पर डीआरजी अध्ययन जारी किया। प्रो. एम.रामचंद्रन, पाँडिचेरी विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर, रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग के निदेशक श्री राजीब दास और सहायक परामर्शदाता श्री बिनोद बी. भोई इस अध्ययन के सह-लेखक हैं। यह अध्ययन यह सुझाव देता है कि रिज़र्व बैंक भविष्य के मुद्रास्फीतिकारी दबाव की बेहतर समझ के लिए डिविज़िया कुछ मौद्रिक राशियों की वृद्धि दर को नज़दिकी से देख सकता है। रिज़र्व बैंक भविष्य की मुद्रास्फीति के एक संकेतक के रूप में अपनी उपयोगिता के अलावा अनुप्रयोगों में अपनी गुणवत्ता की अधिक जाँच के लिए डिविज़िया मुद्रा के विभिन्न उपायों पर मासिक समयबद्ध आँकड़े जारी करने पर विचार कर सकता है। रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाए गए एकाधिक संकेतकों के अंतर्गत कुल मौद्रिक राशियाँ एक उल्लेखनीय भूमिका निभाती है। कुल राशियों का माप मौद्रिक घटकों के एक सरल जोड़ से किया जाता है जो यह दर्शाते है कि घटक आस्तियाँ उपयुक्त विकल्प है। तथापि, मौद्रिक आस्तियाँ जो मुद्रा स्टॉक के मापन में दिखाई देती है वे दूर के विकल्प है। अत: सरल जोड़ की कुल राशियाँ समग्रता पूर्वग्रह से पीड़ित होती है जो समग्रता के उच्चतर स्तर पर अधिक दिखाई देती है। इस पृष्ठभूमि में यह अध्ययन इस बात की जाँच करता है कि क्या डीविज़िया मात्रा सूचकांक फॉमूर्ला भारत में मौद्रिक नीति की सेटिंग में मुद्रास्फीति के एक अनुमान के रूप में अपने सरल जोड़ के प्रतिकूल भाग से बेहतर है। इस अध्ययन में भारतीय संदर्भ में मुद्रस्फीति के अग्रणी संकेतक के रूप में अपनी भूमिका की प्रयोगिक तुलना के लिए कुल मौद्रिक राशियों के दो आधिकारिक मापन एम2 और एम3 और चलनिधि माप एल1 का प्रयोग किया है। अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष अप्रैल 1993 से जून 2008 की नमूना अवधि के दौरान मुद्रास्फीति के अनुमानकर्ता के रूप में कुल मौद्रिक राशियों के सरल जोड़ से डीविज़िया सूचकांकों की श्रेष्ठता का समर्थन करता है। यह अवधि भारत में उदारीकृत वित्तीय शासन के साथ मेल खाती है। पहला, सहसंबंध गुणांक यह दर्शाते हैं कि कुल मौद्रिक राशियों के सरल जोड़ के मुद्रास्फीति और वृद्धि दरों के बीच एक कमज़ोर सहसंबंध की तुलना में डीविज़िया की कुल मौद्रिक राशियों के वार्षिक हेडलाइन मुद्रास्फीति और वृद्धि दरों के बीच मज़बूत संबंध है। साथ ही, यह पाया गया है कि डीविज़िया मौद्रिक उपायों के संभाव्य लाभ मूल मुद्रास्फीति के दो पारंपरिक उपायों के साथ अपने सहसंबंध के अंतर्गत बढ़ा है। दूसरा, कुल मौद्रिक राशियों के सरल जोड़ की वृद्धि दरों की वैकल्पिक उपायों की तुलना में मुद्रास्फीति का भाग दोनों के बीच कोई संबंध का स्पष्ट साक्ष्य नहीं उपलब्ध कराता है। मुद्रा की वृद्धि दरों पर मुद्रास्फीति का नज़दीकी अवरोही की योग्यता से और अधिक समर्थन मिलता है। उसके विपरित, डीविज़िया कुल मौद्रिक राशियों और मुद्रास्फीति के वृद्धि दरों के बीच एक सकारात्मक संबंध का स्पष्ट साक्ष्य है। इसकी मुख्य विशिष्टता यह है कि जब डीविज़िया मौद्रिक वृद्धि 16 प्रतिशत से अधिक होती है तब अवरोही योग्यता तेज़ गति से बढ़ती है जो यह सुझाव देता है कि कतिपय स्तर से अधिक उसकी वृद्धि मुद्रास्फीतिकारी हो जाती है। तीसरा, एक वैक्टर भूल सुधार नमूना से प्राप्त अर्थमितीय साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि डीविज़िया कुल मौद्रिक राशियों की वृद्धि दरें हेडलाइन मुद्रास्फीति और मूल मुद्रास्फीति उपायों दोनों का बेहतर पूर्वानुमान प्रदान करती है। चौथा, डीविज़िया कुल मौद्रिक राशियों की वृद्धि दरों में आघातों पर मुद्रास्फीति की प्रतिक्रियाएं, तदनुरूपी सरल कुल जोड़ की वृद्धि दरों में आघातों की तुलना में मज़बूत पायी गई। पाँचवा, पूर्वानुमान भूल अंतर संरचना से प्राप्त साक्ष्य यह दर्शाते है कि डीविज़िया कुल मौद्रिक राशियों की वृद्धि दरें एक बहिर्मुखी श्रृंखला है जबकि सरल जोड़ कुल राशियों की वृद्धि दरें भूल-चूक अंतर का पूर्वानुमान अधिकतर मुद्रास्फीति में आघातों को दर्शाता है। इस अध्ययन का समग्र प्रायोगिक साक्ष्य सुस्पष्ट रूप से मूल मुद्रास्फीति के हेडलाइन और/अथवा पारंपरिक उपायों के अनुमानकर्ता के रूप में डीविज़िया कुल मौद्रिक राशियों को उनकी तदनुरूपी सरल जोड़ से श्रेष्ठ सिद्ध करता है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1630 |