विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट
भाग I : विदेशी मुद्रा भंडार के उद्देश्य , सांविधिक उपबंध और उसमें घट-बढ वर्ष 2003 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने पारदर्शिता और प्रकटन के साथ विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन संबंधी प्रमुख नीति और परिचालनगत मामलों की समीक्षा की और अधिक पारदर्शिता लाने एवं प्रकटन के स्तर में वृद्धि लाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया कि विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन के संबंध में अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाए एवं उसे सार्वजनिक किया जाए। इस प्रकार की पहली रिपोर्ट 30 सितंबर, 2003 की स्थिति के अनुसार तैयार की गई और 3 फरवरी 2004 को इसे पब्लिक डोमेन पर प्रदर्शित किया गया । यह रिपोर्ट अब 3 माह के अंतराल में प्रत्येक वर्ष 31 मार्च और 30 सितम्बर की स्थिति के संदर्भ में तैयार की जाती है। 31 मार्च 2011 की स्थिति पर आधारित विदेशी मुद्रा भण्डार की यह 16 वीं रिपोर्ट है। रिपोर्ट 3 भागों में विभाजित है : भाग I में विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के उद्देश्य, सांविधिक उपबंध, विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ और विदेशी मुद्रा भण्डार के परिप्रेक्ष्य में बाहरी देयताएं, बाह्य ऋण का समयपूर्व भुगतान/चुकौती, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी), विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता आदि के संबंध में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के भाग II में विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई जोखिम प्रबंधन प्रणालियों का एक विहगावलोकन प्रस्तुत किया गया है । रिपोर्ट के भाग III में विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई पारदर्शिता और प्रकटीकरण प्रथाओं के संबंध में जानकारी प्रस्तुत की गई है। 1.2 विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के उदेश्य भारत मे विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के मार्गदर्शी उदेश्य विश्व के अन्य कई केंद्रीय बैकों के समान ही हैं । विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता में कई घटकों के कारण व्यापक रूप से परिवर्तन आता है जिनमें देश द्वारा अपनाई गई विनिमय दर प्रणाली, अर्थव्यवस्था के खुलेपन की सीमाएं, देश के सकल घरेलू उत्पाद में विदेशी क्षेत्र का विस्तार और देश में कार्यरत बाजारों का स्वरूप आदि शामिल है। भारत में जहां विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन का दोहरा उद्देश्य तरलता और सुरक्षा को बनाए रखना है, वहीं इसी ढांचे में अधिकतम प्रतिलाभ की नीति भी संरक्षित है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में मुद्राओं, लिखतों, जारीकर्ता और प्रतिपार्टियों के संबंध में व्यापक मानदंड निर्धारित करते हुए विभिन्न विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) और स्वर्ण में विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के लिए आवश्यक व्यापक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम की उपधारा 17(6ए) 17(12), 17(12ए), 17(13) और 33(6) में विदेशी आस्तियों के प्रबंधन के लिए आवश्यक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है । संक्षेप में, विधि द्वारा स्थूल रुप से निम्नलिखित संवर्गों में निवेश के लिए अनुमति प्रदान की गई हैः- I. अन्य केंद्रीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) के साथ जमाराशियां, II. विदेशी वाणिज्य बैंकों के साथ जमाराशियां; III. सरकारी/गारंटीकृत सरकारी देयताओं संबंधी ऋण लिखत, जहां ऋण पत्रों के लिए अवशिष्ट परिपक्वता अवधि 10 वर्षों से अधिक न हो; IV. भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अधिनियम के उपबंधों के अनुसरण में अनुमोदित अन्य लिखत/संस्थाएं और V. कुछ प्रकार के डेरिवेटिव्ज का कारोबार भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा और तरलता बढाने के उद्देदश्य से जारीकर्ता/ प्रतिपार्टियों/निवेश आदि के संबंध में कडे मानदंड निर्धारित करते हुए उचित मागदर्शी सिद्धांत तैयार किए हैं। 1.4 विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ 1.4.1 1991 से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की समीक्षा भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 1991 से काफी वृद्धि हुई है। विदेशी मु्द्रा भंडार मार्च 1991 के अंत में 5.8 बिलियन अमरीकी डालर था । 30 सितंबर 2010 को 292.9 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में 31 मार्च 2011 को विदेशी मुद्रा भंडार 304.8 बिलियन अमरीकी डालर रहा। (सारणी 1 और चार्ट 1) यद्यपि अमरीकी डॉलर और यूरो मध्यवर्ती मुद्राएं हैं और विदेशी मुद्रा आस्तियां अमरीकी ड़ॉलर, यूरो, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन आदि प्रमुख मुद्राओं में धारित की जाती हैं, तथापि विदेशी मुद्रा भंडार का मूल्य केवल अमरीकी डॉलर में ही निर्धारित एवं अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में विदेशी मुद्रा आस्तियों में घट-बढ का मुख्य कारण विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं की खरीद और बिक्री है। इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के कारण उपचित आय और केंद्रीय सरकार द्वारा सहायता के रुप में विदेशों से प्राप्त राशियां भी विदेशी मुद्रा भंडार में ही धारित की जाती हैं। अन्य मुद्राओं में धारित विदेशी मुद्रा आस्तियों के साथ लेनदेन के कारण भी अमरीकी डॉलर में धारित विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर प्रभावित होता है।
1.4.2 विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के स्रोत सारणी 2 में 2010-11 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में हुए परिवर्तन के स्रोतों के विवरणों की तुलना में उसके पहसे के वर्ष में उसी अवधि में हुए परिवर्तनों के विवरण दिए गए हैं। भुगतान संतुलन के आधार पर (अर्थात मूल्यांकन प्रभाव के अलावा) विदेशी मुद्रा भंडार में 2009-10 के दौरान 13.4 बिलियन अमरीकी ड़ॉलर की वृद्धि की तुलना में 2010-11 के दौरान 13.1 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि हुई। प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में अमरीकी ड़ॉलर के अवमूल्यन के कारण 2009-10 के दौरान 13.6 बिलियन अमरीकी डॉलर की मूल्यांकन वृद्धि की तुलना में 2010-11 के दौरान 12.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की मूल्यांकन वृद्धि हुई। तदनुसार 2010-11 के दौरान कुल विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि के 49.2 प्रतिशत मूल्यांकन वृद्धि हुई ।
1.5 बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भण्डार विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि को देश की कुल बाह्य देयताओं के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। मार्च 2011 के अंत को भारत की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) (जो कि देश की बाह्य वित्तीय आस्तियों और देयताओं के स्टॉक का संक्षिप्त रिका़र्ड है) सारणी 3 में प्रस्तुत है।
मार्च 2011 के अंत में निवल विदेशी देयताएं (आईआईपी) ऋणात्मक (-)218.9 बिलियन अमरीकी डॉलर थीं, अर्थात विदेशी देयताएं विदेशी आस्तियों से अधिक थीं। निवल विदेशी देयताएं (आईआईपी) मार्च 2009 और 2010 के अंत में क्रमशः (-)66.6 और (-)158.4 बिलियन अमरीकी डॉलर रहीं । 1.6 विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी उतार-चढ़ावों को सहने की किसी देश की क्षमता को नापने संबंधी महत्वपूर्ण मापदण्ड के रुप में उभर रही है। पूंजी प्रवाहों के बदलते स्वरुप के साथ आयात के लिए सुरक्षित पूंजी के अनुसार विदेशी मुद्रा भण्डार पर्याप्तता का मूल्यांकन करने का पारंपरिक दृष्टिकोण विस्तृत हो गया है और अब इसमें विभिन्न प्रकार के पूंजी प्रवाहों के आकार, संरचना और जोखिम के स्वरुप के साथ-साथ बाहरी उतार-चढ़ावों के प्रकार जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं; से संबंधित अन्य कई मानदण्ड भी शामिल किए गए हैं। भुगतान संतुलन पर बनी उच्चस्तरीय समिति, जिसके अध्यक्ष डॉ.सी. रंगराजन, तत्कालीन गवर्नर, भारिबैंक थे , द्वारा यह सुझाव दिया गया कि विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता निर्धारित करते समय 3 से 4 माह के आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर) के पारंपरिक मापदंड के अतिरिक्त भुगतान संबंधी दायित्वों की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए । 1997 में श्री एस.एस.तारापोर( भारिबैंक के तत्कालीन उप गवर्नर) की अध्यक्षता में पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के लिए वैकल्पिक मानदंडों का सुझाव दिया गया जिसमें लेनदेन आधारित निर्देशांकों के अतिरिक्त मुद्रा और ऋण आधारित निर्देशांक भी शामिल किए गए । पूर्णतर पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति (अध्यक्ष श्री एस.एस.तारापोर, जुलाई 2006) का भी यही मत रहा र्है । हाल के वर्षों में नए उपायों के लागू किए जाने से विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का मूल्यांकन प्रभावित हुआ है। ऐसे ही एक उपाय के अनुसार प्रयोज्य विदेशी मुद्रा भंडार अगले वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा ऋणों के अनुसूचित परिशोधन (रोल-ओवर के बगैर) से अधिक होना चाहिए । एक अन्य उपाय ' जोखिम में चलनिधि ' नियम पर आधारित है जिसमें किसी देश के संदर्भ में संभावित जोखिमों का ध्यान रखा जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार यह अपेक्षित है कि वित्तीय स्थिति को प्रभावित करनेवाली मदों; जैसेकि विनिमय दर, उपभेक्ता वस्तु कीमतें , ऋण सीमा (क्रेडिट स्प्रेड) आदि जैसे पूंजी लेखा प्रवाहों के संभाव्य परिणामों की विस्तार-सीमा के अंतर्गत उस देश की विदेशी मुद्रा तरलता की स्थिति का परिकलन किया जाए। भारिवैंक विदेशी मुद्रा भंडार के "जोखिम में चलनिधि" (एलएआर) का अंदाज लगाने के लिए अंत:प्रेरणा और जोखिम प्रतिमानों के आधार पर कार्य कर रहा है। आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर) मार्च 2010 के अंत में 11.1 माह से कम होकर मार्च 2011 के अंत में 9.6 माह हो गयी । लघु अवधि ऋण** का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 2010 के अंत तक 18.8 प्रतिशत था और मार्च 2011 के अंत तक 21.3 प्रतिशत तक बढ गया। अ़स्थिर पूंजी प्रवाह (आवर्ती संविभाग अंतर्वाहों और लघु अवधि ऋण के समावेश के लिए व्याख्यित) का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 2010 के अंत में 58.1 प्रतिशत से मार्च 2011 के अंत तक 67.3 प्रतिशत तक बढ गया । 1.7 प्रारक्षित स्वर्ण का प्रबंधन भारतीय रिजर्व बैंक के पास 557.75 टन सोना है जो 31 मार्च 2011 की समाप्ति के मूल्य निर्धारण के अनुसार कुल विदेशी मुद्रा भंडार के करीब 7.5 प्रतिशत के बराबर है। इस में से 265.49 टन सोना (65.49 टन सोना 1991 से और 200 टन सोना नवंबर 2009 से) विदेशों में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बीआईएस के पास जमा के रुप में /सुरक्षित अभिरक्षा में रखा गया है। 1.8 विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरुप और उससे आय सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के व्यापक अनुसरण में बने मौजूदा मानदण्डों के अनुरुप विदेशी मुद्रा आस्तियों का निवेश बहु मुद्रा, बहु आस्ति संविभागों में किया जाता है। मार्च 011 के अंत की स्थिति के अनुसार 274.3 बिलियन अमरीकी डॉलरों की कुल विदेशी मुद्रा आस्तियों में से 142.1 बिलियन अमरीकी डॉलरों का निवेश प्रतिभूतियों में किया गया, 126.9 बिलियन अमरीकी डॉलर अन्य केंद्रीय बैंकों, अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में जमा किए गए और 5.3 बिलियन अमरीकी डॉलर बाह्य आस्ति प्रबंधकों (ईएएम्स) के पास जमा किए गए (सारणी 4) । विदेशी मुद्रा भंडार का एक छोटा हिस्सा इस उद्देश्य से बाह्य आस्ति प्रबंधकों को सौंपा जाता है ताकि उनके माध्यम से उनके कौशल और बा़जार संबंधी अनुसंधान का लाभ उठाया जा सके।
विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण से प्राप्त आय की दर, मूल्यह्रास की गणना के बाद सामान्यत: निम्न वैश्विक ब्याज दर परिवेश को प्रतिबिंबित करते हुए जुलाई 2008 – जून 2009 के दौरान 4.16 प्रतिशत से घटकर जुलाई 2009 – जून 2010 के दौरान 2.09 प्रतिशत हो गई। अक्तूबर 2010 से मार्च 2011 तक के अर्ध वर्ष के दौरान किसी भी ऋण का समय-पूर्व भुगतान नहीं किया गया । 1.9.2 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी) फरवरी 2003 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपनी वित्तीय लेनदेन योजना में भारत को ऋणदाता के रुप में प्राधिकृत किया गया । अक्तूबर 2010 से मार्च 2011 तक के अर्ध वर्ष के दौरान आयर्लैंड को 160 मिलियन एसडीआर और ग्रीस को 68 मिलियन एस़डीआर उपलब्ध कराए गए। मार्च 2011 के अंत तक कुल 1422.16 मिलियन एसडीआर खरीदे गए । एफटीपी की पुनर्खरीद लेनदेनों में नवंबर 2005 से भारत को शामिल किया गया। अक्तूबर 2010 से मार्च 2011 तक की अवधि में पुनर्खरीद संबंधी कोई लेनदेन नहीं किया गया। 1.9.3 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ नोट खरीद करार के अंतर्गत निवेश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के उधार देने योग्य स्रोतों को ताकत देने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ नोट खरीद करार (एनपीए) किया है जिसके अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 10 बिलियन अमरीकी डॉलर के सममूल्य राशि के आईएमएफ नोट खरीदने के लिए वचनबद्ध है। मार्च 2011 के अंत तक भारतीय रिजर्व बैंक ने नोट खरीद करार (एनपीए) के अंतर्गत 1143.5 मिलियन अमरीकी डॉलर के नोट खरीदे है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संशोधित एवं विस्तारित नई उधार व्यवस्धा (एनएबी) 11 मार्च 2011 से लागू हो गई है। भारत वचनबद्ध है कि वह इस व्यवस्था के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को 8740.82 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराएगा, जिसमें एनपीए के अंतर्गत स्वीकृत बचनबद्धता भी सम्मिलित है। एनएबी के अंतर्गत भारत सरकार हिस्सेदार है जबकि एनएबी संबंधी दावों का नियंत्रण भारतीय रिजर्व बैंक के पास है। भाग II: जोखिम प्रबंधन सशक्त जोखिम प्रबंधन कुशल विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी नीति बनाते समय विदेशी मुद्रा के नियोजन से जुड़े वित्तीय और परिचालनगत जोखिमों के नियंत्रण और प्रबंधन पर जोर दिया जाता है। मुद्रा संरचना और निवेश सबंधी नीति के साथ विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी व्यापक रणनीति भारत सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की जाती है। जोखिम प्रबंधन संबंधी कार्यों का मुख्य उद्देश्य होता है सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं, विकसित लेखाकरण नीति, सभी परिचालनों में जोखिम संबंधी सतर्कता की प्रणाली और उपलब्ध कौशल और विशेषज्ञता के विकास के लिए प्रभावी संसाधन आबंटन के साथ-साथ सक्षम प्रशासनिक संरचना का विकास सुनिश्चित करना । आगे के परिच्छेदों में विदेशी मुद्रा भंडार के विनियोजन के साथी अर्थात क्रेडिट जोखिम, बाजार जोखिम, तरलता जोखिम, और परिचालनगत जोखिम और इन जोखिमों के प्रबंधन के लिए कार्यरत प्रणालियों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गई है। क्रेडिट जोखिम को उस संभावना के रुप में परिभाषित किया जाता है जिसमें उधारकर्ता अथवा प्रतिपार्टी स्वीकृत शर्तों के अनुसार दायित्वों की पूर्ति करने में असफल रहती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में विदेशी मुद्रा भंडार के निवेश से उत्पन्न क्रेडिट जोखिम के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक बेहद संवेदनशील है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के उच्च दर वाले बाण्डों / खजाना बिलों में निवेश किया जाता है। आगे, जमाराशियां अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) अथवा अन्य केंद्रीय बैंकों में रखी जाती है। वर्ष 2008 के दूसरे अर्ध वर्ष और वर्ष 2009 के दौरान अमरीकी वित्तीय बाजारों में उभरी साख समस्या और अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर उसके संक्रामक प्रभाव से उत्पन्न वैश्विक वित्तीय समस्याओं के कारण साख जोखिम पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रतिपार्टियों के चयन के लिए कड़े मापदंड अपनाना जारी रखा है । अनुमोदित प्रतिपार्टियों के संबंध में स्वीकृत सीमा और ऋण के स्तर की निरंतर रूप से निगरानी रखी जाती है । साथ ही प्रतिपार्टियों संबंधी गतिविधियों पर निरंतर रुप से नजर रखी जाती है। इस प्रकार के निरंतर अभ्यास का मूल उद्देश्य यह निर्धारित करना होता है कि किसी प्रतिपार्टी अनुमोदित संस्था का दर्जा संभावित खतरे के दायरे में तो नहीं आ रहा है। बाजार जोखिम विविध मुद्रावाले संविभाग के लिए मूल्यांकन में संभाव्य परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करते हैं जोकि वित्तीय बाजारों की कीमतों जैसेकि ब्याज दर, विदेशी मुद्रा विनिमय दर, इक्विटी मूल्य और कमोडिटी मूल्य आदि के घट-बढ का परिणाम होते हैं। केंद्रीय बैंकों के लिए बाजार जोखिम का प्रमुख स्रोत होता है मुद्रा जोखिम, बाजार दर जोखिम और स्वर्ण की कीमतों में घट-बढ । मुद्रा जोखिम विनिमय दरों की अनिश्चितता के कारण उत्पन्न होती है । विभिन्न मुद्राओं के मामले में उनके विनिमय दर में होनेवाली संभाव्य घट-बढ और उनसे मध्यम और दीर्घकालीन अपोक्षाओं (जैसेकि मध्यवर्ती मुद्रा में विदेशी मुद्रा भंडार का बडा हिस्सा रखना, देश की बदलती विदेश व्यापार संबंधी रुपरेखा के अनुरूप अनुमानित विदेशी मुद्रा भंडार की मुद्रा रुपरेखा (करेंसी प्रोफाईल), विविधता का लाभ आदि) के आधार पर दीर्घकालीन निवेश संबंधी निर्णय लिए जाते हैं। नियमित आधार पर नीति की समीक्षा द्वारा निर्णयों की पुष्टि की जाती है। ब्याज दर जोखिम के प्रबंधन का महत्वपूर्ण पहलू है ब्याज दर के परिवर्तनों के विपरीत प्रभावों से यथासंभव निवेश के मूल्य को संरक्षित रखना । विदेशी मुद्रा भंडार संविभाग के ब्याज दर की संवेदनशीलता बेंचमार्क अवधि और बेंचमार्क से अनुमोदित अंतर से निर्धारित की जाती है। निवेश रणनीति का केंद्र-बिंदु संविभाग की ब्याज दर जोखिम को न्यूनतम रखने की आवश्यकता के आसपास रहता है ताकि विपरीत ब्याज दर परिवर्तनों से उत्पन्न हानि को न्यूनतम रखा जा सके। तरलता जोखिम में आवश्यकता के अनुसार बिना किसी लागत के किसी लिखत को बेच अथवा रोक न लगा पाने की जोखिम अंतर्निहित रहती है। किन्हीं अप्रत्याशित अथवा अत्यावश्यक जरुरतों की पूर्ति करने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा भंडार में सदैव उच्च स्तर की तरलता रखी जाती है। किसी विपरीत गतिविधि को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए इस संविभाग में उच्च स्तर की तरलता को बनाए रखने की आवश्यकता निवेश रणनीति में बाधक बन जाती है। लिखतों के चयन पर संविभाग की तरलता निर्भर रहती है । जैसेकि कुछ बाज़ारों में राजकोषीय प्रतिभूतियां बडी़ संख्या में बाज़ार में मूल्य को ज्यादा प्रभावित किए बगैर बेची जा सकती है और इसलिए उन्हें तरल माना जाता है । वास्तव में बीआईएस, विदेशी वाणिज्य बैंकों और केंद्रीय बैंकों में धारित मीयादी जमा राशियों को और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा जारी प्रतिभूतियों को छोड़कर सभी प्रकार के निवेशों में उच्च स्तर की तरलता होती है , जो अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित किए जा सकते हैं । किसी अप्रत्याशित / आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काफी अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित होनेवाले विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कड़ी नज़र रखी जाती है । II.1.4 परिचालनगत जोखिम और नियंत्रण प्रणाली वैश्विक रुझान के अनुरूप परिचालनगत जोखिम नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाओं को सक्षम करने की ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है । महत्वपूर्ण परिचालनगत प्रक्रियाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है । आंतरिक रूप से अग्र और पश्च कार्यालय के कार्यों को पूरी तरह से अलग कर दिया गया है और आंतरिक नियंत्रण प्रणाली द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि डील कॅप्चर , डील प्रोसेसिंग औरनिपटान के स्तरों पर कई जांच बिंदु सुनिश्चित किए गए हैं । डील प्रोसेसिंग औरनिपटानप्रणाली भीआंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अधीन है जोकि वन टाइम डेटा एंट्री तत्व पर आधारित है और भुगतान अनुदेशों को जारी करने की अनुमति विविध स्तर के अधिकारियों को प्रदान की गई है । सभी आंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अनुपालन के लिए समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली कार्यरत है । आगे नियमित रूप से आंकडों का मिलान किया जाता है । इस उद्देश्य के लिए रिज़र्व बैंक की आंतरिक व्यवस्था के रूप में वार्षिक निरीक्षण और बाहरी लेखाकारों द्वारा लेखों की सांविधिक जांच के अलावा डीलिंग रूम के लेनदेनों की लेखापरीक्षा के लिए विशेष लेखाकार भी नियुक्त किए जाते हैं । विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी महत्वपूर्ण क्षेत्रों की गतिविधियों / परिचालनों को सम्मिलित करनेवाला एक व्यापक सूचना तंत्र है । इस प्रकार की सूचना वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को आवधिक रूप से अर्थात दैनिक,साप्ताहिक,मासिक,त्रैमासिक, अर्ध-वार्षिक और वार्षिक अंतराल पर जैसा भी मामला हो और जानकारी जितनी संवेदनशील हो , तदनुसार प्रदान की जाती है । रिज़र्व बेंक अपने व्यापार संबंधी अदायगी करने और प्रतिपार्टियों , बैंकों जिनके साथ नोस्ट्रो खाते रखे गए हैं , प्रतिभूतियों के अभिरक्षकों और अन्य कारोबारी भागीदारों को वित्तीय संदेश भेजने के लिए 'स्विफ्ट' प्रणाली का प्रयोग करता है । रिज़र्व बैंक के बाह्य निवेश और परिचालन विभाग की सूचना सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (आई एस एम एस ) आईएसओ 27001 के मानकों के प्रावधानों के अनुरूप हैं । भाग III : पारदर्शिता और प्रकटन भारतीय रिज़र्व बेंक विदेशी मुद्रा बाजार एवं विदेशी मुद्रा बाजार में अपने परिचालनों से संबंधित आंकडे, देश की बाह्य आस्तियों और देयताओं संबंधी स्थिति और विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण के नियोजन के माध्यम से प्राप्त आय से संबंधित आंकडें साप्ताहिक सांख्यिकी अनुपूरक (डब्ल्यूएसएस), मासिक बुलेटिन, वार्षिक रिपोर्टों के माध्यम से आवधिक प्रेस प्रकाशनों द्वारा सार्वजनिक करता है । परदर्शिता और प्रकटीकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बेंक का दृष्टिकोण इस विषयक उत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों के अनुरूप रहता है । भारतीय रिज़र्व बेंक विश्व भर के उन 68 केंद्रीय बैंकों में से एक है जिन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी विस्तृत आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आंकड़ा प्रसार मानक (एसडीडीएस) टेम्प्लेट को अपनाया है । ये आंकड़े भारतीय रिज़र्व बेंक की वेबसाइट पर मासिक आधार पर उपलब्ध कराए जाते हैं । **(2005-06 से 180 दिनों तक आपूर्तिकर्ता के ऋण और एफआईआई निवेश का सरकारी खजाना बिल और अन्य लिखतों में समावेश के साथ और आगे मार्च 2007 में बैंकिंग प्रणाली की बाह्य ऋण देयताओं और विदेशी केंद्गीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के समावेश के साथ पुनर्व्याखित ) |