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अनुसंधान अनुसंधान

बाह्य अनुसंधान योजनाएं

विकास अनुसंधान समूह के माध्यम से रिज़र्व बैंक द्वारा समर्थित बाह्य अनुसंधान गतिविधियाँ

रिजर्व बैंक (एतदोपरांत ‘बैंक’) में विकास अनुसंधान समूह (डीआरजी) का गठन नवंबर 1991 में आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग (डीईपीआर) के हिस्से के रूप में किया गया था जिसका उद्देश्य वर्तमान रुचि के विषयों पर दृढ़ विश्लेषणात्मक और अनुभवजन्य निरूपणों द्वारा समर्थित नीति-उन्मुख त्वरित और प्रभावी अनुसंधान करना था। अर्थशास्त्र, बैंकिंग, वित्त और बैंक की रुचि के अन्य विषयों में सैद्धांतिक और गुणात्मक/आँकड़ापरक (क्वान्टिटेटिव) अनुसंधान और शिक्षण/प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए डीआरजी के माध्यम से बैंक व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं/ विशेषज्ञों और विश्वविद्यालयों/अनुसंधान संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। बैंक निम्नलिखित अनुसंधान गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है:

I. RBI Professorial Chairs and Corpus Fund

I.आरबीआई पेशेवर पीठ और आधारभूत निधि

रिज़र्व बैंक ने भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों और शोध संस्थाओं में आरबीआई पेशेवर पीठ (प्रोफेसनल चेयर्स) स्थापित किए हैं जिसका प्रमुख उद्देश्य बैंक के कार्य से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान व ज्ञानार्जन में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है। योजना के अंतर्गत संबंधित विश्वविद्यालय/शोध संस्था में बैंक कानूनन लागू करार के साथ एक आधारभूत निधि (कॉर्पस फ़ंड) तैयार करता है। आरबीआई पीठों की स्थापना के लिए संबंधित संस्थाओं के साथ बैंक द्वारा हस्ताक्षरित करार से उस संस्था/पीठ प्रोफेसरों को दैनिक कार्य में स्वायत्तता मिलती है। संबंधित संस्था को उस कॉर्पस फ़ंड के लिए एक अलग खाता (अकाउंट) मेंटेन करना होगा तथा करार के दिशा निर्दशों के अनुसार उसके द्वारा मैनेज की जा रही आधारभूत निधि की राशि के निवेश के लिए एक निवेश समिति बनानी होगी। आधारभूत निधि (कॉर्पस फ़ंड) के ब्याज से होने वाली आय को अनुसंधान व शिक्षण की गतिविधियों में लगाना होगा न कि बुनियादी व्यवस्थाओं (इन्फ़्रास्ट्रक्चर) के विकास के लिए। संबंधित संस्था को कॉर्पस फ़ंड के आय व व्यय का विवरण देते हुए एक लेखापरीक्षित ‘उपयोग प्रमाणपत्र’ जमा करना होगा।

आरबीआई पेशेवर पीठ (प्रोफेशनल चेयर) की मंजूरी के मानदंड मोटे तौर पर इस प्रकार हैं:

नियमित पीठ (चेयर) प्रोफेसर्स अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में, देश में छात्रों को पढ़ाकर ज्ञान प्रदान करने के अलावा, शोध आलेख, वर्किंग रिसर्च पेपर्स और पुस्तकों के रूप में प्रकाशित शोध कार्यों, सरकार / सार्वजनिक क्षेत्र के निकायों के लिए परियोजना रिपोर्ट तैयार करने व सम्मेलनों के आयोजन द्वारा अनुसंधान व नीति निर्माण में योगदान देते रहे हैं।

II. Financial support for Publication of Research Journals

II. अनुसंधान पत्रिकाओं (रिसर्च जर्नल्स) के प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता

रिज़र्व बैंक अलाभार्थ पेशेवर समाजों (सोसायटियों) / अनुसंधान संघों को अर्थशास्त्र, अर्थमिति और संबंधित विषयों पर पत्रिकाओं के प्रकाशन में आने वाली लागत का एक अंश देकर वित्तीय सहायता प्रदान करता है। जनसांख्यिकी, कृषि अर्थशास्त्र, कृषि विपणन, स्वास्थ्य अर्थशास्त्र, अर्थमिति, विकास अर्थशास्त्र, मौद्रिक अर्थशास्त्र आदि जैसे विविध क्षेत्रों में प्रकाशनों के लिए भी वित्तीय सहायता दी जाती है।

आवेदन जमा करना

कोई भी अलाभार्थ शैक्षणिक / शोध संस्था प्रकाशन हेतु वित्तीय अनुदान के लिए एक वित्तीय वर्ष में केवल एक बार बैंक को आवेदन करने का पात्र है।

आवेदन में प्रस्तुत किए जाने वाले विवरण

अनुसंधान पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए धन का आवेदन करने वाले संस्थान बैंक को जाँच के लिए निम्नलिखित विवरण दें:

  •  संस्था का नाम

  • अलाभार्थ संस्था है या नहीं

  • पत्रिका (जर्नल) का नाम

  • प्रकाशन का दिनांक

सह-प्रायोजकों की सूची

  • प्रकाशन के लिए सटीक बजट अनुमान (विभिन्न प्रमुख शीर्षों, और अन्य प्रायोजकों द्वारा वचनबद्ध राशि का विवरण देते हुए)।

सह प्रायोजक के बारे में

चूँकि बैंक जाँच के बाद प्रकाशन की लागत का केवल एक अंश ही देता है, किन्हीं सह-प्रायोजकों या प्रकाशक द्वारा अपने स्रोतों से पैसा खर्च करने की प्रतिबद्धता या संकेत के बिना किसी भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा।

अनुपालन

  • संस्था को उक्त प्रकाशन जारी होने की तारीख से एक महीने के भीतर इसकी दो प्रतियों के साथ किसी चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा जारी किया गया उपयोग प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है।

  • अनुपालन न होने पर, बैंक को भविष्य के अनुरोधों को अस्वीकार करने का अधिकार है।

III. Financial Support for Conferences/Seminars/Workshops

III. सम्मेलनों/ सेमिनारों/कार्यशालाओं के लिए वित्तीय सहायता

रिज़र्व बैंक पेशेवर निकायों/ शोध संगठन और विश्वविद्यालयों/ शोध संस्थाओं को भी बैंक के लिए प्रासंगिक क्षेत्रों में सम्मेलनों/ सेमिनारों/ कार्यशालाओं (एतदोपरांत कार्यक्रम/ इवेंट)के लिए वित्तीय सहायता देता है।
  • कोई भी अकादमिक शोध संस्था अनुदान के लिए एक वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में केवल एक बार बैंक को आवेदन प्रस्तुत करने के लिए पात्र है।

  • सभी अनुरोध कार्यक्रम/ इवेंट के कम-से-कम दो महीने पहले प्रस्तुत किए जाएं।

बैंक अनुदान पर विचार के लिए संस्था से निम्नलिखित जानकारी माँग सकता है:

  • सेमिनार/ कार्यशाला/सम्मेलन का आयोजन करने वाली संस्था का नाम।

  • कार्यक्रम (इवेंट) का नाम।

  • प्रस्तावित कार्यक्रम के विषय व उद्देश्य।

  • आमंत्रितों/ विशेषज्ञों/ पैनलिस्टों की प्रत्याशित संख्या।

  • कार्यक्रम की तिथि/ अवधि।

  • कार्यक्रम (इवेंट) का स्थान (वेन्यू)।

  • सह-प्रायोजकों की सूची।

    • बाहरी सह-प्रायोजक

    • आंतरिक सह-प्रायोजक

  • कार्यक्रम के लिए विस्तृत बजट अनुमान (विभिन्न प्रमुख शीर्षों, और अन्य प्रायोजकों द्वारा वचनबद्ध राशि का विवरण देते हुए)

चूँकि बैंक इवेंट को अंशत: ही प्रायोजित करता है, बिना किसी (किन्हीं) सह-प्रायोजक(कों) के किसी भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा।

  • उक्त कार्यक्रम (इवेंट) की समाप्ति के दिनांक से एक महीने के भीतर कार्यक्रम की कार्यवाही के साथ किसी सनदी लेखाकर (चार्टर्ड एकाउंटेंट) द्वारा जारी किया गया उपयोग प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है।

  • उक्त अवधि में अनुपालन न होने पर, बैंक संबंधित संस्था से प्राप्त होने वाले भविष्य के अनुरोधों को अस्वीकार करने का अधिकार रखता है।

IV. Scholarship Scheme for Faculty Members from Academic Institutions

IV. अकादमिक (शैक्षिक) संस्थाओं के संकाय सदस्यों के लिए स्कॉलरशिप योजना

संकाय सदस्यों के लिए छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) योजना का उद्देश्य ऐसे विद्वानों को साथ लाना है जो महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं को प्रारंभ करने और सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने में सक्षम हों और इस प्रकार बैंक के शोध जगत में योगदान दें। रिज़र्व बैंक मौद्रिक और वित्तीय अर्थशास्त्र, बैंकिंग, वास्तविक क्षेत्र के मुद्दों और बैंक प्रयोजन के अन्य क्षेत्रों में अल्पकालिक शोध करने के लिए भारत में किसी भी यूजीसी-मान्यता प्राप्त संस्थान में अर्थशास्त्र या वित्त पढ़ाने वाले पूर्णकालिक संकाय सदस्यों को आमंत्रित करता है।

योजना के व्यापक उद्देश्य निम्न हैं:

  •  संकाय सदस्यों और छात्र समुदाय के बीच बैंक की गतिविधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना; तथा
  •  अर्थशास्त्र और/ या वित्त पढ़ाने वाले संकाय सदस्यों को बैंक के विभिन्न क्षेत्रों/ गतिविधियों की जानकारी देना।

योजना के लिए पात्रता मानदंड इस प्रकार हैं:

  • भारत में किसी भी यूजीसी-मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान में अर्थशास्त्र और/ या वित्त पढ़ाने वाले पूर्णकालिक संकाय (फैकल्टी)।

  • भारतीय नागरिक।

  • आयु 55 वर्ष से कम।

  • उन उम्मीदवारों को वरीयता दी जाएगी जिन्हें पूर्व में छात्रवृत्ति नहीं दी गई है।

विजिटिंग फैकल्टी के लिए शोध के प्रमुख विषय बैंक द्वारा तय किए जाएंगे।

  • योजना हर साल चलाई जाएगी।

  • भरे हुए आवेदन विज्ञापन की तारीख से एक महीने के भीतर बैंक को प्राप्त हो जाने चाहिए।

  • पात्र उम्मीदवारों की सूची तैयार होने के बाद एक महीने के भीतर उम्मीदवारों का साक्षात्कार होगा।

  • उम्मीदवारों के चयन की तारीख से तीन महीने के भीतर स्कॉलरशिप (छात्रवृत्ति) योजना प्रारंभ होगी।

बैंक को इसके बारे में जनता से निम्नलिखित में से किसी/सभी तरीकों से संप्रेषण का अधिकार है :

  • देशी भाषा के प्रेस सहित भारत भर के प्रमुख समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करना।

  • आरबीआई की वेबसाइट पर विज्ञापन का प्रदर्शन।

  • अपने क्षेत्रीय निदेशकों के माध्यम से कॉलेजों/ विश्वविद्यालयों/ अन्य शैक्षणिक संस्थानों के पूर्णकालिक संकाय की जानकारी में इसे लाना।

  • चुनिंदा विश्वविद्यालयों/शोध संस्थाओं को सीधे भेजी गई सूचना।

  • आवेदन हार्ड कॉपी में निदेशक, विकास शोध समूह, आर्थिक और नीति शोध विभाग, 7वीं मंजिल, केंद्रीय कार्यालय भवन, भारतीय रिज़र्व बैंक, फोर्ट, मुंबई - 400 001 को भेजा जाए। विस्तृत जीवन-वृत्त (सीवी) और अधिकतम 1000 शब्दों के शोध प्रस्ताव के साथ आवेदन भेजा जाए।

  • आवेदन की सॉफ्ट प्रति को ईमेल पर भी भेजा जा सकता है।

प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अधिकतम पांच संकाय सदस्यों पर विचार किया जाएगा। बैंक, अपने निर्णय से, किसी भी वर्ष के लिए संकाय की संख्या बदल सकता है।

परियोजना की अवधि अधिकतम तीन महीने है।

निम्नलिखित मुख्य सुविधाएं दी जाएंगी:

  • भारत में कार्य-स्थल से और आरबीआई केंद्रीय कार्यालय, मुंबई से इकोनॉमी क्लास वापसी हवाई किराया।
  • तीन महीने के लिए मासिक भत्ते का भुगतान। परियोजना / शोध पत्र के पूरा होने पर और बैंक द्वारा उसकी स्वीकृति पर, मासिक पारिश्रमिक के अलावा मानदेय का भुगतान किया जाएगा।
  • यह योजना मुख्य रूप से आरबीआई, मुंबई के केंद्रीय कार्यालय विभागों में क्रियाशील रहेगी। कुछ मामलों में, रिज़र्व बैंक चयनित उम्मीदवार को आरबीआई के चुनिंदा क्षेत्रीय कार्यालयों में भी शोध करने के लिए सूचित कर सकता है। हालाँकि, बैंक 2 से 3 महीने की अवधि के दौरान उम्मीदवारों को अध्ययन के लिए अपने संस्थान से काम करने का विकल्प प्रदान कर सकता है।

चयनित विद्वान के निम्नलिखित उत्तरदायित्व होंगे:

  • विद्वान को आरबीआई की शोध गतिविधियों में योगदान देने वाला एक शोध पत्र / परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत करना होगा।

  • विद्वान (स्कॉलर) को रिज़र्व बैंक, मुंबई में एक सेमिनार में अपने कार्य की प्रस्तुति देनी होगी।

  • यदि वह स्कॉलर अपने शोध कार्य को अन्यत्र प्रकाशित करना चाहे, तो वह रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति से ऐसा कर सकता है।

परियोजना के पूरा होने और उसके बाद अंतिम रिपोर्ट जमा होने के बाद, यदि विद्वान (स्कॉलर) आरबीआई के बाहर शोध पत्र प्रकाशित करना चाहे, तो उसे निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करना होगा –

  • पत्र को इस अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) के साथ प्रकाशित किया जाए कि - "अध्ययन / पत्र में व्यक्त विचार केवल लेखक के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं"।

  • यदि विद्वान भारतीय रिज़र्व बैंक में किसी के प्रति आभार प्रकट करना चाहता है, तो पूर्वानुमति के बाद ही ऐसा किया जा सकता है।

  • उक्त अध्ययन को 'आरबीआई वित्त-पोषित परियोजना (आरबीआई फ़ंडेड प्रोजेक्ट)' नहीं माना जाए। 

V. Programme Funding Scheme

V. कार्यक्रम निधीयन योजना (प्रोग्राम फ़ंडिंग स्कीम)

कार्यक्रम निधीयन (कार्यक्रम फ़ंडिंग) योजना उन दीर्घावधि शोध परियोजनाओं के लिए है जो बैंक के लिए विशिष्ट महत्व रखती हैं। बैंक उभरते क्षेत्रों जैसे डिजिटल अर्थव्यवस्था, बिग डेटा एनलिटिक्स, ई-कॉमर्स, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, फिनटेक, आपूर्ति शृंखला और वैश्विक स्पिलओवर में शोध संबंधित कार्यकलाप को भी प्रोत्साहित करता है। योजना की निम्नलिखित विशेषताएं होंगी:

a. विश्वविद्यालयों/ शोध संस्थानों से प्राप्त शोध कार्यक्रमों की वार्षिक योजना (विस्तृत बजट सहित) को डीआरजी प्रोसेस करेगा और विचार/ अनुमोदन के लिए शीर्ष प्रबंध तंत्र को प्रस्तुत करेगा।
b.योजना के तहत निधीयन (फ़ंडिंग) अधिकतम तीन वर्षों के लिए होगा।
c.अनुदान प्राप्त करने वाले विश्वविद्यालयों/ शोध संस्थानों को योजना के नियमों और शर्तों को स्वीकार करना होगा।
d.बैंक वार्षिक कार्य निष्पादन समीक्षा करेगा।
e.शोध रिपोर्ट का प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) बैंक के पास रहेगा।

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VI. RBI Visiting Fellow Programme

VI. आरबीआई अतिथि अध्येता/सदस्य (विज़िटिंग फेलो) कार्यक्रम

भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी केंद्रीय बैंकों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, विदेशी विश्वविद्यालयों और अन्य अनुसंधान निकायों के विशेषज्ञों के लिए “आरबीआई अतिथि अध्येता कार्यक्रम”प्रारंभ की है। कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  1. अतिथि अध्येता के पास किसी मान्यताप्राप्त विदेशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र या वित्त में एक पीएच.डी डिग्री हो और आदर्शत: विशेषज्ञ समीक्षित विद्वतापूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशन के रिकॉर्ड के साथ विदेश में तीन वर्षों का अनुसंधान अनुभव हो।
  2. भावी अतिथि अध्येता अधिकतम 1000 शब्दों का अनुसंधान प्रस्ताव और विस्तृत जीवन-वृत्त (सीवी) भेजे।
  3. सीवी, अनुशंसा पत्रों और अनुसंधान प्रस्ताव की गुणवत्ता को मिलाकर किए जाने वाले मूल्यांकन के आधार पर चयन होगा। जरूरत हुई तो चुनिंदा अतिथि अध्येताओं का साक्षात्कार वीडियो कॉन्फ़रेंसिंग/ कॉल द्वारा संपन्न किया जा सकता है।
  4. सफल अतिथि अध्येता स्वतंत्र रूप से या आरबीआई केंद्रीय कार्यालय में अनुसंधानकर्ताओं के साथ भारत व उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रासंगिक समष्टिअर्थशास्त्र पूर्वानुमान व विश्लेषण, मौद्रिक नीति, बैंकिंग/ वित्तीय अंतरमध्यस्थता, वित्तीय स्थिरता और अन्य समष्टि व संरचनात्मक विषयों पर भी परियोजना पूरी कर सकेंगे।
  5. आरबीआई भारत में इकोनॉमी क्लास वापसी हवाई किराया, मुंबई में रहने के दौरान उपयुक्त आवास, दैनिक निर्वाह भत्ता और परियोजना की सफल समाप्ति के बाद देय मानदेय देगा।
  6. अतिथि अध्येता (वीज़िटिंग फेलो) को 2 से 3 महीनों में प्रोजेक्ट को पूरा करना होगा जिसके लिए यह जरूरी नहीं कि वे मुंबई में रहें। वे कम से कम आधी अवधि केंद्रीय कार्यालय मुंबई में अधिकतम दो बार में व्यतीत करें।
  7. परियोजना प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद अतिथि अध्येता भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) में एक सेमिनार में अनुसंधान (रिसर्च) को प्रस्तुत करेंगे जिसे आरबीआई वर्किंग पेपर और अंतत: आरबीआई ओकेज़नल पेपर्स में प्रकाशित किया जाएगा।
  8. एक वित्तीय वर्ष (जुलई-जून) में चार अतिथि अध्येताओं तक पर विचार किया जा सकता है। आरबीआई अपने निर्णयानुसार किसी वर्ष अतिथि अध्येताओं (विज़िटिंग फेलो) के संख्या को बदल सकता है।
  9. आई. आरबीआई अतिथि अध्येता कार्यक्रम (विज़िटिंग फेलो प्रोग्राम) के लिए आवेदन वर्ष भर लिए जाएंगे और समयसूची पारस्परिक सुविधानुसार तय की जा सकती है। सीवी व अनुसंधान प्रस्ताव सहित आवेदन ईमेल से भेजे जा सकते हैं

VII. Development Research Group Study Series

VII. विकास अनुसंधान समूह (डीआरजी) अध्ययन श्रृंखला

डीआरजी अध्ययन श्रृंखला बाहर के विशेषज्ञों और बैंक में कार्यरत अनुसंधानकर्ताओं के सहयोगी प्रयास का परिणाम हैं। इनको वृहद दायरे में जारी किया जाता है ताकि सामयिक महत्व के विषयों पर पेशेवर अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के बीच रचनात्मक चर्चा हो।

  • डीआरजी अध्ययन श्रृंखला के सचिवालय के रूप में, डीआरजी अध्ययन श्रृंखला (स्टडीज़ सिरीज़) के सभी प्रस्ताव डीआरजी द्वारा प्राप्त और प्रोसेस किए जाएंगे।
  • डीआरजी अध्ययन बाहरी विशेषज्ञों को सौंपे जाते हैं ताकि सुदृढ़ विश्लेषणात्मक व यथार्थपरक निरुपण के आधार पर, मुख्यत: बैंक को पेश आ रही चुनौतियों के विषयों पर स्पष्टता व समाधान देने वाले, अल्पकालिक आवधिकता के त्वरित व प्रभावी नीति-परक अनुसंधान किए जा सकें।

  • अध्ययन की अवधि सामान्यत: छह महीनों से अधिक नहीं होनी चाहिए।

  • अध्ययन का उत्तरदायित्व पूरी तरह बाहरी विशेषज्ञ पर ही रहता है।

  • डीआरजी अध्ययन की अनुदान राशि बैंक द्वारा निर्धारित सांकेतिक दायरे के भीतर फाइनल की जाए। बैंक द्वारा अध्ययन रिपोर्ट के स्वीकारे जाने के बाद ही मानदेय की राशि जारी की जाएगी।

  • अध्ययन के सिलसिले में डीआरजी, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई आने पर बाह्य विशेषज्ञ को बैंक द्वारा निर्धारित एक भत्ता दैनिक भत्ते के रूप में दिया जाएगा।

  • केद्रीय कार्यालय, मुंबई आने (विज़िट) के लिए बैंक सीमित इकनॉमी घरेलू हवाई-किराया टिकट दे सकता है।

  • उनके मुंबई आगमन पर ठहरने की व्यवस्था, जैसा बैंक तय करे।

  • मुंबई में ठहरने के दौरान /आगमन पर उनकी इच्छानुसार (एट डिस्पोज़ल) वाहन की सुविधा उनको दी जा सकती है।

  • बैंक बाह्य विशेषज्ञों द्वारा दो से अधिक विजिट प्रोत्साहित नहीं करता, जो कि आवश्यकतानुसार हो और प्रत्येक ट्रिप एक बार में दो से तीन दिन से अधिक का न हो।

  • डीआरजी अध्ययन विशेषज्ञ समीक्षित (रेफरीड) प्रकाशन (रेफरीड पब्लिकेशन) होते हैं।

  • विशेषज्ञ (रेफरी) की टिप्पणी बाह्य विशेषज्ञ को उनके विचारार्थ भेजी जाएगी।

अध्ययन प्रारंभ होने के तीन महीने के बाद आंतरिक टीम को, रिज़र्व बेंक केंद्रीय कार्यालय में इस अध्ययन पर एक सेमिनार प्रस्तुत करने को कहा जाए जिससे आंतरिक प्रगति रिपोर्ट का पता चले।

ऊपर जो कहा गया है उसके अलावा, प्रोजेक्ट की मध्यावधि में एक सेमिनार के अतिरिक्त, बैंक को प्रस्तुत किए जाने के पहले डीआरजी उस अध्ययन के फाइनल सेमिनार की व्यवस्था कर सकता है। प्राप्त फ़ीडबैक के आधार पर, अध्ययन टीम उस अध्ययन को अंतिम रूप दे सकती है।

अनुसंधान अध्ययन का प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) बैंक के पास रहता है।

संपन्न हो चुके डीआरजी अध्ययन

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विकास अनुसंधान समूह,

आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग,
7वां तल, केंद्रीय कार्यालय भवन,
भारतीय रिज़र्व बैंक,
फ़ोर्ट, मुंबई – 400 001.

Contact us telephone
+91-22-2260 1000 (Extn. 2246/2528/2239)

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: जनवरी 16, 2023

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